शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

01 augest 2009

देश की सड़कें आपकी राह देख रहीं हैं बाबा

(लिमटी खरे)


इक्कीसवीं सदी में अचानक ही देश के परिदृश्य में उभरकर सामने आए योग गुरू बाबा रामदेव का देशवासियों को निश्चित तौर पर आभार मानना चाहिए कि उन्होंने सदियों पुराने भारतीय योग को उसी स्वरूप में किन्तु नया कलेवर देकर पेश किया है। आज देश के अधिकांश लोग बाबा रामदेव से प्रेरणा लेकर नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं। बाबा रामदेव ने देश भर के कमोबेश हर जिले में अपने संस्थान की शाखा की स्थापना कर दी है।
लोगों की स्मृति से अभी विस्मृत नहीं हुआ होगा कि अप्रेल और मई माह में संपन्न हुए आम चुनावों में जब भारतीय जनता पार्टी ने विदेश से काले धन वापसी का मुद्दा चुनावों में झोंका तो बाबा रामदेव ने भी भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए कहा था कि वे भी विदेशों से काला धन वापस लाने के मुद्दे पर जनमत तैयार कर सड़कों पर उतरेंगे। बाबा ने कहा था कि वे इस मामले में चुप नहीं बैठेगें।
उस दौरान कुछ लोगों ने दबी जुबान से बाबा रामदेव पर यह आरोप भी लगाया था कि वे ``पीएम इन वेटिंग`` लाल कृष्ण आड़वाणी के सात रेसकोर्स रोड़ नई दिल्ली (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) के मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। चुनाव हुआ और भाजपा का यह राग कहां विलुप्त हो गया पता नहीं। इतना ही नहीं बाबा रामदेव ने भी इस बारे में पूरी तरह चुप्पी साध ली।
कुछ सालों पहले बाबा रामदेव ने दंभ से कहा था कि वे योग को दुनिया भर में फैलाना चाहते हैं, किन्तु वे भारत देश के बाहर तभी कदम रखेंगे जब वे संपूर्ण देशवासियों को योग के जरिए निरोगी बना देंगे। अपनी इस बात से उलट बाबा रामदेव ने विदेशों में जाकर योग प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया है।
इतना ही नहीं बाबा रामदेव की कार्यप्रणाली के चलते यह भी कहा जाने लगा है कि बाबा रामदेव सिर्फ अमीरों को ही योग सिखाना चाहते हैं, क्योंकि उनके शिवरों में देश की गरीब जरूरतमंद जनता मंहगी टिकिट होने के कारण जा ही नहीं पाती है। बेहतर होगा कि बाबा रामदेव गरीब गुरबों के लिए भी योग शिविर का आयोजन किया करें।
बाबा रामेदव के हरिद्वार स्थित पतांजली योग संस्थान मेें जाना आम आदमी के लिए आसान नहीं है। कहा जाता है कि अगर कोई बाबा की दवाओं की एजेंसी (जिला स्तर पर) लेना चाहे तो उसे एक मुश्त आठ लाख रूपए की दवाएं खरीदनी होती हैं। इतने मंहगे तरीके से अगर बाबा देश के गरीब गुरबों का इलाज करना चाह रहे हैं तो इससे बेहतर तो नीम हकीम ही हैं, जो कम से कम गरीबों की जेब देखकर ही अपनी फीस और दवाअों की कीमत निर्धारित करते हैं।
हमारे पौराणिक परिदृश्य पर अगर नजर डाली जाए तो बाबा सदा से ही समाज के अगुआ (पायोनियर) रहे हैं। बाबाओं की दी सीख और शिक्षा के चलते ही हमारा सभ्य समाज कुरीतियों से बचकर इक्कीसवीं सदी में सुखमय जीवन बिता रहा है। इतिहास गवाह है कि बाबा लोग जो भी कहते हैं हमारा समाज उसे निर्विकार भाव से अंगीकार कर लेता है। इसका कारण बाबाओं का ``काम, क्रोध, मद, लोभ`` से परे होना है।
बाबा रामदेव का चर्चाओ में बना रहना नई बात नहीं है। इसके पहले सांसद वृंदा करात ने बाबा रामदेव की औषधियों में मानव शरीर के अंगों के होने की बात कहकर सनसनी फैला दी थी। इसके बाद अर्धकुंभ में भाग लेने इलहाबाद पहुंचे ग्वालियर के योगी शिवराज गिरी ने तो बाबा रामदेव को लालकारते हुए कहा था कि बाबा यह साबित कर दिखाएं कि योग से कैंसर और एड्स जैसे रोगों का इलाज होता है। इसके साथ ही साथ पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अंबूमणि रामदास भी बाबा से सीधे ही भिड़ चुके हैं।
बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में स्वामियों और बाबाओं की बढ़ती भीड़ के चलते ये बाबा विवाद में भी घिरे रहे हैं। अमेरिका के आरगन में 64 हजार एकड़ भूमि के स्वामी रहे आचार्य रजनीश एक ओर जहां उन्मुक्त यौन संबंधों के कारण विवादों में रहे, वहीं दूसरी ओर एफबीआई के 35 आरोपों में से उन्होंने दो को स्वीकारा था जो फर्जी आव्रजन और शादियां कराने का मामला।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी के योग गुरू रहे धीरेंद्र ब्रम्हचारी जिन्होंने बाद में अपना योग स्कूल खोला भी कम विवादित नहीं रहे हैं। इन पर इंदिरा गांधी शासनकाल में सियासी फैसलों में हस्ताक्षेप करने और जम्मू में गन फैक्ट्री के साथ अन्य कई संगीन आरोप भी मढ़े गए थे।
मौनी बाबा के नाम से विख्यात हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्व.नरसिंहराव के जमाने में चंद्रास्वामी की तूती बोलती रही है। एक जमाने में इनके दिल्ली स्थित आश्रम में व्हीव्हीआईपी और नेताओं की कतार लगा करती थी, पर अंर्तराष्ट्रीय हथियार व्यापारी खगोशी से संबंध रखने के आरोप के साथ ही साथ इन्होंने कई आरोपों में जेल की हवा भी खाई है।
दक्षिण भारत में तिरूचिरापलली के एक तांत्रिक प्रेमानंद पर आश्रम में हत्या, 13 बलात्कार के आरोप के बाद चेन्नई हाईकोर्ट ने इन्हें उमरकेद की सजा सुनाई जिसे सर्वोच्च न्यायालन ने बरकरार रखा। प्रशांति निलयम में निवास करने वाले सत्य साई बाबा खुद को शिरडी वाले साई बाबा का अवतार बताते हैं।
इनके भक्तों मेंं अनेक पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सिने स्टार और खिलाड़ियों का शुमार है। इन पर आरोप रहा है कि पुट्टपर्ती स्थित इनके आश्रम में आश्रम की अंदरूनी राजनीति के चलते हुए गोलीकांड में छ: लोगों की जान गई थी। इनके चमत्कारों पर सवालिया निशान लगाते हुए अनेक टीवी न्यूज चेनल्स ने लंबी स्टोरी भी चलाई है।
बहरहाल बाबा रामदेव की पहल प्रशंसनीय कही जा सकती है कि उन्होंने देश के काले धन को देश में वापस लाने की शांत पर मुहिम तो छेड़ी। बाबा रामदेव ने समलेंगिकता के खिलाफ कोर्ट के दरवाजे खटखटाने के अपने वादे को भी निभाया। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। इसी बीच देश की जनता अब बाबा रामदेव की राह देख रही है कि वे कब अपना कौल निभाते हुए सड़कों पर उतरेंगे और काला धन देश में वापस लाकर इन धन कुबेरों के चेहरों पर से नकाब उतारेंगे।

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सुषमा की चतुराई से भाजपा को मिली संजीवनी

(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। संसद के दोनों सदनों में भारतीय जनता पार्टी के सांसदों के बीच हिलोरे मार रहे असंतोष पर सुषमा स्वराज ने अपनी चतुराई भरी चाल से घड़ों पानी डाल दिया है। पहले मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य फिर विदिशा से संसद सदस्य बनीं सुषमा स्वराज ने कूटनीतिक तरीके से असंतोष के फन को दबा दिया है।
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा सदन में भाजपा की ओर से मुख्य वक्ता बनने के लिए हाथ पैर मार रहे थे। यही कारण था कि दोनों ही असंतुष्टों को हवा दे रहे थे। सूत्रों ने कहा कि लोकसभा चुनाव में शीर्ष नेतृत्व की कार्यप्रणाली और अपनी उपेक्षा के कारण दोनों ही नेता रूष्ट चल रहे थे। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को मशविरा दिया गया था कि इन्हें इन्हीं के हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए। इसके उपरांत जब सदन में चर्चा की शुरूआत का मुद्दा आया तो दोनों ही नेताओं ने एक बार फिर नजरें तरेरना आरंभ कर दिया।
सूत्रों ने आगे बताया कि लोकसभा में पार्टी की उपनेता सुषमा स्वराज ने भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह, डॉ.मुरली मनोहर जोशी, अनंत कुमार, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह आदि के बीच सदन में अहम विषयों पर होने वाली चर्चाओं का विभाजन इस तरह किया कि सभी प्रसन्न हो गए।
भाजपा में आर्थिक और विदेश मामलों के विशेषज्ञ समझे जाने वाले जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा को दरकिनार कर पार्टी ने बजट पर अधिकृत वक्तव्य सुषमा स्वराज के माध्यम से बनवा दिया। और इस पर प्रथम वक्ता के रूप में डॉ. एम.एम.जोशी को खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं विदेश मामलों में महामहिम राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन का ड्राफ्ट भी राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने बना दिया।
मजे की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा पर सदन में चर्चा के लिए जब यशवंत सिन्हा के पास प्रथम वक्ता बनने का पैगाम भेजा गया तो एक असेZ से उपेक्षित सिन्हा ने गदगद होकर इसे स्वीकार कर लिया। संसद में इस सामंजस्य का श्रेय अगर किसी को जाता है तो मध्य प्रदेश कोटे से जीतकर आईं सुषमा स्वराज को।

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

राजनीति की जद में बुंदेलखण्ड

(लिमटी खरे)


मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लगभग चार दर्जन जिलों को मिलाकर बनने वाले वर्तमान काल्पनिक और पूर्व के वास्तविक बुंदेलखण्ड क्षेत्र पिछले कुछ सालों से राजनीति का अखाड़ा बनकर रह गया है। पिछले एक दशक से कांग्रेस द्वारा बार बार बुंदेलखण्ड के सूखे को राजनैतिक रंग दिया जा रहा है।
पिछले लगभग पांच सालों से मानसून मानो बुंदेलखण्ड अंचल से रूठ सा गया है। पिछले साल तो बारिश के पूर्व इस समूचे क्षेत्र में स्थितियां नियंत्रण से बाहर थीं। उस दौरान कांग्रेस ने केंद्र सरकार से बुंदेलखण्ड के लिए विशेष पैकेज की मांग की थी। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने लगभग पांच हजार करोड़ रूपए के पैकेज के लिए सैद्धांतिक सहमति भी दे दी थी।
पिछले ही साल कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र पर विशेष नजर रखी थी। इस दौरान उन्होंने अनेक ग्रामों में जनसंपर्क कर रातें भी दलितों के घरों पर बिताईं थीं। विपक्षी दल इसे राजनैतिक स्टंट करार देने से नहीं चूके, किन्तु राहुल का यह क्रम इन आरोपों से डिगा नहीं और लगातार चालू रहा।
राहुल गांधी की पहल पर पिछले साल जब केंद्र सरकार ने लगभग पांच हजार करोड़ रूपयों के विशेष आर्थिक पैकेज के लिए हामी भरी थी, तब भले ही बुंदेलखण्ड वासी इससे खुश हुए हों अथवा नहीं पर यहां पदस्थ प्रशासकीय अमले के चेहरों पर रौनक आ गई थी। प्रशासनिक तंत्र में फंसकर यह पैकेज अंतत: केद्र सरकार जारी ही नहीं कर पाई कि जोरदार बारिश ने इस पैकेज के औचित्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिए थे। इसके बाद विधान सभा और लोकसभा चुनाव निपट गए, एवं विशेष पैकेज एक बार फिर कपूर के मानिंद गायब हो गया।
एक बार फिर राहुल गांधी ने केंद्र सरकार से विशेष पैकेज की मांग कर उस जिन्न को जगा दिया है, जो कुछ समय से सो रहा था। मध्य प्रदेश सूबे के निजाम भला चुप कैसे रहते। शिवराज सिंह चौहान ने भी एक बयान जड़ दिया कि इस पैकेज की मांग उनके द्वारा काफी समय से की जा रही है। शिवराज जानते हैं कि राहुल गांधी ने अगर पैकेज मांगा है तो डॉ.मनमोहन सिंह को उसे स्वीकार करना आवश्यक मजबूरी ही होगी।
बहरहाल यह सच है कि देश के विकास की प्रक्रिया अनेक असंतुलनों का शिकार रही है। उदहारण के तौर पर सबसे ज्यादा आयकर देने वाली देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई को आधारभूत ढांचे के लिए दिल्ली से कई गुना कम राशि मिलती है। महाराष्ट्र में ही एक तरफ औद्योगिक और कृषि आधारित संपन्नता है, तो किसानोंं के द्वारा आत्महत्या करने का आंकड़ा भी इस सूबे में सबसे ज्यादा ही है।
वैसे यह संतोष की बात मानी जा सकती है कि बुंदेलखण्ड का पिछड़ापन राजनैतिक परिदृश्य में एक मुद्दा बन गया है। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने इस क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार से आठ हजार करोड़ रूपयों का विशेष पैकेज मांगा है।
नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी और कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमति सोनिया गांधी के पुत्र, कांग्रेस के युवा महासचिव होने के नाते उनकी बात को वजन देना केंद्र सरकार की मजबूरी है। किसी की क्या मजाल के राहुल गांधी की मंशा के खिलाफ काम कर जाए। पूर्व पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर को राहुल गांधी के कोप का भाजन बनकर यह मंत्रालय छोड़ना पड़ा था, यद्यपि सरकारी तौर पर इसकी न तो पुष्टि की गई और न ही खण्डन पर चर्चा इसी बात की रही।
राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दििग्वजय सिंह ने अपने पठ्ठे से इस तरह का तीर चलवाकर कई निशाने एक साथ साध लिए हैं। एक तरफ उन्होंने मायावती को उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड तो शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश के बुंंदेलखण्ड में घेरने का उपक्रम किया है।
वैसे यह भी सच है कि अगर राहुल गांधी की अपील पर इस क्षेत्र के लिए विशेष पैकेज स्वीकार कर लिया जाता है तो आने वाले दिनों में बिहार, उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ आदि भी विशेष पैकेज की मांग के लिए अड़ जाएंगे, तब इनसे निपटना केंद्र के लिए बहुत मुश्किल होगा। गौरतलब होगा कि हाल ही में नितिश कुमार द्वारा बिहार को विशेष पैकेज दिए जाने की मांग कई मर्तबा की जा चुकी है।
बताते हैं कि केंद्र में सत्तारूढ कांग्रेस चाहती है कि एक प्राधिकरण बनाया जाए जो केंद्र के अधीन काम करे और मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करे। जाहिर है, इस तरह की बात न तो मध्य प्रदेश को ही रास आएगी न तो उत्तर प्रदेश सरकार को।
केंद्र सरकार को चाहिए कि अगर वह बुंदेलखण्ड के लिए ``विशेष पैकेज`` की घोषणा करने वाली है, तो जल्दी करे एवं इसके लिए आवंटित धन का एक एक पैसा जरूरतमंद तक पहुंचे इस बात को अवश्य सुनिश्चित करे, अन्यथा आठ हजार करोड़ रूपयों में से महज चंद रूपए ही जरूरत मंदों के पास पहुंचेंगे और शेष राशि उनके हाथों में होगी जिन्हें वास्तव में इसकी जरूरत नहीं है।

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फिर ताकतवर होकर उभरे हैं सुरेश सोनी
- अपने गुर्गों को दिलाया राज्य सभा में स्थान
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी एकाएक बहुत ताकतवर होकर उभरे हैं। मध्य प्रदेश से राज्य सभा की दो रिक्त हुई सीटोें पर उनकी पसंद के उम्मीदवारों के नामों पर मुहर लगने से अब भाजपा में उनका दखल काफी हद तक बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।
संघ के सूत्रों के मुताबिक मध्य प्रदेश में सुषमा स्वराज और नरेंद्र सिंह तोमर के लोकसभा में चुने जाने से रिक्त हुई दो सीटों पर भाजपा में एक अनार सौ बीमार की स्थिति बन गई थी। अंत में अपने अपने नेता के लिए लाबिंग करने वालों के पैरों तले जमीन खिसक गई, जब कप्तान सिंह सोलंकी और अनिल माधव दुबे के नामों पर अंतिम मोहर लगा दी गई।
गौरतलब होगा कि पूर्व में चल रही चर्चाओं में मध्य प्रदेश के कोटे से सिने तारिका हेमा मालिनी या मुख्तान अब्बास नकवी अथवा भाजपाध्यक्ष राजनाथ सिंह अपने चहेते पीयूष गोयल को एक सीट देकर दूसरी सीट मध्य प्रदेश के नेताओं के लिए छोड़ देंगे। बाहरी उम्मीदवारों की खिलाफत होने पर मामला गड़बड़ा गया था।
एक तरफ शिवराज सिंह चौहान ने अपना कौल निभाते हुए अनिल माधव दुबे के लिए अपनी सिफारिश कर दी थी। ज्ञातव्य है कि लोकसभा चुनावों में होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से अनिल दवे ने अपनी दमदार दावेदारी प्रस्तुत की थी। इस सीट पर शिवराज सिंह चौहान की पसंद रामपाल सिंह थे। सूत्रों ने बताया कि उस समय चौहान ने दवे से वादा किया था कि राज्य सभा वाले मामले में वे दवे का साथ देंगे।
वैसे दवे के नाम पर भाजपा के संगठन मंत्री माखन सिंह कतई तैयार नहीं बताए जाते थे। माखन की पहली पसंद मेघराज जैन थी, मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों का भी यही दावा है कि मेघराज जैन के लिए मुख्यमंत्री भी तैयार थे। अंत में मुख्यमंत्री ने अनिल दवे के साथ किया वादा निभाते हुए उनके नाम पर अंतिम मोहर लगवा ही दी।
सूत्रों के अनुसार उधर कप्तान सिंह सोलंकी के लिए भी माखन सिंह राजी नहीं थे। इसके साथ ही साथ नरेंद्र तोमर का वरद हस्त ब्रजेंद्र सिंह सिसोदिया के उपर था। भाजपा के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सुरेश सोनी के वीटो के बाद ही सोलंकी और दवे के राज्य सभा में जाने के मार्ग प्रशस्त हो सके हैं।
मनमोहन के आगे बेबस शीला

(लिमटी खरे)

देश का इससे बड़ा दुर्भाग्य और भला क्या होगा कि देश की राजनैतिक राजधानी की सरकार पर तीसरी दफा काबिज होने वाली मुख्यमंत्री शीला दीक्षित आज भी केंद्र सरकार अथाZत मनमोहन सरकार के सामने घुटने टेके अपने अधिकारों के लिए चिरौरी कर रही हैं। इसका जीता जागता उदहारण बीते दिनों दिल्ली में हुई धुंआधार बारिश के बाद बनी स्थिति है।
महीनों की तपन के बाद जब बीते सोमवार को तीन घंटे झमाझम बारिश हुई तो दिल्ली में चलना मुहाल हो गया। लोग घरों से निकलकर सड़कों पर बह रहे पानी में अधडूबे ही जाने आने पर मजबूर थे। सवाल यह उठता है कि आखिर दिल्ली की इस दुर्दशा के लिए जवाबदार कौन है? सूबे की निजाम श्रीमति शीला दीक्षित अथवा वजीरे आला डॉ. मनमोहन सिंह।
एक तरह से देखा जाए तो दिल्ली में बारिश में होने वाली परेशानियों के लिए परोक्ष रूप से केंद्र सरकार ही दोषी मानी जा सकती है। इसका कारण यह है कि केंद्र सरकार द्वारा सालों बाद भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया है। इन परिस्थितियों में सब कुछ तो केंद्र सरकार ने अपने ही हाथों में रख रखा है, तब दिल्ली सरकार क्या खाक सुविधाएं मुहैया करवाएगी अपने सूबे के वाशिंदों को।
कहने को दिल्ली सरकार के पास दिल्ली नगर निगम (डीएमसी), दिल्ली पुलिस और दिल्ली विकास प्राधिकरण पर नियंत्रण है। शेष लगभग सारे विभाग तो केंद्र सरकार के इशारों पर ही काम कर रहे हैं। लोक निर्माण विभाग, नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी), सहित अनेक विभाग केंद्र की देखरेख में ही कामों को अंजाम दे रहे हैं।
कहते हैं कि केंद्र सरकार का तर्क है कि इस सूबे में व्हीव्हीआईपी ज्यादा रहते हैं, इसलिए पुलिस को केंद्र के अधीन रखना ही ठीक होगा। यह बात कहां तक सच है इस बारे में केंद्र ही बेहतर बता सकता है, किन्तु यह सच है कि केंद्र के व्हीव्हीआईपी की सुरक्षा में दिल्ली पुलिस का एक बहुत बड़ा अमला कार्यरत है।
आलम यह है कि दिल्ली में नगर निगम में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कोई सीधा दखल नहीं है। दिल्ली में यातायात को नियंत्रित करने का काम संभालने वाली दिल्ली की यातायात पुलिस भी दिल्ली सरकार के उपर ही है। व्यवस्थाओं का आलम यह है कि हर एक कदम पर फैसला लेने के लिए दिल्ली सरकार को उपराज्यपाल के दरबार में हाजिरी लगाकर अपना पक्ष रखना होता है, उपराज्यपाल की मर्जी से ही कोई फैसले पर मुहर लग सकती है।
दिल्ली सरकार के पास अधिकार नहीं होने के कारण उसे किसी भी योजना को मंजूरी देकर अमली जामा पहनाने के लिए कम से कम 13 से 14 विभागों की अनुमति की दरकार होती है। सोमवार को हुई भारी बारिश के बाद दिल्ली में जगह जगह जाम की स्थिति निर्मित हो गई थी।
इस जाम से निजात दिलाने के लिए यातायात पुलिस के मातहत भी सड़कों से नदारत ही थे। लोग घंटों जाम में फंसे मशक्कत करते रहे किन्तु उनकी सुध लेने वाला कोई भी जिम्मेदार सरकारी नुमाईंदा सड़क पर दिखाई नहीं दिया। एनडीएमसी के अधिकार क्षेत्र वाले सर्वोच्च न्यायालय के इर्द गिर्द पानी जमकर भर गया था, किन्तु एनडीएमसी के उपर से नीचे तक के अधिकारी खुर्राटे भर रहे थे।
वैसे केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार को कुछ अधिकार तो दिए हैं, जिनके समुचित उपयोग से दिल्लीवासियों का नारकीय जीवन सुधर सकता है। बारिश आते ही दिल्ली में नगर निगम का अमला घरों घर जाकर छतों पर गमले, और बरामदों में रखे कूलर की जांच कर रहे हैं।
यह कवायद इसलिए की जा रही है, ताकि मच्छरों को पनपने से रोका जा सके और दिल्लीवासियों को डेंगू जैसे बुखार से बचाया जा सके। मगर क्या दिल्ली सरकार पोखरों में तब्दील सड़कों और नालियों में जमा पानी हटाने की दिशा में कुछ प्रयास करेगी। क्या इन पानी के एकत्र होने वाले स्थानों पर मच्छर नहीं पनपेंगे?
क्या मच्छर पलने से रोकने की जवाबदारी सिवनी दिल्ली के रहवासियों की ही है? यक्ष प्रश्न तो यह है कि एक दिन की बरसात मं ही पूरे शहर को शर्म से पानी पानी करने वाले बदइंतेजाम से रहने वाली दिल्ली सरकार ने क्या अपने नुमाईंदों का चालान काटा? उततर निश्चित तौर पर नहीं ही होगा।
इन परिस्थितियों में दिल्ली के रहवासियों द्वारा जानकारी के अभाव में दिल्ली सरकार को पानी पी पी कर कोसा जाना कहां तक उचित होगा। बेहतर होगा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाकर सूबे की सारी की सारी व्यवस्थाएं दिल्ली सरकार के नियंत्रण में ही रखी जाएं ताकि देश की राजनैतिक राजधानी में रहने वाले कम से कम बुनियादी जरूरतों के लिए तो न तरसें।

