विरोध की नायाब
राजनीति
(शरद खरे)
सिवनी में सियासी
दलों का नया चलन सामने आया है। सिवनी जिले में कांग्रेस द्वारा भारतीय जनता पार्टी
को और भाजपा द्वारा कांग्रेस को जमकर कोसा जाता है। इस कोसने की लक्ष्मण रेखा तय
है। वह लक्ष्मण रेखा, सिवनी जिले की सीमा रेखा के बाहर ही है। सिवनी में भाजपा और
कांग्रेस द्वारा गजब का सामंजस्य दिखाया जाता रहा है। कांग्रेस ने कभी भी भाजपा
संगठन अथवा भाजपा के विधायकों का विरोध नहीं किया है। वहीं, दूसरी ओर भाजपा ने
भी कांग्रेस को जिला स्तर पर कभी भी कटघरे में खड़ा नहीं किया है। कुल मिलाकर सिवनी
में रहने वाले सारे नेता एक दूसरे से परस्पर सामंजस्य स्थापित कर चल रहे हैं।
दोनों ही प्रमुख दलों के अलावा शेष सियासी दल मृत प्राय ही हैं। शेष सियासी दलों
की आवाज गाहे बगाहे सुनाई पड़ जाती है।
पिछले लगभग पांच
सालों से भारतीय जनता पार्टी द्वारा केंद्र की कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को जमकर
कोसा जाता रहा है। केंद्र की कांग्रेस की नीतियों पर कांग्रेस ने इस कदर वार किए
हैं कि प्रदेश के प्रवक्ता मुकेश नायक और केंद्र में अजय माकन भी शर्मसार हो जाएं, पर जब बात सिवनी
जिले की आती है तो भाजपा मुंह सिल लेती है। सिवनी में फोरलेन न बन पाने के लिए
भाजपा ने भी जनमंच का साथ देते हुए केंद्रीय मंत्री कमल नाथ को इसके लिए दोषी
ठहराया था। कमल नाथ की प्रतीकात्मक शवयात्राएं सिवनी में निकाली गईं। कमल नाथ को
जमकर कोसा गया। उसके उपरांत कचहरी चौक पर सद्बुद्धि यज्ञ हुआ। इसमें कांग्रेस के
नेताओं के पोस्टर्स लगाए गए। कांग्रेस के नेता भी इसमें साथ थे। हमें यह कहने में
कोई संकोच नहीं कि भाजपा की छांह बनते दिख रहे जनमंच को बेलेंस करने के लिए
कांग्रेस नेता राजा बघेल द्वारा शिवराज सिंह चौहान का फोटो भी लगाने की बात कही गई
तो जमकर विवाद हो गया था उस वक्त। बाद में मजबूरी में शिवराज सिंह चौहान का फोटो
भी बेमन से लगाया गया। 13 जून को जब कमल नाथ सिवनी आए तो भाजपा के एक धड़े ने उन्हें
काले गुब्बारे दिखाए। भाजपाई पार्षदों ने अपनी पहचान उजागर न करने की शर्त पर साफ
कहा कि भाजपा के जिला संगठन द्वारा कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल
नाथ की खिलाफत के लिए कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिए हैं। नतीजतन 13 जून को जिला भाजपा
ने कमल नाथ के प्रति अपना अघोषित अनुराग दर्शा ही दिया। कमोबेश यही अनुराग और
प्रेम पूर्व में सालों से जिला भाजपा द्वारा कांग्रेस के कद्दावर नेता हरवंश सिंह
के साथ भी दिखाया जाता रहा है। जिला भाजपा ने कभी हरवंश सिंह का विरोध नहीं किया।
हरवंश सिंह प्रदेश में मंत्री रहे या विपक्ष में रहकर विधानसभा उपाध्यक्ष रहे इस
मामले में भाजपा द्वारा सदा ही मौन धारित किए रहा गया। जिला मुख्यालय के लोगों की
प्यास बुझाने के लिए दो वक्त का पानी मुहैया करवाने हेतु दिग्विजय सिंह के
मुख्यमंत्रित्व काल में भीमगढ़ जलावर्धन योजना का आगाज हुआ। उस वक्त सिवनी के
विधायक नरेश दिवाकर हुआ करते थे। नरेश दिवाकर लगातार दस साल तक विधायक रहे। आज
भीमगढ़ जलावर्धन योजना से गंदा, बदबूदार, बीमार कर देने वाला
पानी सिवनी के लोगों को मिल रहा है, किन्तु विधानसभा में नरेश दिवाकर और उनके
उपरांत विधायक बनीं नीता पटेरिया ने कभी प्रश्न नहीं उठाया, आखिर क्यों? क्या वजह थी कि
नरेश दिवाकर और नीता पटेरिया ने हरवंश सिंह की मुखालफत से खुद को दूर रखा? क्या दोनों के पास
इसका कोई जवाब है?
