0 साईपुरम साई मंदिर भूमि विवाद
लंबे समय तक कोषाध्यक्ष रहे हैं
आपत्तिकर्ता
(संजीव प्रताप सिंह)
सिवनी (साई)। नगझर स्थित साईपुरम के साई
मंदिर की जमीन का विवाद अभी भी नहीं सुलझ सका है। किसकी जमीन पर यह मंदिर बना है
इस बात पर से पर्दा नहीं उठ सका है। 22 मई को इस संबंध में अनुविभागीय दण्डाधिकारी
के कार्यालय में हुई पेशी को अब 29 तारीख तक बढ़ा दिया गया है। इसमें आपत्तिकर्ता
शरद अग्रवाल लंबे समय तक सांई मंदिर समिति के कोषाध्यक्ष भी रहे हैं।
ज्ञातव्य है कि जगतगुरू शंकराचार्य
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के द्वारा पीर फकीर के पास जाने की बात को लेकर की गई
टिप्पणी के उपरांत साई मंदिर समिति नगझर के सचिव प्रसन्न चंद मालू द्वारा जारी
विज्ञप्ति में कहा गया था कि साई भक्तों के धेर्य को, उनकी श्रृद्धा को, ऐसे तत्वों द्वारा गलत अंदाज में देखा
जा रहा है। साई भक्त कतई भी कायर नहीं हैं, यदि कोई भी व्यक्ति हमारे (श्री मालू
के) ईष्ट देवता के संबंध में गलत टिप्पणियां करेगा तो उसका माकूल जवाब दिया जाएगा।
इसके अगले दिन हिन्दु महासभा के
प्रदेशाध्यक्ष संजय मण्डल ने एक विज्ञप्ति जारी कर साई मंदिर प्रबंधन को ही कटघरे
में खड़ा कर दिया गया था। इस विज्ञप्ति में संजय मण्डल द्वारा मंदिर प्रबंधन पर
संगीन आरोप लगाए थे, जिनका जवाब इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मंदिर प्रबंधन द्वारा नहीं
दिया गया है, ना ही अपनी स्थिति ही स्पष्ट की है।
वहीं दूसरी ओर मंदिर के ट्रस्ट के
पंजीयन के लिए राजपत्र में प्रकाशन के उपरांत कुछ कागजी कार्यवाही के लिए अनुविभागीय
दण्डाधिकारी के कार्यालय भेजा गया, जहां इसकी जानकारी मिलने पर दूसरे पक्ष
शरद अग्रवाल द्वारा अपने अधिवक्ता शैलू सक्सेना के माध्यम से एक आपत्ति पेश कर दी
गई है।
शरद अग्रवाल का दावा है कि जिस स्थान पर
मंदिर का निर्माण किया गया है वह भूमि 11 जून 1992 को श्री शिरडी साई संस्थान
सिवनी के तत्कालीन अध्यक्ष अधिवक्ता दादू राघवेंद्र नाथ सिंह द्वारा खरीदी गई थी, इस भूमि पर आमजन के सहयोग से भव्य मंदिर
का निर्माण किया गया था।
भूमि विवाद अब गहराने लगा है। ज्ञातव्य
है कि गत 19 मई को अपनी विज्ञप्ति देने दैनिक हिन्द गजट कार्यालय आए साईं मंदिर
समिति के सचिव प्रसन्न चंद मालू ने यह दावा किया था कि जिस भूमि पर मंदिर बना है
उस भूमि को उन्होंने स्वयं के पैसों से खरीदकर मंदिर को दान दिया है।
वहीं, अब चर्चाओं का ना थमने वाला दौर भी आरंभ
हो चुका है। चर्चाओं के अनुसार इस मंदिर के नए नाम से गठित होने वाले प्रस्तावित
ट्रस्ट में आरंभ में भूमि खरीदने वाले अधिवक्ता दादू राघवेंद्र नाथ सिंह का नाम
आखिर क्यों हटाया गया? इसके अलावा आर.के.शर्मा, श्रीमति सुषमा राय, बी.एस.ठाकुर, श्री आक्टे, वास्तु इंजीनियर दीपक अग्रवाल, पंडित तेजनारायण आदि जैसे साईभक्त जो इस
मंदिर की पहली ईंट जुड़ने से साथ में थे को हाशिए पर रख दिया गया है।
वहीं, अब यह बात भी उभरकर सामने आ रही है कि
आखिर क्या वजह है कि सालों साल मंदिर समिति के कोष का हिसाब किताब रखने वाले
कोषाध्यक्ष शरद अग्रवाल अचानक ही इस मंदिर समिति से एकाएक विमुख हो गए और ना तो
मंदिर के प्रस्तावित ट्रस्ट में ही उनका नाम है और ना ही मंदिर में दिखाई ही दे
रहे हैं। शरद अग्रवाल के मंदिर से क्रियाकलापों से विमुख होने और मंदिर के ट्रस्ट
में ही आपत्ति लगाने पर सभी को आश्चर्य हो रहा है।
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