शनिवार, 31 अक्टूबर 2009


बाबा रामदेव का राष्ट्रधर्म


(लिमटी खरे)

जब भी किसी के पास अकूत दौलत और शोहरत आती है तो उसका रूझान राजनीति की ओर होना स्वाभाविक ही है। बीसवीं सदी के रूपहले पर्दे के महानायक रहे अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, राज बब्बर, गोविंदा से लेकर लिकर किंग विजय माल्या तक इससे अछूते नहीं हैं। अब इसी कड़ी में बाबा रामदेव का पदापर्ण होने वाला है।


बाबा रामदेव मीडिया की सुर्खियों में बने रहना खूब जानते हैं। स्वयंभू योग गुरू बनकर भारत के आध्याित्मक क्षितिज पर स्थान बनाने वाले बाबा रामदेव ने कम समय में योग के माध्यम से अकूत दौलत एकत्र की इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।


राजीव गाधी का सपना था कि इक्कीसवीं सदी का भारत आत्मनिर्भर और सूचना और प्रोद्योगिकी के मामले में आत्मनिर्भर हो। कांग्रेस राजीव गाधी का यह सपना साकार तो नहीं कर सकी किन्तु बाबा रामदेव ने इक्कीसवीं सदी में भारत के लोगों को योग का दीवाना बना दिया है। यह सच है कि बाबा ने योग को नए क्लेवर में प्रस्तुत किया है।


एक सधे हुए व्यापारी की तरह बाबा रामदेव ने पहले अपनी योग की ``दुकान`` को फैलाना आरंभ किया। फिर घर घर में खासी दखल बना चुके न्यूज चेनल्स के माध्यम से अपने आप को जनता के बीच परोसा। बाबा खुद की पीठ थपथपाना भी खूब जानते हैं। किसी मदारी के तमाशे की तरह उनके योग शिवरों में मरीज अपने अपने को निरोगी होने के दावों को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करते और बाबा वाहवाही बटोरते।


बाबा रामदेव के लिए राष्ट्रधर्म कितना महात्वपूर्ण है, इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बाबा ने कौल लिया था कि जब तक वे संपूर्ण भारत को निरोगी नहीं बना देंगे तब तक वे देश की धरती के बाहर पांव नहीं रखेंगे। विदेश की वादियों का लोभ बाबा छोड नहीं सके और चल पडे विदेश।


देश में बाबा की ``कंपनी`` के बने उत्पाद मंहगे दामों पर धडल्ले से बिक रहे हैं। कोई कहता है बाबा इन उत्पादों के बदले मलाई काट रहे हैं। यह है बाबा का राष्ट्रधर्म। गरीब गुरबों को जहां खाने को एक निवाला तक नहीं है, क्या वह गरीब बाबा के बेशकीमति उत्पादों का लाभ उठा पाएगा।


रही बात बाबा के शिविरों की तो यह भी अमीरों के लिए ही होते हैं। बाबा के शिविर निशुल्क नहीं होते हैं। इसमें प्रवेश के लिए तगडी फीस देना होता है। बाबा के हरिद्वारा वाले आश्रम में लगने वाले विशेष शिविरों के लिए भी बाकायदाा `पेकेज` लिया जाता है, जिसमें कितने दिन और रात का रूकना खाना पीना है यह सब शामिल होता है।


भारत जैसे गरीब देश में बाबा के उत्पाद बिक रहे हैं, फिर बाबा ने पश्चिम की ओर रूख किया है। देश को गुलामी की जंजीरों में बांधने वाले ब्रितानी अब बाबा रामदेव के उत्पादों से स्वास्थ्य लाभ कर सकेंगे। लंदन में बाबा ने बेलग्रेव रोड पर नेचुरल हेल्थ शाप का उद्घाटन किया है। कल तक देश को निरोगी बनाने का दावा करने वाले रामदेव बाबा अब पश्चिमी देशों की ओर कूच कर रहे हैं, यही है बाबा रामदेव का राष्ट्रधर्म।


इसके पूर्व बाबा ने स्काटलेंड में 20 लाख पाउंड में जमीन खरीदकर वहां आश्रम की स्थापना के लिए भूमिपूजन कर चुके हैं। यह भूखण्ड सवा वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। वैश्विक मंदी के चलते इसके स्वामी ने इसे बेच दिया और मंदी के इस दौर में बाबा रामदेव जैसी शिख्सयत ने इसे खरीदा है तो बाबा की अंटी (जेब के माल) का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।


बाबा रामेदव के हरिद्वार स्थित पतांजली योग संस्थान मेें जाना आम आदमी के लिए आसान नहीं है। कहा जाता है कि अगर कोई बाबा की दवाओं की एजेंसी (जिला स्तर पर) लेना चाहे तो उसे एक मुश्त आठ लाख रूपए की दवाएं खरीदनी होती हैं। इतने मंहगे तरीके से अगर बाबा देश के गरीब गुरबों का इलाज करना चाह रहे हैं तो इससे बेहतर तो नीम हकीम ही हैं, जो कम से कम गरीबों की जेब देखकर ही अपनी फीस और दवाअों की कीमत निर्धारित करते हैं।


प्रसिद्धि और आकूत दौलत के बाद बाबा के मन में राजनैतिक महात्वाकांक्षाएं हिलोरे मारना स्वाभाविक ही है। लोकसभा चुनावों के पूर्व बाबा रामदेव ने भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए कहा था कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाने वे सडकों पर उतरेंगे।


चुनाव हुए महीनों बीत गए पर बाबा सडकों पर नहीं उतरे। हां बाबा रामदेव हवा में उडकर विदेशों की खाक अवश्य छान रहे हैं। बाबा रामदेव ने देश में हर क्षेत्र में छाई बदहाली की नस दबाकर राजनेताओं के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। बाबा ने लोकसभा में अपने अनुयायी को भेजने की बात फिजां में उछालकर जनमानस टटोलने का प्रयास किया है।


5 जनवरी को पतांजली योगपीठ में ढाई करोड अनुयाईयों को इकट्ठा करने की बाबा की हुंकार से राजनेताओं की नींद में खलल पडना स्वाभाविक ही है। आने वाले समय में राजनेताओं द्वारा बाबा रामदेव के खिलाफ मुहिम आरंभ कर दी जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।


वैसे बाबा के राष्ट्रधर्म पर हर राष्ट्र वासी को संशय होना स्वाभाविक ही है। जब बाबा रामदेव अपने पुराने कौल पर कायम नहीं रह पाए तो आने वाले समय में अगर वे या उनके अनुयायी देश की कमान संभाल लेंगे तब देश का क्या होगा इस बात का अंदाजा लगाना सहज नहीं होगा।

रविवार, 25 अक्टूबर 2009

नकली नोट के बदले असली वोट

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)


नकली नोट के बदले असली वोट

केंद्र सरकार इस बात से हैरान परेशान है कि विदेशों से आने वाले नकली नोटों का चलन देश में तेजी से बढ़ने लगा है। हाल ही में महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में नकली नोटों के बदले असली वोट की कारस्तानी से आदिवासी समुदाय में रोष और असंतोष की स्थिति निर्मित हो गई है। महाराष्ट्र के ग्रामीण अंचलों में नेताओं द्वारा कथित तौर पर वोट लेने के लिए प्रलोभन के तौर पर पांच सौ और हजार के नोटों की बरसात कर दी थी। दीपावली पर जब आदिवासी समुदाय इन नोटों को लेकर खरीददारी को निकला तो वह भोंचक्क रह गया, क्योंकि ये नोट नकली थे। भारतीय बेंकिग फोरम और समाजवादी पार्टी ने इस मामले की बाकायदा एफआईआर भी दर्ज करवाई हैै। राज्य में पुलिस ने बड़ी तादाद में नकली नोटों की बरामदगी भी की है। वोटर आश्चर्य चकित थे कि इस बार नेताओं द्वारा नोटों की अचानक बारिश कैसे की जा रही है। अब देखना यह है कि नकली नोटों से असली वोट खरीदने वाले नेताओं पर क्या कार्यवाही हो पाती है।


महिला आरक्षण को ही सेंध लगाती कांग्रेस
महाराष्ट्र में भले ही कांग्रेस और राकांपा ने बहुमत हासिल कर तीसरी मर्तबा सरकार बनाने के मार्ग प्रशस्त कर लिए हों किन्तु महिलाओं के नाम पर इन दोनों ही सियासी दलों के साथ ही साथ भाजपा और शिवसेना ने भी बेरूखी दिखाई है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में कांग्रेस, भाजपा, राकांपा और शिवसेना ने 12 सीटों से ज्यादा पर उम्मीदवार खड़े नहीं किए हैं। सूबे मेें कांग्रेस ने 12 तो राकांपा ने छ:, शिवसेना और भाजपा ने महज आठ आठ महिलाओं पर दांव लगाया था। केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार द्वारा वैसे तो महिला आरक्षण को पहली प्राथमिकता बनाया गया है, किन्तु जब भी टिकिट देने की बात आती है, कांग्रेस द्वारा ही अपनी कथनी पर अमल नहीं किया जाता है। भले ही महिला आरक्षण विधेयक परवान न चढ सका हो किन्तु पार्टी चाहे तो चुनावों में तो कम से कम फीसदी महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित कर सकती है, इसके लिए उसे सरकार से अनुमति की दरकार कम से कम नहीं ही होगी, वस्तुत: एसा होता नहीं है। यही कारण है कि सत्ता या विपक्ष दोनों ही के द्वारा महिलाओं को खुश करने की गरज से तो मीठी मीठी बातें कर दी जाती हैं, किन्तु जब उनके चरितार्थ करने का समय आता है तो सियासी पार्टियां चुप्पी साध लेती हैं।


चुभने लगा है सादगी अभियान
आसमान छूती मंहगाई और मंदी के इस दौर में केंद्र सरकार द्वारा आरंभ किया गया मितव्ययता अभियान अब नेताओं और अधिकारियों को चुभने लगा है। कुछ मंत्री तो इसकी परवाह भी नहीं कर रहे हैं। एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी इकानामी क्लास में यात्रा कर रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर हाल ही में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा गए तो बाकायदा विशेष विमान की सेवाएं लीं। विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर की तरह हो सकता है कि इस विमान का किराया उन्हीं ने अपनी जेब से ही दिया हो, किन्तु विलासिता तो विलासित ही मानी जाएगी। उधर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के करीबी सूत्रों की मानें तो यह सादगी अभियान की नौटंकी सितम्बर 2010 तक जारी रहने की उम्मीद है। सादगी और मितव्ययता के इस प्रहसन के चलते मंत्री, विधायक, सांसद और व्ही.व्ही.आई.पीज को अब घुटन महसूस होने लगी है, किन्तु कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के कोड़े के डर से सभी ने अपनी जुबान बंद कर रखी है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों की माने तो वित्त मंत्री द्वारा एक साल में सभी मंत्रालयों को 30 हजार करोड़ रूपयों की बचत का लक्ष्य दे दिया है।


वालीवुड बाला अब राजनीति की ओर
वालीवुड की मशहूर अभिनेत्री मनीषा कोईराला आने वाले दिनों मेें नेपाल की राजनीति में दो दो हाथ करने की तैयारी में दिख रहीं हैं। हाल ही में मनीषा अपने दादा और नेपाल के पहले प्रधानमंत्री बी.पी.कोईराला के स्मारक पर अपने पिता प्रकाश और माता सुषमा के साथ गईं थीं। वे केवल वहां गईं ही नहीं वरन उन्होंने वहां दो घंटे भी बिताए। बिग बी यानी अमिताभ बच्चन, चीची यानी गोविंदा आदि का उदहारण देते हुए उन्होंने कहा कि अब उन्हें भी राजनीति का गलियारा भाने लगा है। वे भी आज के युग के ``जनसेवक`` बनकर नेपाल की रियाया की सेवा करना चाहतीं हैं। राजनैतिक बियावान में अब यह बात जोर पकड़ने लगी है कि मनीषा को आखिर आज के युग के ``जनसेवकों`` की कौन सी बात पसंद आई जो वे इस कीचड़ में खुद ही उतरने की तैयारी कर रहीं हैं, क्योंकि रूपया पैसा और शोहरत तो उनके पास पहले से ही है।


राजकुमारी ने की सफाई
बा अदब बा मुलाहजा, होशियार, राजकुमारी पधार रहीं हैं, ये गुजरे जमाने की बात हो गई है। वर्तमान में एक राजकुमारी सड़कों पर है, लोगों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनउ में एक राजकुमारी ने बाकायदा जमीन पर उतरकर झोपड़ पटि्टयों की सफाई आरंभ कर दी है। फ्रांस में जन्मी भारतीय राजकुमारी प्रिंसेस फे एरे उर्फ जहां आरा ने भारत को अब अपना घर बना लिया है। राजकुमारी लखनउ के मशहूर नवाब वाजिद अली शाह के पडपोतों में से एक से शादी की है। देश की एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) रेश फाउंडेशसन से अब जुड गई हैं जहाआरा। यह एनजीओ देश में झोपड पटि्टयों की साफ सफाई का काम बडी ही संजीदगी से किया करती है। जहांआरा इस पावन काम के लिए लखनउ के अलावा मुंबई और कोलकता भी जाएंगी।


अगली लोकसभा में बुजुर्गों की संख्या होगी कम
2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों में देश में अनेक वरिष्ठ नेताओं के चेहरे शायद ही देखने को मिलें। राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी, राकांपा सुप्रीमो शरद पंवार, केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार शिंदे तो बाकयदा सक्रिय राजनीति को बाय बाय करने की मंशा जता चुके हैं। पीएम डॉ.एम.एम.सिंह भी 77 साल के हो चुके हैं, कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी दिसंबर में 66 की हो जाएंगी। प्रणव दा 74, आड़वाणी 82, सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह 77 तो जार्ज फर्नाडिस 89 के हो चुके हैं। देखा जाए तो 2014 में सुषमा स्वराज, अरूण जेतली, गुलाम नवी आजाद, कमल नाथ, दिग्विजय सिंह, जनार्दन द्विवेदी, लालू प्रसाद यादव जैसे दिग्गज राजनैतिक तौर पर अपनी अंतिम पारी ही खेल सकते हैं।


