मंगलवार, 18 जून 2013

मूत्रालय, शौचालय को तरसता शहर!

मूत्रालय, शौचालय को तरसता शहर!

(शरद खरे)

यह वाकई दुखद और निराशाजनक ही कहा जाएगा कि सिवनी शहर में सार्वजनिक स्तर पर ना तो मूत्रालय ना ही शौचालय ही हैं। नगर पालिका प्रशासन का यह दायित्व है कि वह नगर के लोगों को कम से कम जरूरी सुविधाएं तो उपलब्ध करवाए। नगर पालिका प्रशासन की हठधर्मिता के चलते दलसागर के मुहाने पर विसर्जन घाट पर अधबने शौचालय पर भी स्टे दे दिया गया है।
सिवनी शहर में कहने को तो बस स्टेंड के अंदर राज्य परिवहन का सुलभ शौचालय है। निजी बस स्टेंड पर सुलभ शौचालय है। बुधवारी बाजार में सिर्फ मूत्रालय है जिसे भी तोड़ने के षणयंत्र का ताना बाना बुना गया था। पुराने शौचालय जिन्हें चालू भाषा में बम पोलस भी कहा जाता था, एक दो जगह हैं पर दुर्गंध और गंदगी से बजबजा ही रहे हैं।
शहर की आबादी में इजाफा हुआ है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। लोगों को साफ सफाई, पानी, प्रकाश सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की दरकार है। इसके साथ ही साथ सुलभ शौचालय की तो सबसे अधिक जरूरत है, पर इस ओर ध्यान देना किसी ने मुनासिब नहीं समझा है।
ऐसा नहीं है कि पार्षदों से उनके वार्ड की दुरावस्था छिपी हुई है। पार्षद भी अपने अपने वार्ड में विकास कार्य के नाम पर सिर्फ निर्माण कार्य ही करवाना चाहते हैं। ये निर्माण कार्य कितनी गुणवत्ता के होते हैं यह बात भी सभी जानते हैं। इसमें कमीशन का गंदा खेल भी किसी से छिपा नहीं हैं।
मूत्र विसर्जन और विष्ठा विसर्जन किसी के बस में नहीं है। कोई भी शौच या मूत्र को अधिक देर तक नहीं रोक सकता है। इन दोनों ही के निष्पादन के लिए उसे एक स्थान की आवश्यक्ता होती है। घरों में शौचालय या बाथरूम का उपयोग चौबीस घंटे में महज दस से पंद्रह मिनिट के लिए होता है पर घरों के निर्माण के समय इनकी अनदेखी नहीं की जाती है।
ठीक इसी तरह शहर के विकास के लिए मल त्यागने या मूत्र विसर्जन के लिए स्थान सुनिश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है। सड़कों किनारे लोग पाखाना करते अलह सुब्बह दिख जाते हैं। सड़कों पर पड़ी मल की गंदगी दिन भर आने जाने वालों को परेशान ही किया करती है।
सिवनी में मूत्रालय की आवश्यकता सबसे अधिक है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण जनपद पंचायत और टेलीफोन एक्सचेंज के बीच की गली में देखा जा सकता हैै। इस गली से होकर शहर की शालाओं के विद्यार्थी विशेषकर छात्राएं बहुतायत में गुजरती हैं। मिशन शाला, गणेश चौक, कचहरी चौक, दलसागर के आसपास मूत्रालय ना होने से यह गली अब ‘‘पेशाब वाली गलीके नाम से पहचानी जाने लगी है जो नगर पालिका प्रशासन के मुंह पर तमाचे से कम नहीं है।
कुछ साल पहले हरे पीले रंग के प्लास्टिक के मूत्रालय नगर पालिका परिषद द्वारा खरीदे गए थे। गुणवत्ता विहीन इन डब्बों ने कुछ ही माह में दम तोड़ दिया। अब ये कहां हैं किसी को पता नहीं है। इसके परिणाम स्वरूप लोगों को दीर्घ या लघु शंका के लिए स्थान ढूंढना पड़ता है।
सिवनी शहर को काम्प्लेक्स या दुकानों का शहर बना दिया गया है यह बात भी जगजाहिर ही है। शहर में मकान कम दुकानें बहुतायत में है। कमोबेश हर घर में एक शटर लगा दिखाई दे जाता है। पता नहीं नगर पालिका की नजरों से ये बचे हुए कैसे हैं अब तक।
युवा एवं उर्जावान जिला कलेक्टर भरत यादव अगर शहर के समस्त शापिंग काम्प्लेक्स का अवलोकन कर लें तो वे पाएंगे कि शहर में किसी भी काम्प्लेक्स में (स्मृति धर्मशाला को छोड़कर) ना तो पार्किंग की सुविधा है, ना ही आवागमन के लिए कारीडोर की और ना ही मूत्रालय वहां है।
शहर के मुख्य बाजार बुधवारी में मूत्रालय का अभाव साफ दिखाई पड़ता है। बुधवारी में नगर पालिका के काम्प्लेक्स के मूत्रालय पर विदेशी शराब दुकान का कब्जा है, तो बारापत्थर के काम्प्लेक्स में मूत्रालय ना होने से अस्पताल के आसपास लोग लघुशंका करने पर विवश हैं।
शहर में महिलाओं के लिए प्रथक से मूत्रालय की व्यवस्था ना होने से महिलाओं विशेषकर ग्रामीण अंचलों से आने वाली महिलाओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। पुरूष वर्ग तो निस्तार के लिए कहीं भी खड़े हो जाते हैं पर महिलाओं की पीड़ा को आखिर कौन समझेगा? महिला संगठन, नगर पालिका की महिला पार्षद भी इस ओर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझती हैं।

युवा एवं उर्जावान जिला कलेक्टर भरत यादव से अपेक्षा है कि शहर में मूत्रालय और शौचालयों की कमी को गंभीरता से लेते हुए शहर में इनकी व्यवस्था सुनिश्चित करवाने के लिए नगर पालिका प्रशासन को निर्देशित करें। साथ ही साथ इनके निर्माण में इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाए कि इनके निर्माण के चलते कहीं आवागमन, जनभावनाएं, धार्मिक भावनाएं आहत ना हों।

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