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शिवराज पर कसेगा संघ का शिकंजा!
- मध्य प्रदेश के रास्ते दो प्रमुख प्रचारकों को रास में भेजने की तैयारी
- मध्य प्रदेश होगा अब संघ की सीधी निगरानी में
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश सूबे में राज करने वाले शिवराज सिंह चौहान की स्वतंत्रता के दिन शायद समाप्त होने वाले हैं, जल्द ही उन पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शिकंजा कसने वाला है। कप्तान और दवे की राज्य सभा में आमद के साथ ही साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश सूबा अब संघ की सीधी निगरानी में ही रहने वाला है।
आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में संभवत: यह पहला मौका है जबकि संघ के दो पूर्व प्रमुख प्रचारक एक साथ ही निर्विरोध रूप से पिछले रास्ते (राज्य सभा) से संसदीय सौंध तक पहुंच रहे हैं। मध्य प्रदेश में सुषमा स्वराज और नरेंद्र तोमर के लोकसभा के लिए चुने जाने पर रिक्त हुई प्रदेश की दो सीटों पर भाजपा के महाराष्ट्र प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी और प्रदेश के उपाध्यक्ष अनिल माधव दवे भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार बनाए गए हैं। गौरतलब होगा कि कप्तान सिंह सोलंकी जहां मध्य प्रांत में तो दवे भोपाल विभाग के प्रचारक रहे हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में भाजपा की तादाद 143 है, जबकि शेष अन्य महज 84 ही हैं। वैसे भी सियासी गणित के हिसाब से विरोधी दल भाजपा को कहीं से भी चुनौति देने की स्थिति में नहीं है। 10 अगस्त को होने वाले चुनाव के लिए कांग्रेस के खेमे में पसरी मायूसी साफ दिखाई पड़ रही है।
वैसे इन दोनों ही नेताओं को अपेक्षाकृत काफी कम कार्यकाल ही भोगने को मिलेगा। नरेंद्र तोमर के द्वारा रिक्त की गई सीट पर प्रत्याशी कप्तान को 2 अप्रेेल 2012 तक कार्य करने का तो सुषमा स्वराज के द्वारा खाली की गई सीट पर भाजपा प्रत्याशी दवे को महज 11 माह का ही कार्यकाल मिल सकेगा। इसका कार्यकाल 29 जून 2010 तक ही है।
भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय 11 अशोक रोड़ में चल रही चर्चाओं के अनुसार संघ प्रष्ठभूमि के उक्त दोनों ही नेताओं के मैदान में उतारे जाने से संघ का मैसेज साफ दिखाई पड़ रहा है कि आने वाले दिनोंं में मध्य प्रदेश सरकार पर संघ अपना नियंत्रण रखना चाह रहा है।
बताते हैं कि हाल ही में हुए आम चुनावों मेंं पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी के कारण सत्ता से काफी दूर हुई भाजपा की स्थिति को लेकर संघ काफी चिंतित है। इन परिस्थितयों में भाजपा शासित राज्यों को वह अपने सीधे नियंत्रण में लेना चाह रहा है, ताकि हिन्दुत्व के एजेंडे को सूबे में फैलाया जा सके।
कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में मध्य प्रदेश में संघ का वर्चस्व मध्य प्रदेश सहित भाजपा शासित प्रदेशों में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। भाजपा में मची अंर्तकलह से निपटने संघ की यह अघोषित रणनीति कितनी कारगर साबित होती है, यह बात तो समय के साथ ही सामने आएगी किन्तु यह तय है कि शिवराज सिंह चौहान के लिए आने वाला समय मार्ग के शूल निकालने में ही जाया
होगा।
संदर्भ फोरलेन विवाद