भाजपा के गांधी की फिर हुई उपेक्षा
भारतीय जनता पार्टी द्वारा लगातार अपने गांधी की उपेक्षा ही की जा रही है। नेहरू गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी के रूप में भाजपा में मेनका तो पांचवीं पीढ़ी के तौर पर वरूण गांधी विराजमान हैं। जब भी इन दोनों के महिमा मण्डन की बात आती है, भाजपा द्वारा हाथ खींच लिए जाते हैं। हाल ही में महाराष्ट्र, हरियाणा और अरूणाचल के विधानसभा चुनावों में वरूण गांधी को पूरी तरह से उपेक्षित रखा गया है। स्टार प्रचारकों में भी वरूण का नाम नहीं था, उधर कांग्रेस में राहुल को हाथों हाथ लिया गया। इस सबसे खफा होकर सोनिया गांधी की देवरानी मेनका ने एक निजी सर्वेक्षण कंपनी से राहुल और वरूण की लोकप्रियता का सर्वे करवाया। सर्वे में पाया गया कि राहुल से ज्यादा लोकप्रिय वरूण हैं। सर्वे मेनेज्ड था या नहीं कहा नहीं जा सकता है। इस सर्वे को लेकर मेनका ने भाजपा सुप्रीमो राजनाथ के द्वार खटखटाए। राजनाथ ने साफ तौर पर कह दिया कि वरूण प्रचार के लिए स्वतंत्र हैं, किन्तु उन्हें स्टार प्रचारकों में शामिल नहीं किया जा सकता, फिर क्या था मेनका अपना सा मुंंह लेकर वापस लौट गईं।


सोनिया के प्रिय केंद्रीय मंत्री जैन की उपेक्षा
केंद्रीय मंत्रियों की आपस में किस कदर गलाकाट लड़ाई मची हुई है इसका साक्षात उदहारण झांसी के युवा केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन की उपेक्षा से साफ जाहिर हो जाता है। वाक्या झांसी से छिंदवाड़ा नई रेलगाडी को हरी झंडी दिखाने का था। केंद्रीय सडक एवं परिवहन मंत्री कमल नाथ ने अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा में शहरी विकास राज्य मंत्री सौगात राय के साथ इस रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर रवाना कर दिया। इसके दूसरे सिरे झांसी में इसका कोई नामलेवा ही नहीं था। चर्चा है कि प्रदीप जैन को उनकी औकात समझाने की गरज से इस पूरे कार्यक्रम से उन्हें दूर रखा गया है। वहीं सियासी गलियारों में यह बात भी जोर पकड़ रही हैं कि सोनिया गांधी के प्रिय पात्रों में शुमार रहने वाले प्रदीप जैन को इससे उपेक्षित रखना कहीं कमल नाथ को भारी न पड जाए। वे चाहते तो सौगात राय के बजाए प्रदीप जैन को भी साथ ले सकते थे। पर एसा हुआ नहीं, हो सकता है कमल नाथ को भय हो कि कहीं इस रेलगाडी के शुभारंभ का श्रेय प्रदीप जैन न ले जाएं।


विन्धय की रेली से कुछ हासिल होगा
मध्य प्रदेश में विन्धय क्षेत्र एक समय काफी ताकतवर माना जाता रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह और सफेद शेर के नाम से मशहूर पूर्व विधानसभाध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के नाम का डंका बजा करता था, समूचे प्रदेश में। अब दोनों ही के किस्से गुजरे जमाने की बात हो गई है। अर्जुन सिंह को मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाने के उपरांत उनकी पुत्री को कांग्रेस ने टिकिट न देकर दर्शा दिया था कि साल दर साल कांग्रेस की सेवा के पारितोषक के तौर पर उन्हें क्या दिया जा रहा है। सुरेश पचौरी के साथ पंगा लेकर पहले ही उनके पुत्र अजय सिंह राहुल ने अपना काफी नुकसान करवा लिया था। विन्धय में श्रीनिवास तिवारी को साधकर सुरेश पचौरी ने ठाकुर लाबी को कमजोर करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी। अब अजय सिंह हैं दिग्विजय सिंह की शरण में। राजा दिग्विजय सिंह के पढाए पाठ के चलते विन्धय में राहुल सिंह शक्ति प्रदर्शन के लिए रेली करने वाले हैं। प्रदेश में मरणासन्न पड़ी कांग्रेस को विन्धय की इस रेली से कुछ हासिल हो एसा लगता तो नहीं है, पर अगर तीर राजा दिग्विजय सिंह के तरकश से निकला है तो फिर कुछ भी कहना मुश्किल ही है।


अंधेरे में वजीरे आला
प्रधानमंत्री के एक कार्यक्रम के दौरान बिजली गोल होने से अधिकारियों में दहशत बनी हुई है। यद्यपि बिजली गोल होने की घटना की जांच का प्रतिवेदन प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंच चुका है, पर उसमें पीएमओ की टीका टिप्पणी न होने से अभी भी टपके का डर बाकायदा बना हुआ है। दरअसल राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रधानमत्रंी के कार्यक्रम के दौरान बिजली गोल हो गई थी, जिससे प्रधानमंत्री की भवें तन गईं। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्लूडी) और नई दिल्ली मुनििस्पल कार्पोरेशन (एनडीएमसी) इस मामले में खाल बचाने की जुगत में लगी हुईं है। एनडीएमसी का कहना है कि सीपीडब्लूडी ने आटोमेटिक स्विच नहीं लगाया जिससे लाई ट चली गई। वहीं दूसरी ओर सीपीडब्लूडी का कहना है कि विज्ञान भवन में पीए का प्रोग्राम हाल नंबर 5 में आयोजित किया गया था, जो व्हीआईपी हाल नहीं है। वैसे भी लाईट जाने पर चालीस सेकंड में लाईट ठीक करने का मानक है, और विभाग ने तो बीस सेकंड में ही यह काम कर दिया था। अब देखना यह है कि इस मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय क्या रूख अपनाता है।


मीडिया से पंगा
दिल्ली के नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार मल्होत्रा अब मीडिया से पंगा लेने के मूड में दिख रहे हैं। हाल ही में उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को नसीहत देते हुए कहा है कि अगर वाकई शीला सरकार खर्च में कटोती करना चाह रहीं हैं, तो उन्हें अपने विज्ञापनों में कमी करनी होगी। बकौल मल्होत्रा कांग्रेस का मितव्ययता अभियान महज दिखावा ही है। कांग्रेस के मंत्रियों के फोटो रोजाना ही अखबारों में छप रहे हैं, और करोड़ों रूपयों को फिजूल में ही बहाया जा रहा है। मल्होत्रा जी शायद यह बात बखूबी जानते होंगे कि मीडिया का प्रत्यक्ष राजस्व विज्ञापनों से ही आता है। फिर वर्तमान के मीडिया के स्वरूप में विज्ञापनों के सहारे ही मीडिया मुगल अपनी अपनी ``पलिसी`` तय करने लगे हैं। विशेषकर घराना पत्रकारिता के उदय के उपरांत ``वास्तविक खबरों`` के बजाए ``प्रयोजित खबरों`` पर आकर टिक गया है, मीडिया। इन परिस्थितियों में वी.के.मल्होत्रा का यह बयान उनकी मीडिया से दूरी बनाने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है।


किसको दें मुआवजा
मध्य प्रदेश के बड़़वानी जिले के राजघाट को लेकर असमंजस बरकरार ही है। दरअसल बड़वानी में महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी और महादेव भाई देसाई की ``भस्मी`` सुरक्षित रखी हुई है। यहां बाकायदा चबूतरा बनाकर बापू की याद में राजघाट का निर्माण किया गया है। अब यह इलाका सरदार सरोवर परियोजना के चलते डूब में आ रहा है। बाकी लोगों को तो मुआवजा दे दिया गया है, पर बापू की सुध किसी को भी नहीं है। बताते हैं कि 12 फरवरी 1948 को तीनों ही की भस्मी लाकर यहां रखी गईं थीं। कलेक्टर बड़वानी राजपूत कहते हैं कि उनके पास इसको स्थानांतरित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। नर्मदा वेली डेवलपमेंट के अधीक्षण यंत्री का कहना है कि यह स्थल डूब में नहीं है, तो पुनर्वास अधिकारी ने कहा कि 1999 में प्रकरण बनाकर एक लाख तेईस हजार रूपए कलेक्टर के खाते में जमा करवाए जा चुके हैं। अफसरशाही के जाल में बापू के मध्य प्रदेश के इस राजघाट की सुध लेने वाला कोई नहीं है। चूंकि मामला किसी संस्था और बापू से जुडा है अत: किसी को इसमें धेला नहीं मिलने वाला।


तानाशाही के चलते शिवसेना हुई कमजोर
शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे की तानाशाही के चलते शिवसेना का जनाधार तेजी से कम होता रहा है, बची खुची कसर उनके अपने भतीजे राज ने निकाल दी। बालासाहेब ठाकरे के विश्वस्त माने जाने वाले चार नेता या तो कांग्रेस राकांपा की ताकत बन गए या फिर अपनी पार्टी बनाकर शिवसेना के विजय मार्ग पर शूल बनकर उभर गए। पिछले दो दशकों में छगन भुजबल, नारायण राणे, संजय निरूपम और राज ठाकरे ने बालासाहेब की शिवसेना को धूल चटवाने में कोई कोर कसर नहीं रख छोडी है। इन सभी ने बाला साहेब के तानाशाही पर्ण रवैए के चलते ही अलग मार्ग पर चलने का मानस बनाया है। इनके इस तरह से जाने से एक ओर शिवसेना की जमीन कमजोर हुई वहीं दूसरी ओर शिवसेना क्षत्रपों की बौखलाहट तेजी से बढ़ी है। देखा जाए तो शिवसेना के ये आधार स्तंभ अपने अपने क्षेत्र में बेहद प्रभाव रखते थे, जिनका फायदा आज कांग्रेस और राकांपा उठा रही है।


पुच्छल तारा
शेरशाह सूरी के जमाने की ग्रांट नेशनल रोड जो बाद में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात बनी के लखनादौन से नागपुर तक के हिस्से को स्विर्णम चतुभुZज के उत्तर दक्षिण गलियारे का हिस्सा बनाए जाने के विवाद के चलते कांग्रेस को विदर्भ में काफी नुकसान उठाना पड़ा। दरअसल केंद्रीय भूलत परिवहन मंत्री कमल नाथ द्वारा यह प्रयास किया जा रहा था कि इस मार्ग को परिवर्तित कर छिंदवाड़ा से ले जाया जाए। इसमें वे कामयाब नहीं हो सके हैं। महाकोशल के सर्वमान्य नेता कमल नाथ को उसी महाकौशल के केंद्र बिन्दु सिवनी जिले में जितनी लानत मलानत झेलनी पड़ी उतनी शायद ही कहीं झेली हो। यहां तक कि उनकी अर्थी तक निकाल दी गई। इसका प्रभाव महाराष्ट्र के विदर्भ में भी पड़ा विदर्भ मेें कांग्रेस के दिग्गज नेता सतीश चतुर्वेदी और अनीस अहमद तक धूल चाटने पर मजबूर हो गए। कमल नाथ समर्थक आज भी उनका उजला पक्ष रखने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।

