सद्भाव ने बिगाड़ा
सद्भाव
(शरद खरे)
राष्ट्रीय
जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के समय बनी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर
दक्षिण गलियारे में सिवनी जिले का शुमार किया गया था। यह वाकई सिवनी के लिए
सौभाग्य की ही बात थी कि ‘कौओं के कोसने से ढोर नहीं मरते‘ की कहावत चरितार्थ
करते हुए सिवनी जिले को उत्तर दक्षिण गलियारे में बरकरार रखा गया था। इस सड़क के
निर्माण में दिसंबर 2008 में षणयंत्र के ताने बाने बुने गए। सियासी नेताओं को इस
षणयंत्र की जानकारी न हो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस षणयंत्र
के लिए जिम्मेदार तत्कालीन जिला कलेक्टर के पत्र को समाचार पत्रों में प्रकाशन के
साथ ही साथ विधायक सांसदों को इसकी प्रति भेजी गई थी। न अखबारों में यह खबर आई और
न ही सांसद विधायक ने ही इसमें कोई दिलचस्पी दिखाई।
सिवनी से खवासा तक
के काम के लिए गुजरात की सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी को ठेका दिया गया था। सद्भाव ने
सिवनी के साथ सद्भाव नहीं दिखाया। सिवनी के कुछ कथित अगुआ यानी पायोनियर को आर्थिक
झंझावत में उलझाकर सद्भाव ने लोगों का ध्यान भटकाया और सिवनी जिले के सीने को छलनी
कर दिया। सिवनी में अवैध खनन इस कदर हुआ कि धरती कांप गई। इस अवैध खनन में सिवनी
के कथित पायोनियर्स की भूमिका भी संदिग्ध ही रही है। सद्भाव की ओर से ध्यान भटकाकर
इन पायोनियर्स ने लोगों को भ्रमित कर गैर जरूरी बातों में उलझाए रखा।
इन पायोनियर्स ने
आपस में ही एक छद्म जंग चलाई, जिसका लोगों ने खूब मजा लिया, किन्तु सड़क का
मामला पूरी तरह उलझा हुआ ही रहा। सद्भाव ने एक बार फिर सिवनी के लोगों के साथ
सद्भाव नहीं दिखाया। सिवनी में काम करने वाले ठेकेदारों के द्वारा ‘जो काम नहीं कराए
गए‘ उन कामों
के एवज में सद्भाव के संचालकों ने पैसा भी निकाल लिया बताया जाता है। इस राशि में
से कुछ ही राशि का उपयोग ‘चौथ‘ देने में किया गया, शेष राशि हजम ही कर ली बताई जा रही है।
बताते हैं कि इसी बात को लेकर सद्भाव कंपनी के अंदर का सद्भाव भी बिगड़ गया था।
सिवनी में सद्भाव
ने मोहगांव से खवासा तक की सड़क का निर्माण नहीं कराया गया। कभी वन विभाग के डंडे
का डर दिखाया गया तो कभी न्यायालय के डंडे का। वस्तुतः न तो वन विभाग ही इसके
खिलाफ था न ही न्यायालय ने ही इस काम को रोकने की मंशा जाहिर की थी। सद्भाव ने
सिवनी में सड़क न बनाकर किसके इशारे पर सद्भाव बिगाड़ा यह बात तो सद्भाव का सद्भाव
बनाने वाले ही बेहतर जानते होंगे किन्तु चर्चा यह है कि सिवनी में सड़क न बनाने के
पारितोषक के बतौर सद्भाव को छिंदवाड़ा जिले में सड़क निर्माण के काम प्रदाय कर दिए
गए।
यह सब होता रहा और
सिवनी के कांग्रेस के तत्कालीन विधायक स्व.हरवंश सिंह, के अलावा भाजपा की
विधायक श्रीमती नीता पटेरिया, श्रीमती शशि ठाकुर एवं कमल मर्सकोले अचंभित
और किंकर्तव्यविमूढ़ हालत में बैठे रहे। इसका सबसे आश्चर्यजनक पहलू तो यह है कि
सिवनी के कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम और भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख भी
अपने आप को लोकसभा में बौना ही महसूस करते रहे। दोनों ही सांसदों ने लोकसभा में एक
बार भी प्रश्न पूछने की जहमत नहीं उठाई। हो सकता है कि दोनों ही सांसदों को डर रहा
होगा कि कहीं प्रश्न पूछने से ‘बलशाली षणयंत्रकारी‘ नाराज न हो जाए। इन
सांसदों को ‘बलशाली
षणयंत्रकारी‘ के कोप
भाजन होने का डर ज्यादा था पर जनता के नाराज होने का भय शायद ही किसी को रहा हो।
यहां एक तथ्य विशेष
तौर पर उल्लेखनीय है कि सिवनी जिले से होकर गुजरने वाला यह फोरलेन मार्ग दोनों
सांसदों के संसदीय क्षेत्र और चारों विधायकों के विधानसभा क्षेत्र से होकर गुजरता
है। अब जबकि विधानसभा चुनाव सर पर हैं तब क्या जनता इनसे यह नहीं पूछेगी कि आखिर
क्या कारण था कि इन्होंने अपने कर्तव्यों के निर्वहन के बजाए ‘बलशाली षणयंत्रकारी‘ का साथ क्यों दिया? सिवनी में मीडिया
में भी इन सांसद विधायकों की भूमिका चर्चित न रह पाना आश्चर्य का ही विषय है। इस
सड़क पर न जाने कितने निर्दोष लोगों की जान गई। लगता है इन निर्दोष लोगों की जान की
कीमत इन लोगों की नजरों में कीड़े मकोड़ों से भी गई गुजरी है।
इस मामले में याद
पड़ता है कि लखनादौन नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष, पेशे से अधिवक्ता, राय पेट्रोलियम के
संचालक, शराब
व्यवसाई रहे, लखनादौन
मस्जिद के सरपरस्त दिनेश राय ने लखनादौन जनमंच के बेनर तले एक आंदोलन किया था, इस आंदोलन की
समाप्ति तत्कालीन अपर कलेक्टर अलका श्रीवास्तव के द्वारा लिखित आश्वासन कि सड़क का
निर्माण जल्द कराया जाएगा, के साथ हुई थी (जैसा दिनेश राय उर्फ मुनमुन ने उस समय मीडिया
में प्रचारित करवाया था)। इस आश्वासन पत्र का इसके बाद क्या हुआ, यह किसी को नहीं
पता है? लगता है कि
यह भी सद्भाव पर दबाव बनाने के लिए ही उठाया गया कदम था।
बहरहाल, सद्भाव द्वारा सड़क
नहीं बनाए जाने से सिवनी में न जाने कितनी जानें गईं, सिवनी जिले मेें
आपसी सामंजस्य का सद्भाव बिगड़ा, सद्भाव से लाभ लेने के चक्कर में सालों के
दोस्त अचानक दुश्मन बन गए, लगा मानो ‘सद्भाव कंपनी‘ नहीं सिवनी में ‘ईस्ट इंडिया कंपनी‘ आ गई हो जो ‘डिवाईड एण्ड रूल‘ की नीति अपना रही
हो। होना यह चाहिए कि सड़क के लिए लड़ने वाले हर व्यक्ति संस्था को (अब विधायक सांसद
से उम्मीद बाकी नहीं) कोर्ट में परिवाद पेश करते समय सद्भाव के मालिकों को पार्टी
बनाना चाहिए। जब वे स्वयं इस सड़क से होकर गुजरेंगे तब उन्हें सिवनी के दुख दर्द का
शायद भान हो पाए।
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