सांप ही मारें, लकीर न पीटें

0 लिमटी खरे


फ®रलेन क® लेकर तरह तरह की अफवाहें जन्म ले चुकी हैं। क®ई कहता है, यह छिदवाड़ा से ह®कर जाएगी, त® क®ई एनएचएआई के कार्यालय के छिंदवाड़ा स्थानांतरण की बात कहकर अपनी धाक जमा रहा है। क®ई माननीय सवोंच्च न्यायलय के स्थगन की बात कर रहा है। इसी बीच सिवनी की विधायक एवं परिसीमन मेंं समाप्त हुई सिवनी ल®कसश की अंतिम सांसद ने प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से चर्चा कर सवोंच्च न्यायलय में मध्य प्रदेश के वकील क® “ी खड़ा करने संबंधी विज्ञिप्त जारी करवा दी। कुल मिलाकर मामला क्या है, इसके निर्माण का कार्य क्यों रुका अथवा बलात र®का गया, इसमें नेताओं, प्रशासन और ठेकेदार की क्या “ूमिका है, यह बात साफ नहÈ ह® सकी है। ल®ग त® इस मामले में केंद्रीय “ूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ क® ही कटघरे में खड़ा करने से नहÈ चूक रहे हैं। राजनैतिक नफा नुकसान अपनी जगह हैं, किन्तु जब 18 दिसंबर 2008 क® पी¤नरहरि ने एक आदेश जारी कर वृक्षों की कटाई पर प्रतिबंध लगाया था, वह “ी म®हगांव से खवासा तक ही, तब कमल नाथ के पास “ूतल परिवहन के बजाए वाणिज्य और उद्य®ग मंत्रालय हुआ करता था। इसके साथ ही साथ जब नरसिंहपुर से लेकर बरास्ता छिंदवाड़ा फ®रलेन राष्ट™ीय राजमार्ग का प्रस्ताव आ चुका है, तब इस तरह की बातें बेमानी ही मानी जा सकती हैं।
हमारे अनुसार अब तक सार्वजनिक हुए प्रपत्रों और तथ्यों से प्रथम –ष्टया ज® मामला सामने आया है, उसके मुताबिक महाराष्ट™ की संस्कारधानी नागपुर सहित अनेक स्थानों से प्रकाशित ल®कमत, मुंबई से प्रकाशित डीएनए ने जनवरी 2008 से संयुक्त तौर पर एक मुहिम चलाई है, जिसमें पेंच नेशनल पार्क से ह®कर गुजरने वाले इस उत्तर दक्षिण गलियारे के उक्त विवादित शग के बन जाने से बाघों क® जबर्दस्त खतरा पैदा ह®ने की आशंका जताई गई है। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी में द®नों ही समाचार पत्रों ने इस तरह की बात क® विस्तार से रेखांकित किया है। इन द®नों का मूल उÌेश्य अगर वाकई बाघों क® बचाना है, त® इनका प्रयास नििÜचत तौर पर सराहनीय ही कहा जाएगा। इस तथ्य में कुछ संशय ही लग रहा है, क्योंकि इसके पूर्व स्वीकृत किया गया छिंदवाड़ा नागपुर रेल लाईन का अमान परिवर्तन के मुÌे क® इन्होंने छुआ तक नहÈ है। वस्तुत: यह रेल मार्ग पेंच के अंदर से ही ह®कर गुजर रहा है। अगर रेल गाड़ी यहां से ह®कर गुजर सकती है, त® सड़क पर चलने वाले वाहनों से इस तरह का सौत्®ला व्यवहार आखिर क्यों? इसके बाद वाईल्ड लाईफ ट™स्ट अ‚फ इंडिया की एक रिट पिटीशन ज® सवोंच्च न्यायालय में दाखिल की गई है, क® चमत्कारिक तरीके से सिवनी में उतारा गया। इस रिट पिटीशन के बारे मे माननीय सवोंच्च न्यायालय की वेव साईट पर कुछ “ी जानकारी उपलब्ध नहÈ है। सिवनी की फिजां में त्ौर रही अफवाहों के बीच क®ई “ी ठ®स बात सामने नहÈ आ पा रहÈ हैं। इसी बीच उत्साही युवा शिक्षाविद संजय तिवारी और पूर्व पार्षद “®जराज मदने ने आगे आकर शहरवासियों क® इकट्ठा किया और सवोंच्च न्यायालय में अपनी बात रखने का फैसला किया। इन द®नों के कदम का स्वागत किया जाना चाहिए। फिर विधायक श्रीमति नीता पटेरिया ने पहल कर सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान के संज्ञान में इस बात क® लाया और उनकी विज्ञिप्त के अनुसार राज्य सरकार इस मामले में पक्ष रखने के लिए अपना वकील “ी वहां त्ौनात करने की इच्छा जाहिर की है। मुÌे की बात त® यह है कि सड़क निर्माण का कार्य अब तक सामने आए प्रपत्रों में कहÈ “ी र®के जाने की बात नहÈ कही गई है। तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि ने अवश्य केंद्रीय साधिकार समिति (सीईसी) द्वारा किए गए निवेदन पर वन और गैर वन क्ष्®त्रों में वृक्षों की कटाई र®कने का आदेश यह कहकर जारी किया है कि पूर्व में जिला कलेक्टर के समस्त आदेश इस आदेश के प्रशव से निष्क्रीय ह® जाएंगे। अब सवाल यह है कि इस मामले की जड़ कहां है। सं“वत: जड़ है पी¤नरहरि का वह आदेश ज® 18 दिसंबर क® जारी हुआ था। स“ी क® सबसे पहले तत्कालीन जिला कलेक्टर के उस आदेश क® निरस्त कराने की दिशा में पहल करना चाहिए। जब वृक्षों की कटाई आरं“ ह® जाएगी तब माननीय सवोंच्च न्यायालय के फैसले के उपरांत ज® ह®ना ह®गा वह ह® सकेगा। इस मामले में केंद्र में सत्तारुढ़ कांग्रेस और प्रदेश की शजपा का मौन सर्वाधिक आÜचर्यजनक है। इस सबसे ज्यादा हैरत अंगेज है इस मार्ग का निर्माण कराने वाली स˜ाव कंस्ट™क्शन कंपनी का मौन। हमारी नितांत निजी राय में अगर आठ माह से इस कंपनी का काम बंद है, और कंपनी हाथ पर हाथ रख्® बैठी है, तब उसने क®ई पहल क्यों नहÈ की? द® ही सूरतों में स˜ाव क® चुप रहना चाहिए या त® वह किसी बहुत बड़े दबाव में है, या फिर उसे उम्मीद से अधिक मुनाफा नजर आ रहा ह®। इस मामले में टेंडर की शतोZ में यह “ी बताया जा रहा है कि विलंब पर जबर्दस्त शिस्त (पेनाल्टी) निरुपित किए जाने का प्रावधान है। विलंब अगर ठेकेदार की अ®र से ह®गा त® सरकार उससे इसे वसूल करेगी और अगर विलंब सरकार की अ®र से ह®गा त® नििÜचत तौर पर ठेकेदार क® इस राशि क® सरकार से वसूल करने का अधिकार ह®गा। वर्तमान परिस्थितियों में ह®ने वाले विलंब में लगता है कि स˜ाव की पांचों उंगलियां घी में सर कड़ही में और धड़ सहित बाकी पूरा शरीर मख्खन में लपटा है।
कहा त® यहां तक “ी जा रहा है कि जिस तरह पूर्व में क“ी कांग्रेस के चाणक्य माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अजुZन सिंह के पत्र ´लीक´ हुआ करत्® थ्®, उसी तरह आज सिवनी की फिजां में एक के बाद एक आने वाले आदेश अथवा परिपत्र कालांतर के बाद ही लीक ह®कर बाहर आ रहे हैं। इसके पीछे क्या षणयंत्र है, यह त® समय के साथ ही सामने आ सकेगा पर यह तय ही माना जा सकता है कि क®ई न क®ई षणयंत्रकारी दिमाग इसके पाÜर्व में है। जिस किसी “ी शख्स ने तत्कालीन जिलाधिकारी के उक्त आदेश की सर्टिफाईड कापी निकलवाई ह®गी वह “ी इसी षणयंत्र का एक हिस्सा माना जा सकता है, क्योंकि कापी मिलने की तारीख से मीटर डाउन ह® चुका है, और जब तक ल®गों क® इस आदेश क® खारिज कराने की सूझेगी तब तक यह आदेश का मामला “ी टाईमबार ह® चुकेगा।
सुधि पाठकगणों से हमारा पुन: आग्रह है कि इस मामले में सांप ही मारने का कृत्य किया जाए, सांप मारने के उपरांत लकीर पीटने से कुछ हासिल नहÈ ह®ने वाला है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि सर्वप्रथम तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि द्वारा 18 दिसंबर क® जारी उक्त आदेश क® निरस्त करवाएं फिर आगे की कार्यवाही क® अंजाम दें। अगर उक्त आदेश निरस्त ह® गया त® देश की इस महात्वाकांक्षी परिय®जना का कार्य स्वयंमेव ही आगे बढ़ने लगेगा, फिर “ले ही माननीय न्यायालय के आदेश के उपरांत इसे र®क दिया जाए। वर्तमान में न त® किसी ने माननीय सवोंच्च न्यायालय का स्थगन ही किसी क® दिखाया है, और न ही स्थगन संबंधी और क®ई तथ्य ही सामने आया है।

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

10 july 2009

अपराध प्रदेश बना हृदय प्रदेश!

(लिमटी खरे)

भारतवर्ष का हृदय प्रदेश कहा जाने वाला मध्य प्रदेश अब अपराधियों के लिए सुरक्षित आरामगाह और वारदातों को अंजाम देने के लिए मुफीद माहौल तैयार करता जा रहा है। पिछले एक साल के ही ग्राफ पर अगर नजर डाली जाए तो लोग दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाएंगे कि प्रदेश में इस तरह का माहौल बना हुआ है कि यहां रहने वालों के लिए अब यह सूबा सुरक्षित किसी भी दृष्टिकोण से नहीं कहा जा सकता है।
धार जिले के धरमपुरी के विधायक पांची लाल मेड़ा द्वारा मध्य प्रदेश विधानसभा में उठाए गए प्रश्न के जवाब में मध्य प्रदेश सरकार ने स्वयं ही स्वीकार किया है कि मध्य प्रदेश सूबे में हर 4 घंटों में एक हत्या ओर 3 घंटे में एक बलात्कार और बलवा, हर छ: घंटे में एक अपहरण का प्रकरण सामने आता है।
01 जुलाई 2008 से 15 जून 2009 तक की समयावधि में सूबे में 2194 हत्याएं, 2836 बलात्कार, 941 अपरहण, 2758 बलवा सहित एक लाख 97 हजार 867 संगीन अपराध घटित हुए हैं। मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी समझी जाने वाले इंदौर शहर में अपराधों की तादाद में विस्फोटक वृद्धि दर्ज की गई है। इंदौर में इस समयावधि में 130 हत्याएं, तो केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में 136 मामले बलात्कार के दर्ज किए गए।
मध्य प्रदेश को वैसे तो शांत प्रदेश के तौर पर जाना जाता रहा है। पिछले कुछ सालों से राजनैतिक दूरंदेशी और वोट के गणित ने इस प्रदेश के सारे समीकरण गड़बड़ा कर रख दिए हैं। सत्ता में चाहे भाजपा काबिज हो या कांग्रेस सभी ने प्रदेश की सुरक्षा और अमन चैन के साथ समझोता कर ही सरकार को चलाया है।
नक्सलवाद की समस्या इस सूबे के बालाघाट, मण्डला और डिंडोरी जिले के लिए सरदर्द बनी हुई है। वहीं संसाधनों के अभाव के चलते उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र आदि सूबे के अपराधिक चरित्र वाले लोगों के लिए यह प्रदेश सुरक्षित आशियाना बनकर रह गया है।
कितने आश्चर्य की बात है कि लगभग तीन साल पहले तक मध्य प्रदेश में बंग्लादेशी नागरिकों की संख्या महज 11 हुआ करती थी। वस्तुत: इनकी तादाद अगर कुल आबादी की 11 फीसदी कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगा। मध्य प्रदेश में सिमी के गुर्गे आतंक बरपाने से नहीं चूक रहे हैं।
पड़ोसी राज्यों की सीमा से सटे मध्य प्रदेश के अनेक जिलों में संदिग्ध चरित्र वाले लोगों की बेरोकटोक आवाजाही से प्रदेश का सोहाद्र बिगड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी भोपाल, उज्जैन, इंदौर, जबलुपर, सिवनी, छिंदवाड़ा खण्डवा, बुरहानपुर आदि जिले अतिसंवेदनशील की श्रेणी में आते हैं।
पिछले दिनों जब सिमी का नेटवर्क तेजी से फैला तब गुप्तचर एजेंसियों ने मध्य प्रदेश के पांच जिलों को संवेदनशील घोषित किया था। विडम्बना ही कही जाएगी कि शिवराज के नेतृत्व वाली सरकार ने इन जिलों की चौकसी के लिए एहतियातन कदम भी नहीं उठाए। आज अगर इन जिलों में दहशतगर्दों ने अपनी मजबूत जमीन तैयार कर ली हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि प्रदेश की सीमाओं पर बने जांच नाके (चाहे वे परिवहन विभाग के हों या पुलिस के अथवा किसी और विभाग के) महज चौथ वसूली का अड्डा बनकर रह गए हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र प्रदेश से लगे मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में बिहार की एक कुख्यात गेंग द्वारा मुंबई के एक टेक्सी चालक का गला घोंटकर उसे मौत के घाट उतार दिया था, बाद में उन्होंने ओने पोने दामों में किराए के वाहन को भी बेच दिया।
मध्य प्रदेश पुलिस का आलम समूचे प्रदेश में यह है कि हाईवे पेट्रोलिंग, गश्त आदि के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध कराए वाहनों में साहब बहादुरों के परिवारजन घूमते नजर आते हैं। पुलिस अधिकारियों की सेवा टहल में ही विभाग का एक बड़ा अमला काम करता नजर आता है, फिर इन परिस्थितियों में आम आदमी के जान माल की सुरक्षा की बात कैसे सोची जाए?
माना जाता है कि जब भी मुंबई पुलिस अंडरवल्र्ड पर शिकंजा कसती है, तब अपराधिक छवि वाले लोग इंदौर या भोपाल को अपनी शरण स्थली बना लेते हैं। यही कारण है कि मध्य प्रदेश में दाउद, अबू सलेम जैसे लोगों के रिश्ते गहरे रहे हैं। इतना ही नहीं इन दहशतगर्दों ने भोपाल में अपनी मिल्कियत भी बना ली है।
मध्य प्रदेश की सरकारी मशीनरी के हाल अबू सलेम और मोनिका बेदी का पासपोर्ट कहता है। अपने जमाने में चर्चित सिने अभिनेत्री रहीं मोनिका बेदी का पासपोर्ट बनाते वक्त जरूरी दस्तावेजों में मोनिका बेदी के फोटो को देखकर भी किसी को आश्चर्य नहीं हुआ, होता भी कैसे, जब सरकारी तंत्र को भ्रष्टाचार का घुन जो लगा हो।
मध्य प्रदेश में विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी अंर्तकलह से इस कदर जूझ रही है कि उसे भी आम जनता से जुड़े इस तरह के संवेदनशील मुद्दे दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। कांग्रेस की चुप्पी से जनता को लगने लगा है कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। जनता जान चुकी है कि राजनेतिक दलों के सामने प्रलाप करने से कोई हल निकलने वाला नहीं।
मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि अमन का टापू कहलाने वाला देश का हृदय प्रदेश जो कि अपराधियों के लिए चारागाह साबित हो रहा है, पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करवाकर उसे अमली जामा पहनाएं वरना कहीं देर न हो जाए और बिहार की श्रेणी में मध्य प्रदेश स्थान न पा ले।

