गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

पत्रकार वार्ता में आधी अधूरी जानकारी दी मीडिया को!

पेड न्यूज के दायरे में सोशल मीडिया. . .

पत्रकार वार्ता में आधी अधूरी जानकारी दी मीडिया को!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। सोशल मीडिया को पेड न्यूज के दायरे में लाए जाने के निर्णय के उपरांत आज जिला कलेक्ट्रेट सभाकक्ष में संपन्न हुई पत्रकार वार्ता में न तो पेड न्यूज पर से ही कुहासा हट सका और न ही पत्रकार वार्ता लेने वाले अधिकारी और बरघाट और केवलारी विधानसभा क्षेत्र में चुनाव पर होने वाले व्यय पर नजर रखने आए पर्यवेक्षक ही कुछ बता पाए। पत्रकारों के सवालों पर जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्रीमति प्रियंका दास ने कहा कि वे वीसी (वीडियो कांफ्रेंसिंग) में पत्रकारों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का जवाब उपरसे बुलवाकर देंगीं।
कलेक्टर सभाकक्ष में आज अपर कलेक्टर एवं उप जिला निर्वाचन अधिकारी जे.समीर लकरा की अध्य्ाक्षता में प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिय्ाा को विधानसभा चुनाव २0१३ के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई। इस अवसर पर केन्द्रीय्ा जागरूकता प्रेक्षक अरविन्द सुदर्शन सीईओ जिला पंचाय्ात श्रीमती प्रिय्ांका दास, कोषालय्ा अधिकारी कु.नेहा कलचुरी, पेंशन अधिकारी समदेकर, सहाय्ाक संचालक जनसंपर्क श्रीमती बबीता मिश्रा सहित अन्य्ा अधिकारी उपस्थित थे।
अपर कलेक्टर एवं उप जिला निर्वाचन अधिकारी जे.समीर लकरा ने बताय्ाा कि पेड न्य्ाूज (एम.सी.एम.सी.) मीडिय्ाा सर्टिफिकेशन एवं मानिटरिंग सेल बनाई गई है, जो २४ घंटे पेड न्य्ाूज हेतु प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रॉनिक की मानीटरिंग कर रहा है। पेड न्य्ाूज एवं प्री सर्टिफिकेशन संबंधित जानकारी एवं शिकाय्ात हेतु फोन नंबर २२६४५६ (जो अभी खराब है) पर कॉल कर सकते हैं।

सोशल मीडिया के संबंध में दिशानिर्देश जारी
जिला पंचाय्ात के मुख्य्ा कायर््ापालन अधिकारी श्रीमति प्रिय्ांका दास ने बताय्ाा कि सोशल मीडिय्ाा के संबंध में चुनाव आय्ाोग ने विस्तृत निर्देश जारी किय्ो हैं। सोशल मीडिय्ाा की परिभाषा में विकिपीडिय्ाा, ट्वीटर, य्ाू-ट्यूब, फेसबुक, एप्पस आदि उदाहरणों को शामिल करते हुए चुनाव आय्ाोग ने निर्देशित किय्ाा है कि चुनाव प्रचार संबंधी सभी कानूनी प्रावधान सोशल मीडिय्ाा पर भी उसी तरह लागू हैं, जिस तरह किसी भी अन्य्ा इलेक्ट्रॉनिक माध्य्ाम पर।
इन निर्देशों में आय्ाोग ने कहा है कि नामांकन दाखिल करने वाले प्रत्य्ााशी फार्म २६ के साथ एफिडेविट दाखिल करेंगे, फार्म २६ के पैरा ३ में अभ्य्ार्थी को अपनी ई-मेल आई.डी. (य्ादि कोई है) से जुड़ी जानकारी उपलब्ध करानी होगी। फार्म -२६ का पैरा (३) को भी भरना अति आवश्य्ाक है। कॉलम खाली होने की स्थिति में अभ्य्ार्थी नामांकन रिटर्निंग अधिकारी द्वारा निरस्त भी किय्ाा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अगर प्रत्याशी द्वारा एक आईडी बताकर अन्य छिपाई जाती है तो भी रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा उसका नामांकन निरस्त किया जा सकता है। आय्ाोग ने पूर्व से ही निर्देशित करते हुए कहा है कि प्रत्य्ोक पंजीकृत राष्ट्रीय्ा एवं राज्य्ा स्तरीय्ा राजनैतिक दलों एवं प्रत्य्ोक अभ्य्ार्थी को इलेक्ट्रॉनिक मीडिय्ाा में प्रसारित करने से पूर्व राजनैतिक विज्ञापनों की अनुमति ली जाना अनिवायर््ा है। इसी में आगे संशोधन करते हुए आय्ाोग ने कहा है कि एम.सी.एम.सी. कमेटी को विभिन्न स्तरों पर इस तरह के विज्ञापनों के प्रीसर्टिफिकेशन एवं पेड न्य्ाूज पर मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी दी गई है।

पोस्ट या विज्ञापन का जुड़ेगा व्यय?
जब पत्रकारों द्वारा इस संबंध में यह पूछा गया कि क्या वेब साईट के मेन पेज के विज्ञापन का व्यय जुड़ेगा या किसी पोस्ट में विज्ञापन डाला जाता है उसका व्यय जुड़ेगा? इस पर वहां मौजूद अधिकारियों ने कहा कि इस संबंध में स्पष्ट निर्देश नहीं हैं। अधिकारियों के अनुसार जब कोई बात पहली मर्तबा होती है तो उसको समझने में समय लग ही जाता है। उल्लेखनीय होगा कि वर्तमान में चुनाव को महज 26 दिन ही बचे हैं। इन परिस्थितियों में अगर समझते समझते ही समय निकल गया तो मतदान की तिथि ही आ जाएगी।
पत्रकार वार्ता के अंत में यही बात उभरकर सामने आई कि आधी अधूरी जानकारी के जरिए ही उपर से आए निर्देशों को ही मीडिया में बंटवाया गया है। जब श्रीमति प्रियंका दास से यह पूछा गया कि यह जानकारी मीडिया के लोगों के ही पल्ले नहीं पड़ रही है तो आम जनता तक क्या प्रसारित किया जाएगा? इस पर उन्होंने कहा कि वे उपरवीसी के जरिए बात कर स्थिति स्पष्ट करेंगी। मीडिया में इस बात की चर्चा रही कि पत्रकार वार्ता लेने वाले अधिकारियों को ही इस मामले में स्थिति स्पष्ट नहीं थी।
बहरहाल, आय्ाोग ने इसे आवश्य्ाक माना है कि सोशल मीडिय्ाा एकाउंट के संबंध में जानकारी अभ्य्ार्थी द्वारा आय्ाोग के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिय्ो। चूंकि सोशल मीडिय्ाा को भी एक तरह से इलेक्ट्रॉनिक मीडिय्ाा के रूप में ही परिभाषित किय्ाा गय्ाा है, अतः प्री-सर्टिफिकेशन एवं पेड न्य्ाूज संबंधी समस्त निर्देश इंटरनेट/वेबसाईट आधारित सोशल मीडिय्ाा पर भी उसी तरह से लागू होगी जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिय्ाा पर।
किसी भी प्रकार का राजनैतिक विज्ञापन तथा प्रचार किसी भी मीडिय्ाा इंटरनेट अथवा सोशल मीडिय्ाा वेबसाइटों के माध्य्ाम से किय्ो जाने के पूर्व सक्षम अधिकारी से प्री- सर्टिफिकेशन अनिवायर््ा है। प्री- सर्टिफिकेशन के निय्ाम एवं शर्तें पूर्व से निर्धारित है। उसी प्रक्रिय्ाा को अपनाते हुए सोशल मीडिय्ाा का उपय्ाोग किय्ाा जाना होगा।
सोशल मीडिय्ाा के माध्य्ाम से अभ्य्ार्थी द्वारा अपने सोशल एकाउंट पर जारी किय्ो गय्ो विज्ञापनों आदि का व्य्ाय्ा भी अभ्य्ार्थी के खाते में जोडे़ जाने के निर्देश, आय्ाोग द्वारा दिय्ो गय्ो हैं। प्रत्य्ोक प्रत्य्ााशी का दाय्ाित्व है कि सोशल मीडिय्ाा के माध्य्ाम से किय्ो जा रहे चुनाव का प्रचार-प्रसार का रिकार्ड संधारित करें, एवं रिटर्निंग अधिकारी/व्य्ाय्ा प्रेक्षक द्वारा रिकार्ड मांगे जाने पर प्रस्तुत भी करना होगा।

