निरीह नागरिक, निकम्मी नगर
पालिका!
(शरद खरे)
नगर पालिका परिषद
सिवनी अपने मूल काम से भटक चुकी है। नागरिकों को सुविधाएं उपलब्ध कराना, उनके मौलिक
अधिकारों का संरक्षण, बुनियादी सुविधाएं
उपलब्ध कराने का काम मूलतः नगर पालिका का होता है। नगर पालिका के जिम्मे शहर की
साफ सफाई, शुद्ध
पेयजल, अंदरूनी
मार्गों का रखरखाव,
जल निकासी के लिए नालियों की व्यवस्था, सड़कों पर प्रकाश की
व्यवस्था आदि का होता है। पिछले कुछ सालों से नगर पालिका परिषद सिवनी अपने मूल
उद्देश्य से भटककर चुने हुए प्रतिनिधियों और सरकारी नुमाईंदों के लिए पैसा कमाने
का चारागाह बन चुकी है।
पालिका के
नुमाईंदों ने मीडिया को भी अपने साथ मिला लिया है जो बहुत ही खतरनाक संकेत है।
मीडिया को विज्ञापन का प्रलोभन देकर नगर पालिका के नुमाईंदों द्वारा सच्चाई पर
पर्दा डालने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है जो निंदनीय है। माना जाता है कि
अभिजात्य वर्ग के लोग शहरों में अधिक तादाद में निवास करते हैं। शहर का आदमी
अपेक्षाकृत अधिक पढ़ा लिखा होता है। जिला मुख्यालय सिवनी में रहने वाले नगर पालिका
परिषद की स्थिति, नागरिकों
के अधिकारों के प्रति उसकी जवाबदेही और निर्वहन से वह भली भांति परिचित है।
मीडिया में इस बात
को पता नहीं क्यों स्थान नहीं मिल पाया है कि नगर पालिका शहर में लोगों को गटर का
गंदा पानी पिलाकर उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। कहीं भवन की अनुज्ञा
मिल पाई या नहीं इस बात से आम जनता को लेना देना नहीं है। शहर में स्वीमिंग पूल है
अथवा नहीं इससे आम आदमी पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। वैसे भी स्वीमिंग पूल को
रईसों का प्यारा शगल माना जाता है। आम जनता को तो बस साफ पानी चाहिए, उसके घर के आसपास
कचरे के ढेर ना हों,
प्रकाश की उचित व्यवस्था हो, घरों के पानी की निकासी
की नालियां गंदगी से ना बजबजा रही हों, यही उम्मीद रहती है आम आदमी की नगर पालिका
परिषद से।
विडम्बना ही कही
जाएगी कि नगर पालिका में बैठे कांग्रेस और भाजपा के पार्षदों का ध्यान इस ओर क्यों
नहीं जाता है। दलसागर तालाब के आसपास सौंदर्यीकरण के नाम पर एक करोड़ रूपयों में आग
लगा दी गई। नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी अगर वाकई सिवनी की जनता के प्रति
जवाबदेह होते तो निश्चित तौर पर वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्थानीय शासन
मंत्री बाबू लाल गौर से (जिनसे करीबी का वे दावा करते हैं) दलसागर के सौंदर्यीकरण
के लिए राशि बाद में मांगते पहले सिवनी के वाशिंदों को दो नहीं तो कम से कम एक
वक्त साफ पानी मुहैया करवाने की योजना स्वीकृत करवाते। सिवनी की जल मल निकासी की
योजना के लिए प्रदेश शासन से धन की मांग करते। वस्तुतः ऐसा हुआ नहीं।
अगर इन योजनाओं की
स्वीकृति मिलती तो इनको अमली जामा पहनाते समय सभी का निर्धारित हिस्सा (कमीशन)
मिलता ही, पर आम जनता
राजेश त्रिवेदी और भारतीय जनता पार्टी को दिल से साधुवाद देती, पर आज स्थिति उलट
ही है। आज जनता के मन में भाजपा की छवि प्रतिकूल बनती जा रही है। शहर में भारतीय
जनता पार्टी का कार्यालय बारापत्थर में है। इस कार्यालय में भाजपा के लोग साफ
सुथरा पानी पी रहे हैं।
भापजा विधायकों
द्वारा उपकृत कांग्रेस के नेता, इस बात को जनता के समक्ष लाने में पता नहीं
क्यों हिचकिचा रहे हैं कि भाजपा के लोग उनके धन से (विधायक निधि) से खनित किए गए
नलकूप जो संभवतः आम जनता के उपयोगार्थ होना चाहिए (वस्तुतः ऐसा है नहीं, नलकूूप को सीधे
भाजपा कार्यालय के अंदर ले जाया गया है) का साफ सुथरा पानी पी रहे हैं। इस नलकूप
के खनन के लिए विधायक निधि से एक लाख रूपए की राशि का आहरण किया गया है। यह
नैतिकता है जनता की सेवा करने का दावा करने वाली भाजपा और विपक्ष में बैठी
कांग्रेस की।
अभी मामला अगर
शिवराज सिंह चौहान से संबंधित होता तो कांग्रेस के विज्ञप्तिवीरों की तोपें भोपाल
की ओर तन चुकी होतीं। एक दैनिक समाचार पत्र द्वारा विधायक निधि की राशि की
बंदरबांट में नाम उजागर कर बेहद अनुकरणीय कदम उठाया जा रहा है। आश्चर्य तो उस समय
हुआ जब कांग्रेस के नेताओं के परिजनों, मीडिया से जुड़े लोगों के नाम इस निधि की
राशि में प्रकाश में आए। इस तरह के काम से सेवा भाव वाले मूल आदर्श की सियासत और
पत्रकारिता कलंकित ही हो रही है, पर जिनका दीन ईमान ही पैसा हो गया हो, उन्हें क्या मतलब
कि नैतिकता किस चिड़िया का नाम है!
नगर पालिका सिवनी
में अफसरशाही, नेतागिरी, भ्रष्टाचार, अनाचार, रिश्वतखोरी, अनैतिकता, के बेलगाम घोड़े दौड़
रहे हैं। नगर पालिका कार्यालय के अंदर बिड़ी सिगरेट के टोंटे इस कदर बिखरे पड़े रहते
हैं मानो यह बियर बार हो। केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान की
बंदिश का कानून बनाया है पर आज कानून की परवाह किसे रह गई है! नगर पालिका पर
भारतीय जनता पार्टी का शासन है, पालिका प्रशासन की हरकतों से भारतीय जनता
पार्टी की साख पर बट्टा लग रहा है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। भाजपा के
जिलाध्यक्ष नरेश दिवाकर भी इस मामले में खामोश हैं, जिससे नागरिकों को
लगने लगा है कि पालिका की इन हरकतों में उनकी मौन सहमति है, वरना क्या कारण है
कि निकम्मी नगर पालिका मनमानी पर उतारू है, निरीह नागरिक कराह रहे हैं और शासन प्रशासन
एवं भाजपा संगठन अपने आप को किसी तरह की कार्यवाही करने में अपने आप को पालिका के
चंद नुमाईंदों के सामने बौना पा रहा है।
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