ठंडा मतलब जहर!
सरकार ही कीटनाशक पिलाए तो कोई क्या करे!
ठंडे का पैमाना क्या!
मतलब सरकार ही पिला रही है जहर!
(लिमटी खरे)
सरकार ही कीटनाशक पिलाए तो कोई क्या करे!
ठंडे का पैमाना क्या!
मतलब सरकार ही पिला रही है जहर!
(लिमटी खरे)
स्वयंभू योग गुरू बनकर उभरे बाबा रामदेव ने जब देश में ठंडे पेय के कुछ उत्पादों के खिलाफ देशव्यापी अभियान छेडा तब उसकी व्यापक प्रतिक्रियाएं सामने आईं थीं। देश में जब ठंडे पेय पदार्थ के कुछ ब्रांड ने कीटनाशक का काम आरंभ किया और लोगों ने इसे आजमाया तब जाकर उनकी आखें खुलीं, पर देश के शासकों की आंखे आज भी इस मामले में बंद ही नजर आ रही हैं। विडम्बना तो यह है कि भारत गणराज्य को आजाद हुए छः से ज्यादा दशक बीत चुके हैं, फिर भी सात सालों के बाद भी सरकार आज तक बाजार में बिक रहे ठंडे पेय के मानक तय नहीं कर पाई है। इससे साफ हो जाता है कि बाजार में बिकने वाले शीतल पेय की लाबी कितनी ताकतवर है कि इनको बनाने वाली कंपनियों के ‘‘भारी दबाव‘‘ के चलते देश की सबसे बडी पंचायत में बैठे जनसेवक अपने कर्तव्यों के प्रति कथित तौर पर उदासीन रवैया अख्तियार किए हुए हैं। अगर मामला उनके वेतन भत्ते बढाने का होता तो निश्चित तौर पर सारे के सारे लामबंद होकर कोई ठोस निष्कर्ष पर पहुंच चुके होते, मगर अफसोस यह मामला रियाया के स्वास्थ्य से जुडा हुआ है इसलिए आवाम का खेरख्वाह कोई भी नहीं है।
इस मसले में सबसे चौकाने वाली बात यह है कि देश में बिक रहे शीतल पेय में कीटनाशकों की मात्रा यूरोपीय मानकों के हिसाब से 42 गुना अधिक पाई गई थी। इसके लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति ने सरकार से जल्द से जल्द शीतल पेय संबंधी मानक तय करने की पुरजोर सिफारिश भी की थी, पर नतीजा सिफर ही है। इस समिति का प्रतिवेदन फरवरी 2004 में संसद के पटल पर रखा गया था। इसके तीन साल बाद मार्च 2007 में एन.के.गांगुली की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञों की समिति ने भी केंद्र सरकार से कहा था कि शीतल पेय विशेषकर कोला में कीटनाशकों के मानक निर्धारित कर दिए जाएं। संसद की भेडचाल का आलम यह था कि सरकार ने अप्रेल 2009 तक इनका मानक लागू करने का लक्ष्य रखा था। कितने आश्चर्य की बात है कि जब यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि बाजार में जहर के तौर पर बिक रहे शीतल पेय में कीटनाशकों की मात्रा बहुत ज्यादा है, फिर भी सरकार ने इसे लागू करने के लिए दो साल का और वक्त मांगा। वक्त बीत गया पर आज भी शीतल पेय के मानक निर्धारित नहीं हो सके हैं।
इस मसले को प्रकाश में आए एक लंबा अरसा बीत चुका है फिर भी सरकार द्वारा कोई जरूरी कदम नहीं उठाए गए हैं। इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि शीतल पेय को बनाने वाली कंपनियों ने सरकार और जनसेवकों के मुंह भारी भरकम थैलियों से बंद कर दिए हों, पर देश के जनसेवकों को अपनी मर्यादा और लोगों के स्वास्थ्य का ख्याल रखना था, वस्तुतः जो नहीं हो पा रहा है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इन शीतल पेय निर्माता कंपनियों के आगे भारत सरकार ने घुटने टेक दिए हैं। बाबा रामदेव की अपील पर लोगों ने अपने घरों के शौचालय शीतल पेय के एक ब्रांड