सोशल मीडिय्ाा के व्य्ाय्ा में क्य्ाा क्य्ाा शामिल होगा
सोशल मीडिय्ाा के अंतर्गत इंटरनेट के माध्य्ाम से जो विज्ञापन जारी करने के लिय्ो व्य्ाय्ा आ रहा है इस प्रकार होगा पार्टी अथवा प्रत्य्ााशी द्वारा विज्ञापन हेतु वेब-स्पेस हेतु वेबसाइट कंपनी को किय्ाा गय्ाा भुगतान, पार्टी अथवा प्रत्य्ााशी द्वारा विज्ञापन हेतु विज्ञापन तैय्ाार करने वाले व्य्ाक्ति दल/कंपनी को दी जाने वाली राशि/पार्टी अथवा प्रत्य्ााशी द्वारा निय्ाुक्त किय्ो गय्ो ऑपरेटर/अन्य्ा सहय्ाोग जिनके माध्य्ाम से गतिविधिय्ाों का संचालन किय्ाा जा रहा है। उनका वेतन/मानदेय्ा पारिश्रमिक भी शामिल होगा।

आदर्श आचार संहिता में सोशल मीडिय्ाा को भी शामिल किय्ाा गय्ाा है। आदर्श आचार संहिता लागू रहने के दौरान जो निर्देश इलेक्ट्रॉनिक मीडिय्ाा/प्रिन्ट मीडिय्ाा पर प्रतिबंधित य्ाा वर्जित है। वह सोशल मीडिय्ाा पर भी लागू होगी। सोशल मीडिय्ाा में जो भी विज्ञापन अपलोड किय्ाा जाय्ोगा, उसमें किसी भी प्रकार से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं होना चाहिय्ो। सोशल मीडिय्ाा पर किसी प्रकार का आचार संहिता का उल्लंघन पाय्ो जाने पर सुसंगत धाराओं के अंतर्गत एवं साय्ाबर क्राइम मानते हुए प्रकरण पंजीबद्व किय्ाा जाय्ोगा।

मनमर्जी पर उतारू रिलायंस

मनमर्जी पर उतारू रिलायंस

(शरद खरे)

मोबाईल के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनी रिलायंस इन दिनों मनमर्जी पर उतारू नजर आ रही है। रिलायंस कंपनी द्वारा सिवनी जिले का सीना छलनी किया जा रहा है। दरअसल, देश की मशहूर कंपनी रिलायंस द्वारा सिवनी जिले में टेलीफोन केबल के लिए खोदी जा रही नाली के कारण, आज बीएसएनएल की ऑप्टीकल फायबर कनेक्टिंग केबल (ओएफसी) कट जाने से सिवनी में बीएसएनएल की सेवाएं दिन भर प्रभावित रहीं। ज्ञातव्य है कि एक ओर जहां फोरलेन सड़क निर्माण के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है, वहीं एक निजी सेवा प्रदाता टेलीफोन कंपनी द्वारा पता नहीं किसकी अनुमति से रक्षित वन क्षेत्र के उस हिस्से में वन विभाग के मुनारे के अंदर खुदाई की जा रही है।
यह सर्वविदित है कि सिवनी से जबलपुर रोड पर बंजारी और छपारा के बीच फोरलेन सड़क के निर्माण का काम इसलिए रूका हुआ है क्योंकि इसे केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से क्लियरेंस नहीं मिल सका है। यह मामला वर्ष 2008 से मंत्रालय की सीढ़ियां चढ़-उतर रहा है। गत दिवस बंजारी से छपारा के बीच के जंगल में सड़क से लगे हिस्से में एक निजी सेवा प्रदाता टेलीफोन कंपनी के केबल संभवतः ओएफसी डालने के लिए, खुदाई युद्ध स्तर पर जारी है। इस संबंध में अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि जब सड़क निर्माण के लिए वन विभाग की स्वीकृति नहीं मिल पाई है तो फिर निजी कंपनी को किस आधार पर खुदाई की अनुमति प्रदाय कर दी गई है, अथवा बिना किसी की अनुमति के इस कंपनी के कारिंदों द्वारा वन विभाग के मुनारे के अंदर ही खुदाई के काम को अंजाम दिया जा रहा है।
जब मामला समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने उछाला तो देश भर में अनेक समाचार वेब पोर्टल्स, अखबारों की सुर्खियों में सिवनी जिले का नाम रिलायंस के इस कृत्य के कारण आ गया। जब मामले ने तूल पकड़ना आरंभ किया तो वन विभाग की तंद्रा टूटी। वन विभाग द्वारा अपने अधिकारियों को जांच के लिए मौके पर भेजा गया। पत्रकार राजेश स्थापक के अनुसार संबंधित वनमण्डलाधिकारी ने यह स्वीकार किया है कि रिलायंस द्वारा की जा रही खुदाई, वन विभाग के क्षेत्र के अंदर नियम विरूद्ध की जा रही है। अगर यह बात सत्य है तो फिर वन विभाग द्वारा रिलायंस के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए किस मुहूर्त का इंतजार किया जा रहा है।
गत दिवस, दिन भर बीएसएनएल के मोबाईल और फिक्सड लाईन पूरी तरह प्रभावित ही रहीं। आलम यह था कि डब्लूएलएल का नेटवर्क तो सुबह से ही बंद रहा है। इस संबंध में शाम को जब बीएसएनएल के जिला अभियंता से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि रिलायंस कंपनी द्वारा केबल डालने के लिए जमीन की खुदाई की जा रही है। इसी खुदाई के चलते बीएसएनएल की ओएफसी केबल कट गई है जिससे बीएसएनएल का नेटवर्क प्रभावित हुआ है।
देखा जाए तो बीएसएनएल के ओएफसी केबल जहां जहां से गुजरा है वहां केबल डालते समय इस बात का ऐहतियात रखा जाता है कि भविष्य में अगर कोई खुदाई करे तो उसे यह भान हो जाए कि नीचे से बीएसएनएल का ओएफसी केबल गुजर रहा है। कई स्थानों पर तो बाकायदा बोर्ड तक लगे होते हैं। इतना सब होने के बाद भी रिलायंस के द्वारा आखिर किसकी शह पर खुलेआम वन क्षेत्र में नियम विरूद्ध खुदाई करवाई जा रही है। इतना ही नहीं बीएसएनएल का केबल भी काट दिया जाता है और पहले से ही लंगड़ाकर चलने वाले भारत संचार निगम लिमिटेड के आला अधिकारी अपनी चुप्पी भी इस मामले में बरकरार रखे हुए हैं। पता नहीं बीएसएनएल के अधिकारियों पर उपरया टेबिल के नीचेका कौन सा दबाव है जिसके चलते वे रिलायंस के खिलाफ कार्यवाही से कतरा ही रहे हैं।
अगर किसी आम आदमी के द्वारा सरकारी संपत्ति के साथ छेड़छाड़ की गई होती तो अब तक तो बीएसएनएल का पूरा का पूरा अमला ही कूदकर आम आदमी की हवा गरम कर देता, पर मामला जब रिलायंस जैसी नामचीन कंपनी का आया तो सरकारी महकमे को मानो सन्निपात (लकवा मार गया) हो गया हो।
वैसे भी रिलायंस सालों से निजी क्षेत्र में मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी है। रिलायंस के कारिंदों को यह भान अवश्य ही होगा कि ओएफसी आदि डालते समय किस बात की सावधानी बरतना आवश्यक है। अगर रिलायंस के कारिंदों ने लापरवाही के चलते केबल काटी है तो उन पर सरकारी संपत्ति के साथ छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। मामला चूंकि भारत सरकार के साथ जुड़ा हुआ है, अतः इस मामले में सांसदों का भी दायित्व बनता है कि वे संज्ञान लेकर कार्यवाही करें।
इसके पहले भी पिछले साल एक निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनी द्वारा सिवनी शहर का सीना छलनी किया गया था। उस कंपनी द्वारा भी जगह जगह गड्ढे खोदकर छोड़ दिए गए थे। बारिश के मौसम में खोदे गए गड्ढों में अनेक राहगीर गिरकर चोटिल हुए तो वहीं दूसरी ओर अनेक वाहन गड्ढ़ों में फंसे जिससे उनमें टूट फूट हुई थी। इसकी शिकायत करने पर भी ठेकेदारों और कंपनी की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया गया।
अगर रिलायंस द्वारा केबल काटी गई है और बीएसएनएल के अधिकारियों के संज्ञान में यह बात आ चुकी है तो सेवा प्रदाता कंपनी बीएसएनएल द्वारा निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनी रिलायंस पर भारी जुर्माना ठोका जाना चाहिए क्योंकि अगर बीएसएनएल के ग्राहकों ने बीएसएनएल पर, सेवा में कमी का मुकदमा दायर कर दिया तो विभाग के लेने के देने पड़ जाएंगे। बीएसएनएल का सीडीएमए इससे, सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। सूत्रों की मानें तो टीएम के प्रभावित होने के कारण अब रायपुर की ओर से शायद लाईन को क्लीयर कराकर वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
देखा जाए तो परोक्ष तौर पर वन विभाग द्वारा देश की मशहूर रिलायंस कंपनी को अपना काम समाप्त करने (चाहे वह नियम विरूद्ध क्योें न हो रहा हो) के लिए पर्याप्त समय दिया जाना ही प्रथम दृष्टया प्रतीत हो रहा है। रिलायंस कंपनी द्वारा मशीनों द्वारा ताबड़तोड़ खुदाई की जा रही है।

बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

पंडित दीनदयाल के विचार छाए रहे भाजपा कार्यालय में!

पंडित दीनदयाल के विचार छाए रहे भाजपा कार्यालय में!

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। चुनाव पूर्व प्रत्याशी चयन की सरगर्मियां तेज होने के साथ ही अब संभावित दावेदारों के समर्थन और विरोध का सिलसिला भी तेज होने लगा है। पार्टी के आला नेताओं ने जब भाजपा के कुछ चुनिंदा नेताओं के विरोध को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बताकर मामले को कुचलने का प्रयास किया तो विरोध करने वालों ने भी इसका तोड़ निकाल लिया है।
हबीबगंज रेल्वे स्टेशन के सामने स्थित भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में रविवार से ही गहमा गहमी का वातावरण देखने को मिल रहा है। बताया जाता है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार प्रदेश भाजपा के नेताओं से नाराज हैं तो दूसरी ओर कुछ भाजपा नेताओं पर अपने वर्चस्व के लिए पार्टी लाईन को भी दरकिनार करने के आरोप लग रहे हैं।
पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में बीते दिवस का एक पर्चा, मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है। इस पर्चे पर भाजपा के पितृ पुरूष पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार लिखे हुए हैं। इस पर्चे पर लिखा हुआ है कि अगर पार्टी गलत प्रत्याशी का चयन करती है, तो कार्यकर्ताओं को चाहिए कि उसे हरा दिया जाए।

यह पर्चा भाजपा के आला नेताओं के बीच भी चर्चा का विषय बना हुआ है। विरोध करने वालों के लिए यह एक नायाब अस्त्र ही साबित होता दिख रहा है। कहा जा रहा है कि अगर कुछ कार्यकर्ताओं के पसंदीदा उम्मीवारों को टिकिट नहीं दी जाती है और वे भीतराघात करते पकड़ाए जाते हैं, तो भाजपा के पितृपुरूष पंडित दीनदयाल उपाध्याय का ब्रम्हवाक्य उनके बचाव के लिए ब्रम्हास्त्र साबित हो सकता है।

मनमर्जी पर उतारू रिलायंस

मनमर्जी पर उतारू रिलायंस

(शरद खरे)

