कुरई घाट का बस
हादसा!
(शरद खरे)
सिवनी जिले की कुरई
घाटी सालों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है। दशकों पहले यहां
शेरों की दहाड़ सुनाई देती थी। उसके बाद इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही कुरई घाट
में सड़क निर्माण को अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ने स्थान दिया। इसके उपरांत पहले दशक
की समाप्ति के दौरान ही फोरलेन पर लगे फच्चर के कारण यह घाट चर्चित हुआ। सड़क ना बन
पाने के कारण हुए हादसों ने सभी को हिला दिया और अंततः 14 जून को यादव
ट्रेवल्स की यात्री बस खाई में गिर गई।
बताते हैं कि पचास
के दशक के आसपास कुरई के घाट में शेरों की तादाद बहुत अधिक हुआ करती थी। इसके बाद
शिकारियों ने इस घाट को शेरों की दहाड़ से वंचित ही कर दिया। एक समय था जब कुरई घाट
के विहंगम दृश्य को देखने बाहर से इस मार्ग से होकर गुजरने वाले बरबस ही रूक जाया
करते थे। लोक कर्म विभाग द्वारा कुरई घाट के एक स्थान को चौड़ा कर वहां विहंगम
दृश्य देखने की बाकायदा व्यवस्था भी की है।
इक्कीसवीं सदी के
आरंभ में युवा एवं उर्जावान तथा प्रदेश के उत्कृष्ठ सर गोविंदराम सक्सेरिया
इंजीनियरिंग कालेज इंदौर के प्रोडक्ट इंजीनियर प्रसन्न चंद मालू द्वारा उस समय
बनाए गए कुरई घाट का जिकर एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका द्वारा किया गया था। उस समय
इस सड़क के घुमावदार रास्ते पर गुणवत्ता के साथ काम करने के लिए अपने आलेख में उक्त
पत्रिका ने इंजीनियर प्रसन्न मालू के नाम का भी उल्लेख किया था।
दिसंबर 2008 में सिवनी के लिए
मनहूस थी 18 दिसंबर की
तारीख। इस काले दिन तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा सीईसी के
निवेदन पर एक आदेश जारी कर फोर लेन का काम मोहगांव से खवासा तक रूकवा दिया। इस
आदेश में स्पष्ट निर्देश था कि उसके बाद वन और गैर वन भूमि पर सड़क के निर्माण का काम
नहीं हो सकेगा।
बस यहीं से एक बार
फिर कुरई घाट में स्याह सन्नाटा पसर गया। इस मार्ग का रखरखाव भी 2008 के उपरांत 2013 तक निर्माण में
लगी सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा नहीं किया गया। ना ही इस काम को करवाने के
लिए जिम्मेदार एनएचएआई के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा ही इस काम को करवाने की
जुर्रत की गई।
इसका नतीजा यह हुआ
कि मोहगांव से खवासा तक का मार्ग जिसमें कुरई घाट शामिल है बुरी तरह जर्जर हो गया।
इस मार्ग पर भारी ओव्हर लोडेड वाहन इस कदर झूलते चलते थे कि लगता था अब गिरे तब
गिरे। इनके पास से निकलने वाले दो और चार पहिया वाहनों के चालक इनकी हाथी जैसी
मदमस्त चाल को देखकर सहम ही जाया करते थे। सड़क के इस भाग में हुई दुर्घटनाओं में
मरने वालों की भी खासी तादाद है।
सिवनी में सड़क के
इस भाग के निर्माण के लिए अनेक गैर राजनैतिक संगठन भी लोगों को लामबंद करते रहे पर
सड़क के रखरखाव के लिए किसी ने आवाज नहीं उठाई जो आश्चर्य का विषय ही बनी रही। इस
सड़क का रखरखाव ना करके सिवनी के जिम्मेदार लोगों द्वारा प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर
पर सद्भाव कंपनी के करोड़ों रूपए बचवा दिए बताए जाते हैं।
ऐसा नहीं कि अगर
जिला प्रशासन, सांसद
विधायक एवं सड़क के लिए लड़ने वाले संगठन चाहते तो इस सड़क के रखरखाव का काम आरंभ से
ही पूरा होता रहता और सड़क पर हादसों में इस कदर लोग ना तो मारे जाते और ना ही घायल
होते। वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं। कहा जा रहा है कि इन सभी ने परोक्ष तौर पर सद्भाव
कंपनी का ही साथ दिया है। सच्चाई क्या है यह तो निर्माण कंपनी जाने या बाकी सब, पर यह सच है कि
हादसों में लोग काल कलवित हुए हैं।
इस साल के आरंभ में
पता नहीं ऐसा क्या हो गया कि एनएचएआई ने इस सड़क को मोटरेबल बनवा दिया। कहा जाता है
कि एक वरिष्ठ अधिकारी जबलपुर में पदस्थ थे, और उन्हें हर सप्ताह नागपुर जाना आना पड़ता
था। दो तीन बार जब उन्हें तकलीफ हुई उन्होंने मामला बुलवाया अध्ययन किया और फिर
एनएचएआई सहित सभी को जमकर लताड़ा। बन गई सड़क रातों रात।
अगर यह सड़क 2013 में बन सकती है तो
2008 के बाद
क्यों नहीं बन सकती?
क्या इसका जवाब कांग्रेस, भाजपा या अन्य
विरोध करने वाले राजनैतिक और गैर राजनैतिक संगठनों के पास है? मतलब साफ है कि
मामले को अज्ञानता या जानते बूझते गलत दिशा में ले जाया गया था।
बहरहाल, 14 जून के अंक में
दैनिक हिन्द गजट ने कुरई घाट में सड़क में गड्ढ़े होने और किनारे की मिट्टी खिसलने
की खबर प्रकाशित की थी। इसी दिन यादव ट्रेवल्स की एक बस खाई में गिर गई। यह हादसा
हुआ और एनएचएआई अभी भी कुंभकर्णीय निद्रा में है। कुरई घाट बेहद घुमावदार और
खतरनाक है।
बस वैध रूप से
संचालित थी या अवैध रूप से बिना परमिट वाली थी, इस बारे में भी
तहकीकात करना पुलिस का ही काम है। अगर अवैध रूप से चल रही थी तो उस पर एवं रास्ते
में पड़ने वाले पुलिस थानों और यातायात प्रभारी पर भी कार्यवाही करना चाहिए। साथ ही
साथ आरटीओ को भी शंका के दायरे में लाया जाएगा।
शासन प्रशासन से
अपेक्षा है कि कुरई घाट जैसे घुमावदार और दुर्गम मार्ग पर लगातार हो रही दुर्घटनाओं
पर अंकुश लगाने के लिए एनएचएआई के अधिकारियों की लगाम कसें, और समय सीमा में
उन्हें इस सड़क के दुरूस्तीकरण के लिए आदेशित करें, ताकि लगातार घट रही
दुर्घटनाओं को रोका जा सके।
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