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घर के लड़का गोही चूंसे, मामा खाएं अमावट
0 मध्य प्रदेश में अंधेरा कर रोशन हो रही है दिल्ली
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में भले ही ग्रामीण अंचलों में 18 घंटे बिजली की कटौती हो रही हो, पर मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली को निबाZध रूप से बिजली की आपूर्ति की जा रही है।
दिल्ली सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि कुशल प्रशासक और अपने दमखम पर तीसरी बार सत्तारूढ हुईं मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की फटकार और क्लोज मानिटरिंग का असर अब साफ तौर पर दिखाई पड़ने लगा है। बारिश के न होने से उपजी गर्मी की समस्या से दिल्लीवासियों को निजात दिलाने के लिए बिजली कंपनियां मंहगी दरों पर बिजली खरीदकर दिल्लीवासियों को प्रदाय कर रहीं हैं।
सूत्र बताते हैं कि बीते बुधवार और गुरूवार को दिल्ली में बिजली संकट से निजात दिलाने के लिए कंपनियों ने मध्य प्रदेश और राजस्थान से बिजली खरीदी वह भी मंहगी दरों पर। मानसून की बेरूखी के चलते दिल्ली सरकार बिजली संकट की जद में खड़ा हो गया है।
उधर मध्य प्रदेश में जहां जिला मुख्यालयों में पांच घंटे बिजली कटोती जारी है, द्वारा दिल्ली सरकार को बिजली बेचने का कारण समझ से परे है। बुंदेलखण्ड की मशहूर कहावत ``घर (मध्य प्रदेश) के लड़का गोंही (आम की गुठली) चूसें, मामा (दिल्ली वाले) खाएं अमावट (आम के गूदे से बनने वाला एक खाद्य पदार्थ) को मध्य प्रदेश की शिव सरकार चरितार्थ करने पर तुली हुई है।
उधर विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी भाजपा के इस कदम में मौन स्वीकृति प्रदान किए हुए है। लगता है कि अगले विधान सभा में अभी साढ़े चार साल बाकी हैं इसलिए कांग्रेस चुप्पी साधे बैठी है, किन्तु कांग्रेस यह भूल रही है कि स्थानीय निकाय, पंचायत चुनाव इसी साल के अंत और अगले साल होने हैं। कांग्रेस की यह चुप्पी कांग्रेस को भारी पड़ सकती है।

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

09 july 2009

उत्तर दक्षिण गलियारे में पर्यावरण का पेंच

(लिमटी खरे)

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार की महात्वाकांक्षी स्विर्णम चतुभुZज और उत्तर दक्षिण, पूर्व पश्चिम गलियारे में वर्तमान केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने फच्चर फंसा दिया है। रमेश के तेवर देखकर लगता है कि मध्य प्रदेश से नागपुर के बीच बनने वाले फोरलेन का काम बीच में ही रोकना पड़ेगा।पिछले दिनों एक साक्षात्कार में रमेश ने साफ किया है कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली परियोजनाओं की स्वीकृति उनका मंत्रालय कतई नहीं देगा। जयराम रमेश ने साफ तौर पर उत्तर दक्षिण गलियारे का उल्लेख कर कहा कि उत्तर दक्षिण गलियारा पेंच और कान्हा टाईगर रिजर्व से होकर गुजर रहा है, और वे इसे यहां से गुजरने नहीं देंगे।वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश ने बड़ी ही साफगोई से यह बात कह दी है कि अरूणाचल प्रदेश में प्रधानमंत्री से जिस परियोजना का उद्घाटन करवाया गया है, उसे वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी ही नहीं मिली है। मतलब साफ है कि देश के वजीरे आला को ही धोखे में रखकर सरकारी मशीनरी देश में पर्यावरण के खात्मे पर तुली हुई है।बहरहाल उत्तर दक्षिण गलियारे में मध्य प्रदेश की दक्षिणी सीमा में अवस्थित पेंच नेशनल पार्क का 12 किलोमीटर लंबा रास्ता आता है। पूर्व में यह देश का सबसे लंबा और व्यस्ततम राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात का हिस्सा हुआ करता था। मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के लखनादौन से उत्तरी पश्चिमी दिशा में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 26 (झांसी से लखनादौन) को उत्तर दक्षिण गलियारे में समाहित कर दिया गया है। इसके बाद रारा 7 के लखनादौन से नागपुर सीमा वाले हिस्से को भी इससे अलग कर इसे गलियारे में शामिल करवा दिया गया है।सवाल यह उठता है कि जब इस परियोजना को तैयार करवाया जा रहा था, तब इस तकनीकि बारीकी को तत्कालीन मंत्रियों के साथ ही साथ नौकरशाहों ने क्यों नजर अंदाज किया। पर्यावरण की दुहाई देकर सड़क या अन्य परियोजनाओं के काम रूकवाने की बात करने वाले जयराम रमेश के अंदर क्या इतना माद्दा है कि वे इसके विस्तृत प्रक्कलन (डीपीआर) को तैयार करवाने वाले से लेकर इसे अनुमति देने वाले तक सरकारी नुमाईंदे के खिलाफ ``जनता से बटोरे गए सरकारी धन के आपराधिक दुरूपयोग`` का मामला चला पाएंगे?कहने को तो जयराम रमेश ने कह दिया कि राजनैतिक दबाव से हटकर हमें पर्यावरण बचाने के लिए ना कहना सीखना होगा। ठीक है पर्यावरण को बचाना हमारी पहली प्राथमिकता है, किन्तु जनता के खून पसीने की कमाई जो करों के रूप में केंद्र और राज्य सरकारों के खजाने में जाती है, के अपव्यय को हम यूं ही देखते और सहते रहें!लगता है वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मातहतों ने उत्तर दक्षिण गलियारे की जमीनी हकीकत समझी ही नहीं है। इसका लगभग 12 किलोमीटर का हिस्सा पेंच टाईगर रिजर्व के बीच से होकर गुजरता है। इसके अलावा पेंच और कान्हा को जोड़ने वाले गलियारे का काम अभी आरंभ नहीं हुआ है। वास्तविकता यह है कि उत्तर दक्षिण गलियारे का एक इंच भी हिस्सा वर्तमान में कान्हा टाईगर रिजर्व की जद में नहीं है।इसके अलावा पेंच नेशनल पार्क के अस्तित्व में आने से दशकों पहले से यही 12 किलोमीटर का हिस्सा वह है, जिस पर से सालों से हल्के और भारी वाहन गुजर रहे हैं, क्योंकि कल तक यह राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात का हिस्सा था। क्या पर्यावारण की दुहाई देकर जयराम रमेश उत्तर दक्षिण को मिलाने वाली इस जीवनरेखा को बंद करवा देंगे? अगर एसा हुआ तो उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाली इस प्रमुख सड़क के बजाए वाहनों को घूमकर लंबी दूरी तय करना होगा।कुछ लोगों को अंदेशा है कि केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री इस गलियारे को अपने संसदीय क्षेत्र से ले जाना चाहते हैं, इसलिए इस तरह की कवायद की जा रही है। हमारी नजरों में यह सही नहीं है। िंछंदवाड़ा से सौंसर तक के सड़क मार्ग में भी खुटामा और बिछुआ के जंगलों के इर्दगिर्द पेंच का कुछ हिस्सा पड़ता है, जिस पर भी रमेंश का फच्चर फंस ही जाएगा।जयराम रमेश की हुंकार से अब लगता है कि छिंदवाड़ा से बरास्ता सिवनी, मण्डला फोर्ट जाने वाली नेरो गेज रेल लाईन के अमान परिवर्तन के मार्ग भी प्रशस्त नहीं हो सकेंंगे, क्योंकि इसका भी कुछ हिस्सा कान्हा टाईगर रिजर्व की जद में है। गौरतलब होगा कि हाल ही में रेल मंत्री ममता बनर्जी ने इस नेरो गेज के अमान परिवर्तन की घोषणा बजट में कर दी है।भले ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री पर्यावरण की दुहाई देकर उत्तर दक्षिण गलियारे में पेंच और कान्हा टाईगर रिजर्व की कील ठोंकना चाह रहे हों, किन्तु उनकी बातें व्यवहारिक कहीं से भी नहीं लगती हैं। जिस मार्ग से सालों से यातायात की आवाजाही हो रही हो, उसे भले ही चौड़ा न किया जाए किन्तु उसे बंद करना तो कहीं से भी तर्क संगत नहीं लगता है।अब जबकि पेंच टाईगर रिजर्व के लगभग 12 किलोमीटर को छोड़कर उत्तर की ओर का फोरलेन का काम लगभग पूरा हो गया हो तब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री का इस तरह को हम वक्तव्य गैरजिम्मेदाराना मानते हैं। बेहतर होगा जयराम रमेश एक बार इस परियोजना की वस्तुस्थिति का अध्ययन बारीकी से करें उसके बाद ही कोई वक्तव्य दें वरना क्षेत्र में उनके वक्तव्य से कोहराम ही मचा हुआ है।


राहुल के एजेंडे से मध्य प्रदेश बाहर

युवराज की प्राथमिकता यूपी, टीएन और गुजरात

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने अपनी प्राथमिकताएं बदलनी आरंभ कर दी हैं। कल तक मध्य प्रदेश उनकी प्राथमिकता में था, किन्तु अब लगता है उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू और गुजरात उनकी प्राथमिकता में आ गया है। इन सूबों में वे कांग्रेस को मजबूती देने की जुगत लगाने वाले हैं।संसद भवन में पत्रकारों से रूबरू राहुल गांधी ने कहा कि संगठनात्मक दृष्टि से उत्तर प्रदेश को पांच भागों में बांटा जाएगा, ताकि संगठन को बेहतर तरीके से संचालित किया जा सके। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में माया मेम साहिब और गुजरात में हिन्दुत्व के पुरोधा माने जाने वाले नरेंद्र मोदी की काट के लिए जल्उद ही राहुल गांधी अपनी टीम बनाने वाले हैं।बकौल कांग्रेस के अघोषित युवराज राहुल गांधी, `` पंजाब और पांडिचेरी में युवक कांग्रेस और राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के चुनाव सफलता पूर्वक कराने के बाद कांग्रेसियों में उत्साह है, और जल्द ही यूपी, टीएन और गुजरात में इस फामूZले को अपनाया जाएगा।राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का दावा है कि उत्तर प्रदेश में चूंकि राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र भी आता है, अत: प्राथमिकताओं की फेहरिस्त में यूपी को सबसे उपर स्थान मिला हुआ है। सूत्रों ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश में मायावती पर लगाम लगाने के लिए यहां के लाट साहेब (राज्यपाल) की तलाश जारी है। वर्तमान राज्यपाल टी.वी राजेश्वर का कार्यकाल मंगलवार को पूरा हो गया है।सूत्रों ने कहा कि राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू दििग्वजय सिंह ने उन्हें मशविरा दिया है कि यूपी के लाटसाहेब की कुर्सी पर एसी शिक्सयत को बिठाया जाए जो परोक्ष रूप से सूबे में कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने का काम कर सके। यूपी के लिए जो नाम सामने आ रहे हैं, उनमें शिवराज पाटिल, बलराम जाखड़, नारायण दत्त तिवारी, के अलावा अजुZन सिंह का नाम प्रमुख रूप से सामने आ रहा है।सूत्रों ने यह भी बताया कि कुंवर अजुZन सिंह के बाद कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले राजा दििग्वजय सिंह ने एक और पांसा फेंककर राहुल गांधी को यह समझा दिया है कि उत्तर प्रदेश में मायावती को टक्कर देने के लिए नारायण दत्त तिवारी या फिर अजुZन सिंह जैसे घाघ नेता ही चाहिए। वैसे भी उत्तर प्रदेश के कांग्रेसी अंतिम मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ही रहे हैं। राहुल गांधी भी दििग्वजय सिंह की इस बात से सैद्धांतिक तौर पर सहमत बताए जाते हैं।

