सुन, ओ शैतान की औलाद
(प्रेम शुक्ला)
बीते पखवाड़े जब पूरे देश का मीडिया
दिल्ली के दामिनी बलात्कार कांड से उमड़े जनाक्रोश को जन-जन तक पहुंचाने में
व्यस्त था ठीक उसी समय हैदराबाद के मुस्लिम नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने हिंदुस्थान
के १०० करोड़ हिंदुओं को १५ मिनट में नेस्तनाबूद करने की चेतावनी जारी की। मुंबई
में किसी राजनीतिक उत्पाती के पत्थर से अगर किसी एक टैक्सीवाले की कांच भी फूट जाए
तो दिल्ली के मीडिया मार्तंडों को राष्ट्र की अखंडता पर खतरा मंडराते नजर आने लगता
है। कोई हिंदूवादी नेता अगर किसी एक सड़े हुए मुस्लिम आतंकी को कुचलकर मारने की
चेतावनी जारी कर दे तो तमाम ढोंगी सेकुलरों को धर्मनिरपेक्षता मरणशैय्या पर दिखाई
देने लगती है।
अब क्यों चुप हैं सेकुलरवाद के
ठेकेदार?
शिवसेनाप्रमुख ने जब कभी मुस्लिम वोट बैंक के लालच में अनर्गल मुस्लिम तुष्टीकरण को रोकने के लिए मुस्लिमों के मताधिकार छीनने की मांग रखी तो उनके वक्तव्य के मर्म को समझने की बजाय दिल्ली के ‘पेड इंटलेक्चुअल’ शिवसेनाप्रमुख को दंडित करने के लिए कोलाहल मचाने लगते थे। २ साल पहले मैं आईबीएन-७ पर एक चर्चा में हिस्सा ले रहा था जब मेरे सवालों का जवाब देने में ‘नई दुनिया’ के तत्कालीन संपादक आलोक मेहता खुद को असमर्थ पाने लगे तो उन्होंने खीझकर शिवसेनाप्रमुख को फांसी पर लटकाने की मांग शुरू कर दी। चर्चा के दौरान अगर हम लोगों के मुंह से कोई कठोर शब्द भी निकल जाए तो संसदीय भाषा की दुहाई देकर कांव-कांव करने वाले आईबीएन ७ के संपादक आशुतोष ने आश्चर्यजनक रूप से आलोक मेहता को रोकने-टोकने की बजाय उनकी सफाई में अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर दी। स्थानीय लोकाधिकार के मुद्दे पर शिवसेना ने जब कभी महाराष्ट्र में मराठी, गुजरात में गुजराती और पंजाब में पंजाबी को रोजगार में प्राथमिकता की पैरवी की तो शिवसेना को प्रांतवादी और विघटनवादी करार देकर उसकी मान्यता को रद्द करने के लिए याचिकाओं का अंबार लग गया। आश्चर्यजनक रूप से सेकुलरवाद के सारे ठेकेदारों ने अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर चुप्पी साधे रखी।
शिवसेनाप्रमुख ने जब कभी मुस्लिम वोट बैंक के लालच में अनर्गल मुस्लिम तुष्टीकरण को रोकने के लिए मुस्लिमों के मताधिकार छीनने की मांग रखी तो उनके वक्तव्य के मर्म को समझने की बजाय दिल्ली के ‘पेड इंटलेक्चुअल’ शिवसेनाप्रमुख को दंडित करने के लिए कोलाहल मचाने लगते थे। २ साल पहले मैं आईबीएन-७ पर एक चर्चा में हिस्सा ले रहा था जब मेरे सवालों का जवाब देने में ‘नई दुनिया’ के तत्कालीन संपादक आलोक मेहता खुद को असमर्थ पाने लगे तो उन्होंने खीझकर शिवसेनाप्रमुख को फांसी पर लटकाने की मांग शुरू कर दी। चर्चा के दौरान अगर हम लोगों के मुंह से कोई कठोर शब्द भी निकल जाए तो संसदीय भाषा की दुहाई देकर कांव-कांव करने वाले आईबीएन ७ के संपादक आशुतोष ने आश्चर्यजनक रूप से आलोक मेहता को रोकने-टोकने की बजाय उनकी सफाई में अपनी सारी ऊर्जा खर्च कर दी। स्थानीय लोकाधिकार के मुद्दे पर शिवसेना ने जब कभी महाराष्ट्र में मराठी, गुजरात में गुजराती और पंजाब में पंजाबी को रोजगार में प्राथमिकता की पैरवी की तो शिवसेना को प्रांतवादी और विघटनवादी करार देकर उसकी मान्यता को रद्द करने के लिए याचिकाओं का अंबार लग गया। आश्चर्यजनक रूप से सेकुलरवाद के सारे ठेकेदारों ने अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर चुप्पी साधे रखी।