मोबाईल के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनी रिलायंस इन दिनों मनमर्जी पर उतारू नजर आ रही है। रिलायंस कंपनी द्वारा सिवनी जिले का सीना छलनी किया जा रहा है। दरअसल, देश की मशहूर कंपनी रिलायंस द्वारा सिवनी जिले में टेलीफोन केबल के लिए खोदी जा रही नाली के कारण, आज बीएसएनएल की ऑप्टीकल फायबर कनेक्टिंग केबल (ओएफसी) कट जाने से सिवनी में बीएसएनएल की सेवाएं दिन भर प्रभावित रहीं। ज्ञातव्य है कि एक ओर जहां फोरलेन सड़क निर्माण के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जा रहा है, वहीं एक निजी सेवा प्रदाता टेलीफोन कंपनी द्वारा पता नहीं किसकी अनुमति से रक्षित वन क्षेत्र के उस हिस्से में वन विभाग के मुनारे के अंदर खुदाई की जा रही है।
यह सर्वविदित है कि सिवनी से जबलपुर रोड पर बंजारी और छपारा के बीच फोरलेन सड़क के निर्माण का काम इसलिए रूका हुआ है क्योंकि इसे केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से क्लियरेंस नहीं मिल सका है। यह मामला वर्ष 2008 से मंत्रालय की सीढ़ियां चढ़-उतर रहा है। गत दिवस बंजारी से छपारा के बीच के जंगल में सड़क से लगे हिस्से में एक निजी सेवा प्रदाता टेलीफोन कंपनी के केबल संभवतः ओएफसी डालने के लिए, खुदाई युद्ध स्तर पर जारी है। इस संबंध में अभी तक यह पता नहीं चल सका है कि जब सड़क निर्माण के लिए वन विभाग की स्वीकृति नहीं मिल पाई है तो फिर निजी कंपनी को किस आधार पर खुदाई की अनुमति प्रदाय कर दी गई है, अथवा बिना किसी की अनुमति के इस कंपनी के कारिंदों द्वारा वन विभाग के मुनारे के अंदर ही खुदाई के काम को अंजाम दिया जा रहा है।
जब मामला समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया ने उछाला तो देश भर में अनेक समाचार वेब पोर्टल्स, अखबारों की सुर्खियों में सिवनी जिले का नाम रिलायंस के इस कृत्य के कारण आ गया। जब मामले ने तूल पकड़ना आरंभ किया तो वन विभाग की तंद्रा टूटी। वन विभाग द्वारा अपने अधिकारियों को जांच के लिए मौके पर भेजा गया। पत्रकार राजेश स्थापक के अनुसार संबंधित वनमण्डलाधिकारी ने यह स्वीकार किया है कि रिलायंस द्वारा की जा रही खुदाई, वन विभाग के क्षेत्र के अंदर नियम विरूद्ध की जा रही है। अगर यह बात सत्य है तो फिर वन विभाग द्वारा रिलायंस के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए किस मुहूर्त का इंतजार किया जा रहा है।
गत दिवस, दिन भर बीएसएनएल के मोबाईल और फिक्सड लाईन पूरी तरह प्रभावित ही रहीं। आलम यह था कि डब्लूएलएल का नेटवर्क तो सुबह से ही बंद रहा है। इस संबंध में शाम को जब बीएसएनएल के जिला अभियंता से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि रिलायंस कंपनी द्वारा केबल डालने के लिए जमीन की खुदाई की जा रही है। इसी खुदाई के चलते बीएसएनएल की ओएफसी केबल कट गई है जिससे बीएसएनएल का नेटवर्क प्रभावित हुआ है।
देखा जाए तो बीएसएनएल के ओएफसी केबल जहां जहां से गुजरा है वहां केबल डालते समय इस बात का ऐहतियात रखा जाता है कि भविष्य में अगर कोई खुदाई करे तो उसे यह भान हो जाए कि नीचे से बीएसएनएल का ओएफसी केबल गुजर रहा है। कई स्थानों पर तो बाकायदा बोर्ड तक लगे होते हैं। इतना सब होने के बाद भी रिलायंस के द्वारा आखिर किसकी शह पर खुलेआम वन क्षेत्र में नियम विरूद्ध खुदाई करवाई जा रही है। इतना ही नहीं बीएसएनएल का केबल भी काट दिया जाता है और पहले से ही लंगड़ाकर चलने वाले भारत संचार निगम लिमिटेड के आला अधिकारी अपनी चुप्पी भी इस मामले में बरकरार रखे हुए हैं। पता नहीं बीएसएनएल के अधिकारियों पर उपरया टेबिल के नीचेका कौन सा दबाव है जिसके चलते वे रिलायंस के खिलाफ कार्यवाही से कतरा ही रहे हैं।
अगर किसी आम आदमी के द्वारा सरकारी संपत्ति के साथ छेड़छाड़ की गई होती तो अब तक तो बीएसएनएल का पूरा का पूरा अमला ही कूदकर आम आदमी की हवा गरम कर देता, पर मामला जब रिलायंस जैसी नामचीन कंपनी का आया तो सरकारी महकमे को मानो सन्निपात (लकवा मार गया) हो गया हो।
वैसे भी रिलायंस सालों से निजी क्षेत्र में मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी है। रिलायंस के कारिंदों को यह भान अवश्य ही होगा कि ओएफसी आदि डालते समय किस बात की सावधानी बरतना आवश्यक है। अगर रिलायंस के कारिंदों ने लापरवाही के चलते केबल काटी है तो उन पर सरकारी संपत्ति के साथ छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया जाना चाहिए। मामला चूंकि भारत सरकार के साथ जुड़ा हुआ है, अतः इस मामले में सांसदों का भी दायित्व बनता है कि वे संज्ञान लेकर कार्यवाही करें।
इसके पहले भी पिछले साल एक निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनी द्वारा सिवनी शहर का सीना छलनी किया गया था। उस कंपनी द्वारा भी जगह जगह गड्ढे खोदकर छोड़ दिए गए थे। बारिश के मौसम में खोदे गए गड्ढों में अनेक राहगीर गिरकर चोटिल हुए तो वहीं दूसरी ओर अनेक वाहन गड्ढ़ों में फंसे जिससे उनमें टूट फूट हुई थी। इसकी शिकायत करने पर भी ठेकेदारों और कंपनी की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया गया।
अगर रिलायंस द्वारा केबल काटी गई है और बीएसएनएल के अधिकारियों के संज्ञान में यह बात आ चुकी है तो सेवा प्रदाता कंपनी बीएसएनएल द्वारा निजी क्षेत्र की सेवा प्रदाता कंपनी रिलायंस पर भारी जुर्माना ठोका जाना चाहिए क्योंकि अगर बीएसएनएल के ग्राहकों ने बीएसएनएल पर, सेवा में कमी का मुकदमा दायर कर दिया तो विभाग के लेने के देने पड़ जाएंगे। बीएसएनएल का सीडीएमए इससे, सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। सूत्रों की मानें तो टीएम के प्रभावित होने के कारण अब रायपुर की ओर से शायद लाईन को क्लीयर कराकर वैकल्पिक व्यवस्था की जाए।
देखा जाए तो परोक्ष तौर पर वन विभाग द्वारा देश की मशहूर रिलायंस कंपनी को अपना काम समाप्त करने (चाहे वह नियम विरूद्ध क्योें न हो रहा हो) के लिए पर्याप्त समय दिया जाना ही प्रथम दृष्टया प्रतीत हो रहा है। रिलायंस कंपनी द्वारा मशीनों द्वारा ताबड़तोड़ खुदाई की जा रही है।

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

‘नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओ‘ के पंपलेट पोस्टर्स बने चर्चा का विषय

नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओके पंपलेट पोस्टर्स बने चर्चा का विषय

पोस्टर वार से लगे खुफिया तंत्र पर सवालिया निशान!

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। चुनाव की आचार संहिता लगे लंबा समय बीत गया है। जिला प्रशासन द्वारा प्रशासन के मुस्तैद होने का दावा बार बार किया जाता है। इसके साथ ही साथ चोरों के हौसले भी बुलंदी पर हैं। पुलिस द्वारा वाहनों की सघन तलाशी का काम भी युद्ध स्तर पर जारी है। बावजूद इसके जिले में अवैध शराब बिकने की खबरें चरम पर हैं। गत दिवस भारतीय जनता पार्टी के नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओकी इबारत वाले पोस्टर्स चस्पा होने से पुलिस की रात्रिकालीन गश्त और खुफिया तंत्र पर सवालिया निशान लग रहे हैं।
गत दिवस नगर के विभिन्न चौक चौराहो पर अज्ञात लोगों के द्वारा नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओकी इबारत वाले पंपलेट पोस्टर्स चस्पा कर दिए गए थे। इस बात को सिवनी में मीडिया ने जमकर तवज्जो दी। सरकारी विज्ञप्ति में नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओके पंपलेट पोस्टर्स चस्पा होने की खबर के बाद पुलिस ने अज्ञात लोगों के विरूद्ध धारा 188 भारतीय दण्ड विधान एवं संपत्ति निरूपण अधिनियम 1994 की धारा 3 का अपराध पंजीबद्ध कर अज्ञात लोगों की तलाश में जुट गई।

