नरेंद्र गुड्डू को
साधुवाद
(शरद खरे)
भाजपा के युवा और
ऊर्जावान नेता नरेंद्र गुड्डू ठाकुर ने सूबे के निज़ाम को 21 सूत्रीय ज्ञापन
सौंपा है। नरेंद्र का यह ज्ञापन अपने आप में सिवनी की समूची समस्याओं को न केवल
समाहित किए हुए है,
वरन् यह ज्ञापन सिवनी के कांग्रेस और भाजपा के उन नेताओं को
आईना दिखाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है जो सिवनी के हितों के संवर्धन का
स्वांग रचकर लोगों को भरमाने का प्रयास करते आए हैं। नरेंद्र के ज्ञापन में छोटे
और बड़े कमोबेश हर मुद्दे को शामिल किया गया है। सिवनी के नेताओं ने इन मुद्दों को
चर्चाओं में तो स्थान दिया है, किन्तु जब ठोस कार्यवाही की बात आती है तो
वे अपने आप को, इन मामलों
से पीछे ही खींच लिया करते हैं।
फोरलेन के लिए 2009 में प्रयास हुए
हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। जनमंच सिवनी, लखनादौन और कुरई ने
अपने अपने स्तर पर प्रयास किए हैं। जनमंच सिवनी पांच बार सीएम से इसके लिए मिल
चुका है (जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है)। केंद्रीय मंत्री कमल नाथ को इसके लिए
जवाबदेह बताया गया जनमंच द्वारा। कमल नाथ 13 जून को सिवनी आए तो उन्हें जनमंच ने काले
झंडे दिखाए, पर अचानक
जनमंच को सूबे के निज़ाम शिवराज सिंह चौहान से क्या अनुराग उमड़ा कि काले झंडे
दिखाने के बजाए महज ज्ञापन सौंपकर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। जनमंच का
गठन संघर्ष के लिए किया गया था, विडम्बना यह है कि जनमंच ही खुद संघर्ष से
पीछे हटकर जिला वासियों से ‘अपने स्तर पर विरोध‘ की बात पर उतर आया।
जनमंच को आत्म मंथन की आवश्यकता है। फोरलेन बनने तक विरोध का झंडा जनमंच के पास था, पर यह किसी विशेष
दिशा में जाता दिखाई देने लगा।
इसी तरह सिवनी के
लिए पेंच परियोजना भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस परियोजना में भी दो दशक से ज्यादा
समय बीत जाने के बाद भी पानी सिवनी को नहीं मिल सका है। कभी इसके बंद करने की बात
सुनाई देती है तो कभी शहरी विकास मंत्रालय के अधीन काम करने वाली मेट्रो रेल
परियोजना की मशीनों से छिंदवाड़ा में दु्रत गति से काम करने की बात प्रकाश में आती
हैं। कुल मिलाकर स्थिति पूरी तरह अस्पष्ट ही है। बीस साल बीतने के बाद भी इस
परियोजना का एक बूंद पानी भी सिवनी को न मिल पाना, निश्चित तौर पर
सिवनी के कांग्रेस भाजपा के सांसद विधायकों के चेहरे पर बदनुमा दाग से कम नहीं है, जिन्होंने संसद या
विधानसभा में इस मामले को ‘नेता विशेष‘ को प्रसन्न करने
नहीं गुंजायमान किया।
यही आलम औद्योगिक
क्षेत्र बवरिया और भुरखुलखापा का है। लोगों ने अपने अपने सियासी प्रभावों का
इस्तेमाल कर यहां माटी मोल जमीनें तो हथिया लीं, किन्तु सालों से
यहां उद्योग आरंभ नहीं किए हैं। आज ये जमीनें बेशकीमती हो चुकी हैं। जिला उद्योग