ऐसी धमकी तो कभी लादेन ने भी नहीं दी
अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर इन पालतू राष्ट्रवादी मुसलमानों तक की बकार भी नहीं फूटी। किसी अन्य शीर्ष नेता ने भी आज दिन तक ओवैसी पर कड़ी कार्रवाई की मांग नहीं की है। किसी बुद्धिजीवी, पत्रकार और सेकुलर नेता ने यह जानने की जहमत भी नहीं उठाई है कि ओवैसी के पास आखिर कौन सा ऐसा हथियार है जिससे वह १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे की वल्गना कर रहा है? कहीं ओवैसी को पाकिस्तानी इस्लामी परमाणु बम हाथ तो नहीं लग गया? ओवैसी जितनी बड़ी धमकी दे रहा है उतनी बड़ी धमकी तो कभी ओसामा बिन लादेन ने भी नहीं दी। जुल्फिकार अली भुट्टो दशकों तक हिंदुस्तान से लड़ने का दंभ भरा करते थे तो उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो सदियों तक हिंदुस्तान से लड़ने का पाकिस्तानी हौसला बयान किया करती थी, पर उन दोनों ने भी कभी १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे का बड़बोलापन नहीं किया। फिर ओवैसी के इतने जबर्दस्त विध्वंसक बयान पर भी सेकुलरवाद के रखवाले गूंगे-बहरे क्यों बने रहे? ‘सहमत’ और शबाना आजमी का एक बयान जरूर आया पर उसमें भी औपचारिक विरोध के अलावा कुछ नजर नहीं आता।
अकबरुद्दीन ओवैसी के बयान पर इन पालतू राष्ट्रवादी मुसलमानों तक की बकार भी नहीं फूटी। किसी अन्य शीर्ष नेता ने भी आज दिन तक ओवैसी पर कड़ी कार्रवाई की मांग नहीं की है। किसी बुद्धिजीवी, पत्रकार और सेकुलर नेता ने यह जानने की जहमत भी नहीं उठाई है कि ओवैसी के पास आखिर कौन सा ऐसा हथियार है जिससे वह १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे की वल्गना कर रहा है? कहीं ओवैसी को पाकिस्तानी इस्लामी परमाणु बम हाथ तो नहीं लग गया? ओवैसी जितनी बड़ी धमकी दे रहा है उतनी बड़ी धमकी तो कभी ओसामा बिन लादेन ने भी नहीं दी। जुल्फिकार अली भुट्टो दशकों तक हिंदुस्तान से लड़ने का दंभ भरा करते थे तो उनकी बेटी बेनजीर भुट्टो सदियों तक हिंदुस्तान से लड़ने का पाकिस्तानी हौसला बयान किया करती थी, पर उन दोनों ने भी कभी १०० करोड़ हिंदुओं के खात्मे का बड़बोलापन नहीं किया। फिर ओवैसी के इतने जबर्दस्त विध्वंसक बयान पर भी सेकुलरवाद के रखवाले गूंगे-बहरे क्यों बने रहे? ‘सहमत’ और शबाना आजमी का एक बयान जरूर आया पर उसमें भी औपचारिक विरोध के अलावा कुछ नजर नहीं आता।
ओवैसी को हल्के में लिया तो पछताओगे
आंध्रप्रदेश की पुलिस ने तो ओवैसी के इस बयान पर एक साधारण एफआईआर दर्ज करना भी जरूरी नहीं माना और उनकी कलम तब उठी जब अदालत ने निर्देश दिया। गुजरात दंगों में मुस्लिमों की मौत के लिए दुनिया की कोई भी अदालत न्याय के मान्य मापदंड पर नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं ठहरा सकती, फिर भी सिर्फ यूरोप-अरब-अमेरिका प्रायोजित एनजीओ बिरादरी के बखेड़े पर मोदी को यूरोप और अमेरिका मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर विराजमान होने के बावजूद वीसा देने से इंकार करते हैं। ओवैसी को इतने घातक बयान के बाद भी ब्रिटेन का वीसा मिलने और लंदन यात्रा करने में कोई दिक्कत नहीं आती। इस राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ढोंग का क्या औचित्य? क्या ओवैसी के बयान को हलके में लिया जा सकता है? ओवैसी जिस आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का विधायक है उसकी पृष्ठभूमि जानने वाला कोई भी जानकार उसके बयान को हलके में लेने की सलाह नहीं देगा। मुस्लिम अलगाववाद का सऊदी अरेबिया और पाकिस्तान प्रायोजित जो ब्लू प्रिंट है उसका अंतिम चरण दक्षिणी हिंदुस्थान का इस्लामी अलगाववाद है। इस्लामी अलगाववाद का पहला चरण कश्मीर, दूसरा चरण असम समेत पूर्वोत्तर, तीसरा चरण हिंदुस्थान के प्रमुख शहरों को निशाना बनाना तथा अंतिम चरण हैदराबाद को केंद्र में रख दक्षिणी हिंदुस्थान में अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देना है।
आंध्रप्रदेश की पुलिस ने तो ओवैसी के इस बयान पर एक साधारण एफआईआर दर्ज करना भी जरूरी नहीं माना और उनकी कलम तब उठी जब अदालत ने निर्देश दिया। गुजरात दंगों में मुस्लिमों की मौत के लिए दुनिया की कोई भी अदालत न्याय के मान्य मापदंड पर नरेंद्र मोदी को दोषी नहीं ठहरा सकती, फिर भी सिर्फ यूरोप-अरब-अमेरिका प्रायोजित एनजीओ बिरादरी के बखेड़े पर मोदी को यूरोप और अमेरिका मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर विराजमान होने के बावजूद वीसा देने से इंकार करते हैं। ओवैसी को इतने घातक बयान के बाद भी ब्रिटेन का वीसा मिलने और लंदन यात्रा करने में कोई दिक्कत नहीं आती। इस राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ढोंग का क्या औचित्य? क्या ओवैसी के बयान को हलके में लिया जा सकता है? ओवैसी जिस आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन का विधायक है उसकी पृष्ठभूमि जानने वाला कोई भी जानकार उसके बयान को हलके में लेने की सलाह नहीं देगा। मुस्लिम अलगाववाद का सऊदी अरेबिया और पाकिस्तान प्रायोजित जो ब्लू प्रिंट है उसका अंतिम चरण दक्षिणी हिंदुस्थान का इस्लामी अलगाववाद है। इस्लामी अलगाववाद का पहला चरण कश्मीर, दूसरा चरण असम समेत पूर्वोत्तर, तीसरा चरण हिंदुस्थान के प्रमुख शहरों को निशाना बनाना तथा अंतिम चरण हैदराबाद को केंद्र में रख दक्षिणी हिंदुस्थान में अलगाववादी ताकतों को बढ़ावा देना है।
हैदराबाद हो पाकिस्तान का हिस्सा...
इस्लामी आतंकवाद का कश्मीर को हिंदुस्थान से अलग करने का प्रयास १९४७ से जारी है। १९६० के दशक से लगातार पूर्वोत्तर हिंदुस्थान में मुस्लिम आबादी बढ़ाकर असम को लीलने का प्रयास चल रहा है। १९८० के बाद से दर्जनों बार असम में स्थानाrय असमी आबादी और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच टकराव हो चुका है। बीते वर्ष जब बोडो जनजाति और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच संघर्ष व्यापक हुआ था तब मुंबई, बैंगलोर समेत तमाम शहरों में मुसलमानों ने किस तरह पूर्वोत्तर वासियों को धमकाया यह पूरा देश हताश होकर देख रहा था। १९९० के दशक से ऑपरेशन के-२ के माध्यम से इस्लामी अलगाववादी