बुधवार, 21 अक्टूबर 2009

मुख्यमंत्री जी, पधारो सा

मुख्यमंत्री जी, पधारो सा

लिमटी खरे

राजस्थान में किसी अतिथि के आगमन पर पधारो सा कहकर उसका स्वागत किया जाता है। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बुधवार को सिवनी आए तो सिवनी के समस्त नागरिकों ने दिल से उन्हें पधारो सा कहकर ही उनका स्वागत किया होगा। पहली मर्तबा लगा कि सिवनी शहर वाकई में इतना खूबसूरत है। दलसागर के मुहाने पर न तो कोई वाहन ही नजर आ रहा था, और न तो बस स्टेंड सहित सडकों पर वाहनों की धमाचौकडी। जिला मुख्यालय निवासियों ने बुधवार को मुख्यमंत्री का तहेदिल से शुक्रिया अदा किया होगा। मंगलवार की शाम को पूरे शहर में पालिका प्रशासन के सफाई कर्मियों ने बडी ही संजीदगी से शहर को साफ किया। सफाई कर्मचारियों की तादाद देखकर लगा कि वाकई पालिका के पास सफाई अमले में इतनी तादाद में कर्मचारी मौजूद हैं। आम दिनों में इन कर्मचारियों को इनके मूल काम से इतर अफसरान और पदाधिकारियों की सेवा टहल में लगाया जाता है, यह अलहदा बात है।
मंगलवार और बुधवार की दर्मयानी रात में प्रशासन ने जिस मुस्तैदी से शहर की हाल ही में बनी जजZर सडकों के बदनुमा दाग सरीखे गड्ढों को भरा उसे देखकर सभी का मन बरबस यही कह रहा होगा, माननीय मुख्यमंत्री जी सिवनी से आपका प्रेम इसी तरह बना रहे और आप बिना नागा जल्द जल्द सिवनी आया करें।
बुधवार को सिवनी शहर को देखकर यही लग रहा था कि वाकई हमारा अपना सिवनी शहर कितना खूबसूरत है। अगर यातायात बुधवार की तरह व्यवस्थित रहे, लोग पूरे ट्रेफिक सेंस के साथ सडकों पर चलें, गुजरे जमाने की खूबसूरती की मिसाल कहा जाने वाले दलसागर की मेड पर वाहन न धुल्ों न सुधरें, तो यहां से आने जाने वाले को दलसागर अस्सी के दशक की भांति ही लुभाने लगेगा।
यक्ष प्रÜान् यह है कि मुख्यमंत्री अपनी दूसरी पारी में तीसरी बार सिवनी आए और चले गए, सिवनी को क्या हासिल हुआर्षोर्षो मुख्यमंत्री की पूर्व की घोषणाएं क्या अमली जामा पहन सकींर्षोर्षो इस बार की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणाएं क्या परवान चढ सकेंगीर्षोर्षो शिवराज सिंह चौहान सरल, सोम्य और भोली छवि के धनी हैं। प्रदेश में उनके कार्यकाल में आरंभ की गई योजनाओं ने जन सामान्य म्ों उनके प्रशंसकों में इजाफा ही किया है। यह सच है कि शिवराज सिंह चौहान के नाम पर भीड जुटाना कोई कठिन काम नहीं है। सवाल यह है कि यहां कोई तमाशा नहीं हो रहा है कि भीड जुटाई जाए। वस्तुत: प्रदेश के निजाम से रियाया को बहुत उम्मीदें हुआ करती हैं, चुने हुए जनसेवकों का यह दाियत्व होता है कि वे उन्हें जनादेश देने वालों की भावनाओं की कद्र करते हुए निजाम से कुछ मांगें, वह भी पूरी ईमानदारी के साथ।
सिवनी की विधाियका एवं परिसीमन में समाप्त हुई सिवनी लोकसभा की अंतिम सांसद श्रीमति नीता पटेरिया, आधे जिले के सांसद के.डी.देशमुख ने पहली बार मुख्यमंत्री से मुंह खोलकर कुछ मांगा, पर विडम्बना ही कही जाएगी कि मुख्यमंत्री ने इन दोनों ही जनसेवकों की बात पर ध्यान नहीं दिया।
संतोष की बात है कि मुख्यमंत्री ने माध्यमिक शाला भवनों के निमाZण के लिए ढाई करोड रूपए, †ˆ‡ शाला भवनों में अतिरिक्त कक्ष निमाZण का आÜवासन, कस्तूरबा कन्या शाला के निमाZण के लिए ‡Š लाख, स्वाराजहाट बाजार के निमाZण के लिए डेढ करोड, आई टी आई के जीणोZद्Ëाार के लिए ˆŒ लाख, थोक सब्जी मण्डी के लिए ‡ करोड, नसि±ग कालेज के लिए ˆ करोड, दलसागर के सोंदयीZकरण के लिए एक करोड नौ लाख, नगर विकास के लिए पालिका को ‡Œ लाख, बरघाट और छपारा के लिए पेयजल व्यवस्था के लिए ƒ„ लाख रूपयों की घोषणा की गई है।
अब लाख टके का सवाल यह है कि मुख्यमंत्री की इन घोषणाओं को अमली जामा कौन पहनाएगा। पालिका की राशि तो प्राप्त हो जाएगी, क्योंकि इसमें आसानी से बंदरबांट किया जा सकता है। शेष मदों में राशि लाना दुष्कर ही प्रतीत हो रहा है। मुख्यमंत्री की घोषणाओं को जिलाधिकारी के माध्यम से प्रदेश सरकार को प्रेषित करना होगा ताकि इन्हें आने वाले बजट में शामिल करवाया जा सके। यह कार्य काफी कठिन होता है, क्योंकि बजट शाखा में ब्ौठे हुए हैं काफी दिमाग वाले लोग। वे जानते हैं कि कितना राजस्व आ रहा है और कितना व्यय किया जाना है। अमूमन मुख्यमंत्री की घोषणाएं काफी महत्वपूर्ण होती है, अत: इन्हें बजट में स्थान दिया जाता है, किन्तु इसके लिए जनसेवकों को अपने निहित स्वार्थ छोडकर ईमानदार पहल करनी होती है।
चूंकि नगरीय निकायों के चुनाव आने वाले हैं, अत: मुख्यमंत्री द्वारा दनादन घोषणाएं किया जाना स्वाभाविक ही है, अब सारी जवाबदारी जनसेवकों के कांधों पर आ जाती है कि वे इसे मूर्त रूप में तब्दील करवाने के लिए एडी चोटी एक कर दें। यह अच्छा मौका है, जबकि मुख्यमंत्री ने सिवनी को सौगातें देने का वायदा किया है, अब देखना यह है कि जनप्रतिनिधि इसे कितना भुना पाते हैं।
हम तो यही कहना चाहेंगे कि अगली बार जब भी प्रदेश के निजाम सिवनी प्रवास पर आएं तो कुछ समय लेकर आएं और कार के बजाए रिक्शे पर सिवनी जिले की सडकों पर भ्रमण करें तभी उन्हें सिवनी शहर की जमीनी हकीकत का भान हो सकेगा कि प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर करों से लदी फदी जनता लाखों करोडों रूपए खचZ कर बनाई गई सडकों पर किस प्रकार सर्कस के बाजीगरों की तरह चलने पर मजबूर है।

रविवार, 11 अक्टूबर 2009

कहां खो गया कांग्रेस का चाणक्य!


ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

कहां खो गया कांग्रेस का चाणक्य!

एक समय था जब देश की राजनीति में कुंवर अर्जन सिंह को कांग्रेस की आधुनिक रजनीति का चाणक्य माना जाता था। देश में उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिल पाता था। खतो खिताब की राजनीति के जनक अर्जुन सिंह चाहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या पंजाब के राज्याल या फिर केंद्र में मंत्री कोई भी उनसे पंगा लेने का साहस नहीं कर पाता था। जब अजंZन सिंह केंद्र की राजनीति में सक्रिय हुए तो आज के सबसे ताकतवर राजनेता अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह, अिम्बका सोनी, जनार्दन द्विवेदी, राजीव शुक्ला जैसे धुरंधर अर्जुन सिंह का कीर्तन कर उनके नाम की माला जपते नहीं थकते थे। आज उनके पोषकों ने ही उन्हें राजनैतिक बियाबान से उठाकर किनारे करने में कसर नहीं रख छोड़ी है। अर्जुन सिंह के लगाए पौधे आज बट वृक्ष बन चुके हैं, विडम्बना यह है कि ये सारे बट वृक्ष आज सूरज का प्रकाश अर्जुन सिंह तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं। यही कारण है कि सूरज की रोशनी के अभाव में पिछले कुछ माहों से अर्जुन सिंह का वृक्ष पूरी तरह कुम्हला गया है।



शस्त्रों से खेलते सरकारी परिवार

मध्य प्रदेश में आजकल काफी उथल पुथल मची हुई है। इसका कारण सरकारी अस्त्रों के साथ सरकारी तंत्र में शामिल नुमाईंदों के परिवारों द्वारा खिलवाड़ किया जाना है। कुछ दिनों पूर्व पुलिस अधीक्षक जयदीप प्रसाद के नाबालिग पुत्र द्वारा सरकारी बंदूक एके 47 से हवाई फायर किया था। इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनकी पित्न साधना एवं पुत्र के हाथों में सरकारी बंदूकों के छाया चित्र विवाद को जन्म दे रहे हैं। इस दौरान शिवराज ने हवाई फायर भी किया था। एक तरफ तो केंद्र सरकार द्वारा एके 47 जैसी बंदूकों की गोलियों की कमी के चलते इसमें किफायत की सलाह दी जा रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य में एसपी के नाबालिक बेटे द्वारा सरेआम बिना लाईसेंस इससे गोली दागी जा रही है। कहने को तो महज छ: इंच के चाकू रखने पर आपके खिलाफ पुलिस आर्मस एक्ट के तहत मामला पंजीबद्ध कर सकती है, किन्तु ``समरथ को नही दोष गोसाईं``। इसके पहले भी भोपाल की एक समाज सेवी आरती भदोरिया के जन्म दिवस पर उनके अंगरक्षक द्वारा किए गए हवाई फायर के उपरांत पुलिस ने उस पर बाकायदा मुकदमा दायर किया था।



केबनेट बंक करने पर आमदा मंत्री

कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी को राजनीति की क्लास से बंक करने में आनंद आता है तो उनके मंत्री भला उनके पदचिन्हों पर क्यों न चलें। इस गुरूवार को प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने मंत्रीमण्डल समिति की बैठक (केबनेट) आहूत की, जिसमें आधे से अधिक मंत्री गायब रहे। तीन सूबों में विधानसभा चुनाव होने हैं, किन्तु कांग्रेस का सबसे अधिक ध्यान महाराष्ट्र पर ही नजर आ रहा है। अधिकतर मंत्री महाराष्ट्र में ही डेरा डाले हुए हैं। कृषि मंत्री शरद पंवार, नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल, उर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे, भारी उद्योग मंत्री विलास राव देशमुख, पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, पीएमओ में राज्य मंत्री पृथ्वीराज चौहान, सामाजिक न्याय मंत्री मुकुल वासनिक, दूरसंचार मंत्री गुरूदास कामत, सामाजिक न्याय राज्य मंत्री प्रतीक पटेल इस केबनेट से गायब रहे। चर्चा है कि इन मंत्रियों के दिल्ली से बाहर रहने और मंत्रालयों के कामकाज पर ध्यान न देने से मंत्रालयों के कामकाज पर जबर्दस्त असर पड़ रहा है। सूबों में कांग्रेस की सरकार बने न बने यह तय है कि इन मंत्रियों के इस तरह के रवैए से देश विकास के मार्ग पर मंथर गति से ही चल पाएगा।



मुसलमीनों से युवराज को परहेज

कांग्रेस के युवराज और कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के राजनैतिक प्रबंधकों ने भले ही दलितों के घर युवराज को रात रूकवाकर मीडिया की सुर्खियों में ला दिया हो किन्तु हाल ही में आल इंडिया यूनाईटेड मुस्लिम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ.एम.ए.सिद्दकी ने राहुल गांधी को दलित मुसलमानों के घर रात गुजारने का मशविरा देकर नई बहस को जन्म दे दिया है। इतिहास गवाह है साल दर साल कांग्रेस का एक बड़ा वोट बैंक रहा है मुसलमीन (मुसलमानों के लिए एक पीर द्वारा उपयोग किया जाने वाला शब्द)। पिछले दो दशकों से मुसलमानों का कांग्रे्रस से मोहभंग होता जा रहा है, यह बात भी सच ही है। क्षेत्रीय दलों ने इस बड़े वोट बैंक में सेंध लगाकर कांग्रेस को जबर्दस्त झटका भी दिया है। यह बात भी साफ हो गई है कि राहुल गांधी मुसलमानों के घरों पर रूकने से परहेज ही कर रहे हैं। अब राहुल के प्रतिद्वंदी इस बात को हवा देने में लग गए हैं। एआईसीसी में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार राहुल को दलित गरीब मुसलमान के घर पर रूककर उसकी उजड़ी रसोई के दीदार भी करें, कि आधी सदी से ज्यादा देश पर शासन करने वाली कांग्रेस ने देश के गरीबों को क्या दिया है। चूंकि अमीर सांसदों, उद्योगपतियों के घरों पर होने वाली नौ लखा दावतों का लुत्फ तो काफी हद तक उठा चुके हैं, राहुल। अब उन्हें दलित मुसलमानों से परहेज नहीं करना चाहिए।



शोरी की मुश्कें कसने को बेताब हैं राजनाथ

एक समय में बोफोर्स के नाम पर पत्रकारिता के आकाश में पहुंचने वाले अरूण शोरी के मन में अब वही पत्रकार वाला कीड़ा कुलबुलाता दिख रहा है। यही कारण है कि वे अब पार्टी लाईन से हटकर पार्टी के बारे में अपने विचार खुलकर व्यक्त करने लगे हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक निजी समाचार चेनल को दिए साक्षात्कार में पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह को ``हंप्टी डंप्टी`` कहकर सभी को चौंका दिया था। अरूण शोरी के साहस को देखकर चंदन मित्रा ने भी ताल ठोंकनी आरंभ कर दी है। पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह इससे खासे परेशान बताए जा रहे हैं। राजनाथ के सलाहकारों ने उन्हें मशविरा दिया कि वे पार्टी के मुखपत्र ``कमल संदेश`` के माध्यम से शोरी और मित्रा को साईज में लाएं। कमल संदेश के पिछले अंक में संपादकीय काफी करारी लिखी गई है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि कुछ पत्रकार एसे भी हैं जो भाजपा को चलाना चाहते हैं, यह बात तो समझ में आती है कि बतोर पत्रकार आप सलाह दें, किन्तु यह संभव नहीं है कि आपकी सलाह पर ही भाजपा चले। एक नहीं अनेकों नसीहतें दी गई हैं, पत्रकार से नेता बने भाजपाईयों को। राजनाथ के कड़े तेवर देखकर अभी तो शोरी और मित्रा खामोश हैं, पर आने वाले समय में क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है।



ठेके पर स्कूल

एक ओर केंद्र और राज्यों की सरकारें नौनिहालों को शिक्षित करने के लिए एडी चोटी एक करने का प्रयास कर रहीं है, वहीं दूसरी ओर जमीनी हकीकत देखकर लगने लगा है कि केंद्र और सूबे की सरकारें सरकारी धन को आग लगाने की नौटंकी से अधिक कुछ नहीं कर रही हैं। मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले के पुनावा ब्लाक की सुरगांव बंजारी प्राथमिक शाला में एक प्राचार्य ने अपना पद ही ठेके पर दे दिया। इस गांव में प्राचार्य हमेशा ही नदारत रहा करते थे। उन्होंने अपनी कुर्सी संभालने की जवाबदारी एक चरवाहे को दे दी थी। शाला के प्राचार्य ने बकायदा कुछ राशि माहवार तय कर उस चरवाहे को अपनी कुर्सी पर बिठा दिया था। मजे और आश्चर्य की बात तो यह रही कि शाला के शिक्षक और अन्य कर्मचारी उस चरवाहे के आदेश का उसी तरह पालन करते थे जैसे कि वे प्राचार्य के आदेशों का पालन करते हों। यह सारी बातें मनगढंत कहानी नहीं बल्कि शिक्षा विभाग के एक जांच दल को मिली शिकायत के बाद हुई जांच में सामने आई हकीकत है। बाद में उस प्राचार्य को निलंबित कर दिया गया। देश भर में ग्रामीण अंचलों में न जाने कितने चरवाहे, दूधवाले, खोमचेवाले शालाओं की कमान संभाले होंगे इसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही है।



