अंकुरित हो सकते हैं गैर संघ विचारधारा वाली भाजपा के बीज
लाल कृष्ण आड़वाणी के पीएम इन वेटिंग की टिकिट आरएसी या कनर्फम न होने से क्षुब्ध राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ खासा खफा नजर आ रहा है। पिछले दिनों संघ प्रमुख भागवत के कदमतालों से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सकते में है। भागवत की दिल्ली यात्रा के उपरांत बनते बिगड़ते समीकरणों में यह माना जा रहा था कि आने वाले समय में संघ द्वारा भाजपा को सीधे सीधे अपने नियंत्रण में ले लिया जाएगा। इसके लिए संध ने भाजपाध्यक्ष के उपर एक ``पालक`` पद सृजित कर उस पर संघ के नेता को बिठाने की तैयारियां की जा रही थीं। इस नए कदम से भाजपा के अंदरखाने में खिचड़ी उबलना आरंभ हो गई है। भाजपा में गैर संघीय विचारधारा वालों को संघ का दखल बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है। कहा जा रहा है कि जल्द ही भाजपा दो फाड़ होने वाली है, जिसमें संघ विचारधारा वाले लोग संघ के नियंत्रण वाली भाजपा में तो गैर संघीय विचारधारा वाले लोग अपना रास्ता अलग चुन लेंगे।
राजा की एक और फतह
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दििग्वजय सिंह ने भले ही दस सालों तक सक्रिय राजनीति से तौबा करने का कौल लिया हो पर उनके एक के बाद एक विजयी कदमों से लगने लगा है कि वे भी भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की तरह एक दो रन के बजाए सिक्सर मारने में ही ज्यादा विश्वास रखते हैं। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू की उपाधि पाने के उपरांत अब पीएम के सामने भी उनकी नाक उंची हो गई। मध्य प्रदेश में दिग्गी राजा के भरोसे चुनाव जीते राजगढ़ के सांसद नारायण सिंह आमलावे जो कि परंपरागत वेशभूषा में बड़ी सी पगड़ी लगाए हुए थे, को जब राजा ने वजीरे आजम से मिलवाया तो पीएम ने दििग्वजय सिंह की ओर देखकर चुटकी लेते हुए कहा -``भई वाह, आपकी पगड़ी तो मेरी पगड़ी से भी बड़ी है।
``परिवार के भरोसे जटिया!
लगता है भाजपा के कद्दावर नेता सत्यनारायण जटिया की कुंंंडली में शनि ने जमकर अड्डा जमा लिया है। आम चुनावों में बुरी तरह पराजित हुए सत्यनारायण जटिया के पास अब कार्यकर्ताओं का टोटा साफ दिखने लगा है। आजकल वे अपने परिवार के लोगों के साथ ही घूमते नजर आ रहे हैं। जटिया इस बार बारहवीं मर्तबा चुनाव मैदान में थे और यह उनका आठवां चुनाव था जिसमें वे धूल चाट गए। चुनाव हारने के उपरांत मीडिया ने काफी खोजबीन की किन्तु जटिया का कहीं पता नहीं चला। वे मोबाईल रखते नहीं सो उनसे संपर्क होने का सवाल ही नहीं उठता। पिछले दिनों जटिया अपने भाई और पुत्र के साथ ही नजर आए। उनके साथ उनके संसदीय क्षेत्र के कार्यकर्ताओं का टोटा साफ दिखाई पड़ रहा था। भाजपाई कहने से नहीं चूक रहे थे कि पराजित जटिया अब परिवारवाद को हवा देने का काम कर रहे हैं, माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में जटिया परिवार का कोई अन्य सदस्य भी भाजपाई राजनीति में पदार्पण कर सकता है।
जोगी को वाकई जोगी बनाने की तैयारी