यहां चिपके थे पोस्टर्स पंपलेट
बताया जाता है कि नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओके पंपलेट पोस्टर नगरपालिका के सामने, जनपद की दीवारों, भाजपा कार्यालय, बस स्टैण्ड हाईमास्क पोल, अमन हॉटल, महात्मा गांधी स्कूल के सामने चिपकाए गए थे। पुलिस सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि यह काम दिन में होना संभव नहीं है, रात में चहल पहल शांत होने के बाद ही इस काम को अंजाम दिया गया होगा।

रात्रि गश्त पर लगे प्रश्न चिन्ह!
अगर देर रात किन्ही अज्ञात शरारती तत्वों द्वारा इस काम को अंजाम दिया गया है तो यक्ष प्रश्न तो अभी भी खड़ा ही है कि रात में पुलिस की गश्त और पुलिस के मुखबिर या खुफिया तंत्र को क्या जंग लग चुकी है, कि रात में शहर जब गहरी नींद में सोया होता है तब इस तरह की घटना को अंजाम दिया जाता है, और खुफिया तंत्र को इसकी भनक तक नहीं लग पाती है कि इसके लिए जिम्मेवार कौन हैं? देर रात में यदा कदा लोगों को दूर से ही पुलिस के हूटर की कर्कश आवाज सुनाई देती है।

शरारती तत्व या किसी दल के नुर्माइंंदे हैं पोस्टर चिपकाने वाले!

शहर में यह चर्चा भी तेज हो गई है कि आखिर वे तत्व कौन हैं जो नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओकी इबारत वाले पोस्टर्स को जगह जगह चस्पा कर रहे थे। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन या रात में कोतवाली में तैनात डे या नाईट अफसर से क्या पुलिस के आला अधिकारियों ने जवाब तलब किया है कि आखिर यह घटना कैसे घट गई? और अगर घटी तो उस वक्त वे क्या कोतवाली के पास, बारापत्थर में या शहर के अन्य स्थानों पर जहां पुलिस के सिपाही प्वाईंट्स पर तैनात होते हैं या ब्रेकर भी पेट्रोलिंग करते हैं की नजरों में ये लोग कैसे नहीं आए? वहीं यह बात भी तेजी से चल रही है कि नीता नरेश हटाओ, भाजपा बचाओकी इबारत वाले पोस्टर्स लगाने वाले लोग क्या वाकई शरारती तत्व हैं, या फिर किसी सियासी दल के कार्यकर्ता?

टिकिट की आपाधापी में संवेदनाएं ताक पर!

टिकिट की आपाधापी में संवेदनाएं ताक पर!

(लिमटी खरे)