सोनिया का उपहास उड़ातीं शीला

मितव्ययता का संदेश देकर कम से कम कांग्रेस के लोगों को सुधारने के सोनिया गांधी की चीत्कार की गूंज दिल्ली सूबे में ही नहीं पहुंच पा रही है तो शेष भारत के कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की कौन कहे। दिल्ली में तीसरी बार काबिज हुईं श्रीमति शीला दीक्षित के मातहत ही सोनिया की अपील और दिशा निर्देशों का खुले आम माखौल उड़ा रहे हैं। दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष योगानंद शास्त्री और विधानसभा सचिव सिद्धार्थ राव एक सप्ताह के लिए तंजानिया उड़ गए। इन दोनों की इस यात्रा पर ज्यादा नहीं महज 14 लाख रूपए खर्च होंगे। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार के दो मंत्रियों की सत्य सदन स्थित कोठियों को ``रहने लायक`` बनाने के लिए भी ज्यादा नहीं महज पचास लाख रूपए ही खर्च किए जा रहे हैं। उद्योग मंत्री मंगतराम सिंघल के सरकारी आवास की फ्लोरिंग के लिए भी महज 15 लाख रूपयों की दरकार है। स्वास्थ्य मंत्री किरण वालिया की कोठी को चकाचक करने के लिए भी बस 25 लाख रूपए ही खर्च होना प्रस्तावित बताया जा रहा है। एसा नहीं कि राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की मितव्ययता की अपील का इन मंत्रियों पर कोई असर नहीं हुआ हो। सभी विधायकों ने अपने अपने वेतन का 20 फीसदी कटवाना आरंभ कर दिया है, किन्तु बंग्लों के मामले में उनकी राय सोनिया से जुदा ही नजर आ रही है।



भूख से मरती युवराज की रियाया

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी देश भर में घूम घूम कर भारत की खोज में लगे हुए हैं, वहीं उनके संसदीय क्षेत्र में लोग भूख से मर रहे हैं। बहुत पहले एक लघु कथा को कवि सम्मेलनों में सुनाया जाता था कि एक व्यक्ति बहुत ही बड़बोला था, कभी जर्मनी तो कभी अमेरिका की बातें कर वहां के मंत्रियों प्रधानमंत्री आदि के बारे में लोगों से पूछकर उन्हें शर्मसार किया करता था। अंत में वह कहता कि कभी बाहर घूमो तो जानो। एक शरारती बच्चे ने उससे ही उल्टे पूछ लिया ``राम लाल को जानते हो``। उसने इंकार से सर हिलाया तब वह बच्चा बोला ``कभी घर में भी रहो तो जानो``। इसी तर्ज पर राहुल गांधी देश भर की चिंता कर रहे हैं, पर अमेठी में हुई दलित नंदलाल की मौत के बारे में खामोशी की चादर आढे हुए हैं। अमेठी दौरे पर गए राहुल से उसने मदद की गुहार भी लगाई थी, किन्तु उसे आश्वासन के अलावा और कुछ नहीं मिला, मिलता भी कैसेर्षोर्षो राहुल को देश भर की जो फिकर सता रही है, सो घर की चिंता कौन करे



घर से बाहर निकलने से कतराती तीरथ

देश की आधी से अधिक आबादी के हितों और विकास के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार का महिला विकास मंत्रालय की महती जवाबदारी संभालने वाली संसद सदस्य कृष्णा तीरथ को अपने संसदीय क्षेत्र से बाहर निकलने की फुर्सत ही नहीं मिल पा रही है। कितने आश्चर्य की बात है कि तीरथ दिल्ली में घर बैठे बैठे ही पचास करोड़ से अधिक की आबादी की चिंता कर रही हैं, यहीं बैठकर वे ढेर सारी योजनाओं को अमली जामा भी पहनाने से नहीं चूक रही हैं। केंद्र सरकार के सौ दिनी एजेंडे को पलीता लग गया। सरकार के गठन के पांच माह बाद भी तीरथ ने देश के अन्य हिस्सों में जाने की जहमत ही नहीं उठाई है। लगता है कि महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कृष्णा तीरथ द्वारा गणेश परिक्रमा के महत्व को समझ लिया है। यही कारण है कि उनके लिए समूचा देश सिमटकर 10 जनपथ (श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) और 12 तुगलक लेन (राहुल गांधी का सरकारी आवास) में आ बसा है।



राजेंद्र शायद ही भुना पाएं विरासत

देश की पहली नागरिक महामहिम प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के पुत्र राजेंद्र सिंह शेखावत के लिए अमरावती विधानसभा का चुनाव काफी मंहगा साबित होता नजर आ रहा है। एक ओर उन्हेें माता जी की विरासत को बचाए रखना है, वहीं दूसरी ओर दो बार के विधायक रहे सुनील देशमुख निर्दलीय तौर पर उनके लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं। कांग्रेस ने भले ही राजेंद्र बाबू को टिकिट दे दी हो पर कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के तरकश से निकले जहर बुझे तीरों से बच पाना उनके लिए मुश्किल ही दिख रहा है। आलम यह है कि प्रदेश कांग्रेस अमरावती से दूर ही दूर नजर आ रही है। सुनील देशमुख सरेआम यह कहते घूम रहे हैं कि राजेंद्र शेखावत को टिकिट उनकी माता प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने दिलवाई है। वहीं राजेंद्र शेखावत का कहना है कि उन्हें टिकिट उनकी मां ने नहीं वरन कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने खुद ही दी है। प्रतिभा पाटिल महामहिम हैं, उनके नाम का उपयोग बहुत ही संभलकर करना होगा राजेंद्र शेखावत को, वरना प्रोटोकाल टूटते ही राजेंद्र बाबू को लेने के देने न पड़ जाएं।



प्रफुल्ल पटेल का बदला जा सकता है मंत्रालय

नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जल्द ही इस महकमे से मुक्त कर नई जवाबदारी दी जा सकती है। महाराष्ट्र के चुनावों के बाद प्रधानमंत्री अपने पत्ते फेंट सकते हैं। वैसे भी शशि थुरूर, एम.एस.कृष्णा, ममता बेनर्जी पहले से ही उनकी नापसंदगी वाली सूची में शामिल हो चुके हैं, अब पटेल की कार्यप्रणाली से उन पर गाज गिरने की संभावनाएं बढ़ती दिख रही है। पहले जेट फिर एयर इंडिया की हड़ताल से पीएमओ नाखुश ही है। बताते हैं कि पीएम का मानना है कि पायलट हडताल को पटेल ने ठीक तरीके से ``हेंडल`` नहीं किया वरना हालात कुछ ओर होते। प्रधानमंत्री आवास के सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने प्रफुल्ल पटेल को साफ शब्दों में चेतावनी दे दी है कि वे अपना रवैया बदल दें वरना महाराष्ट्र चुनाव के बाद उनका मंत्रालय ही बदल दिया जाएगा। उधर कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों ने कहा कि महाराष्ट्र चुनावों के नतीजों के बाद अगर वहां राकांपा की स्थिति कमजोर रही तो हो सकता है कि पटेल को महत्वहीन मंत्रालय ही थमा दिया जाए।



पुच्छल तारा

देश का कोई भी कोना एसा नहीं होगा जहां आप भिखारियो से रूबरू न होएं। अक्सर हम सिनेमा में यही देखते हैं जिसमें कोई भी पात्र यही कहता है कि गरीबी से बड़ा जुर्म और कोई नहीं है। क्या गरीबी जुर्म हैर्षोर्षो इस बारे में एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की गई है। इस याचिका में बाम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट को भी चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि गरीबी कोई जुर्म नहीं है और अगर कोई गरीबी के कारण भीख मांगता है तो उसे क्राईम नहीं करार दिया जाना चाहिए, और इस आधार पर उसे गिरफ्तार कर सजा नहीं दी जानी चाहिए। कोर्ट ने इस याचिका पर सरकार से पूछा है कि क्या भीख मांगना क्राईम है

बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

हरियाणा में नोकरशाहों का शगल बनती राजनीति



देवीलाल ने किया था नौकरशाहों का राजनीति की ओर रूख


(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। अधिकारियों के बूते राजनीतिक पायदान चढ़ने वाले राजनेताओं, अधिकारियों के मुंह में राजनीति का खून लगाने से नहीं चूके हैं। सियासत के दलदल में ब्यूरोक्रेट्स को उतारने में हरियाणा ने बाजी मारी है। इस सूबे में चौधरी देवी लाल द्वारा लगाए गए पौधे ने अब बट वृक्ष का स्वरूप धारण कर लिया है।


ज्ञातव्य है कि 1972 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल ने सबसे पहली बार लंदन में कार्यरत एक शिक्षक को राजनीति के दलदल में उतारा था। यह अलहदा बात है कि उस दौर में राजनीति का स्वरूप इतना घिनौना नहीं हुआ करता था। देवी लाल के सहारे श्यामलाल नामक यह शिक्षक सोनीपत से विधायक चुने जाने के बाद लाल बत्ती प्राप्त कर सके थे।


सूबे में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कृपा राम पुनिया, डॉ.रघुबीर कादियान, रघुवीर सिंह, ए.एस.रंगा, श्री सिसोदिया, बी.डी.ढलैया, आई.डी.स्वामी, आर.एस.चौधरी, आबकारी महकमे के अधिकारी राधेश्याम शर्मा, हरियाणा राज्य सेवा के डॉ.के.वी.सिंह, एम.एल.सारवान, विरेंद्र मराठा, बहादुर सिंह, पुलिस महानिदेशक एच.आर.स्वान, ए.एस.भटोटिया, महेंद्र सिंह मलिक, एडीजी रेशम सिंह, के अलावा डॉ.सुशील इंदौरा और बैक अधिकारी हेतराम आदि ने भी सरकारी नौकरी के बाद राजनीति का पाठ सीखा है।


देश भर में अफसरान के राजनीति में कूदने के उदहारण बहुतायत में हैं, किन्तु हरियाणा में सर्वाधिक सरकारी कर्मचारियों ने अपने कर्तव्यों को तिलांजलि देकर (नौकरी से त्यागपत्र देकर) राजनीति के माध्यम से ``जनसेवा`` का मार्ग चुना है। हरियाणा के राजनैतिक परिदृश्य को देखने से साफ हो जाता है कि यहां अफसरशाह जब भी राजनीति में आए हैं, वे अपने आकाओं के कभी विश्वास पात्र बनकर नहीं रह पाए हैं।


पूनिया को देवीलाल राजनीति में लाए, बाद में अनबन होने पर पूनिया ने देवी लाल का साथ छोड़ दिया। डॉ. कदियान को देवी लाल लाए थे, बाद में वे उनका साथ छोडकर कांग्रेस का दामन थाम अपनी राह में आगे बढ़ गए।


आवश्यक है वरूण गांधी के इन तेवरों को अपनाना

आवश्यक है वरूण गांधी के इन तेवरों को अपनाना



(लिमटी खरे)


चुनावों के दौरान पीलीभीत में आक्रमक तेवर अपनाकर विवादों में फंसने वाले नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य अब एवं संसद सदस्य वरूण गांधी अब कुछ परिपक्व राजनैतिक झलक दिखलाने लगे हैं। एक ओर उनके अंदर उग्र हिन्दुत्व की झलक देखने को मिली तो अब उनके अंदर उनके पिता स्व.संजय गांधी के देशहित के तेवर भी देखने को मिल रहे हैं।


हाल ही में उत्तर प्रदेश में विश्व के सात अजूबों में से एक ताज महल को अपने दामन में समेटने वाले शहर आगरा में एक व्यक्तिगत बैठक के दौरान वरूण परिपक्व राजनेता के रूप में नजर आए। उन्होंने कहा कि वे सड़क, पुल जैसी आधारभूत संरचना के निर्माण में विश्वास नहीं रखते, उनकी निजी राय में देश में विस्फोटक आबादी सबसे बड़ी चुनौति है।


वरूण के इस तरह के तेवर ने उनके पिता स्व.संजय गांधी के लगभग पेतीस साल पुराने तेवरों की याद ताजा कर दी है। गौरतलब होगा कि संजय गांधी द्वारा आपातकाल के दौरान नसबंदी को लेकर आक्रमक अभियान का श्रीगणेश किया था, उस दौरान नसबंदी के खिलाफ देश में मुजफ्फर नगर सहित अनेक स्थानों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।


संजय गांधी कांग्रेस के सदस्य रहे हैं। दरअसल कांग्रेस में भविष्य दृष्टा इंदिरा और संजय गांधी ही थे। मेनका और सोनिया गांधी के देवरानी जेठानी के विवाद ने संजय गांधी को कांग्रेस के इतिहास में पाश्र्व में ढकेल दिया। कांग्रेस में गांधी के मायने इंदिरा, राजीव, सोनिया और राहुल ही बचे हैं।


सत्तर के दशक में ही इंदिरा और संजय गांधी ने देश की बढ़ने वाली जनसंख्या का अंदाजा सहजता से लगा लिया था, यही कारण था कि फेमली प्लानिंग का काम उन्होंने पहली प्राथमिकता पर रखा और इसका कड़ाई से पालन भी सुनिश्चित करवाया था। आज संजय गांधी की उस महिम के कारण जनसंख्या इतनी है, अगर संजय गांधी परिवार नियोजन योजना में सख्ती न बरतते तो देश की बढ़ी हुई जनसंख्या में आज जीना मुश्किल ही हो जाता।


संजय गांधी की यह मुहिम मुस्लिम धर्मावलंबियों को रास नहीं आई थी। इसका पुरजोर विरोध किया गया था। आज पढ़े लिखे मुस्लिम धर्मावलंबी भी दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर विहिप के प्रवीण तोगडिया सरीसे नेता सनातन पंथियों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए उकसा रहे हैं। सही मायनों में आज देश में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती आबादी से बड़ा दुश्मन देश के लिए और कोई नहीं है।


समाजशास्त्र में नगरीकरण और औद्योगिकरण एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं। जहां उद्योग धंधे लगेगें उसके आसपास उपनगरों, मजरों, टोलों का बनना स्वाभाविक प्रक्रिया है। महानगरों सहित अनेक नगरों के इर्दगिर्द जंगलों को काटकर कांक्रीट जंगलों की स्थापना कमोबेश यही दर्शा रही है कि देश की आबादी किस तेज गति से बढ़ रही है।