छत्तीसगढ़ सूबे के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी को अब राजनैतिक बिसात बिछाकर बाबा बैरागी अथाZत जोगी बनाने की तैयारियां की जा रही हैं। जोगी विरोधियो ंने नपे तुले कदमो ंसे जोगी के मामले में कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के कान भरने आरंभ कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि जल्द ही अजीत जोगी को झारखण्ड का लाट साहब (राज्यपाल) बनाकर भेजने की तैयारियां की जा रही हैं। सोनिया को तर्क दिया गया है कि जोगी के राज्यपाल बनकर जाने से झारखण्ड के आदिवासियों में कांग्रेस के प्रति अच्छा संदेश जाएगा। वैसे दूसरा गुट यह प्रयास कर रहा है कि जोगी को सक्रिय राजनति से किनारा करवा तो दिया जाए पर झारखण्ड का राज्य पाल न बनाया जाए, क्योंकि जोड़ तोड़ के महारथी जोगी अगर झारखण्ड गए तो वहां अपना व्यापक जनाधार तैयार कर लेंगे। जोगी समर्थकों का कहना है कि जोगी को राज्यपाल न बनाकर उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर झारखण्ड भेजा जाए।
अजुZन हंसराज के लिए नई जवाबदारी की तलाश
मनमोहन सिंह सरकार में शामिल न किए गए कद्दावर नेता अजुZन सिंह, हंसराम भारद्वाज के लिए अब नई जवाबदारी की खोज की जा रही है, दोनों ही नेताअों ने राज्यपाल बनने से साफ इंकार कर दिया है। यह काम इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि कांग्रेस के आला नेताओं को खतरा है कि अगर ज्यादा दिन तक विन्ध्य के ठाकुर को खाली रखा गया तो आने वाले समय में विस्फोट ही विस्फोट होने की संभावनाएं हैं। कहा भी जाता है खाली दिमाग शैतान का घर। पहले अजुZन सिंह को उत्तर प्रदेश भेजा जा रहा था, पर उनके इंकार के बाद अब यूपी के लिए राहुल गांधी के सलाहकार कनिष्क के पिता एवं राजस्थान के राज्यपाल एस.के.सिंह का नाम आगे चल रहा है। वैसे भी यूपी युवराज के टारगेट में है। शीशराम ओला को मध्य प्रदेश, बलराम जाखड़ को महाराष्ट्र एवं अनिल शास्त्री को राजस्थान का लाट साहब बनाया जा सकता है।
पंच वषीZय योजना है इंदौर दाहोद रेलमार्ग
कांग्रेस भले ही आदिवासियों की कितनी भी हिमायती अपने आप को बताती रहे किन्तु जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। इसका जीता जागता उदहारण इंदौर दाहोद रेलखण्ड है। मक्सी, देवास, इंदौर, दाहोद गोधरा रेल मार्ग है। इस योजना को 1989 - 90 में स्वीकृति प्रदाय की गई थी। इसके बाद जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते यह रेल खण्ड ठण्डे बस्ते के हवाले हो गया। रतलाम के नए सांसद और केंद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया ने इस रेल लाईन को आरंभ कराने हेतु हरी झंडी अवश्य ही दिखाई है, किन्तु उन्होंने इस रेल खण्ड को पंच वषीZय योजना के रूप में पांच सालों में पूरा करने की बात कहकर सभी को चौंका दिया है। वैसे भी यह योजना पिछले बीस सालों से रेल मंत्रालय में पड़ी पड़ी धूल ही खा रही है। आदिवासियों के हितों का शोषण आखिर कांग्रेस कब तक करती रहेगी, यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है।
सोमदा बिन वामदल सूने
कम्युनिष्ट नेता एवं पूर्व लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के बिना वामदलों की सांसे उखड़ती प्रतीत हो रही हैं। सोमनाथ चटर्जी को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद औंधे मुंह गिरी माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अब सोमदा की वापसी के मार्ग प्रशस्त करने वाली है। दरअसल माकपा नेतृत्व पर सोमदा को वापस लेने का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। कहा जा रहा है कि अगामी 19 जून को पार्टी पोलित ब्यूरो की बैठक एवं उसके बाद 20 एवं 21 जून को होने वाली दो दिवसीय केंद्रीय कमेटी की बैठक में सोमदा को वापस लेने का मामला जोर शोर से उठ सकता है। केंद्रीय नेतृत्व इस आशंका के चलते सोमदा की वापसी के सारे मार्ग पहले ही्र प्रशस्त करने के मूड में दिखाई दे रहा है। माना जा रहा है कि माकपा के गढ़ पश्चिम बंगाल में चुनावों के चलते पार्टी की दुर्दशा के लिए सोमदा को दरकिनार करना भी एक बड़ा कारण है।
