गौशाला में
गौमाताओं का रूदन. . .
(लिमटी खरे)
मातृशक्ति संगठन
द्वारा गत दिवस किए गए गौशाला के निरीक्षण में जो स्थितियां उभरकर सामने आई हैं वे
निश्चित तौर पर मानवीयता को तार तार करने के लिए पर्याप्त कही जा सकती है। गाय
जिसे सनातन पंथी अपनी माता से ज्यादा मानते हैं वे जमीन पर पड़ी तड़प रहीं हैं। भले
ही अब इस बात का खण्डन, मुण्डन या प्र्रतिकार में जो भी विज्ञप्तियां आएं पर
मातृशक्ति संगठन द्वारा गौशाला में गौमाताओं की जिस तरह की फोटो जारी की हैं वे
मानवता को शर्मसार किए बिना नहीं हैं।
गौशाला में
कत्लखाने जा रही गायों को छुड़ाकर रखा गया है। वैसे भी दूध ना देने वाली गायों को
गौशालाओं में भेजने का रिवाज आदि अनादिकाल से चला आ रहा है। पहले ऋषि मुनियों के
आश्रम में इन गायों की सेवा की जाती थी। इन गायों के गोबर और गौमूत्र का उपयोग
अनेक तरह से किया जाता रहा है। आज भी गायत्री परिवार के द्वारा संचालित गौशालाओं
में गौमूत्र को बाकायदा बेचा जाता है पर बेहद ही कम कीमत पर। गौमूत्र का उपयोग
स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है इस बात से सभी भली भांति परिचित हैं। एक समय था जब
गौमूत्र से ऋषि मुनि स्नान किया करते थे।
गाय की महिमा
अपरंपार है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। गौवंश को बचान के लिए देश भर
में अनेक राज्यों की सरकारों, संगठनों द्वारा समय समय पर मुहिम चलाई जाती
है। हिन्दुवादी विचारधारा के लोगों द्वारा गौवंश को गौकशी से बचाने के लिए ना जाने
कितने प्रयास किए जाते हैं।
मध्य प्रदेश में
जबसे भाजपा सरकार आई है तबसे गौवंश को बचाने की मुहिम बहुत तेज हो गई है। गौवंश को
बचाने में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की महती भूमिका रही है। इसके बाद सीएम बने
बाबू लाल गौर ने भी काफी हद तक प्रयास किए अब शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के निजाम
हैं।
भाजपा सरकार ने
गौवंश का परिवहन ही प्रतिबंधित कर कानून बना दिया है। सिवनी जिला मध्य प्रदेश और
महाराष्ट्र की सीमा पर अवस्थित है। इस जिले में पिछले कई सालों से लगभग हर सप्ताह
गौवंश का परिवहन पकड़ाया जाता है। सिवनी में पदस्थ रहे पुलिस अधीक्षक रमन सिंह सिकरवार
ने गौवंश के परिवहन पर सख्त रवैया अपनाया था। उस समय गौवंश का परिवहन काफी हद तक
रूक गया था।
बताते हैं कि उस
वक्त रमन सिंह सिकरवार ने अनेक पुलिस कर्मियों को सख्त हिदायत दी थी कि गाय की
गाड़ी का पैसा अगर खाया तो नर्क में जाओगे। इसके बाद पुलिस ने ईमानदारी के साथ
गौवंश का परिवहन रोकना आरंभ कर दिया था। विडम्बना ही कही जाएगी कि रमन सिंह
सिकरवार के स्थानांतरित होते ही गौकशी के ठेकेदार एक बार फिर सक्रिय हो गए।
एक बात समझ से परे
है कि आखिर इतनी बड़ी तादाद में गौवंश का
परिवहन आखिर किस कारण से किया जाता है। निश्चित तौर पर यह गौकशी से जुड़ा
हुआ ही है। जब पुलिस गौवंश की तस्करी को पकड़ती है तो आखिर वह गौवंश जाता कहां है? आए दिन मीडिया में
गौवंश के पकड़े जाने की खबरें सुर्खियों में रहती हैं। पकड़ा गया गौवंश कहां रखा
जाता है यह बात अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी हैं
इस साल ही जनवरी से
अब तक अगर गौवंश की तस्करी के मामले को देखा जाए तो पुलिस ने हजारों की तादाद में
गौवंश को पकड़ा गया है। यह गौवंश कहां रखा गया है? इनके खान पान की
क्या व्यवस्था है?