वनों की अधांधुंध कटाई के कारण जलवायू परिवर्तन हमारे सामने है। देश में सबसे ज्यादा बारिश के लिए प्रसिद्ध चेरापूंजी में अब उस तरह बारिश नहीं होती है जो पहले हुआ करती थी। अक्टूबर के माह में देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में कूलर चल रहे हों तो पर्यावरण असंतुलन का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।


हम वरूण गांधी के प्रशंसक नही हैं, किन्तु उन्होंने जिस तरह के तेवर अपनाए हैं, वे निश्चित तौर पर स्वागतयोग्य हैं। वरूण का यह कहना -``मैं वो गांधी नहीं हूं, जिसने अपने आप को उपर उठाने के लिए देश को गिरवी रख दिया हो, मैं देश को बचाने के लिए अपने आप को गिरवी रख सकता हूंं`` हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा बोफोर्स मामला वापस लेने की पहल के चलते सोनिया और राहुल गांधी पर कटाक्ष से कम नहीं है।


यह सच है कि कांग्रेस ने देश में आधी सदी से ज्यादा शासन किया है। आजादी के छ: दशकों के बाद भी देश कहां खड़ा है और देश के ``जनसेवक`` कहां खड़े हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। यह विडम्बना से कम नहीं है कि देश में आज भी करोड़ों लोग एैसे हैं जिन्हें तन पर पूरे कपड़े और दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के ``जनसेवक`` कथित तौर पर ``अपने खर्चे पर`` महीनों सितारा युक्त आलीशान होटलों में रात बिताते हैं।


कांग्रेस की नजर में देश के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी दलितों के घर रात बिताकर मीडिया की सुर्खियां बटोरने से नहीं चूकते हैं। राहुल राजनीति में नए हैं, अत: वे अपने सलाहकारों के मशविरे के चलते इस तरह का कदम उठा रहे होंगे। हमें यह कहने में संकोच नही है कि राहुल गांधी देश की सवा करोड़ से अधिक जनता की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं।


राहुल गांधी को चाहिए कि वे वरूण गांधी से सीख लेकर देश की सबसे बड़ी दुश्मन केंसर कोशिकाओं की तरह विस्फोटक होती आबादी पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाएं। देश में भीख मांगते आधा तन कपड़ा पहनने वाली कमसिनों के हाथों मेें बच्चों को देखकर तरस आ जाता है।


दिल्ली में ही अनेक स्थानों पर नाबालिग युवतियां दो तीन बच्चों को गोद में लेकर भीख मांगती नजर आ जाती हैं। यह सब देश के ``जनसेवकों`` को दिखाई नहीं देता क्योंकि आधे से अधिक जनसेवकों के इर्द गिर्द सुरक्षा तंत्र मौजूद रहता है, जिनके कारण असली भारत की तस्वीर देखने से ये महरूम रह जाते हैं।

मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

मुंबई में हाशिए पर आ रहे हैं गुजराती

मुंबई में हाशिए पर आ रहे हैं गुजराती
40 लाख में से महज दो को मिला है टिकिट


राज के खौफ से भयभीत हैं राजनैतिक दल


(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। कहा जाता रहा है कि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को गुजराती और पारसियों ने तो राजनैतिक राजधानी दिल्ली को पंजाबियों ने अपने हिसाब से चलाया है, किन्तु महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) सुप्रीमो राज ठाकरे से खौफजदा होकर राजनैतिक दलों ने अब मुंबई में 40 लाख गुजरातियों को हाशिए में ढकेलना आरंभ कर दिया है।


मराठी और उत्तर भारतियों की लड़ाई के सूत्रधार मनसे चीफ राज ठाकरे के घ्रणा फैलाने के अभियान का असर ही कहा जाएगा कि मराठी वोट बैंक के हाथ से फिसलने के डर से राजनैतिक दलों ने भी परोक्ष तोर पर राज ठाकरे के अभियान को समर्थन दे दिया है।


गौरतलब होगा मुंबई में गुजराती परिवारों की तादाद बहुतायत में है। यहां लगभग चालीस लाख गुजराती निवास करते हैं, जो मुंबई की रीढ़ कहलाते हैं। बावजूद इसके भाजपा और कांग्रेस ने एक एक प्रत्याशी को अपना उम्मीदवार बनाया जाना आश्चर्यजनक है। शेष राजनैतिक दल इस मामले में मौन ही साधे हुए हैं।


मराठियों को संरक्षण देने के नाम पर राजनीति करने वाले राज ठाकरे पिछले कुछ दिनों से उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलते आए हैं। यही कारण है कि शेष राजनैतिक दलों की मजबूरी उत्तर भारतीय वोट बैंक को सहेजने की हो गई है। यही कारण है कि भाजपा ने मुंबई में चार उत्तर भारतियों को उम्मीदवार बनाया है।


मराठी और उत्तर भारतीयों की लड़ाई में सबसे ज्यादा घाटे में रहने वाले गुजरातियों ने अब अपने आप को लामबंद करना आरंभ कर दिया है। आने वाले समय में गुज्जियों (गुजरातियों के लिए मुंबई में सर्वाधिक प्रचलित शब्द) के कोप का भाजन कांंग्रेस और भाजपा दोनों ही को होना पड़ सकता है।


राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में गुजराती और मारवाणी संप्रदाय मिलकर कांग्रेस और भाजपा पर दबाव की राजनीति कर सकते हैं। वैसे भी अब तक गुजराती समुदाय ने सदा से ही भारतीय जनता पार्टी का साथ दिया है, किन्तु इस बार महज एक टिकिट मिलने से वे भी बुरी तरह खफा ही नजर आ रहे हैं।


एक वरिष्ठ भाजपाई नेता ने नाम न उजागर न करने की शर्त पर कहा कि मुंबई सहित समूचे सूबे में ठाकरे बंधुओं (राज और बाल ठाकरे) की सुलगाई गई घ्रणा की आग में राजनैतिक दल झुलसने लगे हैं। देशहित की बात करने वाली भाजपा द्वारा भी ठाकरे ब्रदर्स का परोक्ष तौर पर अनुसरण करना आश्चर्यजनक बात है।




रियाया भी हकदार है ठंडी हवा की!



(लिमटी खरे)


राजा और प्रजा के बीच क्या संबंध होते हैं, इनके मायने आज के शासक भूलते जा रहे हैं, इसका कारण यह है कि आधुनिकता और पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध में हम अपना इतिहास को विस्मृत करते जा रहे हैं। अभी बहुत समय नहीं बीता है, जबकि देश में आजादी का जश्न जिस संजीदगी से मनाया जाता था, पर आज उस जोश में कमी साफ दिखाई पड़ रही है। आज महज औपचारिकता रह गई है, गणतंत्र, स्वतंत्रता, शहीद दिवस आदि का आयोजन।


इतिहास साक्षी है कि शासक ने सदा ही अपनी रियाया के दुख दर्द को समझने का प्रयास किया है। अगर राजकोष रीतने लगता तो राजा और उनके सिपाहसलार सभी मिलकर अपने खर्चों पर अंकुश लगाकर प्रजा को हर हाल में सुकून से रखने का प्रयास करते रहे हैं। इस सबसे उलट अय्याश और बिगड़ेल राजाओं का हश्र भी किसी से छिपा नहीं है।


बीसवीं सदी के अंतिम दशकों और इक्कीसवीं सदी में तो मानोे सारे समीकरण और परिकल्पनाएं उल्टी ही होने लगी हैं। देश प्रदेश पर शासन करने वाले मंत्री, सांसद, विधायक अब तो प्रजा के बजाए अपने एशो आराम पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। आज रियाया कमरतोड़ महंगाई, पग पग पर फैले भ्रष्टाचार, अनाचार से आजिज आ चुकी है।


मंदी के दौर में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की चेयर पर्सन एवं कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा सादगी दर्शन के लिए राजनैतिक राजधानी दिल्ली से व्यवसायिक राजधानी मुंबई तक की यात्रा हवाई जहाज में इकानामी क्लास में की जाती है, वह भी दस सीटें बुक करवाकर खाली छोड़कर।


उनके लाड़ले सपूत और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भला कहां पीछे रहने वाले थे। वे भी शताब्दी की एक पूरी बोगी बुक करवाकर यात्रा पर निकल पड़े। मीडिया ने भी निहित स्वार्थों के चलते पत्रकारिता के उसूलों को तिलांजली देकर मां बेटे के इस ``कथित महान कदम`` को खूब तवज्जो दी। गली चौराहों पर मां बेटे की सादगी के किस्से मशहूर हो गए। मीडिया ने इस मितव्ययता के पीछे की खर्चीली कहानी को बड़ी ही चतुराई के साथ पाश्र्व में धकेल दिया, जो निंदनीय कहा जाएगा।


केंद्र सरकार के दो मंत्री एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर लंबे समय तक सितारा युक्त होटल में रहे। हो हल्ला होने पर बाद में उन्होंने कहा कि उसका भोगमान (बिल) वे स्वयं ही भुगतेंगे। सवाल यह उठता है कि भोगमान चाहे जो भोगे पर देश के दोनों जनसेवकों को कम से कम होटलों का देयक तो सार्वजनिक करना चाहिए था, कि उन्होंने कितनी राशि व्यय की एवं उपर कितना कर लगाया गया।


मितव्ययता का पाठ सीखने वाले सांसद और विधायक सदा ही सुर्खियों में रहे हैं। हाल ही में संसदों के आवास को ठंडा रखने की गरज से लगवाए जाने वाले वातानुकूलित यंत्र (एयर कंडीशनर) के कारण सांसद सुर्खियों में हैं। सांसदों के घरों की साजसज्जा के साथ ही अब नए नवेले जनसेवकों को नए एसी भी चाहिए हैं।


अमूमन एक एयर कंडीशनर की औसत उम्र 10 वर्ष मानी जाती है। अगर ठीक ठाक रखरखाव किया जाए तो यह उम्र बढ़ भी सकती है। सांसदों के आवासों की सेवाटहल और रखरखाव के लिए अलग से सरकारी मुलाजिम तैनात हैं, उस हिसाब से इन एयर कंडीशनर्स को और अधिक दिन तक साथ देना चाहिए।


सांसदों को आवंटित आवास में शहरो से चुनकर आए नवधनाड्य या पढ़े लिखे सांसदों ने ``वास्तुकला`` के अनुरूप अपने आवास में तोड़फोड करवा दी है, ताकि वे लाल बत्ती या प्रभावशाली पद को पा सकें। इतना ही नहीं पुराने पर्दे, गद्दे सोफे के साथ ही साथ एयर कंडीशनर और पंखे भी नए लगवाए जा रहे हैं। गरीब गुरबे और ग्रामीण पृष्ठाभूमि वाले सांसद तो हर व्यवस्था को अंगीकार कर रहे हैं पर सर चढे नेताओं ने सरकारी धन में बुरी तरह सेंध लगा रखी है।


संबंधित विभाग के अफसर अगर उनकी बात न मानें तो जूतम पेजार की नोबत तक आ जाती है। पिछली बार तो एक संसद सदस्य ने एक अधिकारी को तमाचा रसीद कर दिया था। इतना ही नहीं एक गुस्सेल संसद सदस्य ने तो अधिकारी द्वारा उनकी मनमानी न मानने पर उनकी कनपटी पर पिस्तोल तक तान दी थी।


प्रश्न यही है कि आखिर यह सब किसके धन से किया जा रहा है, जाहिर है, जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से। चूंकि यह मामला ज्यादा उछलता नहीं है, अत: जनता को इस बारे में पता नहीं चल पाता है कि उनके द्वारा अलह सुब्बह चाय से लेकर रात को सोते समय तक हर बात पर जो कर दिया जाता है, उसी राजस्व से प्राप्त रूपयों में संसद सदस्य इस तरह आग लगाने पर आमदा हैं।


सांसद हो या विधायक, उन्हें चुनता कौन हैर्षोर्षो देश की जनता। सांसदों के आवासों पर एयर कंडीशनर, हीटर, गीजर लगवाकर उन्हें तो ठंडी और गर्म हवा का लुत्फ उठाने दिया जा रहा है, किन्तु देश के आखिरी आदमी तक बराबरी का संदेश देने वाले ये जनसेवक क्या यह नहीं जानते कि उस आखिरी आदमी या देश के विकास और अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान को भी भीषण गर्मी में ठंडी और हाड गलाने वाली सदीZ में गर्म हवा की जरूरत हो सकती है।


जनता के द्वारा चुने जाने वाले इन जनसेवकों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर जनता उन्हें चुनकर जनादेश देकर संसद या विधानसभा में पहुंचाती है तो उन्हें उस जनादेश का सम्मान करना चाहिए वरना यही जनता उन्हें संसद या विधानसभा से उठाकर बाहर फेंकने में गुरेज भी नहीं करनी वाली।

सोमवार, 5 अक्टूबर 2009

क्या वाकई साल भर बाद नए स्वरूप में हो सकेगी दिल्ली

क्या वाकई साल भर बाद नए स्वरूप में हो सकेगी दिल्ली



(लिमटी खरे)

राष्ट्रमण्डल खेलों की उलटी गिनती आरंभ हो चुकी है। एक साल बाद दिल्ली को विदेशी मेहमानों के स्वागत के लिए सजधज कर तैयार होना है। 3 अक्टूबर 2010 से दस दिवसीय कामन वेल्थ गेम्स का आयोजन प्रस्तावित है। सूबे की निजाम शीला दीक्षित ने कुछ दिनों पूर्व नर्वसनेस बताकर सभी के हाथ पांव फुला दिए थे।


दिल्ली के बारे में जो सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं, उसमें वर्तमान में दिल्ली में लगभग छ: सैकड़ा फ्लाई ओवर हैं, जिन पर जब तब जाम की स्थिति निर्मित हो जाती है। लोक निर्माण विभाग के प्रस्तावित और निर्माणाधीन 24 तथा एमसीडी के 17 को मिलाकर आने वाले समय में इनकी तादाद सैकड़ा पार कर सकती है।