आक्सीजन पर है छग कांग्रेस
पिछले एक दशक से छत्तीगढ़ में कांग्रेस का संगठन आईसीसीयू में ही पड़ा दिख रहा है। अजीत जोगी की प्रदेश में सरकार बनने के उपरांत छत्तीसगढ़ प्रदेश में कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। छग में कांग्रेस के रसातल में जाने की प्रमुख वजह यहां पसरी गुटबाजी है। छग के इकलौते कांग्रेसी सांसद चरण दास महंत को केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया। इस पर छग कांग्रेस को प्रलाप, विलाप अवश्य करना चाहिए था, वस्तुत: एसा हुआ नहीं। छग में इस बात को लेकर जलसा हुआ। अनेक कांग्रेसियों के घर रोशन भी हुए। जब वे सांसद बने तो कई घरों में मातम भी मना था। दूसरी ओर दिल्ली में कांग्रेस के बड़े नेता छग के कांग्रेसियों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं। जब भी कोई कांग्रेसी मिलने का प्रयास करता है तो उसकी बारी सबसे अंत में ही आती है। अगर आलम यही रहा तो नगरीय निकायों में भी लोकसभा की तरह ही सीट ढूंढना होगा।
चर्चित रहा संघ का महाकौशल सम्मेलन
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने हाल ही में महाकौशल स्तरीय एक सम्मेलन का आयोजन जिला मुख्यालय सिवनी में किया। यह सम्मेलन देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली तक में चर्चा का विषय बना। हुआ यह कि संघ के इस कार्यक्रम के अंतिम दिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सिवनी शहर में रहने के बावजूद भी उन्होंने इस कार्यक्रम मे ंशिरकत नहीं की। वे आधे रास्ते से ही अपने उड़न खटोले की ओर गए और राजधानी भोपाल के लिए उड़ लिए। इसके उपरांत स्थानीय मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला में आयोजित सम्मेलन में भी शाला के शिखर पर संघ के भगवा ध्वज को देखकर लोग यह कहने से नहीं चूके कि कहीं यह संघ का ब्रितानी विचारधारा के साथ मिलाप तो नहीं!
पुच्छल तारा
लगता है कि कभी ``भाई साहेब, भाई साहेब``, कहकर न थकने वाले नेताओं ने अब अपनी निष्ठा बदल दी है। पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के एक पूर्व केंद्रीय मंत्री के सिवनी प्रवास के दौरान भाजपा के उनके बड़े दो समर्थक जिनके पहले पूर्व लगा हुआ है की अनदेखी सियासी गलियारों में चर्चित हो रही है। हुआ यूं कि निजी यात्रा पर निकले भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री जिला मुख्यालय सिवनी में अल्प प्रवास पर रूके। उनके वहां से जाने के उपरांत उसी जगह से पूर्व विधायक डॉ.ढाल सिंह बिसेन फिर पूर्व सांसद एवं वर्तमान विधायक श्रीमति नीता पटेरिया गुजरीं, नीता पटेरिया गुजरीं। श्रीमति पटेरिया तो वहां रूकीं पर डॉ.बिसेन फर्राटे के साथ वहां से गुजर गए। भाजपाईयों में चल रही कानाफूसी के अनुसार कहीं दोनों पूर्व की निष्ठा तो नहीं बदल गई है।
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