असत्य पर सत्य की
विजय
(शरद खरे)
असत्य पर सत्य की
विजय का पर्व है विजयदशमी। इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के स्वरूप
में मनाया जाता है। दशहरे में लोग रावण दहन करते हैं। रावण को बुराई का प्रतीक
मानकर उसका दहन किया जाता है। वैसे रावण बहुत विद्वान था, किन्तु रावण के
द्वारा सीता हरण के चलते उसे बुराई का प्रतीक माना गया है। रावण अपने बल और सत्ता
के मद में चूर था। यही कारण था कि उसने अपने अधिकार से बाहर जाकर सीता का हरण
किया। उस वक्त नैतिकता का बोलबाला था। रावण ने सीता का हरण अवश्य किया, किन्तु सीता माता
की इजाजत के बिना वह उन्हें अंगीकार नहीं कर सका। सीता माता को रावण ने अपने महल
के बाहर ही एक वाटिका में रखा था। यह था उस वक्त मानवता और नैतिकता का तकाजा।
आज समय बदल गया है।
नैतिकता किस चिड़िया का नाम है यह लोग नहीं जानते हैं, लोगों को यह नहीं
पता है कि नैतिकता के मायने क्या होते हैं। रामायण काल से आज तक मानव सभ्यता, सोच विचार, चाल चलन, संस्कृति आदि में
अमूल चूल परिवर्तन हुए हैं। भारत वर्ष की परंपराओं और संस्कृति का चहुंओर आदर किया
जाता रहा है। भारत की सांस्कृतिक विरासत की प्रशंसा हर कोई करता आया है।
सिवनी जिले की
सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का गौरवशाली इतिहास रहा है। आजादी के उपरांत का ही इतिहास
देखा जाए तो सिवनी जैसे भाईचारे की मिसाल और गंगा जमुनी तहजीब के बारे में सभी
बेहतर जानते हैं। सिवनी में सभी धर्म, संप्रदाय के लोग आपस में मिल जुलकर रहते आए
हैं। एक दूसरे के दुख-सुख में साथ देना, यहां के लोगों का प्रिय शगल रहा है। हर वर्ग, धर्म, संप्रदाय के
त्यौहारों को सभी ने मिलजुलकर मनाया है, इतिहास इस बात का गवाह है।
हमें यह कहने में
कोई संकोच नहीं है कि नब्बे के दशक के आगाज के साथ ही सिवनी जिले के सियासी
बियावान में राजनैतिक क्षरण बहुत तेजी से हुआ है। सिवनी में सियासी लोगों के लिए
राजनीति मानो ‘साम, दाम, दण्ड और भेद‘ की बैसाखी पर चलने
का नाम हो गया है। मनी पॉवर और मसल पॉवर के दम पर राजनैतिक लोगों ने अपनी जीजिविशा
को शांत किया है। लोगों के दुखदर्द से मानो किसी को लेना देना ही नहीं रह गया है।
प्रमुख राजनैतिक दल
कांग्रेस और भाजपा ने आपस में मिलकर एक सिंडीकेट बना लिया है। दोनों ही दल एक
दूसरे का छद्म विरोध कर जनता को भरमा रहे हैं। एक दल के लोग अगर सत्ता में आते हैं, तो वे मनमाफिक काम
करके पैसा कमाते हैं, और विपक्ष में बैठा दूसरा दल उसका दिखावटी विरोध करता नजर आता
है। इस विरोध के बाद भी ठोस परिणाम सामने कभी नहीं आए। उदहारण के तौर पर कांग्रेस
के कद्दावर मंत्री रहे हरवंश सिंह ठाकुर के मंत्री रहते हुए भीमगढ़ जलावर्धन योजना
का आगाज हुआ। सिवनी के लोगों को उम्मीद जगी कि कम से कम दो समय तो उन्हें भरपूर
पानी मिल सकेगा। दिन में दो बार तो छोड़िए महीने में ही कई कई दिन नल नहीं आते। उस
समय विपक्ष में सिवनी से भाजपा विधायक थे नरेश दिवाकर। नरेश दिवाकर ने कभी इस बात
को विधानसभा में नहीं उठाया। इसका कारण क्या था, यह बात तो वे ही
जानें पर भाजपा द्वारा इस मामले को विधानसभा या नगर पालिका चुनाव तक में कभी
मुद्दा नहीं बनाया जाना इस बात का द्योतक है कि समूचे कुएं में ही भांग घुली हुई
है।
एक नहीं अनेकों
मामले ऐसे हैं, जिनमें
कांग्रेस और भाजपा की जुगलबंदी के कारण, सिवनी की जनता आज आज़ादी के साढ़े छः दशकों
बाद भी बाबा आदम के जमाने की बैलगाड़ी पर ही यात्रा करने को मजबूर हैं। चुनाव आते
ही कांग्रेस भाजपा को तो भाजपा कांग्रेस को कोसने पर अमादा हो जाती है। अरे जनाब
जब आप सांसद या विधायक हैं तो उचित मंच यानी विधानसभा या लोकसभा में आखिर प्रश्न
पूछने में आपको शर्म कैसी?
क्या हमारे जिले के
सांसद और विधायकों के अंदर इतना माद्दा है, कि वे जनता के सामने इस बात को ईमानदारी से
रख सकें कि उन्होंने विधानसभा या लोकसभा में सिवनी के हितों को लेकर कितने प्रश्न
पूछे? और जो
प्रश्न लगाए उनके जवाब के दिन वे सदन में ही बहस के लिए उपस्थित रहे। वस्तुतः होना
यह चाहिए कि सांसद या विधायक की जवाबदेही भी निर्धारित होना चाहिए। हर बार सदन के
अवसान पर सांसद विधायकों को जनता के सामने एक-एक दिन का हिसाब प्रस्तुत करना
चाहिए। अगर सांसद विधायक अपनी दिनचर्या को प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं तो कम से कम
विपक्ष में बैठे दलों को तो उनसे इसकी मांग करना चाहिए।
विडम्बना ही कही
जाएगी कि आज राजनीति जनसेवा का साधन बनने की बजाए व्यवसाय बन चुकी है। आज ज्यादातर
नेता व्यवसाई हैं। वे अपनी विपक्षी पार्टी का विरोध इसलिए नहीं कर पाते हैं
क्योंकि उन्हें डर है कि कहीं विपक्षी दल उनके व्यवसाय की शिकायत न कर दे। अगर
शिकायत हुई तो उनके व्यवसाय पर बुरा असर पड़ सकता है। संभवतः यही कारण है कि आज
नेता एक दूसरे का विरोध ‘नूरा कुश्ती‘ की तर्ज पर ही करते आ रहे हैं।
दशहरा या विजय दशमी के पर्व पर कम से कम सिवनी के राजनेता यह शपथ ले लें कि वे
सिवनी के हित में ही काम करेंगे चाहे उनका व्यवसाय रहे अथवा जाए। अगर उन्हें
व्यवसाय करना है तो वे राजनीति को तिलांजली दे दें, या राजनीति करनी है तो व्यवसाय छोड़ दें। दो नावों पर
पैर रखकर चलने से सिवनी के वाशिंदों का बंटाधार निश्चित है। इसलिए आज आवश्यकता इस
बात की है कि हम अपने अंदर के बुराई रूपी रावण का दहन करें और दशहरे की
परंपरानुसार नए निश्छल स्वरूप को धारण कर सिवनी जिले की उन्नति के मार्ग प्रशस्त
करने की सौगंध उठाएं।
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