प्रमुख सियासी दल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में टिकिट की मारामारी मची है। टिकिट की मारामारी में किसी को सिवनी में क्या हो रहा है इस बात की परवाह नहीं रह गई है। प्रशासन चुनाव की तैयारियों में व्यस्त है। नेता टिकिट के लिए दिल्ली, भोपाल और नागपुर एक किए हुए हैं। सिवनी में जनता कराह रही है। जनता के रूदन की आवाज शायद ही किसी के कानों में पड़ रही हो। मीडिया भी खौफजदा है पेड न्यूजके डर से। पेड न्यूज क्या मीडिया पर अघोषित सेंसरशिप है? पेड न्यूज क्या है इस बात की स्पष्ट व्याख्या आज तक सामने नहीं आ पाई है। निर्वाचन आयोग द्वारा गठित एमसीएमसी के विवेक के आधार पर पेड न्यूज का फैसला होगा? दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि इसके लिए स्पष्ट गाईड लाईन अभी तक सामने नहीं आ पाई हैं। पेड न्यूज अर्थात पैसा लेकर प्रकाशित या प्रसारित की गई खबर। अब यह तय कौन करेगा कि कौन सी खबर पेड न्यूज है और कौन सी नहीं? कौन सी खबर पैसा लेकर छापी गई है, कौन सी नहीं? आलम यह है कि समस्याएं उठाने में भी मीडिया को सौ बार सोचना पड़ रहा है कि उसमें कहीं किसी नेता का नाम सामने आया तो वह पेड न्यूज के दायरे में तो नहीं आ जाएंगे।
बहरहाल, टिकिट की आपाधापी में प्रदेश तथा नगर पालिका परिषद् सिवनी में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस की संवेदनाएं तार तार हो चुकी हैं। सिवनी शहर के अंदर बारापत्थर में टूटी पुलिस के पास एमपीईबी कार्यालय है। इसके ठीक पीछे वाली गली में पानी नहीं आने की शिकायत रहवासियों ने नगर पालिका से की। शिकायत के उपरांत लंबे समय बाद पालिका ने वहां पाईप लाईन बदली। 20 अक्टूबर को यहां के आधा दर्जन लोगों के घरों का नल कनेक्शन काट दिया गया। 21 को नई पाईप लाईन डाली गई। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 28 अक्टूबर को आठ दिन बाद भी इस गली में नगर पालिका प्रशासन द्वारा लोगों की काटी गई पाईप लाईन को जोड़ा नहीं गया है।
आश्चर्य तो इस बात पर भी है कि 21 तारीख के बाद से लगातार इस आशय की खबरों का प्रकाशन हो रहा है। बावजूद इसके वार्ड पार्षद से लेकर कांग्रेस और भाजपा के नुमाईंदों ने इस क्षेत्र में जाकर वास्तविकता का पता करना भी उचित नहीं समझा! क्या टिकिट लाने, पाने और झपटने की जुगत में मानवीय संवेदनाएं मर गई हैं? नगर पालिका के कारिंदों या नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी से बात की जाए तो आचार संहिता का हवाला देकर मौन हो जाते हैं। किसी भी निर्वाचन के कार्य को अत्यावश्यक माना जा सकता है पर यक्ष प्रश्न तो यह खड़ा है कि क्या निर्वाचन के चलते लगी आचार संहितामें आज़ाद भारत गणराज्य के लोगों का हवा पानी ही बंद कर दिया जाएगा? क्या सिवनी आज़ाद भारत गणराज्य का हिस्सा नहीं है? अगर है तो यहां मची चीखपुकार से क्या कांग्रेस भाजपा के नुमाईंदों को कोई सरोकार नहीं है?
हालात देखकर यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कांग्रेस और भाजपा की संवेदनाएं मर चुकी हैं। आठ दिन तक कोई भी यहां के रहवासियों की सुध लेने नहीं आया। मोहल्ले के लोगों ने इस बात की जानकारी भारतीय जनता पार्टी के सदस्य और शहर के प्रथम नागरिक राजेश त्रिवेदी, कांग्रेस के सदस्य और नगर पालिका परिषद् के उपाध्यक्ष राजिक अकील के साथ ही साथ सत्तारूढ़ भाजपा के जिला अध्यक्ष नरेश दिवाकर से भी की। दुर्भाग्य तीनों ने इस ओर कोई ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा। हो सकता है कांग्रेस भाजपा में टिकिट का बंटवारा नहीं हुआ है इसलिए तीनों ही टिकिट की दौड़ में भोपाल, दिल्ली, नागपुर एक कर रहे हों। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस इलाके की लगभग दो सौ मीटर की परिधि में ही भाजपा के बरघाट विधायक कमल मर्सकोले, सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, भाजपा के पूर्व विधायक नरेश दिवाकर और डॉ.ढाल सिंह बिसेन, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष वेद सिंह ठाकुर, सुजीत जैन, भाजपा उपाध्यक्ष राकेश पाल सिंह, के साथ ही साथ कांग्रेस के विधानसभा चुनाव लड़ चुके आशुतोष वर्मा, राजकुमार खुराना, प्रसन्न चंद मालू निवास होने के बाद भी आठ दिनों से इस क्षेत्र में मचे पानी को लेकर कोहराम में किसी ने भी जाकर मोहल्लावासियों के रिसते घाव पर मरहम लगाने का जतन करना मुनासिब नहीं समझा। हो सकता है इन सभी ने यही सोचा हो कि अगर टिकिट नहीं मिली तो फोकट की जनसेवा करने का क्या मतलब!
बहरहाल, जिन तीन लोगों से मोहल्ले के निवासियों ने अपनी व्यथा बताई वे तीनों जनसेवक हैं। नरेश दिवाकर दो बार विधायक रह चुके हैं। नरेश दिवाकर के विधायक सिवनी के कार्यकाल में सुआखेड़ा से सिवनी तक भीमगढ़ जलावर्धन योजना का आगाज हुआ था। इस योजना में सिवनी को 2025 तक दो समय पानी मिले, यह सुनिश्चित किया गया था। दो समय तो छोड़िए महीने में तीस दिन भी सिवनी के निवासियों को पानी नसीब नहीं होता है। जब चाहे तब या तो मोटर खराब हो जाती है (दो स्थानों पर चार चार मोटर्स के जरिए पानी पम्प कर सिवनी लाया जाता है) या लाईन फट जाती है। पीएचई विभाग द्वारा जब लाईन डाली जा रही थी, उस वक्त केवलारी के तत्कालीन कद्दावर विधायक स्व.हरवंश सिंह ठाकुर प्रदेश में पीएचई मंत्री थे।
स्व.हरवंश सिंह के कार्यकाल में उन्हीं के नेतृत्व वाले विभाग ने सिवनी में न केवल घटिया पाईप लाईन डाली, वरन ग्रामीण अंचलों में इस पाईप लाईन का पानी खोलकर सिवनी का हक मारा। नगर पालिका परिषद् को जलकर अदा करने वाले कम ही लोग जानते होंगे कि वे ईमानदारी से जो राशि अदा कर रहे हैं, उस राशि का बड़ा हिस्सा सुआखेड़ा से सिवनी के मार्ग में पड़ने वाले लगभग डेढ़ दर्जन गांव के वाशिंदे मुफ्त में पचा रहे हैं। दरअसल जहां जहां से यह पाईप लाईन गुजरी है वहां के गांव या वहां से कुछ दूरी वाले गांव में ग्रामीणों को पानी देने के लिए, मेन सप्लाई जिससे पानी की टंकियां भरती हैं वाले पाईप को खोल दिया जाता है। जाहिर है इससे कम दबाव में पानी, सिवनी आकर टंकियों को भरता है। टंकियों का पेट खाली रह जाता है और नागरिकों को उनके हक से काफी कम मात्रा में पानी मिल पाता है।
ऐसा नहीं कि यह बात तत्कालीन विधायक नरेश दिवाकर के संज्ञान में नहीं थी। कई बार उनसे चर्चा के दौरान हमने यह बात उनके संज्ञान में लाई है। पता नहीं क्यों और किस दबाव में नरेश दिवाकर ने अपने दस साल के विधायक के कार्यकाल में इस बात को विधानसभा में पुरजोर तरीके से नहीं उठाया। हमारी व्यक्तिगत राय में अगर यह मामला विधानसभा में कभी भी उठा दिया गया होता तो आज सिवनी के नागरिक पानी की त्राही त्राही से रोजाना रूबरू न होते। इसके बाद जब एनएचएआई द्वारा फोरलेन प्रस्तावित हुई तब, इस पाईप लाईन को उखाड़कर नई पाईप लाईन डालने की बात भी सामने आई। यह मामला ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया।
हमने तत्कालीन विधायक नरेश दिवाकर को यह भी मशविरा दिया था कि बेहतर होगा कि सुआखेड़ा वाली पाईप लाईन को बबरिया में एक बड़ा टांका बनाकर उसमें मिला दिया जाए। इस तरह रोजाना भीमगढ़ बांध का पानी बबरिया में आकर मिलता रहेगा। साथ ही साथ श्रीवनी फिल्टर प्लांट की मशीनों को निकालकर बबरिया के पास संस्थापित करवा दिया जाए, ताकि जनता को फिल्टर किया हुआ पानी 22 किलोमीटर के बजाए महज एक किलोमीटर की दूरी से ही मिल पाए। पता नहीं क्यों यह बात भी परवान नहीं चढ़ पाई।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कांग्रेस और भाजपा में टिकिट की गलाकाट स्पर्धा के बीच मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं। आज की स्थिति देखकर यह सोचने पर हर आदमी विवश होगा कि क्या विधायक का पद इतने लाभ का है कि आम जनता की दुख तकलीफ को तिलांजली देकर जनसेवा का दंभ भरने वाले अपने अपने टिकिटों की दौड़ में आम जनता को ही भुला रहे हैं जो जनता जनादेश देकर उन्हें जिता या हराने का माद्दा रखती है। यह कहने के पीछे हमारा ठोस आधार यह है कि लगातार एक मोहल्ले में आठ दिन से पानी नहीं आ रहा है। नगर पालिका प्रशासन ने अपने खर्च पर पाईप लाईन का आकार बदला है। उसके बाद मोहल्ले के निवासियों से बलात शिफ्टिंग चार्ज मांगा जा रहा है। जब मोहल्ले के लोग इसके लिए डिमांड नोट की मांग करते हैं तो पालिका प्रशासन मौन हो जाता है। आखिर लोगों की सुनवाई हो तो कहां? कौन है जो नगर पालिका प्रशासन से यह पूछेगा कि आखिर क्या वजह है कि इस मोहल्ले की पाईप लाईन जोड़ी क्यों नहीं गई? क्या कारण है कि आठ दिन तक डिमांड नोट जारी नहीं किया गया? बाकी सब तो छोड़िए इन मतलब परस्त नेताओं के जेहन में क्या यह बात नहीं आई कि आठ दिन किसी के घर पानी नहीं आए तो उसके घर के क्या हाल होंगे? दिशा मैदान और अन्य दैनिक जरूरतों के लिए बारापत्थर में दूर दूर तक सुलभ शौचालय भी नहीं है! क्या यह इन जनसेवकों का कर्तव्य नहीं था कि कम से कम जब तक कनेक्शन नहीं हो जाता (कारण चाहे जो भी हो) तब तक इस मोहल्ले में पानी का टेंकर ही भिजवा दिया होता, वस्तुतः अभी सभी के दिल दिमाग में बस टिकिट ही घूम रही होगी, इसलिए किसी ने भी जनता की दुख तकलीफ के बारे में सोचना मुनासिब नहीं समझा है।

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

भाजपा नेता की पत्थर खदान में तीन अबोध बालाएं डूबीं!