बुधवार, 8 जुलाई 2009

राहुल के मार्ग प्रशस्त करता प्रणव दा का बजट

(लिमटी खरे)

राहुल के नाम के साथ गांधी शब्द जुड़ा हुआ है, यह गांधी शब्द उनकी सोच को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के और करीब ले जा रहा है। पहले लगता था, कि राहुल गांधी देश की नब्ज को समझ नहीं सके हैं, किन्तु अब लगने लगा है कि उनके अघोषित राजनैतिक गुरू दििग्वजय सिंह के राजनीति के ककहरे ने उन्हें सब सिखा दिया है।देखा जाए तो यूपीए सरकार का यह बजट सरकार के उदारवादी आर्थिक एजेंडे की नहीं वरन राहुल गांधी की सोच का परिचायक अधिक है। परोक्ष रूप से राहुल गांधी ने महात्मा गांधी की सोच को अंगीकार किया है। गांव में बसने वाले देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ को असल भारत मानते थे बापू, और उसकी सोच और उसके हितों को साधने की बात सदैव बापू किया करते थे।राहुल गांधी ने भी गांव गांव नापा है। विपक्ष ने इसे पालीटिकल ड्रामा करार दिया, किन्तु राहुल विचलित हुए बिना ध्येय की ओर बढ़ रहे हैं। हालिया बजट में राहुल की छाप साफ दिखाई पड़ती है कि सरकार को दलाल स्ट्रीट और शेयर बाजार से कहीं अधिक गांव के आम आदमी आम भारतीय की ज्यादा चिंता करनी चाहिए।वैसे भी पार्टी के अंदरखाने में चल रही चर्चाओं के अनुसार राहुल गांधी का मानना है कि भाजपा ने सदा ही शेयर बाजार की सबसे ज्यादा चिंता की है। इससे उलट राहुल गांधी ने आम हिन्दुस्तानी को सक्षम बनाने की ठानी है। यही कारण है कि भाजपा के शाईनिंग इंडिया के स्थान पर कांग्रेस ने बुंलंद भारत का खालिस हिन्दी नारा अपनाया है। कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के मुखिया भले ही नेहरू गांधी परिवार से इतर डॉ.एम.एम.सिंह हों पर कदमताल देखकर लगने लगा है कि आने वाले दो ढ़ाई सालों में ही कांग्रेस के युवराज राज्याभिषेक के लिए तैयार हो जाएंगे।प्रणव मुखर्जी ने अंतरिम बजट पेश किया है। कांग्रेस अपने ही हाथों अपनी पीठ थपथपा रही है, कांग्रेस भूल रही है कि गांव की ओर के नारे के साथ उसने गांव के आम आदमी को राहत देने की असफल कोशिश ही की है। आम आदमी की दाल रोटी आज भी उसकी पहुंच से कोसों दूर ही नजर आ रही है।वैसे गांवों और शहरों की आधारभूत संरचना के लिए इतना अधिक निवेश पहली बार किया गया है, यह सुखद बात कही जा सकती है। प्रणव मुखर्जी के साथ ही साथ पीएम और सोनिया एवं राहुल भी जानते हैं कि सरकारी अंटी (खजाने) से निकलने वाले धन का कितना और कहां कैसे उपयोग होता है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि सरकारी खजाने से निकलने वाले एक एक रूपए का सदुपयोग हो।आजादी के बाद यह पहला बजट होगा जबकि प्रस्तावित व्यय का आंकड़ा दस हजार करोड़ रूपए को पार कर गया है, आजाद भारत का पहला बजट मात्र 193 करोड़ रूपयों का पेश किया गया था। इसमें से सत्तर फीसदी से अधिक का हिस्सा गैर योजनागत मद में व्यय किया जाएगा, जो कि निश्चित तौर पर चिंताजनक पहलू ही कहा जाएगा। वैसे भी योजनागत मद के आवंटन का साठ से अस्सी फीसदी हिस्सा कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढ़ जाया करता है।घुसपैठ रोकने के लिए पहचान पत्र की अनिवार्यता प्रशंसनीय है किन्तु सरकार को चाहिए कि वह अपने गेंहूं चावल के वादे को अमली जामा पहनाने के लिए उचित प्रबंध सुनिश्चित करे। सरकार ने 3 रूपए की दर से 25 किलो गेंहूं या चावल देने का वादा किया था। घुन लगी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के चलते सरकार की मंशा पूरी हो इसमें संदेह ही लग रहा है।वहीं दूसरी ओर सरकार ने किसानों को छ: फीसदी की दर से कर्ज मुहैया कराने की मंशा व्यक्त की है। इसके पहले कर्जमाफी के हाल किसी से छिपे नहीं हैं। मध्य प्रदेश में ही कर्ज माफी में भारतीय जनता पार्टी के नुमाईंदों ने अपनी मोटर सायकल, जीप आदि के कर्ज माफ करवाकर लगभग सत्तर अस्सी करोड़ की चपत लगा दी है।संप्रग सहयोगी लालू प्रसाद यादव की चिंता बेमानी नहीं कही जा सकती है कि सरकार ने कोसी के कहर की बिल्कुल परवाह नहीं की है। हर साल आतंक बरपाने वाली कोसी नदी से प्रभावितों के लिए बजट मे किसी तरह का जिकर न किया जाना प्रणव दा की असंवेदनशीलता दर्शाता है।कुल मिलाकर कांग्रेस के मैनेजरों ने बंगाल के सुपरस्टार कहे जाने वाले प्रणव मुखर्जी (दादा) और सुश्री ममता बेनर्जी (दीदी) को साधकर कांग्रेस के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के 7 रेसकोर्स रोड़ (भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री के सरकारी आवास) पहुंचने के सारे मार्ग प्रशस्त करने आरंभ कर दिए हैं।


कमल नाथ ने दिखाए फिर तीखे तेवर

राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम में गति लाने को कहा

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ ने विभागीय अधिकारियों की मुश्कें कसना आरंभ कर दिया है। कमल नाथ के तीखे तेवरों को देखकर विभागीय अधिकारी सकते में हैं। पिछली बार टी.बालू के कार्यकाल में मदमस्त हाथी की चाल चलने वाले अधिकारी अब बगलें झांकते नजर आ रहे हैं।गौरतलब होगा कि कार्यभार संभालने के ठीक बाद कमल नाथ ने अधिकारियों को ताकीद कर दिया था कि उन्हें सड़कें कागज पर नहीं वरन् जमीन पर दिखनी चाहिए। उस समय अधिकारियों को लगा था, कि कमल नाथ द्वारा शुरूआत में इस तरह का रवैया अपनाया जा रहा है जो समय के साथ ही शिथिल पड़ जाएगा।वर्तमान में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के उसी तरह के कड़े रूख को देखते हुए अधिकारियों की बोलती बंद हो गई है। हाल ही में उन्होंने दिल्ली में द्वारका स्थित प्राधिकरण के मुख्यालय का दौरा किया और मुख्यालय पर कार्यरत अधिकारियों और परियोजना कार्यान्वयन इकाईयों के परियोजना निदेशकों को संबोधित किया।अपने संबोधन में श्री नाथ ने कहा कि सड़क भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास की इ±जन है। देश में अच्छे बंदरगाह और हवाई अड्डे हो सकते हैं लेकिन अच्छी सड़कों के बिना इनका पूरा उपयोग नहÈ हो सकता। केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री श्री कमलनाथ ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारियों से राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम में गति लाने के लिए कार्य संस्—ति में बदलाव लाने को कहा है।वैसे कभी वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे कमल नाथ के मार्ग की सबसे बाधा के रूप में वर्तमान वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश आ सकते हैं, क्योंकि एक साक्षात्कार में रमेश ने कहा था कि पर्यावरण को बचाने के लिए न कहना सीखना होगा एवं सड़क मार्ग के गलियारों के चक्कर में वनों का नुकसान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।कायस लगाया जा रहा है कि उत्तर दक्षिण गलियारे में कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के सीमावर्ती जिले सिवनी के पेंच रिजर्व फारेस्ट में से फोर लेन को ले जाने की अनुमति वन एवं पर्यावरण मंत्रालय शायद ही दे। माना जा रहा है कि रिजर्व फारेस्ट में आने वाले 12 किलोमीटर हिस्से को (जो वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात का हिस्सा है) जैसा है, वैसा ही रहने देकर शेष भाग को फोरलेन में तब्दील कर दिया जाएगा।

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

07 july 2009

अहमद, दििग्वजय के बीच घूमती कांग्रेसी सियासत की धुरी

(लिमटी खरे)

सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस 2004 के मुकाबले कुछ स्वस्थ्य दिख रही है। पिछली बार बूढ़ी और पथराई आंखों वाली कांग्रेस के चेहरे का नूर वापस आ गया है। उसकी आंखों में रोशनी और दिल जवां होने लगा है। कल तक गठबंधन की बैसाखियों पर चलने वाली कांग्रेस अब अपने पैरों पर चल निकली है।यह सब चमत्कार कैसे हुआ! इस सबके पीछे दो ही नाम सामने आ रहे हैं। पहला कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का और दूसरा नेहरू गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी राहुल गांधी का। मगर सवाल यह उठता है कि इनको राजनैतिक मशविरा कौन दे रहा है। पाश्र्व में (बिहाईंड द कर्टिंन) कौन है?सियासत समझने वाले हैरान हैं कि दस सालों तक का राजनैतिक सन्यास (किसी भी सरकारी पद का त्याग) लेने की घोषणा और उसे अमली जामा पहनाने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दििग्वजय सिंह केंद्रीय राजनीति में सबसे ताकतवर महासचिव कैसे बने हुए हैं?इसके अलावा कल तक विसेंट जार्ज के भरोसे चलने वाला 10 जनपथ अब किसके सहारे से चल रहा है? उत्तर है अहमद पटेल। कांग्रेस अध्यक्ष के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल कभी सामने आकर पब्लिसिटी पाने वालों में से नहीं हैं। कहा जाता है कि पटेल की फितरत में चमक दमक और मीडिया से दूर रहने के साथ ही साथ सारे सूत्र अपने हाथ में रखना है।कांग्रेस के सियासी आपरेशन के सेनापति माने जाने वाले अहमद पटेल की देखरेख में ही पिछला और यह चुनाव लड़ा गया है। टिकिट बंटवारे में उन्होंने अपने करीबियों को उपकृत किया तो अपने हेवीवेट विरोधियों को नापने के लिए उन्होंने मंत्रालय बंटवारे में कैंची चलवा दी।कोई अगर राहुल और सोनिया गांधी के सबसे करीबी दस लोगों की फेहरिस्त बनाना चाहे तो एक से दसवें नंबर पर दििग्वजय सिंह और अहमद पटेल का नाम ही आएगा। इसके बाद गिनती आगे आरंभ होगी, जिसमें नया नाम जुड़ने की गुंजाईश है।दििग्वजय सिंह ने उत्तर प्रदेश में अपने बूते अकेले चुनाव लड़ने की जिद की और 21 सीटें कांग्रेस की झोली में डाल दीं। यह अलहदा बात है कि यूपी में कांग्रेस की कुछ हद तक ही सही हुई पुर्नवापसी के लिए उन्होंने राहुल गांधी के सर पर ताज बंधवाकर एक परिपक्व और दूरदृष्टा राजनेता होने का परिचय दिया है।दििग्वजय सिंह जानते हैं कि आने वाला समय राहुल गांधी का ही है। अत: उन्हें राजा ने बखूबी साध रखा है। वैसे भी देश भर में यह प्रचारित है कि राजा दििग्वजय सिंह आदिकाल के गुरू द्रोणाचार्य की तरह अजुZन को धनुZविद्या सिखा रहे हैं। राजा दििग्वजय सिंह को राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू की तरह ही देखा जाता है।रही बात अहमद पटेल की तो वे सोनिया गांधी के राजनैतिक गुरू होने का सौभाग्य तो नहीं मिल सका है किन्तु अहमद पटेल की सियासत को समझना हर किसी के बस की बात नहीं। सरकार बनाने के पहले शरद पवार, ममता बनर्जी और द्रमुक को अगर किसी ने साधा था तो वह अहमद पटेल ही थे।इसके बाद सरकार के गठन के उपरांत बारी आई बजट के माध्यम से जनता को लुभाने की। सबसे पहले देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली पर काबिज कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार के लोक लुभावन बजट के माध्यम से देश भर में यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि अगर रियाया कांग्रेस का साथ देती है तो उस पर कोई कर नहीं लगाया जाएगा।इस पूरे खेल में अजुZन सिंह के उपरांत परिदृश्य में आए मध्य प्रदेश के चाणक्य राजनेता दििग्वजय सिंह ही पर्दे के पीछे से कठपुतलियां नचाते नजर आए। राजा दििग्वजय सिंह की ही सलाह पर राहुल गांधी ने शीला दीक्षित की मुश्कें कसीं और दिल्लीवासियों को कांग्रेस का साथ देने का तोहफा दिया।इसके बाद बारी आई केंदीय बजट की। सबसे पहले त्रणमूल कांग्रेस के कब्जे वाला रेल विभाग का बजट आया। इसमें दििग्वजय सिंह और अहमद पटेल के निर्देशन में कांग्रेस का आम आदमी पर ध्यान रखने का काम किया गया। ममता का रेल बजट काफी सराहा गया।फिर प्रणव मुखर्जी के आम बजट में भी राहुल गांधी की मंशानुसार ग्रामीणों को खास तवज्जो दी गई। यह भी दूरदृष्टा राजनेता दििग्वजय सिंह की ही सोच का परिणाम था। भले ही अहमद पटेल ने सक्रिय राजनीति में अपनी आमद दर्ज न कराई हो, किन्तु राजा दििग्वजय सिंह तो मध्य प्रदेश में दस साल तक लगातार राज करते रहे हैं, अत: उन्हें बजट की बारिकियां ज्यादा पता हैं।केंद्र सरकार में भले ही राजा दििग्वजय सिंह और अहमद पटेल का रोल सामने से किसी को नजर न आ रहा हो किन्तु पाश्र्व में रहकर दोनों ही कुशल राजनेता कठपुतलियां नचाने के काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। आने वाले समय में जब राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री की बागडोर संभालने के लिए तैयार हो जाएंगे तब अहमद पटेल के बजाए राजा दििग्वजय सिंह की तूती केंद्र में बोलती साफ नजर आ सकती है।



कब तक होते रहेंगे शिक्षा को लेकर एक्सपेरीमेंट!

(लिमटी खरे)

भारतवर्ष में आजादी के बाद से ही शिक्षा को लेकर तरह तरह के सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। देश का मानव संसाधन मंत्रालय हमेशा से ही विवादों का घर बना रहा है। पिछले दो दशकों से यह मंत्रालय इसके मंत्रियों के लिए परीक्षण का अड्डा बन गया है। पहले मुरली मनोहर जोशी पर हिन्दुत्व तो अजुZन सिंह पर सेक्यूलरिज्म को प्रश्रय देने के आरोप लगे।सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि देश की शिक्षा व्यवस्था आज भी वही है जो 1935 में लार्ड मेकाले द्वारा आरंभ की गई थी। कहा जाता है कि ``अंग्रेज चले गए, गुलामी छोड़ गए।`` आज हम आजादी के बासठ सालों में भी अपनी शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था को इजाद नहीं कर सके हैं, देश की सरकारों के लिए यह शर्म की बात है। आज भी हम लगभग दो सौ साल पुरानी अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली में ही उलझे हुए हैं।वर्तमान मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने सौ दिनी घोषणा कार्यक्रम में अनेक शिगूफे छोड़ दिए हैं। माना जा रहा है कि आने वाले पांच सालों तक यह मंत्रालय अगर कोई काम भी न करे तो इन शिगूफों के बल पर यह सदा ही चर्चा में बना रह सकता है। आश्चर्य है, पूर्व मानव संसाधन मंत्री डॉ. एम.एम.जोशी और अजुZन सिंह ने अब तक अपनी जुबान बंद रखी है। इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं दी है।वैसे सिब्बल का एक कदम सराहनीय कहा जाएगा जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार मानसून सत्र में ही एक महत्वपूर्ण विधेयक लाने जा रही है, जिसमें बच्चों को मुफ्त शिक्षा मुहैया करवाने की व्यवस्था होगी। सिब्बल के इस कदम से देश के नौनिहाल शालाओं की ओर आकषिZत हो सकते हैं।आज जरूरत इस बात की है कि शालाओं का माहौल इस तरह का बनाया जाए कि बच्चों में शाला जाने की ललक पैदा हो सके। फुटपाथों पर, चाय पान ठेलों यहां तक कि शराब ठेकों पर कल्लन, लल्लन, पप्पू, गुड्डू की आवाजें सुनाई देती हैं। इनके अभिभावक इन्हें पापी पेट की खातिर नौकरी करने पर मजबूर करते हैं। केंद्र की मध्यान भोजन योजना के बावजूद अगर जमीनी हकीकत यह है तो फिर कपिल सिब्बल के सारे प्रयासों पर पानी फिरते देर नहीं लगेगी।दूसरी महत्वपूर्ण बात दसवीं बोर्ड को समाप्त करने वाली है। हमारा मानना है कि बेहतर होता कि इस मामले में देशव्यापी बहस चलाई जाती फिर किसी नतीजे पर पहुंचा जाता। कम से कम राज्यों के शिक्षा मंत्रियों से तो मशविरा कर लिया होता। केंद्र में सिब्बल बैठे हैं अंतिम निर्णय आखिर में उन्हीं के हाथ होता, किन्तु इसके सुखद और दुखद दोनों ही परिणामों से कम से कम वे आवगत तो हो जाते।वैसे दसवीं की बोर्ड परीक्षा समाप्त किए जाने का असर दोनों दिशाओं में हो सकता है। जब दसवीं बोर्ड के आधार पर कोई नौकरी नहीं मिलती और न ही किसी कांपीटीटिव एक्जाम के लिए इसको योग्यता माना गया है तब इस तरह की बोर्ड का ओचित्य भला क्या है? वैसे भी पूर्व में जब पांचवी बोर्ड को समाप्त किया गया था तब कुछ राज्यों में हायतौबा हुई फिर यही स्थिति आठवीं बोर्ड के दौरान भी बनी। आज सभी ने उस व्यवस्था को अंगीकार कर लिया है।वैसे दसवीं बोर्ड समाप्त होने से इसमें असफल या कम नंबर आने पर आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम से बच्चे बच सकेंगे। आज जनवरी माह के आते है दसवीं के बच्चों के साथ ही साथ उनके अभिभावकों के सर पर तनाव हावी होने लगता है। मोटी मोटी कोर्स की किताबों के बीच दिन के 24 घंटे भी कम लगने लगते हैं।वहीं इसके नकारात्मक परिणामों पर भी गौर फरमाना जरूरी है। कुछ लोगों का मानना है कि बच्चा दसवीं बोर्ड में हल्का दबाव झेलकर बारहवीं बोर्ड के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो जाता है। आने वाले दिनों में एक ही झटके को संभालना उसके लिए संभव हो सकेगा? बारहवीं का दबाव उसकी हिम्मत तोड़ कर रख देगा।बेहतर होता कि सरकार पहली से नौंवी तक की पायदानों में शिक्षा व्यवस्था को इतना चुस्त दुरूस्त बना देती कि दसवीं बोर्ड समाप्त करने की जरूरत ही नहीं रह जाती। दसवीं बोर्ड समाप्त करना समस्या का हल नहीं है। असल समस्या पहली से नौंवी कक्षा तक की व्यवस्था दुरूस्त करने की है।प्रोफेसर यशपाल की सिफारिशें वास्तव में अद्भुत कही जा सकती हैं। उन्होंने कहा है कि देश भर में कुकरमुत्ते के मानिंद उगे निजी कालेज को मान्यता देने का सिलसिला समाप्त होना चाहिए। आज पहुंच संपन्न लोगों ने शिक्षा को पूरी तरह से व्यवसाय बना दिया है, जो निंदनीय है। जगह जगह कम योग्यता वाले गैर अनुभवी शिक्षक देश में नई पौध तैयार कर रहे हैं। जिन्हें विषय के ककहरे का ज्ञान नहीं वे उस विषय का फलसफा पढ़ा रहे हैं।यशपाल समिति ने सिफारिश दी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, भारतीय तकनीकि शिक्षा परिषद, मेडीकल कांउसिल ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं को भंग कर देना चाहिए। सच ही है इनके रहते अगर शिक्षा के क्षेत्र में इस कदर अराजकता फैलेगी तो इनके बनाए रखने का ओचित्य ही नहीं है।वैसे यह भी कहा जा रहा है कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश खोलने के मार्ग प्रशस्त कर रही है यूपीए सरकार। गौरतलब होगा कि पूर्व में सरकार ने चिकित्सा के क्षेत्र को निजी हाथों में देकर एक एक्सपेरीमेंट किया था, जिसका परिणाम महंगी चिकित्सा सुविधाओं के रूप में सामने आया था।



