शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

टाटा को बाय बाय कहने की तैयारी में रतन

‘रतन‘ के बाद कौन कहेगा ‘टाटा‘



रतन टाटा के उत्ताराघिकारी की खोज आरंभ



अगले 29 माह में पद छोड देंगे रतन टाटा



टाटा ग्रुप के छटवें अध्यक्ष की ताजपोशी की तैयारियां



(लिमटी खरे)



भारत गणराज्य में टाटा समूहएक किंवदंती बनकर रह गया है। टाटा ग्रुप के वर्तमान अध्यक्ष रतन टाटा ने 1991 में इसके अध्यक्ष का कार्यभार संभाला था, उसके बाद टाटा गु्रप ने पीछे मुडकर नहीं देखा। लगभग बीस सालों के कारोबार में रतन टाटा के नेतृत्व मंे टाटा गु्रप के राजस्व में पच्चीस फीसदी बढोत्तरी दर्ज की गई है। टाटा समूह के वर्तमान अध्यक्ष लगभग ढाई साल बाद अपना पद छोड देंगे।

टाटा समूह की नींव जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा ने रखी थी। वे ही टाटा समूह के पितामह और संस्थापक माने जाते हैं। जब देश गुलाम था, उस वक्त जमशेदजी के बुलंद इरादों के आगे गुलामी की जंजीरें भी टिक न सकीं। जमशेदजी ने अपने परिश्रम और लगन के साथ टाटा के छोटे से पौधे को सींच सींच कर खडा किया। जमशेदजी नौशेरवांजी टाटा इस समूह के अध्यक्ष पद पर 1868 से 1904 तक काबिज रहे।

इनके उपरांत टाटा समूह की बागडोर थामी उनके पुत्र दोराबजी टाटा ने। वे इस समूह के अध्यक्ष रहे 1904 से 1932 तक। दोराबजी के पद छोडने के बाद टाटा परिवार से इतर किसी अन्य व्यक्ति को इसकी बागडोर सौंपी गई, और वे थे नौरोजी सकलतवाला। नौरोजी ने टाटा समूह के अध्यक्ष का कामकाज महज छः साल अर्थात 1932 से 1938 तक संभाला।

टाटा समूह के अध्यक्ष की सबसे लंबी पारी जमशेदजी टाटा के भतीजे जे.आर.डी.टाटा ने खेली वे 1938 से 1991 तक लगभग 23 साल तक टाटा समूह के अध्यक्ष रहे। जमशेदजी टाटा के सम्मान में टाटा नगर को जमशेदपुर भी कहा जाता है। 1991 में टाटा समूह की बागडोर संभालने वाले रतन टाटा मूलतः जमशेदजी टाटा के पड़पोते हैं। इन्होंने 1962 में जेआरडी टाटा के मशविरे पर आईबीएम समूह का एक आकर्षक ऑफर ठुकराकर टाटा समूह से जुड़ना बेहतर समझा।

काम को ही पूजा मानने वाले रतन टाटा की कार्यशैली दूसरों से हटकर ही है। रतन टाटा ने काम की शुरूआत जमशेदपुर स्टील प्लांट से की थी, जहां उन्होंने अपने साथी कामगारों के साथ लोहा गलाने वाली धमन भट्टी तक के काम की देखरेख करने में भी शर्म महसूस नहीं की।

आज टाटा का करोबार विश्व के 85 देशों में फैला हुआ है। बाजार में सात सेक्टर्स एसे हैं जिसमें टाटा समूह सक्रिय भागीदारी निभा रहा है। वर्ष 2008 - 2009 में टाटा का कुल टर्न ओवर 71 बिलियन डालर का था। टाटा की वर्तमान में कुल 114 में से 28 फर्म लिस्टिड हैं। टाटा समूह की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके 65.8 फीयदी शेयर आज भी जनकल्याण में संचालित होने वाले चेरिटेबल ट्रस्ट के पास हैं।

अब टाटा के इस विशाल साम्राज्य को कौन संभालेगा इस बारे में बहस आरंभ हो गई है। टाटा समूह के नए अगुआ के लिए सही एवं योग्य व्यक्ति की तलाश का जिम्मा पांच लोगों की एक समिति बनाकर सौंपा गया है। टाटा समूह के उत्तराधिकारी की दौड़ में रतन टाटा के चचेरे भाई नोएल टाटा सबसे प्रबल दावेदार के तौर पर सामने आए हैं। नोएल टाटा जून 2010 में टाटा इन्वेस्टमेंट के चेयरमेन बने। इसके उपरांत वे 29 जुलाई को टाटा इंटरनेशनल के प्रबंध संचालक नियुक्त किए गए।

टाटा समूह के अध्यक्ष पद के लिए रिनॉल्ट निसान के सीईओ कार्लोस घोष, पेप्सिको की प्रमुख इंदिरा नूरी, वोडाफोन के पूर्व अध्यक्ष अरूण सरीन, सिटी बेंक के प्रमुख विक्रम पंडित, इंफोसिस के संस्थापक एन.आर.नारायण मूर्ति के अलावा यूनिक आईडेंटिटी परियोजना के प्रमुख नंदन नीलकेणी के नामों की बयार बह रही है। इनमें से कौन सा भाग्यशाली चेहरा होगा जो टाटा समूह के अध्यक्ष का ताज पहनेगा यह बात तो अभी भविष्य के गर्भ में ही छिपी है।

उधर रतन टाटा ने इस बात को खारिज कर दिया है कि टाटा सरनेम वाला कोई पारसी व्यक्ति ही टाटा समूह की बागडोर संभालेगा। बकौल रतन टाटा जो भी अध्यक्ष चुना जाएगा, वह न तो पारसी धर्म का समर्थक होगा और न ही विरोधी, वह एक योग्य व्यक्ति ही होगा।

कोई टिप्पणी नहीं: