वैध कालोनी अवैध
कालोनी
(लिमटी खरे)
पूरे भारतवर्ष में
बढ़ती आबादी के साथ ही शहरीकरण जोर से होने लगा। नागरिक शास्त्र का सिद्धांत है कि
औद्योगीकरण के साथ ही नगरीकरण तेज हो जाता है। शहरों के आसपास खाली जगहों पर
कालोनी बसना आरंभ हो जाती हैं। लोग इन कालोनाईजर्स के लुभावने विज्ञापन में फंसकर
प्लाट खरीद लेते हैं फिर किसी तरह वहां मकान बनाकर रहना भी आरंभ कर देते हैं। असली
मरण तब होती है जब ये बेचारे लोग बारिश में कीचड़ से सनी कच्ची सड़क पर चलते हैं, पानी के लिए तरसते
हैं और तो और इन्हें बिजली का कनेक्शन भी अस्थाई ही प्रदाय किया जाता है।
प्रदेश की राजधानी
भोपाल में नए भोपाल की अवधारणा बहुत ही अच्छे आधार पर बनाई गई थी, फिर भी नए भोपाल
में झुग्गियों की तादाद बेहद है। इसका कारण क्या है इस बारे में सोचने की शायद ही
किसी को चिंता हो। दरअसल, कालोनी या सरकारी रिहाईश तो बना दी जाती है पर यह कभी नहीं
सोचा जाता है कि घरों में बर्तन खटका आदि करने का काम करने वाली बाईयां कहां से
आएंगी? क्या वे
दूर से आएंगी?
निश्चित तौर पर
इसका जवाब नहीं ही होगा। घरों का काम करने वाले लोग इन्हीं कालोनी के इर्द गिर्द
ही झोपड़ पट्टी बनाकर रहना आरंभ कर देते हैं। जब ये शुरूआत में बसाहट करते हैं तब
स्थानीय निकाय का ध्यान इस ओर नहीं जाता है। इसके साथ ही साथ जब दस बीस घर बन जाते
हैं तब भूमाफिया भी यहां झोपड़ी बनाकर उसमें रहना आरंभ कर बाद में उन्हें किराए से
उठा देता है।
सिवनी शहर में भी
उपनगरीय क्षेत्रों में आज भी इस तरह की बसाहट देखी जा सकती है। महाकालेश्वर मंदिर
की टेकड़ी, भैरोगंज, बरघाट नाका, पालीटेक्निक के
पीछे, बबरिया के
पास, ज्यारत
नाका, छिंदवाड़ा
नाका, झिरिया, आदि क्षेत्रों में
यह बसाहट साफ देखी जा सकती है। इन बस्तियों में ना तो पानी निकासी का उचित साधन है
ना ही पानी लाने का। इतना ही नहीं इन क्षेत्रों में साफ सफाई का अभाव भी साफ देखा
जा सकता है जो अनेक तरह की बीमारियों का कारक भी होता है।
इसके अलावा शहर में
अनेक कालोनियां विकसित हो रही हैं, और हो चुकी हैं। इन कालोनी का जब आरंभ होता
है तब कालोनाईजर्स आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से लोगों को लुभाते हैं। बाद में
जब सारे प्लाट बिक जाते हैं तब वहां विकास का काम नगर पालिका के जिम्मे बताकर
कालोनाईजर्स हाथ खड़े कर लेते हैं। देखा जाए तो इस तरह के कालोनाईजर्स दूध की मलाई
तो चट कर जाते हैं बाद का छाछ नगर पालिका के मत्थे छोड़ दिया जाता है।
वस्तुतः किसी भी
कालोनी के बनने के समय उस समय के वहां के पार्षद की यह जवाबदेही बनती है कि वह
कालोनाईजर्स की मश्कें कसे और प्लाट की बिकावली तभी आरंभ होने दे जब वहां नाली, प्रकाश, सड़क, खेल का मैदान, देवालय, पार्क आदि की वह
व्यवस्था जो कालोनाईजर्स द्वारा टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग को अपने प्रस्ताव के
साथ जमा करता है को पूरा कर लिया जाए। होता यह है कि पार्षद भी इस दिशा में अनदेखी
ही कर जाते हैं।
दूर की कौन कहे जब
सरकारी महकमों में ही कालोनी के निर्माण में बुरे हाल हों तो फिर वह कहावत कैसे
चरितार्थ नहीं होगी कि सारा आसमान ही फटा है कहां कहां पैबंद लगाओगे! शहर के मंहगे
रिहाईशी इलाके में मध्य प्रदेश गृह निर्माण मण्डल ने पुरानी हाउसिंग बोर्ड कालोनी
को बसाया था। उसके बाद यहां समता नगर बसा। इन दोनों ही बसाहटों में हाउसिंग बोर्ड
का उदासीन रवैया किसी से छिपा नहीं है।
समता नगर में पानी
निकासी के लिए एचआईजी के सामने या पीछे कोई नाली नहीं है। इसके अलावा टाउन एण्ड
कंट्री प्लानिंग को जमा कराए नक्शे में बोर्ड ने इस कालोनी में तीन पार्क
प्रस्तावित किए थे। आज अगर इस कालोनी का निरीक्षण किया जाए तो यहां एक भी पार्क
अस्तित्व में नहीं है। मजे की बात तो यह है कि शेल्टरलेस लोगों के लिए छोड़ी गई
प्रंदह फीसदी जमीन पर भी मकान बनाकर हाउसिंग बोर्ड ने बेच दिए हैं।
हाल ही में
बारापत्थर से लगी राम नगर कालोनी के लोग नगर पालिक गए और इस कालोनी को वैध कर सारी
सुविधाएं देने की मांग की। उनकी मांग जायज है, आखिर उनका दोष क्या
है? जब
कालोनाईजर ने उन्हें सब्जबाग दिखाकर प्लाट बेच दिए तब अब कालोनाईजर भला अपनी
जवाबदेही से कैसे बच सकता है? नगर पालिका प्रशासन को चाहिए कि वह संबंधित
कालोनाईजर पर तगड़ा अर्थदण्ड लगाए और इसे नजीर बनाकर पेश करे ताकि बाकी की विकसित
और विकसित होने जा रही कालोनी के मालिक सचेत हो जाएं।
पालिका प्रशासन को
कठोर कदम उठाने ही होंगे। जिला प्रशासन से भी अपेक्षा है कि इस दिशा में ठोस पहल
कर शहर के लोगों को कालोनी के अवैध व्यवसाय से लुटने से बचाए। पर इसके लिए प्रशासन
और पालिका दोनों ही को अपने निहित स्वार्थ से उपर उठना आवश्यक होगा। अगर ऐसा नहीं
हुआ तो शहर के लोग इन पैसों के लोभी कालोनाईजर्स के झांसे में फंसकर लुटते रहेंगे
और साथ ही साथ बाद में अवैध कालोनी को वैघ करने के चक्कर में सरकारी धन का
दुरूपयोग होगा सो अलग!
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