इस बारे में पुलिस भी मौन ही है। पुलिस का काम अवैध तौर पर हो
रहे गौवंश के परिवहन को पकड़ना अवश्य है। पर वह मीडिया को यह भी बताए कि आखिर वह
गौवंश कहां रखा गया है?
देश भर में
गौशालाओं का संचालन हो रहा है। इन गौशालाओं में से अधिकांश का संचालन गैर सरकारी
संगठनों द्वारा भी किया जा रहा है। इन एनजीओ को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा
भारी मात्रा में आर्थिक सहायता भी प्रदाय की जाती है। इस तरह के एनजीओ आम जनता से
भी सहयोग लेते हैं।
याद पड़ता है कि
राजधानी भोपाल में लगभग एक दशक पूर्व जब गायत्री परिवार के एक सदस्य से चर्चा हुई
तो उन्होंने बताया कि एमपी नगर के गायत्री मंदिर की गौशाला में गायों के लिए भोजन
की व्यवस्था उन्होंने कुछ अनूठे तरीके से की थी। वे लगभग हर खाने की होटल में एक
प्लास्टिक का ड्रम रख दिया करते थे, जिसमें बचा हुआ, जूठन, फेंकने वाला अन्न
डाल दिया जाता था। शाम को एक छोटे चौपहिया में खाली ड्रम ले जाया जाकार बाजार से
भरे जूठन के ड्रम ले आए जाते थे। यह जूठन गायों के लिए भोजन होता। इस तरह दुकानदार
भी जूठन को फेंकने की समस्या से मुक्त रहता और गायों के भोजन की व्यवस्था भी बिना
किसी दाम के हो जाती। इसी तरह न्यूमार्केट सहित अनेक बड़े जूस सेंटर्स में भी जूस
निकालने के बाद बचा छिलका और गूदा एकत्र किया जाता और गायों को खिलाया जाता।
सिवनी में संचालित
गौशालाओं के संचालकों को भी यही तरकीब लगाना चाहिए। वे होटलों में एक एक बड़ा बर्तन
रखवा दें। जूस सेंटर्स में भी छिलके और गूदे के लिए इसी तरह की व्यवस्था सुनिश्चित
की जाए तो वाकई इसके अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं।
बहरहाल मातृशक्ति
संगठन ने मीडिया के माध्यम से गौशाला का जो दृश्य दिखाया है वह रीढ़ की हड्डी में
सिहरन पैदा करने के लिए पर्याप्त है। हो सकता है कि इसके उपरांत गौशाला प्रबंधन
अपनी खाल बचाने के लिए चाहे जो कहे। कुछ समाचार पत्रों (हिन्द गजट नहीं) में
गौशाला के संचालकों के हवाले से छपी विज्ञप्ति के अनुसार नगर पालिका के पास
गौमाताओं को पानी पिलाने टेंकर्स नहीं थे, अतः निजी स्तर पर टेंकर की व्यवस्था कर
गौवंश की प्यास बुझाई गई।
अगर गौशाला संचालक
सही हैं तो मातृशक्ति संगठन गलत है? गोशाला भी एक गैर सरकारी संगठन है और
मातृशक्ति संगठन भी। इस विवाद को दो एनजीओ के बीच वर्चस्व की जंग के रूप में भी
देखा जा सकता है। दो संगठन पता नहीं किस उद्देश्य से आपस में गौमाताओं को लेकर भिड़
पड़े हैं।
गौशाला के संचालकों
ने नगर पालिका प्रशासन को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। प्रदेश में भाजपा की सरकार
है, भारतीय
जनता पार्टी की सत्ता नगर पालिका पर काबिज है। भाजपा की वरिष्ठ नेता उमाश्री भारती
द्वारा गाय को सबसे ज्यादा तरजीह दी जाती है। गौवंश के अवैध परिवहन और गौकशी रोकने
भाजपा ने कानून बनाए हैं, फिर नगर पालिका परिषद में सत्तारूढ़ भाजपा अगर पानी देने को
मना कर रही है तो पालिका प्रशासन भाजपा की नीतियों का ही विरोध कर रही है।
इस मामले में दोनों
पक्षों में से एक पक्ष तो सही है! पर जेहन में यह सवाल कौंध रहा है कि अगर गौशाला
के प्रबंधक अपनी जगह सही हैं, और गौमाताएं गर्मी में पानी के अभाव में तड़प
नहीं रही हैं, तो आखिर
मातृशक्ति संगठन को जमीन पर पड़ी तड़पती गायों के चित्र मिले कहां से! यह वाकई शोध
का विषय है पर इस मामले में ना तो सांसद और ना ही विधायक ही कोई कदम उठाने की जहमत
उठाएंगे।
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