स्कूल बस, फायदे का धंधा
(शरद खरे)
स्कूल बस का संचालन
वाकई एक फायदे का सौदा साबित हो रहा है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय, केंद्र सरकार, प्रदेश सरकार, जिला प्रशासन, परिवहन विभाग चाहे
जो निर्देश जारी करें पर स्कूल बस संचालकों की मोटी खाल पर इसका कोई असर नहीं होता
है। लगता है उपर से नीचे तक कड़े निर्देश जारी करना उसी तरह की एक परंपरा बन चुका
है जिस तरह कि इन निर्देशों को हवा में उड़ाने की परंपरा बन चुकी है।
स्कूल बस संचालन के
लिए न्यायालयों के साथ ही साथ केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा समय समय पर कड़े दिशा
निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। निहित स्वार्थ और पैसा कमाने की अंधी प्रतिस्पर्धा
में उलझे परिवहन विभाग और यातायात पुलिस को इन स्कूल बस संचालकों की मश्कें कसने
की फुर्सत शायद नहीं है। कभी कभार निरीह आटो चालकों पर अवश्य ही यातायात पुलिस की
सख्ती दिख जाती है।
देखा जाए तो स्कूल
बस संचालन के नियम कायदे बेहद कड़े हैं। चूंकि इसमें देश के नौनिहाल और भविष्य, घरों से शाला तक का
सफर तय करते हैं इसलिए इनकी सुरक्षा चाक चौबंद होना जरूरी ही है। दिल्ली सहित
महानगरों में आए दिन स्कूल बस के हादसे, बसों में बच्चों के साथ यौन छेड़छाड़ आदि की
शिकायतें मीडिया में पटी पड़ी हैं। बावजूद इसके सिवनी जिले मंें ना तो जिला प्रशासन
ही इसके लिए संजीदा दिख रहा है ना ही शाला प्रबंधन।
ज्ञातव्य है कि
पिछले साल मार्च में प्रदेश सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग के लोक शिक्षण संचालनालय
ने स्कूल बसों के लिए एक नई गाइड लाइन तय की थी। दरअसल, स्कूल बसों के
लगातार हादसों ने स्कूल शिक्षा विभाग के मोटी चमड़ी वाले आला अफसरान को जगाया था। 2012 में मार्च माह
मेें ही प्रदेश शासन ने मोटर व्हीकल एक्ट के नियमों का पालन कराने के लिए उच्चतम
न्यायालय के निर्देशों को अमल में लाने के लिए स्कूल बस के लिए जो दिशा निर्देश
जारी किए हैं, उसमें इस
बात का विशेष ख्याल रखा गया था कि जिस स्कूल बस में बच्चों को स्कूल तक लाने ले
जाने का काम किया जाएगा वह बस कितनी महफूज होगी? उस बस में हर उस
परिस्थिति से निपटने की तैयारी रहेगी जो रास्ते में किसी भी वक्त किसी के भी साथ
घटित हो सकती है। किसी भी परिस्थिति से निपटने के सारे इंतजाम बस में उपलब्ध
रहेंगे ताकि हर परिस्थिति से स्कूल बस में बैठे बच्चों को सुरक्षित बचाया जा सके।
उक्त समस्याओं पर
विचार कर स्कूल बसों के लिए नियम-कायदों की गाइड लाइन तैयार की गई एवं इसे नवीन
शिक्षण सत्र में समस्त स्कूल संचालकों के लिए जारी किया गया है। इसके अनुसार बस के
आगे और पीछे बड़े अक्षरों में, सुवाच्य अक्षरों में स्कूल बस लिखा जाए। यदि
बस किराये की है तो उस पर आगे एवं पीछे विद्यालयीन सेवा लिखा जाए। विद्यालय के लिए
उपयोग में लायी जाने वाली किसी भी बस में निर्धारित सीटों से अधिक संख्या में
बच्चे नहीं बैठाए जाएं। प्रत्येक बस में अनिवार्य रूप से फर्स्ट एड् बाक्स की
व्यवस्था हो। बस की खिड़कियों में आधी पट्टियां अनिवार्य रूप से फिट कराई जाएं।
प्रत्येक बस में अग्नि शमन यंत्र की व्यवस्था हो। बस में स्कूल का नाम और टेलीफोन
नंबर चस्पा हांे। बस के दरवाजे पर सुरक्षित चिटकनी लगी हो। वाहन चालक को भारी वाहन
चलाने का न्यूनतम पांच वर्ष का अनुभव होना चाहिए तथा पूर्व में ट्रैफिक नियमों के
उल्लंघन का दोषी नहीं ठहराया गया होना चाहिए। मोटर वाहन नियम 17 के अनुसार
प्रत्येक बस में बस चालक के अतिरिक्त एक अन्य योग्य व्यक्ति की व्यवस्था की जाए।
बच्चों के बस्ते रखने के लिए सीटों के नीचे जगह की व्यवस्था की जानी चाहिये।
सुरक्षा की दृष्टि से बच्चों को लाते-ले जाते समय बस में एक व्यक्ति यथासंभव स्कूल
के एक शिक्षक की व्यवस्था की जाए।
वहीं, सीबीएसई (सेंट्रल
बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन) स्कूलों की बसों में अनपढ़ चालक-परिचालकों के हाथों
में स्टेयरिंग नहीं थमाए जाने के निर्देश जारी किए गए थे। ड्राइवर 12 वीं व कंडक्टर के
लिए 10 वीं पास
होना अनिवार्य कर दिया है। कोई स्कूल संचालक या बस मालिक नियमों का उल्लंघन करता
है तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। बोर्ड सचिव विनीत जोशी द्वारा स्कूलों को इस संबंध
में अवगत कराया जा चुका है। स्कूलों को निर्देश जारी किए गए हैं कि यदि ड्राइवर
तेज गति से गाड़ी चलाने, शराब पीकर गाड़ी चलाने व खतरनाक तरीके से गाड़ी चलाने को लेकर
एक भी बार परिवहन विभाग की ओर से हुई चालान की कार्रवाई का दोषी होगा तो उसे काम
पर नहीं रखा जाएगा। इसके साथ ही साथ सागर जिला कलेक्टर ने तो स्कूल बस में
सीसीटीवी कैमरे लगाने की अनिवार्यता कर दी है।
इन दिशा निर्देशों
का कितना पालन सिवनी में हो रहा है यह बात वाकई देखने योग्य है। सिवनी में सुबह
सुबह बच्चों को लेकर शाला जाने वाली स्कूल बस या आटो चालकों का अगर यातायात पुलिस
या आरटीओ विभाग ब्रीदिंग एनलाईजर लगाकर टेस्ट करें तो नब्बे फीसदी चालकों के मुंह
से वैसे ही शराब का भपका आता मिलेगा, वह भी ब्रीदिंग एनलाईजर्स के बिना। यातायात
पुलिस और आरटीओ से अपेक्षा है कि वे पैसा कमाने की अंधी दौड़ में अपने आप को इतना
मशगूल ना कर लें कि देश के नौनिहालों के परिवहन की व्यवस्था को ही भूल जाएं। जिला
कलेक्टर भरत यादव और जिला पुलिस अधीक्षक मिथलेश शुक्ला से भी इस संवेदनशील मामले
में ध्यानाकर्षण की अपेक्षा की जा रही है।
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