सिविल के
इंजीनियर्स कर रहे इलेक्ट्रिकल का काम!
गिनीज बुक में दर्ज
हो सकता है मध्य प्रदेश विद्युत वितरण कंपनी का नाम
(अखिलेश दुबे)
सिवनी (साई)।
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के वक्त सिविल शाखा लेकर अध्ययन् करने वाले स्नात्क या
स्नात्कोत्तर इंजीनियर्स की शाखा कुछ भी रही हो, पर मध्य प्रदेश
विद्युत वितरण कंपनी में इसका कोई महत्व नहीं रह गया है। सिविल शाखा लेकर अध्ययन्
कर मकान, सड़क आदि
बनाने में पारंगत इंजीनियर्स आज बिजली में इलेक्ट्रिकल शाखा का काम संभाले हुए
हैं।
मध्य प्रदेश
विद्युत मण्डल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर समाचार
एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान बताया कि यह विडम्बना से कम नहीं है कि
विद्युत मण्डल में ‘स्पेशलाईजेशन‘ का कोई महत्व नहीं
है। मण्डल की नीति पता नहीं कैसी है कि यहां भवन बनाने वालों को तकनीकि काम जैसे
संवेदनशील जॉब में रखा गया है।
इंजीनियरिंग
स्नात्क उक्त अधिकारी का कहना है कि एक बार यह मान लिया जाता है कि इंजीनियरिंग
में सिविल शाखा को छोड़कर किसी अन्य शाखा का स्नात्क चाहे तो सिविल का काम कर सकता
है पर मेकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, आईटी जैसी विंग्स
के पारंगत ही इसके काम के लिए उपयुक्त होते हैं।
उन्होंने बताया कि
सिवनी में विद्युत मण्डल के काम के लिए इलेक्ट्रिकल शाखा वाले स्नात्क या
स्नात्कोत्तर लोगों को ही काम पर रखा जाना चाहिए था। चूंकि यह बिजली का संवेदनशील
मामला है अतः इस मामले में कोताही लोगों की परेशानी का सबब् बनने के साथ ही साथ
किसी की जान भी ले सकती है।
उनके अनुसार अफसरों
की मनमर्जी के बेलगाम घोड़े तेजी से दौड़ रहे हैं जिसके कारण आज आलम यह है कि
विद्युत मण्डल में इलेक्ट्रिकल विंग के मलाईदार पदों पर, सालों से सिविल के
इंजीनियर्स बैठकर मोटा माल काट रहे हैं। सालों से सिवनी में पदस्थ विद्युत मण्डल
के अधिकारी कर्मचारी अब मोटी खाल के हो चुके हैं और उन्हें उपभोक्ताओं की शिकायत
से बहुत ज्यादा लेना देना नहीं बचा है।
विद्युत मण्डल के
बारापत्थर में टूटी पुलिया स्थित कार्यालय में ही हैरान परेशान उपभोक्ताओं की
टेलीफोन पर बजती घंटी से वहां तैनात कर्मियों को कोई लेना देना नहीं है। सौ पांच
सौ रूपए बिजली के बिल वालों के बिल अब दो से पांच हजार आ रहे हैं, पर सुनने वाला कोई
नहीं है।
सरेआम बिजली चोरी
हो रही पर अफसर मौन हैं। पिछले दिनों हिन्द गजट द्वारा सर्किट हाउस चौक पर यातायात
पुलिस द्वारा की जा रही बिजली चोरी की शिकायत से अधीक्षण यंत्री को अवगत कराने के
बाद भी कोई कार्यवाही ना होना आश्चर्य का विषय ही माना जाएगा। कहा जा रहा है कि
बिजली चोरी करने वालों द्वारा लाईन मेन से लेकर अधीक्षण यंत्री तक को उनका हिस्सा
पहुंचाया जाता हैं,
वरना क्या कारण है कि एसई के संज्ञान में लाने के बाद भी
बिजली चोरी का प्रकरण नहीं बनाया जाता है।
एक अन्य कर्मचारी
ने भी पहचान उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि चूंकि साहब लोग सिविल विंग के हैं और
यह मामला तकनीकि है अतः साहब लोगों को इसकी बारीकी नहीं पता होती है। यही कारण है
कि विद्युत मण्डल की स्थिति चरमरा चुकी है। उक्त कर्मचारी का कहना था कि पहले उसे
भगवान में विश्वास नहीं था, पर विद्युत मण्डल की नौकरी करने के बाद वह
मानने लगा है कि भगवान कहीं ना कहीं है अवश्य, वरना विद्युत मण्डल
कैसे चल रहा है, जाहिर है
भगवान भरोसे ही चल रहा है।
कथित तौर पर
संवेदनशील सांसद के.डी.देशमुख, बसोरी सिंह मसराम, विधायक श्रीमति
नीता पटेरिया, श्रीमति
शशि ठाकुर, कमल
मर्सकोले ने भी अब तक इस बात को ना संसद में और ना ही विधानसभा में उठाया है।
चर्चा है कि वे उठाते भी कैसे, वे तो चाभी से चलने वाले खिलौनों की तरह हो
चुके हैं, जिसमें
जनादेश देने वाली जनता का ध्यान रखना, उनकी जिम्मेदारी में शामिल नहीं है। बस
आसपास के लोगों ने जितना बता दिया उतना ही करना उनका दायित्व बचा है।
वहीं विपक्ष में
बैठी कांग्रेस भी अपना मुंह पूरी तरह सिले बैठी है। वैसे यह मामला स्थानीय नहीं है, इस मामले में तो
कांग्रेस के विज्ञप्तिवीर धार तेज कर सकते हैं। यह मामला मुख्यमंत्री शिवराज सिंह
चौहान और उर्जा मंत्री राजेंद्र शुक्ल से जुड़ा है। इस मामले में कांग्रेस के
विज्ञप्तिवीरों को स्थानीय भाजपा नेताओं को कटघरे में खड़ा नहीं करना होगा, इसलिए बिजली के
मामले में तो कम से कम वे अपनी रेत में गड़ी तलवारें निकालकर भाजपा (स्थानीय नहीं
प्रदेश स्तर की) पर वार कर ही सकते हैं।
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