नकली खाद बीज और
किसान!
(शरद खरे)
किसान देश की
अर्थव्यवस्था की रीढ़ है इस बात को आजादी के पहले से नेता कहते आए हैं। किसान असली
अन्नदाता है। अगर किसान मेहनत करना छोड़ दे तो लोग भूखे मर जाएं। किसानों की बदहाली
भी आजादी के उपरांत किसी से छिपी नहीं है। किसानों की दुर्दशा पर आंसू बहाने की
फुर्सत किसी को नहीं है। किसानों के हित की बातें राजनेताओं के भाषणों में तो
स्थान पा जाती हैं,
पर जब अमली जामा पहनाने की बारी आती है तो मामला ठंडे बस्ते
के हवाले हो जाता है।
सिवनी जिले में
नकली खाद बीज बिकने की खबरें सालों से सुनी जाती रही हैं। आश्चर्य तो इस बात पर
होता है कि प्रदेश सरकार की ओर से नकली खाद बीज रोकने की जवाबदेही जिन सरकारी
अमलों पर आहूत होती है उन्हीं के द्वारा नकली खाद बीज प्रदाय किया जाए। पिछले
दिनों छपारा में नकली खाद बीज बिकने की खबर आई वह भी सरकारी सिस्टम से। जैसे ही यह
बात सामने आई वैसे ही देश की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ किसान की रूह कांप गई। अगर बीज
ही नकली और घटिया क्वालिटी का होगा तो भला किसान को उपज का पूरा पैसा कैसे मिल
सकेगा?
यह सब तब हो रहा है
जबकि जिला कलेक्टर भरत यादव पूरी तरह संवदेनशील हैं और वे कई बार स्पष्ट निर्देश
दे चुकेे हैं कि घटिया खाद बीज अगर बेचा गया तो अधिकारियों की खैर नहीं। कलेक्टर
के निर्देश पर संबंधितों की टीम बनाकर भी जांच की जाने की बातें प्रकाश में आई
हैं।
वहीं, शिकायतें यह भी हैं
कि एफ वन क्वालिटी की गुणवत्ता वाले बीजों के स्थान पर एफ टू क्वालिटी की गुणवत्ता
के बीज किसानों को बांटे जा रहे हैं। किसानों को बीज की क्वालिटी के बारे में
ज्यादा जानकारी नहीं होती है पर अधिकारी जो इसके विशेषज्ञ हैं वे तो हर बात से
वाकिफ हैं, फिर आखिर
इस धांधली को कैसे अंजाम दिया जा रहा है।
कहा जा रहा है कि
सालों से किसानों को सरकारी नुमाईंदे छलते आ रहे हैं। किसानों का हक मारा जा रहा
है और जिला प्रशासन भी मूक दर्शक बना ही बैठा है। वैसे यह बात संतोषजनक मानी जाएगी
कि युवा एवं उर्जावान जिला कलेक्टर भरत यादव द्वारा इस संबंध में स्पष्ट आदेश जारी
कर इसे रोकने की बात कही है।
जिला कलेक्टर खुद
तो एक एक सोसायटी में जाकर इसे देख नहीं सकते हैं। इसे देखने का काम तो जमीनी स्तर
के अधिकारी कर्मचारियों को ही करना है। पर जब सारे कुंए में ही भांग घुली हो तो
किया भी क्या जा सकता है। कलेक्टर के अधीन अनुविभागीय दण्डाधिकारी होते हैं।
एसडीएम के पास काम
का बोझ होता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु एसडीएम के
मातहत तहसीलदार, नायब
तहसीलदार, पटवारी आदि
तो इस काम को अंजाम दे सकते हैं, पर वे भी नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा
रहे हैं मानो कुछ हुआ ही नहीं हो।
सुरसा की तरह बढ़ती
मंहगाई के चलते किसानों की कमर पहले से ही टूटी पड़ी है। किसान किसी तरह जोड़ तगाड़
कर अपना घर चलाते हुए पैदावार बढ़ाने का जतन कर रहे हैं। किसानों को पानी के अभाव
का सामना करना पड़ता है उपर से दूबरे पर दो आषाढ़ की कहावत चरितार्थ कर उन्हें नकली
खाद और बीज टिकाया जाए तो उनकी पैदावार कैसे बढ़ेगी?
वैसे भी किसानों का
ज्यादातर पैसा साहूकारों की तिजोरियों में ही ब्याज़ भरते भरते चला जाता है।
प्राकृतिक आपदाएं भी किसानों की रीढ़ तोड़कर रख देती हैं। आपदाओं के चलते शासन
द्वारा तय की जाने वाली आनावारी भी किसानों के बीच की लागत तक नहीं निकाल पाती है।
इन परिस्थितियों में किसान आखिर जाए तो जाए कहां?
एक ओर तो प्रदेश और
केंद्र सरकार अपने बड़े बड़े विज्ञापनों में अपने आप को किसान हितैषी बताने से नहीं
चूक रही है वहीं दूसरी ओर उनके ही कारिंदे अगर थाली में छेद पर आमादा हैं तो फिर
गलती तो निश्चित तौर पर निज़ामों की ही मानी जाएगी, क्योंकि उनके राज
में कसावट का अभाव है।
बहरहाल, किसानों के साथ
सिवनी जिले में होने वाले इस छल के लिए जवाबदेह अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जिला
प्रशासन समयसीमा में कठोर कार्यवाही करे ताकि आने वाले समय में कोई भी सरकारी
नुमाईंदा किसानों को छलने की बात सपने में भी न सोच सके।
लगता है सिवनी में
राजनीति अब प्रशासन पर भारी पड़ चुकी है। वरना क्या कारण है कि जिले का प्रशासनिक
प्रमुख स्पष्ट और कड़े निर्देश जारी करे और उनके मातहत उनकी हुकुम उदूली करें।
किसान हैरान परेशान है बीज तो जैसे तैसे उसने बो दिया है, पर बारिश की मार से
फसल चौपट होने की आशंका सता रही है। जिनकी फसलें बची हैं वे खाद के नकली होने पर
आशंकित हैं। कुल मिलाकर देश के अन्नदाता किसान की सुध लेने की फुर्सत न तो प्रशासन
के अमले को है और न ही चुने हुए जनसेवकों को। अब इन परिस्थितियों में किसान अपनी
पीड़ा का इजहार करे तो किससे?
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