एक जमाने मे दिल्ली की लाईफ लाईन के नाम से मशहूर यहां की डीटीसी बसें बुरी तरह कराह रहीं हैं। कामन वेल्थ गेम्स को देखकर यहां लो फ्लोर बस सड़कों का सीना रौंद रहीं हैं। वर्तमान में डीटीसी के पास कुल 3650 यात्री बस हैं। 2010 तक इस बेड़े में 2500 और बस जुड़ जाएंगी जिनमें वातानुकूलित बसों की तादाद 1025 होने की उम्मीद जताई जा रही है।


बसों को तो सड़कों पर उतरने की कवायद की जा रही है पर डीटीसी के डिपो का अता पता तक नहीं है। रोहणी के डिपो का काम अभी आरंभ ही नहीं हो सका है तो नरेला, कंझावाल 1 और दो का काम 10 फीसदी, ओखला 3 का 25 फीसदी, द्वारका सेक्टर 8 का 35 तो द्वारका सेक्टर 2 का काम 40 प्रतिशत ही पूरा हो सका है। डीटीसी बसों के रखखाव के लिए चार नए डिपो प्रस्ताति हैं। लालफीताशाही बाबूगिरी और बिगडेल अफसरशाही के बीच इनका काम समय से पूरा होने में संशय ही लगता है।


वर्तमान में लाईफ लाईन बन चुकी मेट्रो रेल में आए दिन कोई न कोई दुघZटना का घटना अशुभ संकेत से कम नहीं है। यलो लाईन, रेड लाईन और ब्लू लाईन के नाम से तीन मार्गों पर वर्तमान में मेट्रो रेल लगभग 75 किलोमीटर में लगभग साढ़े आठ लाख यात्री सफर तय कर रहे है। आने वाले दिनों में इसकी लंबाई बढ़कर 189 किलोमीटर हो सकती है, तब अनुमानित बीस लाख यात्री रोजाना इसमें सफर कर सकेंगे।


जमरूदपुर, लक्ष्मीनगर, नेहरू प्लेस के बाद शनिवार को सेंट्रल सेक्रेटरीएट से गुड़गांव मार्ग पर हुआ हादसा रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है। जमरूदपुर हादसे के उपरांत डीएमआरसी प्रमुख श्रीधरन ने अपना त्यागपत्र दे दिया था। यद्यपि कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों को देखकर दिल्ली सरकार ने उनका त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया था, तथापि मेट्रो लाईन के निर्माण में कोताही निरंतर जारी है।


मेट्रो निर्माण कर रही गेमन इंडिया लिमिटेड को काली सूची में डाल दिया है। यह एक कदम हो सकता है, पर इससे समाधान नहीं किया जा सकता है। दरअसल मेट्रो लाईन बिछाने, खंबे खड़े करने तथा उन्हें आपस में जोड़ने के लिए पाबंद की गई एजेंसीज को ही मेट्रो रेल निर्माण का अनुभव ही नहीं है। बड़ी कंपनियों ने ठेका लेकर इसे पेटी पर छोटे ठेकेदारों को दे दिया है, जिसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है।


दिल्ली में आने वालों की बड़ी तादाद रेल मार्ग से ही होती है। कमोबेश हर ओर से आने वाले विशेषकर मथुरा के रास्ते दिल्ली में प्रवेश करने वाली रेलगाडियां अक्सर ही नियत समय से विलंब से दिल्ली पहुंचती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण दिल्ली को मध्य, दक्षिण, मध्य पूर्व और मध्य पश्चिम से आने वाली रेल गाडियों का गेट वे मथुरा का होना है। यही कारण है कि सीमित प्लेटफार्म और रेल की पांते होने से यातायात का दबाव अधिक रहता है, परिणामस्वरूप रेल गाडियां विलंब से पहुंचती हैं।


वर्तमान में दिल्ली में सराय रोहिला, सब्जी मण्डी, लाजपत नगर, आदि सहित अनेक रेल्वे स्टेशन हैं। इनमें से नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली और हजरत निजामुद्दीन का उपयोग सर्वाधिक होता है। आने वाले समय में आनन्द विहार रेल्वे स्टेशन के आरंभ होने से यातायात का दबाव कुछ हद तक कम होने की उम्मीद है।


दो टर्मिनल वाले इंदिरा गांधी हवाई अड्डे में वर्तमान में लगभग बीस लाख यात्री प्रति माह आवागमन करते हैं। 31 मार्च 2010 तक इसका तीसरा टर्मिनल भी आरंभ होने की उम्मीद है। सरकारी सूत्रों की मानें तो आने वाले साल में इसकी क्षमता बढ़कर 50 लाख यात्री प्रतिमाह होने का अनुमान है।


राजधानी से सटे नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद आदि को भी आधुनिक बनाने की कवायद चल रही है। राजधानी का हृदयस्थल कनाट प्लेस को सुंदर बनाने का काम भी युद्ध स्तर पर जारी है। रही बात स्टेडियम और खिलाडियों के रहने की जगह की तो उस मामले में काम कच्छप गति से ही संचालित हो रहा है। खेलों के लिए दिल्ली में 11 स्टेडियम प्रस्तावित हैं।


राजधानी के नेहरू सटेडियम का काम 53 फीसदी, इंदिरा गांधी स्टेडियम का 36 फीसदी, एसपी मुखर्जी 42, कणीZ सिंह 42, एमसीडी 75, सिरीफोर्ट 46, बिगबोर 40, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं तालकटोरा का 35 फीसदी, यमुना स्पोर्टस काम्पलेक्स का महज 7 प्रतिशत काम ही पूरा हुआ है। विभागों के बीच तालमेल और सामंजस्य का अभाव इनके कार्य संपादन में प्रमुख चुनौति के तौर पर सामने आया है।


राजधानी की सबसे बड़ी समस्या यहां के बिगड़ेल आटो और टेक्सी चालक हैं, जिन पर लगाम लगाना शायद प्रशासन के बूते के बाहर की ही बात नजर आ रही है। शहर की सीवर लाईन समस्या के चलते गंदा और बदबूदार पानी सड़कों पर बहता रहता पर इस ओर न तो शीला सरकार का ध्यान है, और न ही नगर पालिका निगम का।


किसी भी दिशा से जैसे ही दिल्ली की सीमा में प्रवेश किया जाता है, वैसे ही गंदे नालों की अजीब सी सडांध मारती दुर्गंध आपको नींद में ही बता देगी कि आपने दिल्ली की सीमा में प्रवेश कर लिया है। इस बात को एयर कंडीशन्ड गाडियों में चलने वाले नेता और अफसरान शायद ही समझ सकें। इस दुर्गंध के साथ दिल्ली आपका स्वागत करती है -``मुस्कुराईये कि आप दिल्ली में हैं।``


पानी और बिजली के मामले में दिल्ली का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। मामला चाहे पेयजल का हो या बिजली आपूर्ति का दोनों ही मामलों में दिल्ली सरकार कब दगा दे जाए कहा नहीं जा सकता है। भीषण गर्मी या हाड गलाने वाली ठण्ड में भी दिल्ली में बिजली और पानी दोनों ही नदारत रहते हैं।


सुरक्षा की दृष्टि से भी दिल्ली पुलिस को एहतियाती कदम उठाना आवश्यक होंगे। वैसे भी आतंकवादियों और अपराधियों के लिए दिल्ली साफ्ट टारगेट रही है। दिल्ली में एक के बाद एक होने वाली दुघZटनाएं और हत्याओं के चलते यहां के लोगों का जीना दुश्वार है।


कामन वेल्थ गेम्स की तैयारियों को देखकर यह सुखद एहसास अवश्य ही होता है कि आजाद भारत की राजनैतिक राजधानी आजादी के 62 सालों बाद ही सही कम से कम दुल्हन की तरह सज तो सकेगी, किन्तु अंदर ही अंदर एक डर भी सताता है कि कहीं यह सब एक दिवा स्वप्न ना साबित होकर रह जाए।

मसल और मनी पावर का दबदबा है हरियाणा में

मसल और मनी पावर का दबदबा है हरियाणा में



14 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले


68 के मुकाबले इस बार महज 60 महिला उम्मीदवार हैं मैदान में


आधे से अधिक उम्मीदवार करोड़पति


(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। बिहार और उत्तर प्रदेश की तर्ज पर अब हरियाणा में भी धनबल (मनी पावर) और बाहुबल (मसल पावर) का बोलबाला साफ दिखाई दे रहा है। चुनावी मैदान में स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों की कमी से साफ होने लगा है कि अब सभ्रांत लोगों का राजनीति से मोहभंग हो रहा है।


एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) द्वारा किए गए सर्वेक्षण के उपरांत यह तथ्य सामने आया है। एनजीओ के सर्वे में कहा गया है कि कांग्रेस और हरियाणा जनहित कांग्रेस तथा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 14 - 14 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले पंजीबद्ध हैं। इंनेलो और बसपा के 12 - 12, भाजपा के 8 उम्मीदवार आपराधिक मामलों के चलते अदालतों की चौखट चूम रहे हैं।


सर्वे में यह भी खुलासा किया गया है कि 251 उम्मीदवारों द्वारा घोषित की गई संपत्ति एक करोड़ रूपए से अधिक की है। इस चुनाव में सर्वाधिक संपत्ति कोसली के हरियाणा जनहित कांग्रेस के उम्मीदवार मोहित की है, जिन्होंने 92 करोड़ 70 लाख रूपयों की संपत्ति की घोषणा सार्वजनिक तौर पर की है। अंबाला सिटी से कांग्रेस के प्रत्याशी विनोद शर्मा की संपत्ति 87 करोड़ 40 लाख रूपए है। एक प्रत्याशी ने अपनी संपत्ति शून्य तो केथल के इनेलो के उम्मीदवार कैलाश भगत ने अपने उपर 55 करोड़ रूपयों का कर्ज बताया है।


गौरतलब होगा कि पिछले विधानसभा चुनावों में हरियाणा में 11.34 फीसदी प्रत्याशियों का आपराधिक रिकार्ड पाया गया था, जो इस बार बढ़कर 14 प्रतिशत हो गया है। पिछले चुनाव में महज 27 राजनैतिक दल मैदान में थे, इस बार उनकी संख्या 81 फीसदी बढ़कर 49 हो गई है। पिछली बार 983 के मुकाबले इस बार 1222 उम्मीदवार चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।






रविवार, 4 अक्टूबर 2009

चंदा मामा से प्यारा मेरा क्वात्रोची मामा . . .

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

चंदा मामा से प्यारा मेरा क्वात्रोची मामा . . .
बोफोर्स, बोफोर्स बोफोर्स। बार बार यह सुनते सुनते कान थक गए और अब सरकार ने बोफोर्स के जिन्न को सदा के लिए बोतल में बंद कर उसे समंदर में गहरे पानी तले दबाने का जतन किया है, ताकि दुबारा यह बाहर न आ सके। बोफोर्स तोप दलाली की चीत्कार के चलते राजीव गांधी की सरकार गिर गई थी। भाजपा नेता अरूण शोरी तब पत्रकार की भूमिका में थे, उन्होंने बोफोर्स को जमकर हवा दी थी। आज उनकी चुप्पी भी रहस्यमय ही है। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के पीहर (मायके) के हैं इसमें लिप्त ऑक्टोबिया क्वात्रोची, सो इस लिहाज से वे कांग्रेसियो के मामा ही लगे, भला मामा को क्यों न बचाए कांग्रेस की सरकर! फिर बताते हैं कि राजमाता की सहेली जो ठहरीं क्वात्रोची की पित्न मारिया। अब सब कुछ साफ साफ दिखाई पड़ने लगा है। क्वात्रोची आजाद हैं, लानत मलानत झेल रही है कांग्रेस। वैसे भी माना जाता है कि पब्लिक मेमोरी (लोगों की याददाश्त) ज्यादा नहीं होती है, सो इस बारे में चौक चौराहों पर कुछ माह तक चर्चा होने के बाद फिर मामला ठंडे बस्ते के हवाले हो जाएगा। रही बात मीडिया की तो अखबारों और चेनल्स की सुर्खियां बनी यह खबर एकाध सप्ताह में बीच के किसी पन्ने पर आकर दम तोड़ ही देगी। मजे की बात तो यह है कि क्वात्रोची ने अपने खाते से 21 करोड़ रूपए निकाल भी लिए हैं।


राहुल की युवा होती कांग्रेस!

उमर दराज नेताओं को मार्गदर्शक की भूमिका में ही होना चाहिए। यह मानना कमोबेश हर राजनैतिक दल का है। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस के नए पायोयिर (अगुआ) हैं नेहरू गांधी परिवार की पांचवीं पीढ़ी के सदस्य राहुल गांधी। मंत्रीमण्डल से लेकर सरकार तक में वे युवाओं को आगे लाने के हिमायती रहे हैं। जब से कांग्रेस के महासचिव राहुल ने अपने अघोषित राजनैतिक गुरू एवं दूसरे महासचिव राजा दिगिवजय सिंह के मार्गदर्शन में परोक्ष तौर पर कांग्रेस की कमान संभाली है तब से वे युवाओं को ही तवज्जो दे रहे हैं। महाराष्ट्र में आसन्न चुनावों में राहुल गांधी की युवा होती कांग्रेस का एक अजूबा चेहरा सामने आया है। राहुल की सिफारिश पर कोल्हापुर तालुके की शिरोल विधानसभा सीट से सतगोंडा रेवगोंडा पाटिल को अपना उम्मीदवार बनाया है। पेशे से किसान यह कांग्रेसी उम्मीदवार जरूरत से ज्यादा युवा नजर आ रहे हैं। इन्हें 2004 के विधानसभा चुनावों में टिकिट से महरूम रखा गया था। राहुल चर्चा में इसलिए आ गए हैं, क्योंकि जिस पाटिल से राहुल गांधी बहुत ज्यादा प्रभावित नजर आ रहे हैं, उनकी उमर महज 90 साल जो ठहरी।


12 साल से जगह की तलाश में बापू


दलित नेता स्व. कांशीराम, मायावती सहित 11 दलित नेताओं की प्रतिमाएं स्थापित करने के लिए उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती ने करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा दिए हैं, किन्तु 12 सालों में गोतम बुद्ध नगर (नोएडा) में बापू की प्रतिमा को स्थापित करने माकूल जगह नहीं मिल सकी है। 12 साल पहले नोएडा अथारिटी के आग्रह पर देश के नामी मूर्तिकार रा.वी.सुतार द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आदमकद प्रतिमा गढ़कर दी थी। बाद में इसके भुगतान को लेकर उपजे विवाद में सुतार ने इसे मुफ्त में ही अथारिटी को सोंप दिया था। इस प्रतिमा को लगाने के लिए गोलचक्कर का चयन किया गया था, किन्तु वह प्रतिमा के हिसाब से उचित प्रतीत नहीं हुआ। इसके बाद अथारिटी ने वह प्रतिमा दिल्ली पब्लिक स्कूल के सेक्टर 30 स्थित परिसर में रखवा दी थी। कितने आश्चर्य की बात है कि आधी लंगोटी पहनकर ब्रितानी शासकों के दांत अहिंसा के बल पर खट्टे कराने वाले बापू की प्रतिमा को लगाने के लिए बारह सालों में कोई जगह नहीं मिल सकी है। एसा नहीं है कि इन बारह सालों में नोएडा में किसी की प्रतिमा की स्थापना न की गई हो। हद तो तब हो गई जब कांग्रेसी मानसिकता वाले डीपीएस के संचालकों सहित कोई भी कांग्रेस 02 अक्टूबर को इस प्रतिमा पर दो फूल अर्पित करने नहीं पहुंचा।


प्रजा अंधकार में जनसेवक का घर रोशन!