विशेष से साफ किए और पाया कि बाबा का कहना सही है, इसी के बाद से लोगों के शोचालयों में टायलेट क्लीनर का स्थान इस तरह के शीतल पेय ने ले लिया है। इतना ही नहीं लोगों नें अपनी फसलों पर इस ब्रांड का छिडकाव किया और पाया कि वाकई उनकी फसलें कीट पतंगों से बची हुई है। इस मामले में एक निजी टीवी चेनल के मद्य विरोधी एक विज्ञापन का जिकर लाजिमी होगा जिसमें बेटे को शराब पीता देख पिता उसकी शराब में एक कीडा डाल देता है और कहता है बेटा इसको पीने से आदमी मर भी सकता है। यह सुनकर बेटा तपाक से जवाब देता है कि पिता जी इसीलिए मैं पी रहा हूं कि पेट के कीडे मर जाएं।
केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार खुद ही इस संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष रह चुके हैं, और उन्होंने ही स्वीकार किया है कि भारत के बाजार में बिकने वाले शीतल पेय में कीटनाशक की मात्रा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के हिसाब से कई गुना अधिक है, तब क्या कारण है कि भारत गणराज्य की सरकार द्वारा अपने सवा सौ करोड से अधिक की आबादी वाले देश को इस धीमे जहर का सेवन करने पर मजबूर कर रही है। लोगों को धीमे जहर का अदी बनाने वाली शीतल पेय निर्माता कंपनियां सरकार को मुंह चिढाती ही नजर आ रही हैं। पेप्सिको इंडिया के प्रवक्ता का कहना है कि अगर सरकार शीतल पेय के अंतिम उत्पाद तक मानक लाती है तो वे इसका स्वागत करेंगे। सवाल यह है कि जिस मामले में यह साबित हो चुका है कि वह मानव उपयोग के लिए घातक है तब उसको तत्काल प्रभाव से बंद क्यों नहीं किया जा सकता है। जहां तक रही आखिरी उत्पाद की बात तो सरकार को कहना चाहिए कि आखिरी उत्पाद तक तो हम बाद में जाएंगे, पहले जिसमें जहर है उसे तो बंद कर दिया जाए।
भारत गणराज्य की विडम्बना देखिए, देश की सबसे बडी पंचायत में संसद सदस्यों की सेहत का ख्याल रखते हुए इन शीतल पेय की आपूर्ति संसद में तो रूकवा दी गई है, पर आवाम के लिए यह धीमा जहर हर चाय पान ठेले पर आज भी खुलेआम मिल रहा है। देशी विदेशी कंपनियां इस धीमी मौत के माध्यम से देश की जनता की सेहत से खिलवाड कर रही हैं। जब विशाल जनादेश पाकर आवाम को अमन चैन का सपना दिखा संसद में पक्ष और विपक्ष में बैठने वाले जनसेवक ही अपने कर्तव्यों से मुंह मोड लें तो फिर देशी और विदेशी कंपनियां अपने निहित स्वार्थ के लिए सरेराह जन सामान्य के स्वास्थ्य के साथ अगर खिलवाड कर रही हैं तो इसमें गलत क्या है। जब रक्षक ही अपने कर्तव्यों से मुंह मोड ले तो रियाया आखिर किससे उम्मीद लगाए।
3 टिप्पणियां:
sahab ab krantikaari to bache nahi...ham abhi bhi videshiyo ke rehmokaram pe pal rahe hain...unse bair kaise le le...jeher pee rahe hain tabhi zinda hai...
no dont think so. soft drink are good
मित्र आपको अभी इस विषय पर बहुत रिसर्च करने की आवशयकता है. मामला यह नहीं है जो तुम सोच रहे हो! ऐसा इसलिए भी कह रहा हूँ, क्योंकि ऐसे ही इलज़ाम वाला एक केस कोर्ट में हारा जा चूका है.
खाद्य पदार्थो के और क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में भी सेहत के लिए फायदे और नुक्सान दोनों हैं.
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