अतिक्रमण निगल गया
सड़कों को
(शरद खरे)
सिवनी जिले में
अतिक्रमण हर तरफ जोर शोर से फैल रहा है। संबंधित विभाग और जनप्रतिनिधि मौन ही रहकर
सब देख सुन रहे हैं। सिवनी शहर के चारों ओर कैंसर के मानिंद, अतिक्रमण पसर चुका
है, जिसकी
परवाह किसी को नहीं है। शहर की सीमाओं पर चेचक के मानिंद पसरा अतिक्रमण वाकई
दुखदायी साबित होता जा रहा है। महाकालेश्वर टेकरी, जनता नगर, झिरिया, हड्डी गोदाम, डूंडा सिवनी, लूघरवाड़ा आदि
क्षेत्रों में जिसका मन जहां चाहा वहां उसने अपना आशियाना या दुकान बना ली। धीरे
धीरे ये अतिक्रमणकारी इसे अपनी निजी संपत्ति समझने लगते हैं। एक समय के बाद इन्हें
विस्थापित करने में जिला प्रशासन की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक जाती हैं।
सिवनी शहर के अंदर
भी अतिक्रमण का यही आलम है। दुकानदारों ने सड़कों को सकरा कर दिया है। नगर पालिका
परिषद्् के कार्यालय के सामने ही अतिक्रमण का बुरा हाल है। सालों से सरकारी
कार्यालयों के आसपास केंटीन के लिए निर्धारित स्थान न होने के चलते चाय पान की
गुमटियां भी वर्षों से यहां लग रही हैं। युवा एवं उत्साही जिला कलेक्टर भरत यादव
ने सिवनी शहर को अतिक्रमण से मुक्त करवाने का प्रयास किया था, पर उनकी मुहिम को
बीच में ही अपरिहार्य कारणों से रोकना पड़ा है। अब एक बार फिर शहर की सड़कें
अतिक्रमण से पट गई हैं, जिससे आवागमन प्रभावित हुए बिना नहीं है। इसके बाद मानो नगर
पालिका ने अतिक्रमण विरोधी अभियान को तिलांजली ही दे दी है।
1991-92 में तत्कालीन स्थानीय शासन मंत्री बाबू लाल
गौर द्वारा प्रदेश में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया था। उस समय भोपाल की
सड़कें देखने लायक हुआ करती थीं। भोपाल सहित प्रदेश भर में सड़कों के हाल इस कदर
बेहतर हो गए थे कि लोगों ने दिल से बाबू लाल गौर को धन्यवाद दिया था। उस समय सिवनी
के तत्कालीन जिला कलेक्टर पुखराज मारू ने सिवनी में डोजर, बुलडोजर का उपयोग
कर अतिक्रमण को ढहाया था। उसके बाद सिवनी में सड़कें कुछ हद तक चलने लायक हो पाई
थी। शहर की जीवन रेखा, जीएन रोड भी उस समय काफी साफ सुथरी दिखाई पड़ती थी।
उसके पहले नेहरू
रोड पर व्यापारियों द्वारा सड़कों पर सामान फैलाए जाने की शिकायतें आम हुआ करती
थीं। उस दौर में कोतवाली के पास एक बड़ा वाहन होता था। कोतवाली का यह डग्गा जब
नेहरू रोड पर निकलता तो व्यापारी न केवल अपना सामान अंदर कर लिया करते थे, वरन् साईकिलों के
उस दौर में, साईकिल तक दुकानों
के अंदर हो जाया करती थीं। शनैः शनैः प्रशासन के ढीले रवैए के चलते जिला मुख्यालय
में अतिक्रमण एक बार फिर सुरसा की तरह मुंह उठाने लगा है। शहर में अनेक बैंक ऐसे
हैं जिनके पास पार्किंग का अभाव है। किराए के भवनों में लग रहे इन बैंक के सामने, वहां आने वालों की
भीड़ लगी होती है जिसके चलते आवागमन बाधित हुए बिना नहीं रहता है।
बड़े जैन मंदिर के
बाजू में महाराष्ट्र बैंक के सामने तो सड़क पर खड़े वाहनों के चलते आवागमन दिन में
कई बार अवरूद्ध हो जाता है, इसके अलावा कचहरी चौक पर स्टेट बैंक की शाखा
के सामने भी यही आलम रहता है। मजे की बात तो यह है कि अनुविभागीय दण्डाधिकारी
कार्यालय के बाहर मुख्य सड़क पर अतिक्रमण कर साईकल स्टैंड बना दिया गया है जिससे
कलेक्टोरेट, सिंधी
कॉलोनी और कचहरी जाने आने वालों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। गांधी भवन से
पोस्ट ऑफिस तक के हिस्से में सड़कों पर ही वाहन सुधारने का काम धड़ल्ले से होता है।
वहीं गांधी भवन से गणेश चौक तक के मार्ग में सड़कों पर भवन निर्माण सामग्री, टेंकर, ट्रेक्टर, डंपर आदि की भीड़ से
आवागमन बाधित हुए बिना नहीं रहता है। कुछ दिन पूर्व दिखावे के लिए ही सही यातायात
पुलिस ने सड़कों पर खड़े वाहनों को उठा लिया था, पर यह कार्यवाही भी
मात्र दिखावे की ही कार्यवाही साबित हुई।
बारापत्थर क्षेत्र
में भी भारी वाहन,
डंपर, दस चका से बड़े वाहनों की रेलमपेल भी दुर्घटनाओं को न्योता
देती नजर आती है। पता नहीं शहर के नाकों पर यातायात पुलिस के कारिंदे होने के बाद
भी ये वाहन शहर के अंदर नो एंट्री वाले समय में कैसे घुस आते हैं? शहर में न जाने
कितने बस स्टैंड बन चुके हैं। मुख्य बस स्टैंड, प्राईवेट बस स्टैंड, बरघाट नाका, कचहरी चौक, मिशन स्कूल के
सामने, गणेश चौक, सर्किट हाउस, छिंदवाड़ा चौक, शंकर मढ़िया, न जाने कहां कहां, निजी वाहन रूक
रूककर सवारी भरते नजर आते हैं। पर इन्हें देखने की फुर्सत यातायात पुलिस के पास
शायद नहीं है। शहर में जहां देखो वहां यात्री बस खड़ी दिखाई दे जाती है। ज्यारत
नाके के पास, पोस्ट ऑफिस
से भैरोगंज पहुंच मार्ग, दलसागर तालाब के मुहाने से हनुमान मंदिर होकर भैरोगंज पहुंच
मार्ग आदि स्थानों पर यात्री बस, डम्पर, निजी वाहन यातायात को प्रभावित करते नजर आते
हैं। शहरों में सुबह आठ से रात्रि आठ तक भारी वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित है।
इसको धता बताकर भारी वाहन, दस चका डंपर आदि यमराज बनकर सड़कों पर बेलगाम दौड़ रहे हैं।
नाकों पर तैनात नगर सेना के कर्मी महज दस से बीस रूपए लेकर इन वाहनों को प्रवेश
दिलवा रहे हैं, क्या यह सब
कुछ आला अधिकारियों से छिपा है? जाहिर है नहीं, पर इसके बाद भी
वाहनों के प्रवेश पर अंकुश आखिर क्यों नहीं लग पा रहा है यह शोध का ही विषय है।
जिला प्रशासन से
अपेक्षा है कि शहर को अतिक्रमण मुक्त कराने की गई प्रभावी पहल को पुनः आरंभ किया
जाए, एवं शहर भर
में बेतरतीब तरीके से खड़े होने वाहनों को रोकने के लिए यातायात पुलिस को निर्देश
दिए जाएं। साथ ही साथ शहर में प्रवेश के समस्त स्थानों पर तैनात पुलिस या नगर सेना
के नुमाईंदों को स्पष्ट तौर पर ताकीद किया जाए कि नो एंट्री वाले समय में शहर में
प्रतिबंधित वाहनों का प्रवेश रोका जाए।
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