भाजपा नेता की पत्थर खदान में तीन अबोध बालाएं डूबीं!

रात के अंधेरे में निकाले गए शव, देर रात तक मर्चुरी के बजाए पीएम सेंटर में रखे रहे शव

(अखिलेश दुबे/अय्यूब कुरैशी)

गंगेरूआ/सिवनी (साई)। बंडोल के पास गंगेरूआ गांव के समीप लगे भाजपा नेता के एक क्रेशर के पास पत्थर की खदान में आज अपरान्ह तीन मासूम बालाओं की डूब जाने से इहलीला समाप्त हो गई। तीनों के शव शाम ढलते क्रत्रिम रूप से बन गए गहरे पोखर से निकाले गए, और देर रात पुलिस कार्यवाही के बाद शव परीक्षण के लिए तीनों के शवों को सिवनी लाया गया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार तीनों बच्चियों के शव, भाजपा नेता के क्रेशर के करीब की पत्थर खदान में पत्थरों के निकालने से हुए, गड्ढे में पानी भर जाने से बने पोखर में तैरते पाए गए। बाद में पुलिस द्वारा शवों को बाहर निकालकर पंचनामा बनाकर अन्य औपचारिकताएं पूरी की गईं। इसके बाद शव को शव परीक्षण के लिए सिवनी भेजा गया।

अल्प संख्यक समुदाय की हैं तीनों बच्चियां
मौके पर मौजूद थाना प्रभारी बंडोल आर.के.गुप्ता ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि गंगेरूआ निवासी शेख कलाम की पुत्री सिफा, युसुफ की पुत्री कमरून एवं शेख रमजान की पुत्री आफरीन आज अपरान्ह नहाने धोने के लिए भाजपा के एक नेता के क्रेशर के करीब बने पोखर में आईं थीं।
थाना प्रभारी श्री गुप्ता ने बताया कि तीनों बच्चियों द्वारा संभवतः पहले कपड़े धोए गए। इस बात का आधार यह बताया जा रहा है कि मौके पर पोखर के किनारे दो प्लास्टिक के टब में धुले हुए कपड़े रखे हुए थे। उन्होंने बताया कि तीनों मृतक बच्चों की आयु बारह से चौदह साल बताई जा रही है।
मौके पर मौजूद लोगों ने साई न्यूज को बताया कि लोगों द्वारा यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि कपड़े धोने के उपरांत किसी एक बच्ची का पैर फिसला होगा और वह डूबने लगी होगी तब उसे बचाने के चक्कर में दो अन्य बच्चियां भी पानी में उतरी होंगी। मौके पर चल रही चर्चाओं के अनुसार पानी का यह क्रत्रिम रूप से निर्मित पोखर कुछ स्थानों पर तो उथला है पर कुछ स्थानों पर इसमें लगभग डेढ़ से दो पुरूष (दस से बारह फिट) पानी हो सकता है।
आशंका व्यक्त की जा रही है कि बच्चियां गहरे पानी में ही चली गईं थीं। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार बच्चियों के शव जिस ओर पानी में उतरा रहे थे वहां पानी सबसे ज्यादा गहरा बताया जा रहा था।

ग्यारह बजे के करीब गईं थी बच्चियां
मौके पर मौजूद लोगों ने बताया कि बच्चियां मौके से लगभग एक किलोमीटर दूर स्थित गंगेरूआ ग्राम से अपरान्ह लगभग ग्यारह बजे नहाने धोने के लिए गांव से मौके के लिए रवाना हुई थीं। लोगों ने बताया कि दो तीन घंटे बाद तक जब बच्चियां घर वापस नहीं लौटीं तो परिजनों को आशंका हुई कि बच्चियों के साथ कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं घट गई। इसके बाद बच्चियों की तलाश जारी हुई। बताया जाता है कि इसी बीच किसी ने परिजनों को बताया कि कुछ बच्चों के शव भाजपा नेता के क्रेशर के पास की पत्थर की खदान में तैर रहे हैं। इसकी सूचना लगभग चार बजे बंडोल पुलिस को दी गई।

वाहनों की लाईट में हुई कार्यवाही
बंडोल पुलिस मौके पर कुछ देर से पहुंची, उसके बाद शव को बाहर निकालने की कार्यवाही की जाकर बंडोल पुलिस द्वारा अन्य औपचारिकताएं पूरी की गईं। बंडोल पुलिस की कार्यवाही के चलते शाम ढल चुकी थी और मौके पर स्याह अंधेरा पसरने लगा था। मौके पर खड़े वाहनों को चालू कर उनकी हेड लाईट जलाकर पुलिस द्वारा पंचनामा तैयार किया गया। इसके उपरांत तीनों बच्चों के शवों को शव परीक्षण के लिए सिवनी भेजा गया।

सातवीं कक्षा की हैं छात्राएं
परिजनों के अनुसार तीनों बच्चियां बंडोल में शासकीय शाला में कक्षा सातवीं में अध्ययन करती थीं। आज रविवार होने के कारण बच्चियां घर पर ही थीं। दोपहर वे नहाने धोने के उद्देश्य से मौके पर पहुंची थीं। प्रत्यक्ष दर्शियों के अनुसार एक शव की नाक से खून रिस रहा था। संभवतः पानी के अंदर अपने आप को बचाने के चक्कर में उक्त बालिका का सिर या कोई अंग नुकीले पत्थर से टकरा गया हो, जिसके चलते नाक से खून रिस रहा हो।

गांव वालों का आरोप!
मौके पर मौजूद ग्राम गंगेरूआ के ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि क्षेत्र में जमीन को क्रेशर संचालकों द्वारा छलनी किया जा रहा है। अपने लाभ के लिए संचालक गड्ढे खोदकर पत्थर तो निकाल लिया करते हैं, किन्तु उसके उपरांत जब काम पूरा हो जाता है तो गड्ढे खुले छोड़ दिया करते हैं। बारिश के समय इन गड्ढों में पानी भर जाया करता है। खुले में इस तरह के डबरों में भरा पानी मानव और मवेशियों के लिए परेशानी का सबब बन जाते हैं। इतना ही नहीं गंगेरूआ में पानी की विकराल समस्या है, जिसके चलते यहां के ग्रामीण आसपास के असुरक्षित डबरों में भरे पानी का उपयोग करते हैं। लोगों का आरोप है कि प्रशासन और खनिज विभाग की अनदेखी के चलते क्रेशर संचालक और गिट्टी खदानों के मालिकों द्वारा पत्थर खनन के लिए खोदे गए गड्ढों के आसपास वारवेड वायर लगाकर उसे बंद भी नहीं किया जाता है।

मौके पर नहीं पहुंचे खदान मालिक!
मृतकों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि घटना के घटित होने के बाद शवों को बाहर निकालने और सिवनी शव परीक्षण के लिए लाने तक पत्थर की खदान और क्रेशर के मालिक न तो मौके पर पहुंचे और न ही इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शव परीक्षण के लिए ही पीएम सेंटर में पहुंचे।

ठंड में ठिठुरते रहे परिजन

देर रात मृतकों के परिजन शव परीक्षण केंद्र के पास ठंड में अंधेरे में ही बैठे देखे गए। इस संबंध में जब जिला चिकित्सालय के सिविल सर्जन डॉ.सत्य नारायण सोनी से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि यह पुलिस की जवाबदारी है कि परिजनों को कहां रूकवाया जाए। परिजन अपनी व्यवस्था स्वयं ही करें तो बेहतर होगा।