बिजली विभाग के घाटे में जाने और बिजली चोरी रोकने की गरज से मध्य प्रदेश सरकार ने एक फरमान निकला था कि जिस भी गांव में बिजली के बिल की अदायगी न की गई वहां की बिजली काट दी जाएगी। विद्युत मण्डल ने इस योजना को अमली जामा भी पहनाया। सूबे के दमोह जिले की हटा तहसील के एक गांव में अद्भुत नजारा दृष्टव्य हुआ। सूबे के कृषि मंत्री डॉ.राम कृष्ण कुसमरिया के गृह गांव सकौर में आठ लाख रूपए के बिजली के बिल की अदायगी न किए जाने पर बिजली विभाग द्वारा अंधेरा कर दिया गया। पर चूंकि यहां सूबे के एक कबीना मंत्री भी रहते हैं, सो बिजली विभाग ने एक ट्रांसफारमर लगाकर मंत्री के घर को रोशन कर दिया है। केंद्रीय विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा एवं विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर के होटल बिलों की भांति ही कुसमरिया का कहना है कि यह उन्होंने अपने निजी खर्च पर लगवाया है। जनाब कुसमरिया भी शायद भूल रहे हैं कि जनसेवक का काम मां की तरह होता है, जो पहले अपने बच्चों का पेट भरती है, फिर खुद अपनी क्षुदा शांत करती है। इस लिहाज से कुसमरिया को पहले प्रजा का ख्याल रखना चाहिए था, वस्तुत: जो उन्होंने नहीं किया।


उड़नखटोले ने डाला मंत्रियों को संकट में


अपना रूतबा और विलासिता दर्शाने के लिए उड़न खटोलों से सैर करना जन सेवकों का पुराना शगल रहा है। अपनी इन आदतों के चलते नेता मंत्री सदा ही चर्चाओं में रहे हैं। हाल ही में उत्तराखण्ड सरकार के मंत्रियों और नेताओं के उड़ने पर महालेखाकार नियंत्रक (एजी) ने गहरी आपत्ति की है। सरकार का कहना है कि उसने इसमें महज 17 करोड़ की राशि ही व्यय की है, किन्तु एजी का कहना है कि इसमें 50 करोड़ से अधिक की राशि का खर्च अनुमानित है। इतना ही नहीं आडीटर जनरल का कहना है कि सरकार द्वारा सौंपी सूची, एयर ट्रेफिक कंट्रोल (एटीसी) को सोंपी सूची एवं आरटीआई के तहत सौंपी गई सूची में बहुत ज्यादा अंतर है। इसमें गंतव्य भी परिवर्तित प्रतीत हो रहे हैं। सरकार भी बेचारी क्या करे। मंत्रिमण्डल में न शामिल किए गए अपने बड़े आकाओं जिनके इशारे पर सरकारें बनती और गिरती हैं, को खुश करने और उनकी हवाई यात्रा के प्रबंधन के लिए किसी भी मंत्री के नाम पर हवाई जहाज को किराए पर लिया जो जाता है। अब यह अलग बात है कि जिस दिन की यात्रा दर्शाई गई हो उस दिन उसी मंत्री ने दर्शाई यात्रा से सैकड़ों किलोमीटर दूर किसी कार्यक्रम में भाग लिया हो। सच ही है इसे देखने ओर सुनने वाला कोई नहीं है।



एम को एम से दूर करने की कवायद


राजनीति हो या रूपहला पर्दा या कोई और जनहित का कार्य करने वाला शक्स, हर किसी को मीडिया की दरकार होती ही है। मीडिया से संबंध अच्छे रहें तो उसकी छवि भी कमोबेश अच्छी ही बनी रहती है (यह बात आज के परिवेश के मीडिया पर लागू होती है, वरना पहले तो मीडिया सिर्फ सच को ही उजागर किया करता था)। स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव के गुर्गों द्वारा नई रेल मंत्री ममता बनर्जी (एम) को मीडिया (एम) से दूर करने का ताना बाना बुना जा रहा है। मीडिया को खुश करने के लिए ममता ने पत्रकारों और उनके परिजनों को आसान और आरामदायक रेल यात्रा की योजनाएं लागू कर दी हैं। वहीं दूसरी ओर इन योजनाओं में पलीता लगाया जा रहा है। कुछ दिनों पहले रेल विभाग का एक बयान आया था कि 15 अक्टूबर के उपरांत रेल ट्रेवल कूपन (आरटीसी) पर टिकिट नहीं मिलेगी, पत्रकारों के लिए क्रेडिट कार्ड बनवाए जा रहे हैं। कई सूबों में इस योजना का अता पता ही नहीं है। इसके अलावा पत्रकारों के लिए आरक्षण की खास व्यवस्था को भी तहस नहस कर दिया गया है। मीडिया बिरादरी में ममता बनर्जी के प्रति आक्रोश के बीज अंकुरित होने लगे हैं। ममता शायद इससे अनजान हैं, किन्तु लालू के चहेते कारिंदे इसमें खाद पानी देने का काम बदस्तूर कर रहे हैं।

बधाई के साथ ही नसीहत की भी दरकार


भारत की बेटी युगरल श्रीवास्तव ने संयुक्त राष्ट्र में जाकर समूचे विश्व को जलवायू परिवर्तन के बारे में समझाईश दी, जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी। ग्लोबल वार्मिंग से अब शायद कोई अछूता और अनजान होगा। बात वही है कि सिगरेट से होने वाले नुकसान के संबंध में लेख अवश्य पढ़ा जाता है, किन्तु अंगुलियों में सिगरेट कबाकर कश लेते हुए। हम जानते हैं कि धरती का तापमान बढ़ रहा है, कार्बन डाई आक्साईड का ज्यादा मात्रा में उत्सर्जन, वृक्षों को काटकर उस पर कांक्रीट जंगलों का निर्माण, प्लास्टिक का उपयोग यह सब किसी ओर के लिए नहीं हमारे लिए ही हानीकारक है। आज विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए कौन सी विरासत छोड़ने जा रहे हैं। देश में कमोबेश हर सूबे में प्लास्टिक के बेग को प्रतिबंधित कर दिया गया है, पर आज केंद्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे दिल्ली में ही इनका उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। कचरों के ढेरों से प्लास्टिक उड़ उड़कर इधर उधर फैल रही है। छोटे शहरों में तो कचराघरों के आसपास पेड़ों पर झूलती प्लास्टिक देखकर लगता है मानो वह प्लास्टिक का पेड़ हो। केंद्र, राज्य सरकारों सहित समूचे देशवासियों को चाहिए कि युगरल को बधाई अवश्य दें पर उसकी बात से नसीहत लेकर धरती के तापमान को कम करने की दिशा में पहल अवश्य करें।


चर्चा में रहा तीरथ का विज्ञापन

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का एक विज्ञापन पिछले दिनों चर्चा का विषय बना रहा। यूपीए चेयरपर्सन श्रीमति सोनिया गांधी, वजीरेआला डॉ.एम.एम.सिंह महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री कृष्णा तीरथ और बापू के छायाचित्रों से सजे एक पेज के रंगीन इस विज्ञापन में ``महिलाओं के खिलाफ हिंसा निवारण के लिए राष्ट्रीय अभियान का शुभारंभ, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस 2 अक्टूबर 2009 एवं हिंसा रहित भारत, अन्याय रहित जिन्दगी`` के अलावा सारी इबारत अंग्ल भाषा में ही थी। तीरथ का विभाग शायद यह भूल गया कि हरिजन कालोनी, हरिजन सेवक कल्याणसंघ, आदि स्थानों पर आयोजित इन कार्यक्रमों में शामिल होने वाले लोगों में अंग्रेजी भाषा के जानकार बहुत ही कम थे। फिर बापू ने ही कहा था कि राष्ट्रभाषा हिन्दी ही भारत को एक सूत्र में पिरो सकती है। हिन्दी भाषी दिल्ली की रहने वाली महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री तीरथ का अंग्रेजी प्रेम लोगों के बीच चर्चा का विषय न बनता तो और क्या बनता।


कांग्रेस ही कांग्रेस की दुश्मन


हरियाण में होने वाले विधानसभा चुनावों में अब कांग्रेस बनाम कांग्रेस की स्थिति निर्मित होती जा रही है। कांग्रेस के अंदरखाते में चल रही इस जंग से भले ही उपरी पायदान के राजनेताओं का राजनेतिक ग्राफ बढ़ रहा हो पर यह सच है कि जमीनी तौर पर कांग्रेस रसातल की ओर बढ़ती दिख रही है। हालात देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि सूबे में कांग्रेस के लिए यह लड़ाई बहुत ही मंहगी साबित हो सकती है। राज्य में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत, केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा, राज्य के वित्त मंत्री वीरेंद्र डूमर खान और वन मंत्री किरण चौधरी आपस में भले ही एकता का प्रदर्शन करें, किन्तु अंदर ही अंदर तलवारें भांज रहे हैं। चूंकि हरियाणा से दिल्ली का रास्ता बहुत लंबा नहीं है, इसलिए सभी क्षत्रप अपने अपने आकाओं को साधने में भी सफल हो पा रहे हैं। जिस भी नेता को जहां भी मौका मिल रहा है वह अपने प्रतिद्वंदी के खिलाफ विषवमन से नहीं चूक रहा है। दिल्ली में सोनिया के निज सचिव विसेंट जार्ज, राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल, राहुल गांधी के अघोषित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी के सचिव कनिष्का सिंह के दरबार में उमड़ती भीड़ को देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सूबे की राजनीति का रिमोट कहीं न कहीं दिल्ली में ही है।


इस सादगी को सलाम!


एक ओर केंद्र सरकार के साथ कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी और कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी सादगी का प्रहसन कर पाई पाई बचाने की जुगत लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की बदइंतजमी के चलते लगभग दस लाख टन अनाज सड़ गया। कोलकता के बंदरगाह में गोदामों में विदेशों से आयात किया गया अनाज और अन्य सामग्री या तो सड़ गई या चूहों कीट पतंगों की भेंट चढ़ गई। मजे की बात तो यह है कि यह सब कुछ केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच सामंजस्य न होने से हुआ है। दरअसल स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन कार्यरत सेंट्रल फुड लेबोरेटरी द्वारा विदेशों से आयतित खाद्य सामग्री का परीक्षण कर उसे मानव उपयोग के लिए उचित बताते हुए प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। दोनों ही मंत्रालयों के बीच तालमेल के अभाव के चलते लाखों टन अनाज बंदगाह पर ही पड़ा बरसात में सड़ता रहा। केंद्र सरकार के मितव्ययता कि ढोंग कर पाई पाई बचाने और उनके ही अधीन कार्यरत मंत्रालयों द्वारा करोड़ों रूपयों के अनाज को सड़ा देना आखिर क्या साबित करता है। इस तरह की सादगी को सलाम ही कहा जाए तो बेहतर होगा।


वसुंधरा से डरी हुई है भाजपा


जसवंत सिंह के मामले में अपनी किरकिरी करा चुकी भारतीय जनता पार्टी अब राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे पर कठोर कार्यवाही करने से हिचक रही है। भाजपा को डर है कि अगर उसने सख्ती की और वसुंधरा ने अपना त्यागपत्र नहीं दिया तो उसकी स्थिति दुविधाजनक हो जाएगी। पहले ही जसवंत सिंह द्वारा लोकसभा की लोक लेखा समिति के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र न दिए जाने से भाजपा बेकफुट में दिखाई दे रही हैं। उधर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह पर यह दबाव बढ़ता जा रहा है कि एक बार वसुंधरा के त्यागपत्र की घोषणा होने के बाद अगर ज्यादा समय बीता तो पार्टी में असंतुष्ट मुंह खोलने लगेंगे। इस्तीफा प्रकरण न सुलटने के कारण राजस्थान के दो विधायकों राजेंद्र राठोड़ और ज्ञानदेव आहूजा के निलंबन पर भी विचार नहीं हो पा रहा है। राजनथ भी चाह रहे हैं कि चला चली की बेला में विवादित होने के बजाए अब विवादित मामलों में चुप्पी साधकर अपना एक दो माह का समय काट ही लिया जाए।