देश के तमाम शहरों में निर्दोष हिंदुओं का खून बहाते रहे हैं। हुजी, लश्कर-ए-तोयबा, इंडियन मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार जैसी दर्जनों तंजीमे हिंदुस्थान में ग्रीन कॉरिडोर (हरा गलियारा) बनाने में जुटी रही हैंै। शायद ही कोई प्रमुख शहर बचा हो जहां इस्लामी आतंकवाद का पंजा नजर न आया हो। अब मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी का बयान संकेत दे रहा है कि मुस्लिम अलगाववाद अपने चौथे यानी अंतिम चरण में पहुंचने को है। १९४७ के पहले जिन इलाकों से पाकिस्तान समर्थक बांग लगी थी उसमें हैदराबाद प्रमुख था। हैदराबाद को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की मांग के लिए ही एमआईएम गठित हुई थी। ज्ञात इतिहास के अनुसार १९२७ में निजाम का समर्थन करने के लिए नवाब मीर उस्मान अली खान की सलाह पर महमूद नवाज खान किलेदार गोलकुंडा ने एमआईएम का गठन किया था। इसकी पहली बैठक नवाब महमूद नवाज खान के घर ‘तौहीद मंजिल’ में हुई थी जिसमें पहला ही प्रस्ताव यही था कि एमआईएम को किसी भी सूरत में हैदराबाद को हिंदुस्थान का हिस्सा बनने से रोकना है।
इस्लामी आतंकवाद का कश्मीर को हिंदुस्थान से अलग करने का प्रयास १९४७ से जारी है। १९६० के दशक से लगातार पूर्वोत्तर हिंदुस्थान में मुस्लिम आबादी बढ़ाकर असम को लीलने का प्रयास चल रहा है। १९८० के बाद से दर्जनों बार असम में स्थानाrय असमी आबादी और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच टकराव हो चुका है। बीते वर्ष जब बोडो जनजाति और बांग्लादेशी मुसलमानों के बीच संघर्ष व्यापक हुआ था तब मुंबई, बैंगलोर समेत तमाम शहरों में मुसलमानों ने किस तरह पूर्वोत्तर वासियों को धमकाया यह पूरा देश हताश होकर देख रहा था। १९९० के दशक से ऑपरेशन के-२ के माध्यम से इस्लामी अलगाववादी देश के तमाम शहरों में निर्दोष हिंदुओं का खून बहाते रहे हैं। हुजी, लश्कर-ए-तोयबा, इंडियन मुजाहिदीन, हरकत-उल-अंसार जैसी दर्जनों तंजीमे हिंदुस्थान में ग्रीन कॉरिडोर (हरा गलियारा) बनाने में जुटी रही हैंै। शायद ही कोई प्रमुख शहर बचा हो जहां इस्लामी आतंकवाद का पंजा नजर न आया हो। अब मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी का बयान संकेत दे रहा है कि मुस्लिम अलगाववाद अपने चौथे यानी अंतिम चरण में पहुंचने को है। १९४७ के पहले जिन इलाकों से पाकिस्तान समर्थक बांग लगी थी उसमें हैदराबाद प्रमुख था। हैदराबाद को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने की मांग के लिए ही एमआईएम गठित हुई थी। ज्ञात इतिहास के अनुसार १९२७ में निजाम का समर्थन करने के लिए नवाब मीर उस्मान अली खान की सलाह पर महमूद नवाज खान किलेदार गोलकुंडा ने एमआईएम का गठन किया था। इसकी पहली बैठक नवाब महमूद नवाज खान के घर ‘तौहीद मंजिल’ में हुई थी जिसमें पहला ही प्रस्ताव यही था कि एमआईएम को किसी भी सूरत में हैदराबाद को हिंदुस्थान का हिस्सा बनने से रोकना है।
...तब कासिम राजवी दुम दबाकर भागा