कब सुधरेंगी सिवनी की सड़क

कब सुधरेंगी सिवनी की सड़क

(शरद खरे)

सिवनी का दुर्भाग्य ही है कि जिला मुख्यालय से चारों ओर की सड़कें बुरी तरह घायल हैं। इन सड़कों पर चलने वाले हलाकान हैं। सिवनी से नागपुर या जबलपुर जाने वाले लोग अगर टैक्सी करके जाना चाहते हैं तो उन्हें दोगुने तीन गुने पैसे देने होते हैं। भगवान शिव के नाम से जाना जाता है सिवनी को। सिवनी एक समय में काफी हद तक समृद्धशाली समझा जाता रहा है। सिवनी की सबसे बड़ी खासियत यहां की रेल लाईन और शेरशाह सूरी के जमाने का उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाला मार्ग था। आज़ादी के उपरांत देश ने तेजी से तरक्की की। छोटी और मीटर गेज लाईन को ब्रॉडगेज में तब्दील किया जाने लगा। सिवनी का नंबर कब आएगा, यह सोचते सोचते ही आज़ादी के वक्त जवान रही पीढ़ी भगवान को प्यारी होती गई। सिवनी में ब्रॉडगेज की कमी पूरी करता रहा नेशनल हाईवे नंबर सात।
एनएच 07 सिवनी की जीवन रेखा से कम नहीं है। यह मार्ग उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ता है। ब्रॉडगेज के अभाव में इस मार्ग का उपयोग माल ढुलाई के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तब इस मार्ग के दिन फिरे। अनेक षणयंत्रों के झटके झेलने के बाद भी यह मार्ग केंद्र सरकार के स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा बना रहा।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जबसे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा को उनके अपनों ने ही षणयंत्र के साथ सक्रिय राजनीति से हाशिए पर बिठा दिया है, तबसे सिवनी की अस्मत के साथ लगातार खिलवाड़ किया जाता रहा है। सालों साल प्रदेश और सिवनी में कांग्रेस की तूती बोलती आई है। विमला वर्मा के सियासी राजनीति से हटकर घर बैठते ही उनके अपने और उनकी आस्तीन में छिपे सपोलों ने फन काढ़ा और सिवनी के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना आरंभ कर दिया।
उस दौरान कांग्रेस के दो या तीन शीर्ष नेताओं ने आपस में जुगलबंदी कर ऐसा सियासी त्रिफला बनाया कि सिवनी के लोग इन नेताओं के समर्थन और विरोध के स्वांग में ही उलझकर रह गए। इसके बाद सिवनी की अस्मत को कथित तौर पर गिरवी रखने का षणयंत्र रचा गया। सिवनी को प्रदेश के बड़े क्षत्रपों के हाथों गिरवी रखकर इन लोगों ने खूब दावतें उड़ाईं, फाग गाए, जश्न मनाए। वस्तुतः सिवनी आज पूरी तरह अनाथ है तो उसके पीछे ये नेता कहीं न कहीं जवाबदेह जरूर हैं।
सिवनी में लोकसभा हुआ करती थी। ‘‘थी‘‘ शब्द का प्रयोग आज मजबूरी में इन्हीं नेताओं के कारण करना पड़ रहा है। जब सिवनी के विलोपन का प्रस्ताव ही नहीं था तो भला सिवनी लोकसभा विलोपित कैसे हो गई। कहां थे कांग्रेस के कथित दिमागऔर दिमागदारलोग। क्या सिवनी से लोकसभा का विलोपन कांग्रेस के क्षत्रप हरवंश सिंहके कारण हुआ! अगर हुआ तो आप सिवनी के नागरिक पहले हैं, कांग्रेस के सदस्य बाद में! क्या कारण था कि इस मामले को पार्टी फोरम में नहीं उठाया गया, और अगर उठाया गया तो क्या कारण था कि इसके विरोध में कांग्रेस से त्यागपत्र की झड़ी नहीं लगी! मतलब साफ है कि इस षणयंत्र के जगमगाते लट्टू में कहीं न कहीं इन नेताओं की बैटरी से भी करंट जा रहा था।
सिवनी में फोरलेन का षणयंत्र रचा गया। इसके लिए वर्ष 2009 में घोषित तौर पर तत्कालीन केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ को दोषी करार दिया गया। सिवनी में कमल नाथ को इन्हीं नेताओं ने पुरानी फिल्मों के विलेन प्रेम चौपड़ा, और शत्रुघ्न सिन्हाबना दिया गया। कमल नाथ की प्रतीकात्मक शवयात्राएं निकाली गईं। जनमंच सिवनी एवं जनमंच लखनादौन ने मामले की नजाकत और गरम तवा देखकर इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी। सिवनी जिला इस मामले को लेकर सड़क में अडंगे के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल नाथ को ही जवाबदार मान रहा था। इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय में जनमंच सिवनी की ओर से याचिका कर्ता वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और अधिवक्ता आशुतोष वर्मा की ओर से अपील प्रस्तुत की गई। वहीं लखनादौन जनमंच के सरपरस्त बने दिनेश राय ने भी अपनी अपील दाखिल की। सिवनी जनमंच ने लोगों से चंदा किया, लखनादौन जनमंच शायद धन्ना सेठ था इसलिए उसने किसी से चंदा नहीं लिया और कुरई जनमंच शायद साधनों या चंदे के अभाव में कहीं नहीं जा सका।
आज सिवनी से बालाघाट, सिवनी से नागपुर, सिवनी से जबलपुर, सिवनी से कटंगी, सिवनी से मण्डला, सिवनी से छिंदवाड़ा रोड जब चाहे तब बंद हो जाता है। सांसद, विधायक, भाजपा, कांग्रेस, अन्य राजनैतिक दलों के साथ ही साथ सड़क की लड़ाई लड़ने वाले जनमंच के त्रिफला भी मौन हैं। शायद सिवनी जनमंच का चंदा खत्म हो गया, लखनादौन जनमंच का ध्यान चुनाव की ओर हो, और कुरई का जनमंच . . .। कुल मिलाकर पिस तो सिवनी की जनता ही रही है। समझ में नहीं आता कि नेता आखिर यह कैसे सोच लेते हैं कि उनकी साल दो या चार साल पहले की हरकतें जनता कैसे भूल सकती है? कल तक सिवनी की जनता को सड़क के मामले में भरमाने, कमल नाथ को विलेन बनाने वाले नेता आज मौन क्यों हैं? सिवनी में सड़क की लड़ाई लड़ने के बजाए नेता नागपुर, जबलपुर, दिल्ली, छिंदवाड़ा जाकर सड़क के बारे में चर्चा कर फोटो अखबारों में छपवाकर क्या यह जतलाना चाहते हैं कि वे सिवनी की सरजमीं छोड़कर अन्य जिलों में सिवनी की सड़कों के लिए फिकरमंदर हैं? सभी नेताजी जानते हैं कि सड़क के जर्जर होने से सिवनी टापू बन गया है, जनता कराह रही है, चुप है इसका मतलब यह नहीं कि वह बेवकूफ है, वह सब कुछ सह रही है और नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के इंतजार में है जब वह इन नेताओं को देगी अपना माकूल जवाब।