गुरुवार, 20 जून 2013

रहिमन पानी राखिए . . .

रहिमन पानी राखिए . . .

(शरद खरे)

गुजरे जमाने के प्रख्यात कवि रहीम के दोहों से कौन नहीं परिचित होगा। रहीम ने कहा है
रहिमन पानी राखिए!
बिन पानी सब सून!!
पानी बिना ना उबरे!!!
मोती मानस चून!!!!
पानी की महत्ता आदि अनादि काल से ही सभी को पता है। पानी के लिए ना जाने क्या क्या जतन होते आए हैं। पानी एक ऐसी चीज है जिसके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है।
सिवनी शहर आज भी प्यासा ही है। सालों साल से सिवनी में पानी के संकट को झेल रहे हैं यहां के निवासी। अस्सी के दशक में जब भीमगढ़ बांध से पानी सिवनी में नहीं आता था, उस वक्त बबरिया और लखनवाड़ा से सिवनी को पानी प्रदाय किया जाता रहा है।
समय के साथ आबादी बढ़ी और सिवनी में पानी का संकट गहराने लगा। इसके लिए कांग्रेस के शासनकाल में नब्बे के दशक में सुआखेड़ा से लगभग 32 किलोमीटर लंबी पाईप लाईन डालकर सिवनी पानी लाया गया। इसमें बिजली की खपत बहुत अधिक होती है।
इसके साथ ही साथ सिवनी से लगभग 22 किलोमीटर दूर श्रीवनी में बने फिल्टर प्लांट से पानी साफ कर सिवनी लाया जा रहा है। यह बात किसी की समझ में नहीं आ पा रही है कि आखिर 22 किलोमीटर लोहे के पाईप में पानी साफ होकर कैसे बह रहा होगा। सियासी दलों के लिए पानी साफ आ रहा है पर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है।
श्रीवनी के फिल्टर प्लांट से सिवनी तक आने वाली पाईप लाईन को मार्ग में पड़ने वाले गांवों के लोगों ने जहां तहां तोड़ दिया है। यह पाईप लाईन जब तब फूट जाती है। आज लोगों के घरों में पानी के साथ केंचुए और अन्य कीड़े निकल रहे हैं, पर सियासी दलों के लोगों के लिए पानी पूरी तरह साफ ही आ रहा है।
प्रदेश में भाजपा सत्ता में है, और कांग्रेस विपक्ष में। भाजपा का मौन यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि नगर पालिका प्रशासन जो कि भाजपा के कब्जे वाली है में लोगों को साफ सुथरा पानी प्रदाय किया जा रहा है। वहीं विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी मौन है जिससे यह लगता है कि लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाला अब बचा ही नहीं है कोई।
जिला चिकित्सालय सहित निजी चिकित्सालयों और चिकित्सकों के दरवाजे पर आंत्रशोध, पीलिया, गेस्टोइंटाईटिस आदि के मरीजों की लंबी लाईन शायद किसी अन्य वजह से ही दिखाई पड़ती है। जब कांग्रेस मौन है भाजपा संतुष्ट है तब यह मानना मजबूरी ही है कि इन बीमारियों की वजह पानी नहीं हो सकता है।
नगर पालिका परिषद द्वारा हर साल करोड़ों रूपए की फिटकरी से पानी का शोधन किया जाता है। युवा एवं उर्जावान जिला कलेक्टर अगर किसी के भी घर से एक बाल्टी पानी सामने से भरवाएं और उसमें फिटकरी घुमा दें, तथा आधे घन्टे बाद वे उस पानी को देखें तो पाएंगे कि बाल्टी की तली में काला मटमैला कचरा बैठा हुआ है।
समझदार और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग तो फिटकरी या क्लोरीन का प्रयोग कर लेते हैं, पर गरीब आखिर कहां से लाए फिटकरी, या क्लोरीन! वह तो सीधे सीधे नलों से आने वाले पानी को गटक जाता है और तीन चार दिन बाद उसकी हालत बिगड़ने लगती है। लोगों को सिवनी में अमीबाईसिस की सबसे अधिक शिकायत का सामना करना पड़ता है।
नगर पालिका प्रशासन के साथ ही साथ शहर में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने भी इस संबंध में मौन ही साधे रखा है। देखा जाए तो पीएचई का यह दायित्व है कि वह लोगों को साफ पेयजल मुहैया हो, इस बारे में सुनिश्चित करे। घरों घर जाकर द्रव की शक्ल में शीशी में आने वाला क्लोरीन बांटे।
ऐसा नहीं कि पीएचई के पास क्लोरीन की शीशियां नहीं आती हैं, पर वे आती हैं तो कहां चली जाती हैं, यह शोध का विषय है। ऐसा नहीं कि जिला कलेक्टर सहित प्रशासन के अधिकारियों के घरों में अलग से पाईप लाईन डली हो। इनके घरों में भी पानी गंदा ही आता होगा, पर यह पानी निस्तार में चला जाता होगा। पीने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के घरों और कार्यालय में मंहगे फिल्टर लगे होंगे।
भारत गणराज्य में जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन की अवधारणा प्रचलित है। इस लिहाज से प्रशासनिक अधिकारियों और जनसेवकों को अपनी सुविधाएं बाद में देखना चाहिए, पहले उन्हें आम जनता की सुध लेना चाहिए। विडम्बना ही है कि यहां उलट बंसी ही बज रही है। जिला कलेक्टर से जनापेक्षा है कि सिवनी के नागरिकों को कम से कम साफ पानी पीने को मिल सके इस तरह की व्यवस्थाएं सुनिश्चित करवाई जाएं।

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