आजाद मुल्क के
छियासठ साल, क्या खोया
क्या पाया
(लिमटी खरे)
भारत देश 1947 में 14 और 15 अगस्त की दर्मयानी
रात को आजाद हुआ था। भारत देश को आजाद कराने में आजादी के मतवालों ने क्या क्या
जुल्म नहीं सहे। फिरंगियों ने भारत के शूरवीरों पर क्या क्या सितम नहीं ढाए। आज
जवान हो चुकी पीढ़ी को इस बात का इल्म नहीं होगा कि आजादी कितनी मुश्किल से हमें
मिल सकी है। दरअसल शिक्षा को लेकर नित नए प्रयोगों से आज की युवा पीढ़ी इस बात से
अनिभिज्ञ है कि आजादी किस कीमत पर हमें मिली है।
आज 15 अगस्त (स्वाधीनता
दिवस) या 26 जनवरी
(गणतंत्र दिवस) या 2 अक्टूबर
(गांधी जयंती) के मायने अवकाश का और ड्राय डे (जिस दिन मदिरा का विक्रय प्रतिबंधित
होता है) के रूप में जाना जाने लगा है। संजय दत्त अभिनीत ‘लगे रहो मुन्ना भाई‘ में भारत की शिक्षा
प्रणाली पर जमकर प्रहार किया गया था, बावजूद इसके हुक्मरान चेत नहीं सके हैं। आज
की युवा पीढ़ी मुन्ना भाई के सर्किट की तरह दो अक्टूबर पर ड्राय डे है कहकर मदिरा
का स्टाक करने में जुट जाता है।
सिवनी की अगर बात
की जाए तो सिवनी में आजादी के 66 सालों में से आधे समय अर्थात 33 साल ही महत्व के
माने जा सकते हैं। इन 33 सालों अर्थात अस्सी के दशक के आगाज तक ही सिवनी में मूल्य
आधारित राजनीति होती आई है। इसी दौरान सिवनी के विकास का ताना बाना बुना गया।
सिवनी के लिए अगर किसी ने कुछ किया है तो वे हैं पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री
विमला वर्मा। कायस्थ कुल में जन्मीं सुश्री वर्मा ने अपना सारा जीवन सिवनी को
न्योछावर किया है।
सिवनी में
आयुर्विज्ञान संस्थान (मेडीकल कालेज) की क्षमता वाला जिला चिकित्सालय हो, एशिया का सबसे बड़ा
मिट्टी का बांध, संजय सरोवर
परियोजना का भीमगढ़ डेम हो, क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय हो, सिंचाई विभाग का
मुख्य अभियंता कार्यालय हो, लोक कर्म विभाग का अधीक्षण यंत्री कार्यालय
हो, राष्ट्रीय
राजमार्ग का कार्यपालन यंत्री कार्यालय हो (जो कुछ सालों पहले यहां से उठकर चला
गया है), दूध डेरी
हो, सब कुछ
सुश्री विमला वर्मा की देन है।
सुश्री विमला वर्मा
को उनके इर्द गिर्द घूमने वालों ने ही षणयंत्र के तहत घर बिठा दिया। जैसे ही
सुश्री वर्मा ने सक्रिय राजनीति से किनारा किया वैसे ही कांग्रेस के मौका परस्त
लोगों ने शहनाई बजाई, उत्सव का आयोजन किया, राग मल्हार गए, और फिर हुई हरवंश
सिंह ठाकुर की ताजपोशी। हरवंश सिंह ठाकुर के हाथों जैसे ही सिवनी में कांग्रेस की
कमान आई, उसके बाद
से सिवनी में सियासी अवमूल्यन आरंभ हो गया।
कहते हैं कि हरवंश
सिंह के तबले की थाप पर ना केवल कांग्रेस वरन् भाजपा का संगठन भी कत्थक करता आया
है। वरना क्या कारण है कि आमानाला जैसे काण्ड में हरवंश सिंह के खिलाफ भाजपा की
पूर्व सांसद और वर्तमान विधायक बंडोल थाने से चालान कोर्ट में पेश नहीं करवा सकीं।
अंततः नाटकीय तरीके से हरवंश सिंह को ही इस प्रकरण की समयसीमा समाप्त होने के चलते
खात्मा का आवेदन देना पड़ा। यह भाजपा संगठन के मुंह पर एक जबर्दस्त तमाचे से कम
नहीं है, जिसकी गूंज
गत दिवस सिवनी के कार्यकर्ता सम्मेलन में ‘नरेश नीता हटाओ, भाजपा बचाओ‘ नारे के रूप में
सुनाई दी गई है।
हरवंश सिंह को काफी
साल पहले ‘मनराखनलाल‘ नाम दिया गया था।
हरवंश सिंह ने दिग्विजय सिंह, अर्जुन सिंह, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य
सिंधिया, सुंदर लाल
पटवा, उमा भारती, बाबू लाल गौर, शिवराज सिंह चौहान
सहित कांग्रेस और भाजपा के ना जाने कितने क्षत्रपों को साधा था। उनकी अंतिम यात्रा
में कांग्रेस के नेता तो रस्म अदायगी कर रवाना हो गए पर भाजपा के नेता अंत तक रूके
रहे, यह जीता
जागता प्रमाण था हरवंश सिंह की लोकप्रियता का।
हरवंश सिंह ठाकुर
ने लगभग 25 सालों तक
सिवनी में कांग्रेस की कमान परोक्ष तौर पर संभाली और सिवनी में सत्ता की धुरी बने
