जल जनित रोग और जल
गुणवत्ता
(लिमटी खरे)
मुख्य चिकित्सा एवं
स्वास्थ्य अधिकारी डॉ.ठाकुर ने गर्मी के शबाब पर होने के कारण जल जनित रोगों से
निपटने के लिए लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री से रोजना जल
गुणवत्ता मानीटरिंग रिपोर्ट नियमित तौर पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी
कार्यालय भेजने की बात कही गई थी। साथ ही साथ सीएमएचओ ने ईई पीएचई से यह भी कहा था
कि वे अपने अधीनस्थों को जिले भर से प्रतिवेदन भेजने पाबंद भी करें।
सीएमओ डॉ.ठाकुर की
इस पहल के लिए उन्हें साधुवाद दिया जाना चाहिए, कि कम से कम जल
जनित रोगों के लिए उन्होंने संबंधित पीएचई विभाग से सामंजस्य तो बनाया, वरना जिले में
सरकारी महकमों में आपस में तालमेल के अभाव में नागरिक नारकीय पीड़ा ही भोगने पर
मजबूर हैं।
कहा जाता है कि
नब्बे फीसदी बीमारियों की जड़ पानी ही होता है। पानी अगर साफ नहीं है तो पेट संबंधी
अनेक बीमारियों के होने का खतरा बरकरार रहता है। वैसे भी सिवनी में पेट के रोग से
त्रस्त लोगों की तादाद बहुत ही ज्यादा मानी जा सकती है। जिला चिकित्सालय में ही इस
तरह के रोगियों की भरमार रहती है। वैसे भी सिवनी के लोगों को अमीबाईसिस की समस्या
से जब चाहे तब दो चार होना ही पड़ता आया है।
जिला मुख्यालय
सिवनी में नगर पालिका प्रशासन द्वारा प्रदाय किया जाने वाला पेयजल किसी भी
दृष्टिकोण से साफ और सीधे पीने योग्य कतई नहीं माना जा सकता है। इसका कारण सिवनी
शहर में लगभग 22 किलोमीटर
की दूरी से पानी का शोधन किया जाकर पाईप के माध्यम से यहां लाया जाना ही है।
याद पड़ता है कि एक
बार प्रदेश सरकार के तत्कालीन आदिवासी विकास विभाग के राज्य मंत्री और सिवनी जिले
के प्रभारी मंत्री जब यहां के दौरे पर आए एवं श्रीवनी फिल्टर प्लांट देखा तो वे
गदगद हो गए। पर जैसे ही उन्हें पता चला कि वहां से 22 किलोमीटर का लंबा
सफर तय करता है साफ पानी तो वे चकित रह गए।
उस वक्त उनके मुंह
से एक ही बात निकली थी कि पीएचई विभाग क्या जादूगर है जो इतना लंबा रास्ता फिल्टर
किया गया पानी साफ रख पाएगा? प्रभारी मंत्री ने राजनैतिक दबाव के चलते उस
वक्त इस मामले को तूल नहीं दिया वरना श्रीवनी का फिल्टर प्लांट सिवनी शहर के आसपास
ही लग चुका होता।
पिछले लगभग दस
सालों से प्रदेश में भाजपा सत्ता में है और कांग्रेस विपक्ष में। इस फिल्टर प्लांट
के बारे में ना तो भाजपा ने और ना ही कांग्रेस ने ही कोई आवाज उठाई है। कांग्रेस
इसलिए चुप है क्योंकि यह उसके शासनकाल में बना था और भाजपा आज कुछ करने की स्थिति
में नहीं है।
सालों साल सिवनी को
दो वक्त पर्याप्त पानी देने वाली बैनगंगा नदी के लखनवाड़ा तट की हालत जर्जर है।
इसके बाद दूसरा स्त्रोत बबरिया भी अपनी दुर्दशा पर आंसू ही बहा रहा है। भूजल
विशेषज्ञों ने भी महज तीन साल के अंदर सिवनी में पानी को लेकर मचने वाले कोहराम की
ओर इशारा किया है।
जब जिला मुख्यालय
में पानी की यह हालत है तो बाकी सुदूर ग्रामीण अंचलों के बारे में कौन और क्या
कहे। हो सकता है कि जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, नगर पालिका प्रशासन
के आला अधिकारियों के घर फायर ब्रिगेड से पानी की आपूर्ति हो रही हो तो उन्हें
जनता के दर्द का पता नहीं हो।
संवेदनशील जिला
कलेक्टर भरत यादव अगर किसी दिन किसी भी वार्ड में जाकर सुबह पानी भरने का नजरा
देखें तो उनके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। पीने और निस्तार का पानी भरने के लिए
लोगों ने दो से चार फिट के गड्ढे खोदकर रखे हैं जिसमें से वे नगर पालिका के नल के
माध्यम से पानी भरते हैं।
बहरहाल, डॉ.ठाकुर की इस पहल
की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने जल की गुणवत्ता के बारे में ना केवल सोचा वरन्
उसे सुधारने उस पर नजर रखने के लिए संबंधित लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को
ताकीद भी किया। पता नहीं पीएचई विभाग डॉ.ठाकुर के इस निवेदन पर कितना संजीदा होता
है।
जिला प्रशासन
विशेषकर युवा, उर्जावान
एवं संवेदनशील जिला कलेक्टर भरत यादव से अपेक्षा है कि सीएमएचओ डॉ.ठाकुर की इस पहल
को अकारत ना जाने दें। जल की गुणवत्ता के लिए वे पीएचई के साथ ही साथ नगर पालिका, नगर पंचायत और
ग्राम पंचायतों को भी निर्देश जारी करें।
बारिश का मौसम आने
को है। बारिश के मौसम में जल जनित बीमारियों की आशंका सबसे अधिक हुआ करती है। जिला
प्रशासन के प्रयासों से अगर सिवनी जिले के निवासियों को साफ पानी मुहैया हो सकेगा
तो कम से कम वे मंहगी दवाओं और सिवनी में सरेआम अपने कर्तव्यों के बजाए निजी हितों
पर ज्यादा ध्यान रखने वाले भगवान धनवंतरी के वंशजों से बचे रहेगें।
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