सड़कों पर लगते जाम, यात्री हलाकान!
(लिमटी खरे)
दुर्भाग्य घोर
दुर्भाग्य! सिवनी जिले की जीवन रेखा मानी जाने वाली जबलपुर नागपुर सड़क पर आए दिन
जाम लगा करते हैं। जाम कोई आज कल से नहीं लग रहे हैं। जाम पिछले लगभग पांच छः
सालों से अधिक लग रहे हैं, इसके पहले जाम बारिश में ही लगा करते थे। वर्तमान में जाम
लगने का कारण सिर्फ और सिर्फ सांसद विधायकों की उदासीनता के चलते सड़क का हुआ
बंटाधार ही प्रमुख कारण है।
देश की जीवन रेखा
अगर एनएच 7 जिसका अधिकांश हिस्सा अब एनएचएआई में तब्दील हो चुका है को मान लिया
जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। इस सड़क का हिस्सा सिवनी जिले से होकर भी गुजरता है।
इस सड़क को सिवनी वासी अपनी आन बान शान समझते थे, अब लोग इस सड़क के
बारे में चर्चा करने में कतराने लगे हैं। इसका प्रमुख कारण इस सड़क की जर्जर हालत
और इस सड़क पर लगने वाले जाम हैं।
कुछ माहों पूर्व
आलम यह था कि सिवनी से नागपुर जाने वाले बरास्ता कुरई के स्थान पर छिंदवाड़ा जाना
ही पसंद किया करते थे। इसका कारण मोहगांव से खवासा के 22 किलोमीटर हिस्से का
मोटरेबल ना होना था। इस सड़क पर पर्यावरण विभाग का फच्चर फंसा हुआ था। इस बारे में
अनेक आंदोलन हुए, सिवनी बंद
का आव्हान कई मर्तबा हुआ पर सांसद विधायकों की तंद्रा नहीं टूटी। नतीजतन इस सड़क पर
चलना मुहाल हो गया।
बताते हैं कि एक
वरिष्ठ अधिकारी जो जबलपुर में पदस्थ हैं का घर महाराष्ट्र के नागपुर में है। वे
अक्सर इस मार्ग से जबलपुर से नागपुर जाया आया करते थे। सड़क की हालत देखकर उन्हें
बहुत पीड़ा हुई। चर्चा है कि एक बार सिवनी से गुजरते समय उन्होंने सिवनी के
तत्कालीन जिला कलेक्टर अजीत कुमार को बुलाया और इस सड़क को दुरूस्त करवाने के कड़े
निर्देश दिए। उनके तल्ख तेवरों को देखकर कुछ अफसरान इस सड़क के लिए आंदोलन करने
वालों के पास तक गए,
किन्तु नतीजा कुछ नहीं निकला।
अंततः भला हो उन
अधिकारी महोदय का कि इस सड़क पर डामरीकरण करवा दिया गया। अब डामरीकरण हुआ अर्थात
2008 में भी डामरीकरण हो सकता था, जो नहीं करवाया गया, या होने नहीं दिया
गया, या निर्माण
एजेंसी ने नहीं किया और इसमें आने वाले खर्च को अपनी और कुछ अन्य लोगों की जेब का
हिस्सा बना दिया।
इस सड़क पर से उत्तर
और दक्षिण भारत से आने वाले वाहन गुजरते हैं। इनमें निर्धारित से अधिक क्षमता भरे
हुए वाहनों की तादाद बहुत ही ज्यादा होती है। सिवनी को एक तरह से देखा जाए तो
नागपुर, छिंदवाड़ा, बालाघाट दिशा से
आने वाले यातायात का गेटवे माना जा सकता है। इस लिहाज से सिवनी में इस सड़क पर
यातायात का दबाव बहुत ही ज्यादा होना स्वाभाविक ही है।
सिवनी जिले में
खवासा में आरटीओ की जांच चौकी है। सिवनी जिला पुलिस के पास हाईवे मोबाईल है, कुरई, लखनवाड़ा थाने की
चौकी गोपालगंज में,
सिवनी कोतवाली पुलिस, यातायात पुलिस, बंडोल, छपारा, लखनादौन और धूमा
पुलिस के पास अमला है जो इन वाहनों को चेक कर सकता है कि इनमें लोड कितना भरा है।
विडम्बना ही कही जाएगी कि ये सिर्फ और सिर्फ चौथ वसूलने के काम तक अपने आपको सीमित
कर रखे हुए हैं।
नागपुर रोड़ पर घंटो
जाम लगना स्वाभाविक प्रकृति बनकर रह गई है। सिवनी में चिकित्सा के क्षेत्र में
सुविधाएं नहीं के बराबर ही हैं। कमोबेश संभागीय मुख्यालय जबलपुर का भी यही हाल है।
यही कारण है कि सिवनी के मरीज हर समय हर बीमारी के लिए नागपुर के अस्पतालो ंपर ही
निर्भर हैं। इन मरीजों को सिवनी से कुरई खवासा होकर ही नागपुर जाना आना पड़ता है।
पहले बदहाल सड़क में इनकी जान सांसत में होती थी और अब जाम से इनके प्राण अटके होते
हैं।
सिवनी से नागपुर की
ओर के सड़क के हिस्से का निर्माण करा रही सदभाव कंस्ट्रक्शन कंपनी की लापरवाही से अब
तक ना जाने कितनी जाने जा चुकी हैं। देखा जाए तो सदभाव कंपनी के मालिकान पर गैर
इरादतन हत्या का मामला पेश किया जाना चाहिए। सड़क के लिए आंदोलन करने आगे आए लोगों
ने भी इस दिशा में शायद सोचा नहीं।
अभी हाल ही में
धूमा के पास दो वाहनों के कारण लंबे समय तक जाम लगा रहा। इसी बीच केवलारी विधायक
और मध्य प्रदेश विधान सभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर का अवसान हो गया। उनकी
अंतिम यात्रा में प्रदेश सरकार के अनेक मंत्री, कांग्रेस के वरिष्ठ
नेता भी आए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी वहां पहुंचे।
कांग्रेस के हाई प्रोफाईल
नेता तो छिंदवाड़ा की हवाई पट्टी का उपयोग कर आए और आसानी से वापस उड़ लिए। इसी तरह
प्रदेश सरकार के मंत्री भी इसी रास्ते को अपना लिए। जब बारी आई मुख्यमंत्री की तो
मुख्यमंत्री ने इच्छा जतला दी कि वे अंतिम क्रिया होने तक बैनगंगा के तट पर
रूकेंगे।
सीएम शिवराज सिंह
चौहान की मंशा ने पुलिस और प्रशासन के हाथ पांव फुला दिए। इसका कारण यह था कि
उन्हें डर था कि कहीं धूमा के आसपास फिर से जाम लग गया तो सीएम का नजला उन पर फट
सकता है। धूमा और लखनादौन पुलिस की जान तब तक अटकी रही जब तक शिवराज सिंह चौहान
वहां से विदा नहीं हो गए। अगर आम आदमी होता तो वह जाम में फसे, गर्मी में हलाकान
हो, पानी को
तरसे इस बात से किसी को कुछ लेना देना नहीं है। जिले के सांसद विधायक तो अपने
दायित्वों की तरफ से मुंह मोड़कर बैठ चुके हैं, अब जिला वासियों की
अपेक्षाएं यहां पदस्थ अफसरों से ही शेष बची हैं।
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