पाकिस्तान की मांग १९३० के दशक में हुई, एमआईएम उसके पहले से अलगाववाद की पैरोकार रही है। १९३८ में बहादुर यार जंग एमआईएम का सदर बना तो उसने मुस्लिम लीग के साथ सियासी समीकरण बैठा लिया। २६ दिसंबर १९४३ को लाहौर के मुस्लिम लीग सम्मेलन में इसी नवाब बहादुर यार जंग ने पाकिस्तान के समर्थन में सबसे आक्रामक भाषण दिया था। एमआईएम ने आजादी के पहले हैदराबाद से हिंदुओं के सफाए के लिए डेढ़ लाख रजाकारों की फौज तैयार की थी। हैदराबाद स्टेट में तब महाराष्ट्र का वर्तमान मराठवाड़ा भी हिस्सा था। हैदराबाद स्टेट के तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर लाइक अली की सलाह पर तब कासिम राजवी नामक वकील को रजाकारों की सेना का मुखिया बनाया गया था। जब १९४८ में रजाकारों ने हिंदुओं का कत्लेआम शुरू किया तब भी पं. जवाहर लाल नेहरू मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते हिंदुओं का खूनखराबा रजाकारों के हाथ चुपचाप देखते रहे। उन दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल देश के गृहमंत्री थे, उन्होंने नेहरू को फटकारा और सेना और पुलिस के संयुक्त अभियान के तहत ‘ऑपरेशन पोलो’ का आदेश दिया। हिंदू जनता पहले से ही रजाकारों की बर्बरता से लड़ने को तैयार थी। जब रजाकार चुन-चुन कर काटे जाने लगे तब मुस्लिम अलगाववादियों का दिमाग ठिकाने पर आया और निजाम भी आत्मसमर्पण को मजबूर हुआ। रजाकारों के मुखिया कासिम राजवी को जेल में ठूंस दिया गया। जब उसने अपने गुनाहों से तौबा कर लिया तब उसे १९५७ में पाकिस्तान जाने की शर्त पर जेल से रिहा किया गया। राजवी के दुम दबाकर भागने के बाद एमआईएम ठंडी पड़ गई। उसका नियंत्रण अब्दुल वाहिद ओवैसी के हाथ आ गया।
पाकिस्तान की मांग १९३० के दशक में हुई, एमआईएम उसके पहले से अलगाववाद की पैरोकार रही है। १९३८ में बहादुर यार जंग एमआईएम का सदर बना तो उसने मुस्लिम लीग के साथ सियासी समीकरण बैठा लिया। २६ दिसंबर १९४३ को लाहौर के मुस्लिम लीग सम्मेलन में इसी नवाब बहादुर यार जंग ने पाकिस्तान के समर्थन में सबसे आक्रामक भाषण दिया था। एमआईएम ने आजादी के पहले हैदराबाद से हिंदुओं के सफाए के लिए डेढ़ लाख रजाकारों की फौज तैयार की थी। हैदराबाद स्टेट में तब महाराष्ट्र का वर्तमान मराठवाड़ा भी हिस्सा था। हैदराबाद स्टेट के तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर लाइक अली की सलाह पर तब कासिम राजवी नामक वकील को रजाकारों की सेना का मुखिया बनाया गया था। जब १९४८ में रजाकारों ने हिंदुओं का कत्लेआम शुरू किया तब भी पं. जवाहर लाल नेहरू मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते हिंदुओं का खूनखराबा रजाकारों के हाथ चुपचाप देखते रहे। उन दिनों सरदार वल्लभभाई पटेल देश के गृहमंत्री थे, उन्होंने नेहरू को फटकारा और सेना और पुलिस के संयुक्त अभियान के तहत ‘ऑपरेशन पोलो’ का आदेश दिया। हिंदू जनता पहले से ही रजाकारों की बर्बरता से लड़ने को तैयार थी। जब रजाकार चुन-चुन कर काटे जाने लगे तब मुस्लिम अलगाववादियों का दिमाग ठिकाने पर आया और निजाम भी आत्मसमर्पण को मजबूर हुआ। रजाकारों के मुखिया कासिम राजवी को जेल में ठूंस दिया गया। जब उसने अपने गुनाहों से तौबा कर लिया तब उसे १९५७ में पाकिस्तान जाने की शर्त पर जेल से रिहा किया गया। राजवी के दुम दबाकर भागने के बाद एमआईएम ठंडी पड़ गई। उसका नियंत्रण अब्दुल वाहिद ओवैसी के हाथ आ गया।
ये है ओवैसी का अतीत...
