शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

सिवनी को फिर मिला आश्वासन का झुनझुना

ममता का रेल बजट
 
मध्य प्रदेश के लिए नहीं फैला ममता का आंचल 
एमपी से होकर गुजरेंगी आठ नई एक्सप्रेस और एक पैसेंजर ट्रेन
 
सात रेलगाडियों के बढ़ेंगे फेरे
 
दमोह भोपाल नई इंटरसिटी की पेशकश
 
पत्रकारों के परिवार को साल में दो बार यात्रा की पात्रता
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 25 फरवरी। पश्चिम बंगाल के रायटर बिल्डिंग पर कब्जा जमाने की जुगत में बैठी रेल मंत्री ममता बनर्जी ने आज तीसरी बार रेल बजट पेश किया। इसमें मध्य प्रदेश की झोली में कुछ खास डालने में वे सफल नहीं रहीं। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र से चलने वाली दो रेलगाडियों को दिल्ली तक बढ़ा दिया गया है। इसके साथ ही साथ रतलाम और सिवनी जिलों को अमान परिवर्तन का पुराना झुनझुना फिर पकड़ा दिया गया है।
 
आज पेश बजट में रेल मंत्री ममता बनर्जी ने ज्यादा लुभाया नहीं जा सका। पश्चिम बंगाल के चुनावों के मद्देनजर उन्होंने मीडिया को अवश्य ही आकर्षित करने का प्रयास किया। अब संवाददाताओं को अब परिवार के साथ पचास प्रतिशत यात्री किराए की रियायत के साथ साल में एक के बजाए दो मर्तबा यात्रा की सुविधा प्रस्तावित की गई है।
 
ममता ने 56 नई रेल गाडियां चलाना प्रस्तावित किया है। इनमें से जो रेलगाडी मध्य प्रदेश से होकर गुजरेंगी उनमें इंदौर से बरास्ता रूथियाई कोटा इंटरसिटी दैनिक, बरास्ता रतलाम उदयपुर से बांद्रा जाने वाली रेल सप्ताह में तीन दिन, नागपुर से इटारसी खण्डवा के रास्ते भुसावल जाने वाली एक्सप्रेस सप्ताह में तीन दिन, वाराणसी सिंगरोली इंटरसिटी रोजाना, लखनउ भोपाल एक्सप्रेस सप्ताह में एक दिन, जबलपुर इंदौर इंटरसिटी बीना गुना के रास्ते सप्ताह में तीन दिन, फैजाबाद, कानपुर, भोपाल के रास्ते गोरखपुर से यशवंतपुर जाने वाली एक्सप्रेस साप्ताहिक ओर कटनी कोटा के रास्ते शालीमार से उदयपुर एक्सप्रेस साप्ताहिक होगी।
 
राज्यों की राजधानियों को महत्वपूर्ण शहरों से जोड़ने के लिए नई रानी एक्सप्रेस रेल गाडियां चलाने का प्रस्ताव किया गया है। इसमें दमोह से भोपाल इंटरसिटी का प्रावधान दैनिक किया गया है। इसके अलावा तेरह नई पैसंेजर रेल गाडियों में एक रेल बिलासपुर से कटनी के लिए भी रोज चलना प्रस्तावित किया गया है।
 
रेलमंत्री ने 33 रेल गाडियों के परिचालन क्षेत्र में विस्तार किया है। इसमें (11101/11102) छिंदवाड़ा ग्वालियर को दिल्ली तक, (11103/11104) छिंदवाड़ा झांसी को दिल्ली तक, (12965/12966) उदयपुर ग्वालियर को खजुराहो तक, (12159/12160) जबलपुर नागपुर को अमरावती तक, (19655/19656) इंदौर अजमेर को जयपुर तक, (12183/12184) भोपाल लखनउ को प्रतापगढ़ तक एवं (59802/59803) नागदा कोटा पैसेंजर को रतलाम तक बढ़ाया गया है।
 
रेल मंत्री ने कहा कि 25 नई रेल परियोजनाओं में रतलाम बांसवाड़ा को शामिल किया गया है। 22 नई डीजल इंजन मल्टीपल यूनिट को आरंभ करना प्रस्तावित है जिसमें रतलाम नीमच के नामों का शुमार किया गया है। इसके अलावा वित्तीय वर्ष 10 - 11 में अमान परिवर्तन के आठ सौ किलोमीटर के लक्ष्य को या तो पूरा कर लिया गया है या फिर मार्च तक पूरा कर लिया जाएगा। ममता बनर्जी ने कहा कि अगले वित्त वर्ष में 1075 किलोमीटर नए रेल खण्ड का निर्माण प्रस्तावित है, जिसमें मध्य प्रदेश के खाते में ललितपुर खजुराहो सतना, खजुराहो महोबा एवं रीवा सिंगरोली का हिस्सा शामिल कर लिया गया है। उन्हांेने कहा कि भोपाल, नागपुर, चंडीगढ़ आदि में अतिरिक्त मैकेनाईज्ड लाउंड्री क्लीनिक यूनिट की स्थापना प्रस्तावित है।
 