अब दत्त परिवार के राजनैतिक तौर पर बंटने की खबरें

राजनीति में परिवारों का अलग अलग विचारधाराओं का होना नई बात नहीं है। देश के अनेक घरानों के सदस्य अलग अलग विचारधारा वाले राजनैतिक दलों की नुमाईंदगी करते नजर आते हैं। नेहरू गांधी खानदान में ही सोनिया और राहुल कांग्रेस की अगुआई कर रहे हैं तो मेनका और वरूण भाजपाई विचारधारा के पोषक हैं। ज्योतिरादित्य और वसुंधरा, यशोधरा भी परस्पर विरोधी दलों में हैं। अब फििल्मस्तान का दत्त परिवार भी इसी राह पर चल पड़ा है। मुंबई में बांद्रा पश्चिम की सीट पर बाबा सिद्दकी को जिताने के लिए संजय दत्त की बहन प्रिया दत्त ने कमर कस ली है तो संजू बाबा समाजवादी उम्मीदवार रिजवान सिद्दकी को जिताने की जद्दोजहद में व्यस्त हैं। चर्चा यह है कि परस्पर विरोधी विचारधारा वाले राजनैतिक दलों में प्रवेश कर ये अपनी निष्ठा और विचारधारा का पोषण कर रहे हैं या फिर अपने निहित स्वार्थों को सिद्ध करने का उपक्रम कर रहे हैं।


कमजोर रही है हरियाणा में महिलाओं की स्थिति

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक हुए 10 विधानसभा चुनावों में महज 60 महिलाएं ही विधायक बन सकीं हैं। यह आंकड़ा सूबे में राजनैतिक तौर पर महिलाअों की कमजोर भागीदारी को दर्शाने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है। इनमें से 56 महिलाएं विधानसभा और 4 ने उपचुनावों में परचम लहयारा है। वर्तमान में सूबे में 90 सीटों में 67 महिलाएं ही मैदान में हैं। वर्तमान में किरण चौधरी और सुमिता सिंह तोशाम और करनाल से दूसरी बार किस्मत आजमा रहीं हैं। आर्थिक तौर पर समृद्ध समझे जाने वाले हरियाणा में महिलाओं की भागीदारी महज छ: फीसदी ही रही है, जबकि लगभग हर दल महिलाओं की तेंतीस फीसदी भागीदारी सुनिश्चित करने का आलाप रागता आया है। राजनैतिक दलों की कथनी और करनी में फर्क इसी बात से साफ हो जाता है।


लोहपुरूष को आड़े हाथों लिया चोटाला ने

इंडियान नेशलन लोकदल के सुप्रीमो और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला ने भाजपा के कथित लोह पुरूष लाल कृष्ण आड़वाणी पर वार आरंभ कर दिया है। लोकसभा चुनावों में पार्टी की दुगर्ति के लिए उन्होंने सीधे सीधे तौर पर एल.के.आड़वाणी को जवाबदार ठहराया है। चोटाला का कहना है कि सक्रिय राजनीति से सन्यास की बात सोचने वाले आड़वाणी अगर चार साल पहले सन्यास ले लेते तो देश में भाजपा और हरियाणा में इनेलो का सत्यानाश होने से बच जाता। कल तक भाजपा की गलबहिंया करते और आड़वाणी के स्तुतिगान करने वाले इंनेलो के नेताओं की इस तरह की पल्टी से सभी चकित हैं। लगता है चोटाला को समझ में आ गया है कि भाजपा को कोसने से ही सूबे में उन्हें लाभ हो सकता है, सो उन्होंने आड़वाणी के खिलाफ अपनी तलवार पजाना आरंभ कर दिया है। चौटाला को कौन समझाए कि कौओं के कोसे ढोर नहीं मरते।

पुच्छल तारा


स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती और उनकी पुण्य तिथि पर देश भक्ति के भूले बिसरे गीत बजते हैं, वो भी महज अपरान्ह 12 बजे तक। आज की युवा पीढ़ी राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी को शायद भूलती ही जा रही है। तरूणाई की जुबां पर गांधी नेहरू के नाम पर अब महज तीन नाम ही बचे हैं। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और वरूण गांधी। प्रियंका भी युवाओं में लोकप्रिय हैं, पर शादी के बाद वे गांधी से वढ़ेरा हो गईं हैं। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में एक कन्फयूजन पर दिन भर लोग ठहाके लगाते रहे। हुआ दरअसल यूं कि एक धवल खद्दरधारी युवा नेता सुबह सवेरे कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) और 12 तुगलक लेन (राहुल गांधी का सरकारी आवास) पर जाकर वहां के नांदियों (सोनिया और राहुल के गण) को गांधी जयंती की शुभकामनाएं दे आए। बाद में उन्हें ज्ञात हुआ कि दरअसल जयंती तो महात्मा गांधी की थी। फिर क्या था ``लगे रहो मुन्ना भाई`` की तर्ज पर उनके मुंह से बेसख्ता निकल गया -``गांधी. . . कौन गांधी . . .सोनिया, . . . राहुल . . . या. . . और वो पुराने वाले . . . भूले बिसरे. . . .।



शनिवार, 3 अक्टूबर 2009

थुरूर के पर कतरने से कतराती कांग्रेस

थुरूर के पर कतरने से कतराती कांग्रेस

(लिमटी खरे)

किसी भी संगठन के लिए अनुशासन से बढ़कर कोई चीज नहीं होती है। इतिहास गवाह है कि गैर अनुशासित व्यक्तित्व या संगठन के धराशायी होने में समय नहीं लगता है। भाजपा में कुछ सालों से अनुशासनहीनता चरम पर रही है, यही कारण है कि अटल बिहारी बाजपेयी के परोक्ष तौर पर सक्रिय राजनीति को गुडबाय कहने के साथ ही भाजपा का सूर्य अस्ताचल की ओर जाता साफ दिखाई पड़ने लगा है।


सवा सौ साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में अनुशासनहीनता के किस्सों की कमी नहीं है। जैसे ही अनुशासन का क्रम टूटता है, वैसे ही इसके प्रभाव भी दिखाई पड़ने लगते हैं। कांग्रेस न जाने कितनी बार विभाजित हो चुकी है। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी ने भी कांग्रेस ई का गठन किया था, जो अब तक कायम है।


हाल ही में विदेशी राजनयिक से जनसेवक और मंत्री बने विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर ने सोशल नेटविर्कंग वेव साईट पर अपनी टिप्पणियां करके अपने आप को विवादित कर लिया है। कभी कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से व्यवसायिक राजधानी मुंबई तक की गई इकानामी क्लास की यात्रा के उपरांत इसे मवेशी दर्जा की संज्ञा, कभी काम का बोझ, तो कभी कुछ ओर।


हाल ही में उस वेव साईट पर अपने प्रशंसकों के सवालों के जवाब में थुरूर ने यह कहकर नई बहस को जन्म दे दिया है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिवस जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है पर अवकाश का क्या ओचित्य हैर्षोर्षो


सोशल नेटविर्कंग वेव साईट पर टिप्पणियां करते हुए थुरूर देश के जिम्मेदार मंत्री कम, अलबत्ता वे वालीवुड के सिने स्टार की भूमिका में ज्यादा नजर आ रहे हैं। या यूं कहा जाए कि थुरूर के सर चढ़े इंटरनेट और सोशल नेटविर्कंग वेव साईट के नशे ने उन्हें हाई स्कूल के छात्र की भूमिका में लाकर खड़ा कर दिया है।


शशि थुरूर स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक हैं, उन्हें अपनी बात कहने या रखने का पूरा अधिकार है, किन्तु वे शायद यह भूल रहे हैं कि इस वक्त वे भारत गणराज्य के एक जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री हैं। राजनैतिक दलों का इतिहास रहा है कि अगर किसी भी राजनेता को अपनी राय व्यक्त करनी हो तो उसके लिए पार्टी मंच से मुफीद और कोई जगह नहीं रही है।


यह सब होने के बाद थुरूर द्वारा अपने विचारों का सार्वजनिक किया जाना ओचित्य से परे ही नजर आता है। साधारण कार्यकर्ताओं द्वारा गलत सलत अनर्गल बयानबाजी पर अनुशासन का कोडा चलाने वाली कांग्रेस पार्टी अपने ही केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर की जबान पर लगाम लगाने का साहस क्यों नहीं कर पा रही है, यह यक्ष प्रश्न जनता जनार्दन के मानस पटल पर घुमड़ना स्वाभाविक ही है।


थुरूर का कहना है कि हाल ही में वियतनाम के उपराष्ट्राध्यक्ष अंगुएन थि डोन जब भारत आए थे, तब भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने डोन के सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन किया था, इसमें डोन ने कहा था कि वियतनाम में हो ची मिन्ह के जन्म दिवस पर अवकाश न होकर विर्कंग डे है, एवं वहां के लोगों से उम्मीद की जाती है कि उस दिन उनके सम्मान में वे ज्यादा मेहनत करें।


थुरूर का उदहारण विचारणीय हो सकता है, किन्तु सोशल नेटविर्कंग वेव साईट को उचित मंच नहीं माना जा सकता है। अगर वाकई थुरूर इस तरह का उपक्रम भारत गणराज्य में करना चाह रहे हों तो बेहतर होता वे अपनी बात को कांग्रेस पार्टी के मंच पर या केबनेट (मंत्रीमण्डल की बैठक) में रखते। इस तरह किसी सोशल नेटविर्कंग का सहारा लेकर बयानबाजी करने से लगने लगा है कि मनमोहन सिंह की पकड़ उनके मंत्रीमण्डल के सहयोगियों पर पहले से कमजोर ही हुई है।


थुरूर को कांग्रेस सुप्रीमो इस तरह के कृत्य न करने के लिए समझाईश भी दे चुकी हैं। बावजूद इसके अगर थुरूर की उच्चश्रंखलता जारी है, तो इससे साफ है कि वे प्रधानमंत्री और कंाग्रेस अध्यक्ष को ठेंगे पर ही रख रहे हैं। थुरूर का मानना है कि बापू का कहा था, ``काम ही पूजा है``। वे शायद भूल रहे हैं कि उनका मूल काम विदेश विभाग की सेवा है, न कि लोगों (कथित प्रशंसकों) के जवाब देना।


लगता तो यह भी है कि इंटरनेट लनेZट, कंप्यूटर फ्रेंडली (नेट और कंप्यूटर के जानकार) थुरूर इस तरह के काम करके अपने सहयोगियों पर धाक जमाने का भी कुित्सत प्रयास कर रहे हैं। और भी मंत्री होंगे जिनसे उनके चाहने वाले पत्राचार करते होंगे, किन्तु उस पत्राचार के मजमून की जानकारी चंद लोगों के बीच तक ही सीमित रहती होगी। इंटरनेट पर सब कुछ दिखता है, थुरूर जी।


कांग्रेस द्वारा अगर अपने इस तरह के उच्चश्रंखल और बड़बोले मंत्री पर लगाम नहीं लगाई तो आने वाले दिनों में कांग्रेस को रक्षात्मक मुद्रा में खडा होना पड़ सकता है। वैसे भी थुरूर का ज्यादा समय विदेशों में ही बीता है, और वे शायद यह नहीं जानते कि बापू की जयंती पर राष्ट्रीय अवकाश उनके विचारों और सिद्धांतों को समर्पित है।

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पवार और कांग्रेस की गले की फांस बनेगा विदर्भ का सूखा

सरकार बनाने में मुख्य भूमिका निभाएगा विदर्भ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए विदर्भ में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ सकता है। इस साल अपेक्षा से कम हुई बारिश से उपजी परिस्थितियों ने मतदाताओं का राकांपा और कांग्रेस से मोहभंग करवा दिया है।


गौरतलब होगा कि वर्तमान में सूबे में राकांपा और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार सत्ता पर काबिज है। दूसरी ओर केंद्र में भी कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन दूसरी बार अस्तित्व में आया है। केंद्रीय कृषि मंत्री का महत्वपूर्ण दायित्व राकांपा सुप्रीमो शरद पंवार के कांधों पर है।


प्राप्त जानकारी के अनुसार विदर्भ में संतरा पट्टी से लेकर कपास पट्टी तक किसानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। महराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर के इर्दगिर्द अकोला, रामटेक, वर्धा, यवतमाल, भंडारा, गोंदिया आदि एक दर्जन से अधिक तालुकों में किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय होने से वे आत्महत्या जैसा संगीन कदम उठाने पर मजबूर हैं।


गौरतलब होगा कि पिछले साल क्षेत्र में बारह सौ कपास उत्पादक किसान अर्थिक संकट के दौर से गुजरकर आत्महत्या कर चुके हैं। भले ही केंद्र सरकार कर्ज माफी की योजना पर अपनी पीठ थपथपा रही हो पर जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है।


वैसे भी विदर्भ में मेहान परियोजना (मल्टी मोडल इंटरनेशनल हब एंड एयरपोर्ट) लगभग पंद्रह हजार एकड़ जमीन को निगल चुकी है। मेहान वेसे भी महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कंपनी द्वारा पैदा की गई संस्था है। पूंजीपतियों से सांठगांठ के चलते यहां कि किसानों की उपजाउ जमीन जिस पर वे साल भर में तीन फसल लिया करते थे, को भी धनाड्य व्यापारियों को सौंपने की खबरें हैं।


समूचे विदर्भ और उससे सटे मध्य प्रदेश के इलाकों में रियल स्टेट के कारोबारियों की नजरें इनायत होने लगी हैं। इस इलाके में किसानों की उपजाउ जमीन खरीदकर किसानों को उनके मूल व्यवसाय से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। महानगरों के रियल स्टेट व्यवायियों ने यहां की एक एक इंच उपजाउ भूमि को खरीदकर उसे व्यवसायिक उपयोग में लाने की तैयारी की जा रही है।


नागपुर में कार्गो हब और ड्राय पोर्ट प्रस्तावित है, जिससे पूंजिपतियों ने पिछले एक दशक में यहां अपनी आमद दे दी है। जमीनों के बदले मिलने वाले पैसे किसानों द्वारा खर्च किए जा चुके हैं, अब उनके पास खाने के बांदे साफ नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर केंद्र और प्रदेश में कांग्रेसनीत सरकार तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री रहते हुए भी शरद पंवार द्वारा किसानों के लिए कुछ न किया जाना इस बार विधानसभा चुनाव में राकांपा और कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल से कम नहीं होगा।