अब्दुल वाहिद ओवैसी स्वयंभू सालार-ए-मिल्लत (कौम का कमांडर) कहलाता था। १९६० में उसने हैदराबाद महापालिका का चुनाव जीता। १९६२ में अब्दुल वाहिद ओवैसी का बेटा सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी पथरघट्टी विधानसभा सीट जीतकर आंध्र प्रदेश विधानसभा पहुंचा। १९६७ में वह चारमीनार से और १९७२ में यकूतपुरा से विधानसभा पहुंचा। १९७४-७५ में सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी एमआईएम का सर्वेसर्वा बन गया। १९८४ में सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी पहली बार हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुआ तब से २००४ तक वह लगातार सांसद रहा। २००४ में उसने अपनी जगह अपने बेटे असदुद्दीन ओवैसी को हैदराबाद से लोकसभा प्रत्याशी बनाया। २९ सितंबर २००८ को सुलतान सलाहुद्दीन के इंतकाल के बाद उसका बड़ा बेटा असदुद्दीन एमआईएम का प्रमुख बन गया। १९९० के दशक में एमआईएम में फूट पड़ी थी। ओवैसी परिवार के खिलाफ एमआईएम के चंद्रगुट्टा के विधायक अमानुल्ला खान ने बगावत कर दी तो १९९९ में अकबरुद्दीन ओवैसी को उसके खिलाफ उतार कर ओवैसी परिवार ने उसे परास्त किया था। हैदराबाद की महापालिका पर भी एमआईएम का कब्जा है और हैदराबाद का महापौर एमआईएम का मोहम्मद माजिद हुसैन है। एमआईएम की दहशत के चलते बीते कई वर्षों से हैदराबाद में रामनवमी के जुलूस को राज्य सरकार अनुमति नहीं दे रही। चारमीनार के निकट भाग्यलक्ष्मी मंदिर जो कि ३०० साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर है और जिसके नाम पर हैदराबाद पहले भाग्यनगर के रूप में जाना जाता था, के गुबंद का निर्माण रोका गया।
अब्दुल वाहिद ओवैसी स्वयंभू सालार-ए-मिल्लत (कौम का कमांडर) कहलाता था। १९६० में उसने हैदराबाद महापालिका का चुनाव जीता। १९६२ में अब्दुल वाहिद ओवैसी का बेटा सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी पथरघट्टी विधानसभा सीट जीतकर आंध्र प्रदेश विधानसभा पहुंचा। १९६७ में वह चारमीनार से और १९७२ में यकूतपुरा से विधानसभा पहुंचा। १९७४-७५ में सुलतान सलाहुद्दीन ओवैसी एमआईएम का सर्वेसर्वा बन गया। १९८४ में सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी पहली बार हैदराबाद से लोकसभा चुनाव जीतने में कामयाब हुआ तब से २००४ तक वह लगातार सांसद रहा। २००४ में उसने अपनी जगह अपने बेटे असदुद्दीन ओवैसी को हैदराबाद से लोकसभा प्रत्याशी बनाया। २९ सितंबर २००८ को सुलतान सलाहुद्दीन के इंतकाल के बाद उसका बड़ा बेटा असदुद्दीन एमआईएम का प्रमुख बन गया। १९९० के दशक में एमआईएम में फूट पड़ी थी। ओवैसी परिवार के खिलाफ एमआईएम के चंद्रगुट्टा के विधायक अमानुल्ला खान ने बगावत कर दी तो १९९९ में अकबरुद्दीन ओवैसी को उसके खिलाफ उतार कर ओवैसी परिवार ने उसे परास्त किया था। हैदराबाद की महापालिका पर भी एमआईएम का कब्जा है और हैदराबाद का महापौर एमआईएम का मोहम्मद माजिद हुसैन है। एमआईएम की दहशत के चलते बीते कई वर्षों से हैदराबाद में रामनवमी के जुलूस को राज्य सरकार अनुमति नहीं दे रही। चारमीनार के निकट भाग्यलक्ष्मी मंदिर जो कि ३०० साल पुराना ऐतिहासिक मंदिर है और जिसके नाम पर हैदराबाद पहले भाग्यनगर के रूप में जाना जाता था, के गुबंद का निर्माण रोका गया।
औवेसी के सामने कांग्रेस भीगी बिल्ली!
