उपेक्षा का परिणाम
है अलगाव की भावना
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)।
मध्यप्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में से एक जबलपुर संभाग के तीन उपेक्षित
जिलों सिवनी ंिछदवाड़ा और बालाघाट को मिलाकर नये संभाग के गठन के स्वयं प्रदेश के
मुखिया के ऐलान के पांच साल बीत जाने के बाद भी उस मंें लेशमात्र प्रगति न हो पाना
इस अंचल के लोगों को यह सोचने पर विवश करता है कि क्या प्रदेश की सरकार इस अभागे
अंचल के विकास के लिये कभी सपने में भी विचार नहीं करती?
यदि प्रदेश की
सरकार या उसके स्थानीय प्रतिनिधियों ने कभी भी इस क्षेत्र के विकास के लिये विचार
किया होता तो इस अभागे क्षेत्र को अपने उदय के साढ़े पांच दशक बाद भी अभागा कहने की
आवश्यकता महसूस नहीं होती। 55 लाख आबादी वाले तीन जिलों के विकास के लिये
प्रदेश सरकार की उपेक्षा की तीव्र प्रतिज्ञा अंततः इस पिछड़े क्षेत्र के लोगों को
इस बात पर विचार करने को विवश करने लगी है कि जब कोई प्रदेश सरकार उसके विकास का
विचार करने को ही तैयार नहीं है तो क्यों न अपने उत्तरोत्तर और तीव्रगति के विकास
के लिये नया मार्ग खोजा जाय।
संयोग या सौभाग्यवश
जिस समय इस अंचल में उपेक्षा का यह दंश फैल रहा है ठीक उसी समय निकट पड़ोस में नये
राज्य के गठन की संभावनायें जन्म ले रही हैं वह भी ऐसे नये राज्य की, जिसका अंग रह कर
पूर्व में यह क्षेत्र विकास की सीढ़ियां लांघने की तैयारी कर रहा था ठीक उसी समय इस
क्षेत्र को अपने पुराने राज्य से प्रथक कर एक ऐसे नये राज्य का अंग बना दिया गया
जिसकी विशालता अपने आप में उस नये प्रदेश के विकास में बाधक थी।
एक नये प्रदेश
छत्तीसगढ़ के गठन के बाद भी उस प्रदेश की विशालता में कोई अंतर नहीं आया। नवगठित
छत्तीसगढ़ विकास के नये नये सोपान तय कर रहा है, वहीं राजनैतिक
नेतृत्व के विद्यमान होने के बावजूद यह अभागा अंचल आज भी संभाग तक बनने को तरस रहा
है, तब विकास
के अन्य सोपान की कल्पना भी मूर्खता से कम नहीं मानी जा सकती।
यह सर्वविदित है कि
विकास के लिये राजनैतिक सक्षम नेतृत्व की उपलब्धता प्रथम आवश्यकता होती है जो इस
क्षेत्र में पर्याप्त मौजूद है। उसके बावजूद विकास का सपना साकार न होना समझ से
परे है। ऐसी स्थिति में जनता को स्वयं अपने विकास की चिंता करना स्वाभाविक हो जाता
है। यही कारण है कि प्रदेश सरकार के साथ साथ समूची राजनैतिक बिरादरी से लगातार
उपेक्षा और तिरस्कार की शिकार हो रही इस अंचल की जनता ने अपने विकास का बीड़ा स्वयं
उठाने का संकल्प लिया है और उसका सबसे उत्तम उपाय इस अंचल के लोगों को नये राज्य
में संविलियन दिखाई दे रहा है।
परिणामस्वरूप इस अंचल की आम जनता अब और अधिक विलंब किये बिना अपने विकास की
कल्पना को मूर्तरूप देेने के लिये पड़ोसी विदर्भ राज्य की मांग के साथ कंधे से कंधा
मिलाकर आंदोलन में शामिल होने का साहसिक निर्णय लेने पर मजबूर हो जाये तो
अतिश्योक्ति नहीं होगी।
1 टिप्पणी:
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मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003
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