अगर है तो सिवनी की जनता को दिया जाए? मनमोहन सरकार को
कोसने के लिए तो देश के सवा छः सौ जिले हैं पर जिले के अंदर क्या हो रहा है इस
बारे में भी तो ध्यान दिया जाए।
कमोबेश यही आलम
कांग्रेस का है। कांग्रेस के सुधि तीन तीन प्रवक्ताओं ने भी कभी भाजपा के जिला
संगठन या विधायकों को कटघरे में खड़ा नहीं किया है। क्या है इसकी वजह? लोग कहते हैं कि
भाजपा मानसिकता वाले कांग्रेस में आए एक प्रवक्ता राम दास ठाकुर द्वारा कभी डॉ.ढाल
सिंह बिसेन के खिलाफ कलम नहीं उठाई जा सकती है? वहीं ओ.पी.तिवारी
कभी विधायक श्रीमती नीता पटेरिया के खिलाफ नहीं बोल सकते हैं? क्या ये महज
अफवाहें हैं? हो सकता है
नहीं, क्योंकि
इतिहास इसी बात की ओर संकेत कर रहा है कि इन्होंने अपने आप को इन विवादस्पद मामलों
से दूर ही रखा है। जिला मुख्यालय से प्रकाशित एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र द्वारा
विधायक श्रीमती नीता पटेरिया के द्वारा दी जाने वाली जनसंपर्क निधि की राशि का
खुलासा किया गया। इस खुलासे में कुछ पत्रकारों के साथ ही साथ कांग्रेस के नामचीन
लोगों या उनके परिजनों के नाम भी हैं, वह भी महज दो से पांच हजार रूपए की राशि के
लिए! क्या दो से पांच हजार रूपए की राशि में कांग्रेस ने अपने आप को भाजपा के
हाथों गिरवी रख दिया है। हमने मई माह में ही एक सूचना के जरिए साफ कहा था कि हम वो
ही विज्ञप्तियां प्रकाशित करेंगे जिसमें सिवनी का उल्लेख हो। भोपाल में प्रादेशिक
और दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर की विज्ञप्तियां जारी करने के लिए कांग्रेस और भाजपा
के प्रवक्ता है, उन्हें
उनका काम करने दिया जाए। उनकी नौकरी में सिवनी के प्रवक्ता हस्तक्षेप न करें तो
उचित ही होगा।
सिवनी में सड़क की
लड़ाई के लिए बना जनमंच भी लोगों से अपने स्तर पर विरोध की बात कह रहा है। यह वही
जनमंच है जिसके बेनर तले 21 अगस्त 2009 को सिवनी में जनता कफर््यू लगा था। अब कहां
गया वह लड़ने का माद्दा। क्या आज जनमंच की ताकत कम हो गई है जो खुद शिवराज सिंह
चौहान का विरोध करने के बजाए लोगों से विरोध करने को कह रहा है? क्या इसके पीछे
सियासी मकसद छिपा है? अगर नहीं है तो आगे आएं जनमंच से जुड़े संजय तिवारी, भोजराज मदने, राकेश पाल सिंह, पंकज शर्मा, वीरेंद्र
सोनकेसरिया, राज कुमार
खुराना, आशुतोष
वर्मा, घनश्याम
जाड़ेजा, विधायक कमल
मर्सकोले (कुरई में हड़ताल पर बैठे थे), श्रीमती नीता पटेरिया (कचहरी चौक पर
पूर्णाहुती डालने र्गइंं थीं) नरेंद्र ठाकुर और दिखाएं शिवराज को काले झंडे। अगर
नहीं तो यही माना जाएगा कि ये सारे लोग शिवराज सिंह चौहान का विरोध इसलिए नहीं कर
सकते हैं क्योंकि इन्हें अभी टिकिट की लालसा है और सिवनी की जनता के प्रति इनका
कोई कर्तव्य नहीं बाकी रह गया है. . .।
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