रहे। हरवंश सिंह ठाकुर का मीडिया प्रबंधन कौशल गजब का था। यह प्रबंधन कौशल सिवनी
को छोड़कर अन्य जिलों के लिए तारीफे काबिल था। सिवनी में तो उनके चंद ‘गुलाम‘ कथित ‘मीडिया मुगलों‘ ने हरवंश सिंह को
भगवान बनाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी थी। आज वे ही कथित ‘मीडिया मुगल‘ हरवंश सिंह के
पुत्र का कुछ नेता नुमा ठेकेदारों के चाहने पर विरोध करते नजर आ रहे हैं।
हरवंश सिंह के खाते
में सिवनी में एसटीडी सुविधा के अलावा और कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। हरवंश सिंह ने
सिवनी को जलावर्धन योजना की सौगात दी है। करोड़ों अरबों रूपए खर्च करने के बाद भी
आज सिवनी के नागरिकों को एक वक्त भी साफ शुद्ध पेयजल मुहैया नहीं हो पा रहा है
जबकि यह दो वक्त पानी देने के लिए बनी थी। इस मामले में उस समय के विधायक नरेश दिवाकर, उर्मिला सिंह, बेनी परते, शशि ठाकुर, डॉ.ढाल सिंह बिसेन, कमल मस्कोले, श्रीमति नीता
पटेरिया ने कभी आवाज नहीं उठाई। आज किस मुंह से ये नेता जनता का सामना करने का
साहस जुटा पा रहे हैं, जबकि ये कांग्रेस के क्षत्रप हरवंश सिंह का विरोध ही नहीं कर
पाते थे।
आज यह सोचना बेहद
जरूरी हो गया है कि आजादी के इन 66 सालों में हमने क्या पाया? क्या खोया है? जो मिला है वह
सुश्री विमला वर्मा ने दिया है पर उसे भी आज के नेता संभाल कर नहीं रख पा रहे हैं।
सिवनी में कांग्रेस भाजपा के नेता स्थानीय समस्याओं से विमुख हैं। देश और प्रदेश
सरकार पर तोहमत लगाना उनका प्रिय शगल बनकर रह गया है। स्थानीय समस्याओं पर एक शब्द
भी बोलना उनकी शान के खिलाफ है।
अगर देश प्रदेश की
सरकारों की इतनी ही चिंता है तो हमारी निजी राय में बेहतर होगा कि वे दिल्ली या
भोपाल में जाकर बयानबाजी करें। सिवनी की जनता को स्थानीय समस्याओं से मुक्त कराने
में आखिर इन नेताओं की जान क्यों निकल जाती है। जाहिर है हर कोई किसी ना किसी से
कहीं ना कहीं उपकृत है। अगर विधायक के खिलाफ बोला तो हमारी . . . बंद हो जाएगी? अध्यक्ष अपना वाला
है, हमें क्या
करना है, उसकी पूंछ
पर क्यों पैर रखें,
क्यों खुजाएं जबरन? जैसे जुमलों में ही इन नेताओं की जनसेवा हो
जाती है। अंततः ये नेता अपना पूरा हुनर केंद्र की कांग्रेस और प्रदेश की भाजपा
सरकार पर दिखाते नजर आते हैं।
आज अगर आप जहां खड़े
हैं वहां से देखें तो सियासी बियावान में नैतिक मूल्यों का पतन साफ तौर पर पाएंगे।
सिवनी के विकास के मामले में विज्ञप्तिवीर प्रवक्ता और नेताओं ने जिले की जनता को
भरमाने का कुत्सित प्रयास किया है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए। इन नेताओं को इस
बात से सबक लेना चाहिए कि आज हरवंश ंिसंह ठाकुर जैसे कद्दावर क्षत्रप के अवसान के
बाद कुंवर शक्ति सिंह और राजा बघेल जैसे नेता प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर उनकी
मिट्टी खराब करने से नहीं चूक रहे हैं। आज जो स्थिति का निर्माण हुआ है उससे
निश्चित तौर पर हरवंश सिंह से दिल से जुड़े लोग अवश्य आहत हो रहे होंगे।
इसी बात को समझना
जरूरी है कि हम आज चंद सिक्कों की खनक के लिए अपना दीन ईमान पैसा ना बनाएं, आने वाली पीढ़ी आपको
कोसेगी या पूजा करेगी यह बात सिवनी में ही साफ हो रही है। एक ओर जीते जी सुश्री
विमला वर्मा की तारीफों में कशीदे गढ़े जा रहे हैं वहीं, दूसरी और अवसान के
बाद भी हरवंश सिंह की मिट्टी पलीत की जा रही है। सोचना सिवनी के सियासी बियावान
में विचरण करने वाले नेताओं को है, कि वे आने वाले समय में अपनी छवि किस तरह की
बनाना चाहते हैं? आज समय है
हम अपने आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कृत, आशावादी, पढ़ी लिखी बनाना चाह
रहे हैं, या उसके
हाथ में ‘माउजर‘ देकर उसे सट्टा
विशेषकर क्रिकेट सट्टा किंग, जुंए की फड़ का संचालक, रंडी नचाने वाला, आतंक बरपाने वाला
बनाना चाह रहे हैं?
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