आंध्रप्रदेश विधानसभा में एमआईएम के केवल ७ विधायक हैं पर उनकी दबंगई से कांग्रेस की सरकार कांपती है। अकबरुद्दीन ओवैसी माफिया गतिविधियों और हिंदूद्रोही वक्तव्यों के लिए कुख्यात है। २००७ में इसी अकबरुद्दीन ने ऐलान किया था कि यदि सलमान रश्दी या तस्लीमा नसरीन कभी हैदराबाद आए तो वह उनके सिर कलम कर लेगा। तस्लीमा नसरीन पर एमआईएम के कार्यकर्ताओं ने हमले की योजना भी बनाई थी, पर आज दिन तक आंध्र की कांग्रेस सरकार ने अकबरुद्दीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। २०११ में कुरनूल में एमआईएम की एक रैली में इसी अकबरुद्दीन ने आंध्र के विधायकों को काफिर तथा आंध्र की विधानसभा को कुप्रâस्तान कह कर अपमानित किया था, पर किसी आंध्र के विधायक ने अकबरुद्दीन पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाने की भी हिम्मत नहीं जुटाई। इसी रैली में उसने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव को कातिल, दरिंदा, बेईमान, धोखेबाज और चोर जैसी गालियां देकर कहा था -‘अगर राव मरा नहीं होता तो मैं उसे अपने हाथों से मार डालता।’ अप्रैल २०१२ में अकबरुद्दीन ने हरामीपने की हद पार करते हुए हिंदुओं के प्रभु राम और उनकी मां कौशल्या के लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जिसे सुनकर उस सूअर के पिल्ले की खाल खींच लेना ही एकमेव दंड बचता है।
आंध्रप्रदेश विधानसभा में एमआईएम के केवल ७ विधायक हैं पर उनकी दबंगई से कांग्रेस की सरकार कांपती है। अकबरुद्दीन ओवैसी माफिया गतिविधियों और हिंदूद्रोही वक्तव्यों के लिए कुख्यात है। २००७ में इसी अकबरुद्दीन ने ऐलान किया था कि यदि सलमान रश्दी या तस्लीमा नसरीन कभी हैदराबाद आए तो वह उनके सिर कलम कर लेगा। तस्लीमा नसरीन पर एमआईएम के कार्यकर्ताओं ने हमले की योजना भी बनाई थी, पर आज दिन तक आंध्र की कांग्रेस सरकार ने अकबरुद्दीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। २०११ में कुरनूल में एमआईएम की एक रैली में इसी अकबरुद्दीन ने आंध्र के विधायकों को काफिर तथा आंध्र की विधानसभा को कुप्रâस्तान कह कर अपमानित किया था, पर किसी आंध्र के विधायक ने अकबरुद्दीन पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाने की भी हिम्मत नहीं जुटाई। इसी रैली में उसने पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव को कातिल, दरिंदा, बेईमान, धोखेबाज और चोर जैसी गालियां देकर कहा था -‘अगर राव मरा नहीं होता तो मैं उसे अपने हाथों से मार डालता।’ अप्रैल २०१२ में अकबरुद्दीन ने हरामीपने की हद पार करते हुए हिंदुओं के प्रभु राम और उनकी मां कौशल्या के लिए ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया जिसे सुनकर उस सूअर के पिल्ले की खाल खींच लेना ही एकमेव दंड बचता है।
अगस्त २०१२ में इसी अकबरुद्दीन ओवैसी
ने आंध्र पुलिस को ‘हिजड़ों
की फौज’
करार
दिया था, तब भी इस ‘लंडूरे’ के खिलाफ आंध्र पुलिस का आत्म सम्मान नहीं जागृत हुआ। उस समय भी
ओवैसी ने चुनौती दी थी कि पुलिस और हिंदुओं में मुसलमानों से लड़ने की ताकत नहीं।
बीते माह ८ दिसंबर २०१२ को इसी हरामपिल्ले ने फिर जहर उगला- ‘यह भाग्यलक्ष्मी कौन है और वहां बैठ
कर क्या कर रही है? यह हिंदुओं का नया देवता कौन है, मैंने तो इसका नाम पहले कभी नहीं
सुना। इतनी जोर से नारा लगाओ कि उनका भाग्य कांप जाए और लक्ष्मी गिर पड़े।’ अकबरुद्दीन ने जब यह हरामपंथी वाला
बयान दिया तब मुस्लिमों की उन्मादी भीड़ ने ‘अल्लाह ओ अकबर’ का गगनभेदी नारा लगाया। उसके बाद उसने
२४ दिसंबर को आदिलाबाद में हजारों मुसलमानों की मौजूदगी में १०० करोड़ हिंदुओं के १५
मिनट में खात्मे की कूवत का ऐलान किया। नरेंद्र मोदी को फांसी पर लटकाने की मांग
की। सरकार मुस्लिम वोट बैंक के लिए चुप्पी साधे पड़ी है। सरकार हिंदुओं के
सहनशीलता का इम्तहान ले रही है। यदि अकबरुद्दीन पर कार्रवाई नहीं हुई और हिंदुओं
का माथा भड़का तो उसकी ऐसी दुर्दशा होगी कि उसके पूर्वज भी कब्र से निकल कर अपने
गुनाहों के लिए तौबा करेंगे। सौ करोड़ हिंदू यदि एकमुश्त लघुशंका भी कर देंगे तो
ओवैसी खानदान डूबकर मर जाएगा!
(लेखक शिवसेना
के मुखपत्र सामना के कार्यकारी संपादक हैं)
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