केंद्र में अब तक पदस्थ रहे अधिकारियों पर इसके लिए कठोर कार्यवाही की जानी चाहिए
कि आखिर क्या कारण है कि यहां उद्योग आरंभ नहीं किए जाने के बाद भी इन अधिकारियों
ने जमीन वापसी की कार्यवाही सालों साल तक क्यों नहीं की। वहीं, भुरखुलखापा में भी
जमीनें आवंटित हो चुकी हैं किन्तु स्थानीय स्तर पर रोजगार के नाम पर मामला सिफर ही
है।
युवा भाजपा नेता
नरेंद्र ठाकुर ने लगभग तीन दशकों से प्रियदर्शनी के नाम से सुशोभित जिला
चिकित्सालय में पदस्थ सिविल सर्जन डॉ.सत्यनारायण सोनी को हटाने की मांग उठाई है।
बीमार जिला चिकित्सालय की सेहत सुधारने की गुहार लगाने के लिए नरेंद्र गुड्डू बधाई
के पात्र हैं। उन्होंने बर्न यूनिट, आईसीसीयू को शासन के स्वास्थ्य महकमे में
दर्ज करवाकर स्थापना व्यय बढ़वाने का अनुरोध किया है। साथ ही साथ ट्रामा यूनिट को
भी अस्पताल के अंदर के बजाए सड़क किनारे स्थापित करने की मांग की है। क्या सिविल
सर्जन या सीएमओ ट्रामा यूनिट के महत्व और उसकी कार्यप्रणाली से अपरिचित हैं, जाहिर है नहीं? तब क्या कारण है कि
इस यूनिट को अंदर घुमावदार रास्तों के बाद स्थापित किया जा रहा है।
उच्च शिक्षा के लिए
नरेंद्र गुड्डू की सोच जबर्दस्त है। नरेंद्र का कहना स्वागत योग्य है कि शासकीय
स्नात्कोत्तर महाविद्यालय में प्रथम तल पर कक्षाओं के निर्माण के साथ ही साथ यहां
पर्याप्त मात्रा में स्टाफ की भर्ती की जाए। साथ ही साथ यहां नए संकाय भी आरंभ किए
जाएं। इसी तरह नरेंद्र ने खेल के क्षेत्र में भी अपनी गुहार सीएम से लगाई है। उनका
कहना है कि क्रिकेट के लिए स्टेडियम का निर्माण करवाया जाए। ब्रॉडगेज और संभाग के
लिए भी उन्होंने अपनी बात रखी है। उन्होंने जिले में मनचाहे धार्मिक स्थलों पर
सरकारी रिसीवर बिठाने की मांग की है। काले हिरण की सेंचुरी, तालाबों के संरक्षण, कलेक्टोरेट के
निर्माण, झाबुआ पॉवर
की लोकसुनवाई की जांच, अवैध उत्खनन, शहर के अंदर की सड़कों आदि पर भी अपनी बात
बेबाकी के साथ नरेंद्र ठाकुर ने शिवराज सिंह चौहान के समक्ष रखी है।
वस्तुतः देखा जाए
तो यह काम सांसद विधायक का अथवा विपक्ष में बैठी कांग्रेस का है। कांग्रेस को इन
मुद्दों को उठाना चाहिए था, पर लगता है चूंकि ये मुद्दे स्थानीय हैं और
स्थानीय मामलों को उठाने से कांग्रेस अब तक बचती ही आई है इसलिए उसने शायद इन
मामलों को न उठाया हो, वहीं ये मामले अगर प्रदेश स्तर के होते तो कांग्रेस के
प्रवक्ता झट से प्रदेश स्तर के प्रवक्ताओं के अधिकारों पर अतिक्रमण कर इन्हें उठा
चुके होते। अब चूंकि नरेंद्र ठाकुर ने इन मामलों को उठा ही दिया है, तब कांग्रेस और
भाजपा के नेता श्रेय लेने के चक्कर में इन मुद्दों को आने वाले दिनों में अवश्य ही
उठाएंगे, पर श्रेय
तो नरेंद्र गुड्डू ठाकुर की झोली में जा ही चुका है।
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