सोमवार, 13 मई 2013

सिवनी में क्रिकेट का हाईटेक सट्टा!


सिवनी में क्रिकेट का हाईटेक सट्टा!

(लिमटी खरे)

सिवनी जिले में आईपीएल के दौरान पुलिस ने दूसरी बार सटोरियों को पकड़ने में सफलता हासिल की है। पुलिस निस्संदेह बधाई की पात्र है कि सिवनी में इस तरह की गतिविधियों पर कम से कम अंकुश लगाने की कार्यवाही तो की गई। सालों से सटोरियों को पकड़ने की कार्यवाही जारी है पर पुलिस के हाथ छुटभैया सटोरिए ही लगते आए हैं। इनके सरपरस्त कौन है यह बात सभी जानते हैं पर उन पर हाथ डालने से पता नहीं क्यों पुलिस हिचकती आई है।
इक्कीसवीं सदी के आरंभ तक सिवनी में मुंबई और नागपुर का सट्टा बाजार गर्म रहा। उस समय दोपहर और रात में काफी अधिक मात्रा में सट्टे की पट्टी लिखी जाती थीं। उस दौर में कहा जाता था कि रात को जो नौ बजे ओपन आती थी वह रात का खाना खाने नहीं देती थी, और बारह बजे की क्लोज सोने नहीं देती थी। सट्टा खेलने वाले कहा करते थे कि नौ की खाने नहीं देती और बारह की सोने नहीं देती।
इसके बाद सट्टे का जोर कम हुआ। इसके बाद आरंभ हुआ क्रिकेट के सट्टे का दौर। सिवनी में ना जाने कितने परिवार इस सट्टे के चलते बिखर चुके हैं। पांच से दस परसेंट महीना की दर पर आज भी बाजार में निजी दबंग लोगों द्वारा ब्याज पर पैसे देने का काम बदस्तूर जारी है। पिछले दिनों जब तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रमन सिंह सिकरवार ने इसके खिलाफ अभियान चलाया था तब पुलिस को सटोरियों के पास से हस्ताक्षरित चैक बुक और एटीएम कार्ड भारी मात्रा में मिले थे। कहा जा रहा था कि सरकारी कर्मचारियों को एक तारीख को ये सटोरिए और अवैध रूप से ब्याज का धंधा करने वाले अपना ब्याज का पैसा काटकर वेतन का भुगतान करते थे।
आज सिवनी में करोड़ों रूपयों की सट्टे की लगवाड़ी की खबर है। मिथलेश शुक्ला के पुलिस अधीक्षक पद संभालने के उपरांत दो बड़ी सफलताएं पुलिस के हाथ लगी हैं। एक पेंच नेशनल पार्क में तो दूसरा चलित कार में पकड़ाया है। पुलिस ने इन्हें किस आधार पर पकड़ा, यह तो वह ही जाने पर पुलिस का लचर हो चुका मुखबिर तंत्र एक बार फिर अपने आप को खड़ा करने के प्रयास में नजर आ रहा है, इसके लिए मिथलेश शुक्ला बधाई के पात्र हैं।
पुलिस ने दोनों ही बार कुछ मोबाईल और अन्य यंत्र भी बरामद किए हैं। इन मोबाईल की डिटेल भी जाहिर है अब तक निकलवाई जा चुकी होगी। इन मोबाईल को किसने किसके नाम की आईडी और फोटो के साथ जमा किया है यह बात भी पुलिस के पास आ चुकी होगी, फिर देर किस बात की। पुलिस को उन लोगों की कालर पकड़ ही लेना चाहिए। बीएसएनएल में एक व्यक्ति नौ सिम तक जारी करवा सकता है।
जरायमपेशा लोगों ने अपने इस धंधे के लिए किन लोगों को आधार बनाया है इस बारे में पुलिस को अपना शिकंजा कसना होगा। इन मोबाईल पर किन किन लोगों ने फोन कर पैसा लगाया है यह बात भी पुलिस को देखना ही होगा। जिन्होंने इन नंबर्स पर फोन लगाया है उन्हें पकड़कर उनसे भी कड़ी पूछताछ की आवश्यक्ता है। पुलिस के पास बल की कमी है, यह बात भी आईने की तरह ही साफ है। पुलिस को सीमित संसाधनों में ही काम करना है, यह भी सही बात है।
पुलिस को चाहिए कि दोनों ही वारदातों में जप्त सारे मोबाईल और अन्य फोन की आउट गोइंग अवश्य ही चेक करवाए, क्योंकि ये छोटे धंधेबाज हैं जो पकड़े गए हैं। असल कारिंदे तो कहीं और बैठे अपने आप को व्हाईट कालर जता रहे हैं। इस संभावना में भी दम है कि अब तक कुल पचास लाख रूपए की लगवाड़ी को पचाने में पकड़े गए आरोपी सक्षम नहीं हैं। निश्चित तौर पर यह लगवाड़ी आगे सट्टे की भाषा में पानाबनाकर उतार दी जाती होगी।
पुलिस अगर आउट गोईंग काल्स के बारे में पता करके उन नंबरों की सिम किसने किसके नाम जारी करवाई इस दिशा में प्रयास करे तो पुलिस के हाथ अप्रत्याशित सफलता लगे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। जिन नंबर्स से इन मोबाईल पर काल आई है उनके भी काल डिटेल अगर निकलवाएं जाएं और उन नंबर्स से लगातार किन नंबर्स पर काल की जा रही है इसकी मानिटरिंग भी की जाए तो अन्य सटोरियों की कालर भी पुलिस की पकड़ में होगी।
पुलिस को इसके लिए कड़ी मेहनत करना होगा, साथ ही अपने विभाग के ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ अफसरों और कर्मचारियों को इस काम में लगाना होगा, क्योंकि पुलिस की छवि अब भ्रष्ट और लोगों को बचाने वाली बन चुकी है। सिवनी में जंगलों में जुंआ खिलाए जाने की खबरें जब तब आती रहती हैं, आए दिन अपराध घटित हो रहे हैं।
इस सबसे निपटने और आम जनता को राहत देने के लिए पुलिस को अपना सूचना तंत्र दुरूस्त करने के साथ ही साथ विकसित भी करना होगा। पुलिस को मुखबिर तंत्र को भी चाक चौबंद बनाना होगा। पुलिस अधीक्षक की कार्यप्रणाली से आम जनता राहत महसूस कर रही है इस बात में संदेह नहीं, फिर भी पुलिस के मुखिया को अधीनस्थ स्टाफ को पूरी तरह नियंत्रण में ही रखना आवश्यक है।
जिला मुख्यालय में अप्रेल 1991 में बनाए गए कंट्रोल रूम को भी अत्याधुनिक संसाधनों से सुसज्जित कर वहां भी प्रशिक्षित कर्मचारियों की तैनाती सुनिश्चित करना आवश्यक है। वर्तमान में पुलिस कंट्रोल रूम का रवैया संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। जिले में कहीं भी घटित अपराध की सूचना सबसे अंत में अगर किसी को लगती है तो वह कंट्रोल रूम को ही लग पाती है। इसका उदाहरण मीडिया जब भी किसी घटना के बारे में कंट्रोल से बात करता है तो वहां से उसके बारे में अनभिज्ञता ही व्यक्त की जाती है। लगता है मानो यह रस्म अदायगी के लिए ही रह गया है। जिला पुलिस अधीक्षक का विभाग में लंबा अनुभव है जिसका लाभ सिवनी जिले को निश्चित तौर पर मिलना ही चाहिए।

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