और पारदशीZ हुआ सूचना का अधिकार

(लिमटी खरे)

सूचना के अधिकार का कानून संयुक्त प्रगतिशील गठबंघन सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा। कल तक मनमानी करने वाले सरकारी मुलाजिमों में कम से कम कुछ तो खौफ जागा है इस कानून के आने से। हाल ही में इसी कड़ी में एक और अभिनव बात को शामिल किया गया है।सरकारी नस्तियों में इंद्राज की जाने वाली टिप्पणियों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे में मानने की केंद्र सरकार की घोषणा ने एक और क्रांति ला दी है। निश्चित तौर पर सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर पारदशीZ प्रशासन की दिशा में यह एक बड़ी जीत मानी जा सकती है।इस मामले को लेकर पिछले कई दिनों से सरकार और सूचना आयोग के बीच टकराव की स्थिति बन चुकी थी। दरअसल कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की वेवसाईट पर दर्शाया गया था कि किसी भी नस्ती पर की गई विभागीय टिप्पणियां सूचना के अधिकार का हिस्सा नहीं हैं, अत: इन्हें जाहिर नहीं किया जा सकता है।शिकायतों के उपरांत सूचना आयुक्त ने अनेक बार विभाग को इस दावे को विलोपित करने को कहा था। दरअसल यूपीए सरकार के द्वारा पारित इस अभिनव कानून की धारा आठ में साफ है कि सुरक्षा और गुप्तचर से जुड़े अठ्ठारह संगठनों को छोड़कर किसी भी सरकारी कार्यालय से फाईल या नोटशीट पर दर्ज टिप्पणियों को इस कानून में दर्शित आवेदन देकर प्राप्त किया जा सकता है।जब सारी हदें पार हो गईं तो सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह को कड़ा रूख अिख्तयार करते हुए कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को फटकार लगाते हुए चेतावनी दी कि आयोग का आदेश न मानने पर विभाग के दो अफसरान पर भारतीय दंड संहिता की धारा 166 के तहत मुकदमा चलाया जाएगा और जिसमें एक साल तक की सजा का प्रावधान भी है।वैसे यह अकाट्य सत्य ही है कि यूपीए का यह सूचना के अधिकार का कानून प्रशासन को असहज बनाने के लिए पर्याप्त ही कहा जा सकता है। अपनी गिल्तयां छिपाने की गरज से गोपनीयता का हवाला देकर ये सरकारी मुलाजिम इस कानून की धार को बोथरा करने के प्रयास जब तब करते आए हैं।इस कानून की जद से अनेक चीजों को बाहर रखने के असफल प्रयास अनेक मर्तबा हुए हैं। केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने भी इस बारे में कोशिशें की पर सफलता हाथ नहीं लगी। यहां तक कि उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती ने भी अपने सूबे में अनेक विभागों को इसके दायरे से बाहर रखने के प्रयास किए हैं।हमारे मतानुसार इस अभिनव सूचना के अधिकार कानून ने एक ओर आम और निरीह जनता के पैरों के नीचे की जमीन मजबूत की है तो ईमानदार अफसरान के हौसले भी बुलंद किए हैं। अमूमन मलाईदार पदों पर चिपके रहने की गरज से सरकारी कर्मचारियों द्वारा राजनैतिक दबाव और प्रशासनिक आदर के चलते फाईलों पर नियम विरूद्ध इबारतें लिख दी जातीं हैं। ईमानदार कर्मचारी अब सूचना के अधिकार की दुहाई देकर इससे बचने में कामयाब हो जाएंगे।कई स्थानों पर तो नस्तियां तक गायब होने की खबरें भी हैं। पहले विभागीय जांच के दौरान रिकार्ड रूम में आग लगना, नस्तियां चोरी हो जाना आम बात हुआ करतीं थीं। कुछ साल पहले मध्य प्रदेश में शिष्टाचार विभाग में भी करोड़ों के घपलों की नस्तियां गायब कर दी गईं थीं।वर्तमान में ही सूचना का अधिकार इतना प्रभावी है कि आम जनता द्वारा इसका प्रयोग तहेदिल से किया जा रहा है। सरकार भी इस मामले में पूरी तरह संजीदा दिख रही है। देश की पहली महिला महामहिम राष्ट्रपति ने भी हाल ही में अपने अभिभाषण में कहा है कि सूचना के अधिकार को और अधिक प्रभावी बनाया जाएगा।देश के अनेक हिस्सों से सूचना के अधिकार के बेजा इस्तेमाल की खबरें भी आने लगी हैं। सूचना के अधिकार में जानकारी मांगना फिर ``सेटिंग`` कर अपने आवेदन को आगे न बढ़ाने के भी अनेक प्रकरण सामने आए हैं। सरकार को चाहिए कि इस पक्ष को भी ध्यान में रखते हुए सूचना के अधिकार कानून में तब्दीली करे, ताकि आम जनता के हाथ में आया यह अभिनव अस्त्र कहीं दलालों के लिए तलवार न साबित हो जाए।



नज़ीर बन गया है नरसिंहपुर का बघुवार

(लिमटी खरे)

भारत गांव में बसता है, यह बात आईने की तरह साफ है। महानगरों की चका चौंध के बावजूद भी आज महानगरीय संस्कृति के लोग अमन चैन के लिए गांव की ओर रूख कर रहे हैं। आजादी के छ: दशकों के बाद भी देश के गांव अपने अस्तित्व को तलाश रहे है, इसी बीच मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले का बघुवार गांव आर्दश गांव की श्रेणी में नजीर बनकर उभरा है।2007 में निर्मल गांव का दर्जा प्राप्त बघुवार वैसे तो नरसिंहपुर विधानसभा और जनपद पंचायत करेली का हिस्सा है, किन्तु राजनैतिक दांवपेंचों से दूर इस गांव के लोगों ने मन में विकास की भावना को कोई भी बाधा रोक नहीं सकी है। यही कारण है कि इस गांव ने प्रगति के अनेक सौपान तय किए हैं।बकौल जनसंपर्क अधिकारी रिश्म देशमुख आजादी से अब तक इस गांव में कभी भी पंचायत चुनाव नहीं करवाए गए हैं। यहां हमेशासे ही आपसी सहमति से निर्विरोध ही पंचायत चुनाव संपन्न हो गए हैं। गांव के लगभग सभी लोग शिक्षित हैं, जो अपने आप में एक मिसाल से कम नहीं है।आपराधिक मामलों में भी इस गांव ने सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए हैं। बताते हैं कि इस गांव का एक भी मामला थाने या अदालत में पंजीबद्ध नहीं है। यहां के सारे विवाद आपसी सहमति से ही सुलझा लिए जाते हैं, थाने, कोर्ट कचहरी की अगर नौबत भी आ जाती है तो आपसी राजीनामे के अस्त्र से उसे निपटा दिया जाता है।प्रगति और विकास के प्रति यह गांव कितना जागरूक है, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि शासन द्वारा किसी भी मद में मंजूर अनुदान से ज्यादा राशि इस गांव के लोग जन भागीदारी से जुटा लेते हैं, यही कारण है कि इस गांव में कभी विकास के पहिए थमे नहीं है।केंद्र सरकार के समग्र स्वच्छता अभियान की शत प्रतिशत सफलता देखना हो तो कोई नरसिंहपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव का भ्रमण करे। इस गांव में हर घर में पक्का शौचालय होना ही इस अभियान की पूर्णता को दर्शान के लिए काफी कहा जा सकता है।इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह क्षेत्र पूरी तरह से नशामुक्त क्षेत्र है। वर्तमान में सरकारें आबकारी की आय बढ़ाने के लिए तरह तरह की जुगत लगा रही है, किन्तु सरकार की इन कोशिशों का असर इस गांव पर होता नहीं दिखता। अगर कोई नशा करता पाया भी जाता है तो गांव वाले एक राय होकर उसे गांव से बाहर का रास्ता दिखाने से नहीं चूकते।इस गांव की लोकप्रियता सुनकर पिछले दिनों मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने भी यहां जाकर असलियत जानी, और वास्तविकता से रूबरू होकर उन्होंने तो घोषणा ही कर डाली कि अगर कोई गांव निर्विरोध ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों का चुनाव करेगा तो उसे पांच लाख रूपए की राशि बतौर समरस पुरूस्कार दी जाएगी।सच ही है राजनीति में ``साम दाम दण्ड और भेद`` सब कुछ जायज है, किन्तु अगर किसी गांव में चुनाव के बजाए आपसी सहमति से ही काम चलाया जा सके तो आपसी सोहाद्र बनने में समय नहीं लगेगा। वहीं दूसरी ओर नशा नाश की जड़ पर भी अगर काबू पाया जा सके तो देश में सुराज आने में समय नहीं लगेगा।आर्थिक संकट का रोना रोने वाली प्रदेश और केंद्र सरकारों के लिए भी एक अच्छा उदहरण पेश किया है बघुवारा ने। इस गांव के लोग अपने खुद के गांव के लिए अपनी जेब ढीली कर साबित कर रहे हैं कि वे खुदगर्ज न होकर गांव के लिए जीना जानते हैं, वरना आज के इस युग में हर कोई खुद के लिए ही जाने पर विश्वास करने लगा है।मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस गांव के लोगों की सभी मांगों को मानकर उनका हौसला बढ़ाया है, इसके लिए शिवराज सिंह चौहान साधुवाद के पात्र हैं। साथ ही शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि उनके सूबे में इस तरह के गांवों की संख्या एक से बढ़कर दशक फिर सैकड़ा पार करे इस तरह का उपजाउ माहौल तैयार करें। वैसे भी जनहित एवं कल्याणकारी योजनाओं के लिए शिवराज का नाम जाना जाता है।वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश सूबे में ही अशिक्षा और अज्ञान के चलते रतलाम जिले में ढाई साल का एक बच्चा नशे में दिन रात टुन्न रहता है, और किसी को पता तक नहीं! कितने आश्चर्य की बात है कि अत्याधुनिक संचार साधनों के होते हुए यह बात आज तक प्रकाश में नहीं आ सकी है। निश्चित तौर पर यह रतलाम जिला प्रशासन, वहां के जनप्रतिनिधियों और शिवराज सरकार विशेषकर केद्रीय आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया के लिए शर्म की बात है, जिनका कि यह संसदीय क्षेत्र है।केंद्र और राज्य सरकार को चाहिए कि इस गांव को प्रदेश और राष्ट्रीय क्षितिज पर चमकाए ताकि देश के अन्य ग्रामों के लिए नज़ीर बन चुके बघुवारा से लोग प्रेरणा लेकर आपसी भाईचारे और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन और अनुपालन को पूरी तरह सुनिश्चित कर सकें।