जागिए कमल मर्सकोले
जी, खवासा आपकी
विधानसभा में है
(लिमटी खरे)
बरघाट विधानसभा के
विधायक हैं कमल मर्सकोले। कमल मर्सकोले के बारे मेें कहा जाता है कि वे काफी
संवदेनशील हैं। पांच साल होने को आए, उनके विधायक बनने के उपरांत सिवनी जिले या बरघाट
विधानसभा के हित में कमल मर्सकोले ने विधानसभा में कितने प्रश्न पूछे हैं, इस बारे में वे ही
बेहतर बता पाएंगे। अब चूंकि पांच साल का समय पूरा होने को आया है अतः कमल मर्सकोले
को जनता की अदालत में खड़ा होना पड़ेगा। उनके विरोधी उनकी टिकिट कटवाने की जुगत में
होंगे। कमल मर्सकोले के विरोधी चाह रहे होंगे कि कमल मर्सकोले के खिलाफ मामलों का
पुलिंदा उनके हाथ लगे और वे उसे आलाकमान के हाथों सौंप दें।
खवासा अब बरघाट
विधानसभा का हिस्सा है। खवासा में आरटीओ, विक्रय कर, मण्डी आदि की जांच
चौकियां स्थापित हैं। इन जांच चौकियों में नियम कायदों का कितना पालन होता है यह
बात आला अधिकारियों के साथ ही साथ विधायक कमल मर्सकोले को भी अच्छे से पता है।
क्या इन पांच सालों में कभी कमल मर्सकोले ने इन जांच चौकियों की सुध ली? अगर नहीं तो क्या
रही इसकी वजह? क्या
संवेदनशील विधायक कमल मर्सकोले इस बात का जवाब सार्वजनिक रूप से देने का माद्दा
रखते हैं?
एक वाक्या याद
दिलाना यहां कमल मर्सकोले और जनता को लाजिमी होगा, क्योंकि अमूमन
सांसद, विधायक सा
सियासी बियावान में विचरण करने वाले नेता मानकर चलते हैं कि ‘पब्लिक मेमोरी‘ यानी लोगों की
याद्दाश्त बहुत कम होती है। अधिक समय तक लोग बातों को याद रखने में दिलचस्पी नहीं
लेते हैं। जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ तब हर चौक चौराहों, पान की दुकानों पर
इसके चर्चे चटखारे लेेकर हुआ करते थे।
इसके उपरांत संसद
पर हमला हुआ देश दहल गया, तब भी लोगों ने इसकी चर्चा की, पर तब तक अमरीका पर
हुआ हमला लोगों के जेहन से गायब हो चुका था। इसके बाद छुटपुछ घटनाएं हुईं और देश
की आर्थिक राजधानी मुंबई पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ। इस वक्त तक अमरीका
और संसद पर हुए हमले को लोग भूल चुके थे। आज मुंबई हमले पर भी कोई भूले भटके ही
चर्चा करता होगा। गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पुणे में यूं ही बयान नहीं दिया
था कि लोगों की याद्दाश्त कम होती है लोग यह बात भी भूल जाएंगे।
यह कड़वी सच्चाई है
कि ‘बीती ताहि
बिसार देय, आगे की सुध
लेय‘ की तर्ज पर
व्यवस्थाओं का संचालन हो रहा है। किन्तु इन व्यवस्थाओं के बीच मीडिया का यह
दायित्व है कि वह हुक्मरानों को समय समय पर चेताने के साथ ही साथ रियाया को भी समय
समय पर सच्चाई से अवगत् कराए, वस्तुतः मीडिया के ग्लेमर के चक्कर में
मीडिया के मर्म को समझने के बजाए ‘प्रबंधन कौशल‘ के धनी लोग आज
पत्रकारों की फेहरिस्त में शामिल हो चुके हैं, जिन्हें मीडिया के
गुणधर्म के बारे में माहिती कतई नहीं है। चंद सिक्कों की खनक में हीरो को जीरो और
जीरो को हीरो बनाकर अपना दायित्व कथित तौर पर निभा रहे हैं इस तरह के पत्रकार।
मुद्दे की बात पर
आएं और वाक्ये का जिकर किया जाए। मोहगांव से खवासा सड़क के निर्माण के लिए विधायक
कमल मर्सकोले ने भी अनशन पर बैठने की घोषणा की, यह वाकई एक स्वागत
योग्य कदम था कि विधायक पद की गरिमा के अनुरूप कमल मर्सकोले ने लोगों के दुःखदर्द
को देखकर ऐसा कदम उठाया। उस वक्त लोगों ने कमल मर्सकोले की विधायकी पर आंच आने तक
की बात कह दी थी, जिससे भी
कमल मर्सकोले नहीं डिगे।
पर आज जिले की जनता, बरघाट के विधायक
कमल मर्सकोले से यह पूछना चाह रही है कि क्या वे स्वयं अपनी मर्जी से अनशन पर
बैठने राजी हुए थे,
या किसी के दबाव में! अगर किसी के दबाव में उन्होंने धरने पर
बैठने का निर्णय लिया था तो पर्दे के पीछे कौन था, चर्चा तो यह भी है
कि उन्होंने एनएचएआई के एक अधिकारी के स्थानांतरण की सिफारिश भी की है? अगर की है तो इसका
माजरा बता पाएंगे कमल मर्सकोले? पर अगर कमल मर्सकोले ने बिना किसी दबाव के
अनशन पर बैठने का मन बनाया था तो उनके विधायक बनने के उपरांत खवासा बार्डर पर लगने
वाले जाम के मामले में वे खामोश क्यों हैं? इस बात का जवाब उन्हें देना ही होगा, जनता आज जवाब मांग
रही है।
कमल मर्सकोले के विधानसभा क्षेत्र की दुधारू गाय मानी जाती है खवासा बार्डर।
इस बार्डर से हर माह ‘चंदी‘ के रूप मेें लाखों रूपए खवासा से सिवनी, जबलपुर
होकर भोपाल ग्वालियर तक जाते हैं। यह बात जिले के कमोबेश हर शख्स की जानकारी में
है। कमल मर्सकोले जी बरघाट विधानसभा की जनता ने आपको जनादेश देकर विधानसभा में
भेजा है। इस जनादेश का सम्मान करना आपका पहला कर्तव्य है। अपने इशारों पर मीडिया
को नचाने का दावा भले ही आप प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर करें, या फिर
वकीलों के सामने एक फोन पर कथित ‘मीडिया मुगलों‘ को अपने पास बुलाने का दंभ भरें, इस बात
से जनता को ज्यादा लेना देना नहीं है। जनता को खवासा बार्डर से खासी परेशानी हो
रही है। आपका फर्ज है कि तत्काल वहां जाएं और जाम हटाने की वैकल्पिक व्यवस्था
सुनिश्चित करवाएं, अगर अधिकारी न मानें तो दिखावे और मीडिया की
सुर्खियां बटोरने के लिए ही सही पर अनशन पर बैठें, वरना चुनाव नजदीक हैं, जिस जनता ने पांच साल पहले आपको सर माथे पर बिठाया
वही जनता आपको सत्ता के गलियारे से बाहर करने में नहीं चूकने वाली।
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