पिछले बजट में 251 नए सर्वेक्षण की घोषणा की गई थी। ममता बनर्जी ने का कि इनमें से 190 का काम पूरा हो गया है या फिर इस वित्तीय वर्ष में अर्थात 31 मार्च 2011 तक पूरा हो जाएगा। इसमें मध्य प्रदेश की तीन परियोजनाओं का समावेश किया गया है। इसमें 73 नंबर पर रतलाम बांसवाड़ा डूंगरपुर, 90 नंबर पर छिंदवाड़ा, सिवनी, नैनपुर, मण्डला फोर्ट और 124 नंबर पर जगतगुरू शकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद स्वरस्वती के श्री धाम गोटेगांव से पूर्व प्रधानमंत्री स्व.नरसिंहराव के संसदीय क्षेत्र रामटेक तक बारास्ता सिवनी को स्थान दिया गया है। ममता बनर्जी का कहना है कि इस परियोजना में बारहवीं पंचवर्षीय परियोजना में काम आरंभ हो जाएगा।
 
रामगंज मण्डी नीमच, दमोह हातानगर खजुराहो, रतलाम इंदौर परियोजना के साथ ही साथ फतेहाबाद चंद्रावती रेल परियोजना, छिंदवाड़ा सागर, जबलपुर उदयपुरा सागर, बालाघाट के कटंगी तिरोड़ी को नए सर्वेक्षण में शामिल किया गया है।

यहां उल्लेखनीय होगा कि राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके मोगली की कर्मभूमि सिवनी जिले से होकर गुजरने वाले अति प्राचीन नेशनल हाईवे को यहां से अन्यत्र ले जाने का षणयंत्र रचा जा रहा है, इतना ही नहीं सालों साल से नेरोगेज की छुक छुक में सफर करने वाले सिवनी वासियों को ब्राडगेज के नाम पर छला जा रहा है। सिवनी जिले के दक्षिण पश्चिम में स्थित छिंदवाड़ा, दक्षिण में नागपुर, पूर्व में बालाघाट, उत्तर मंे जबलपुर जिला तो उत्तर पश्चिम में नरसिंहपुर जिलों में ब्राडगेज की सुविधा है, किन्तु इनके मध्य वाले सिवनी जिले को नेतृत्व विहीन होने का दण्ड हमेशा मिलता आया है और यहां से एक एक कर सौगातों को छीना ही जा रहा है।

रेल बजट की मुख्य विशेषताएं
 
वरिष्ठ नागरियों की रियायत तीस से बढ़ाकर चालीस फीसदी।
 
महिलाओं को 58 साल में ही सीनियर सिटीजन की रियायत की पात्रता।
 
शारीरिक विकलांग के लिए अब राजधानी और शताब्दी में भी रियायत की पात्रता।
 
ईटिकिटिंग के लिए नया पोर्टल।
 
वातानुकूलित श्रेणी में थ्री टियर, टू, टियर, फर्सट क्लास, सिटिंग के अलावा अब नया दर्जा।

आधुनिक चाणक्य के निशाने पर हैं बाबा रामदेव

सियासी दांव में उलझने लगे बाबा रामकिशन

बैंक में खाता नहीं पर किया एक लाख करोड़ का कारोबार!

हरिद्वार से स्काटलेण्ड तक फैली है मिल्कियत

विवादों से गहरा नाता है बाबा रामदेव का

बाबा के गांव में पसरी हैं महामारियां!

(लिमटी खरे)

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा राज्य का एक जिल है महेंद्रगढ़, इस जिले का एक कस्बा है सैदअलीपुर। यह कस्बा बहुत महत्वपूर्ण है, इसका कारण है कि इक्कीसवीं सदी में योग गुरू बनकर उभरे रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव इसी गांव के बाशिंदे हैं। इस गांव को महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने निर्मल गांव का पुरूस्कार भी प्रदान किया है। कहा जाता है कि इस पुरूस्कार को पाने के लिए संत्री से मंत्री तक सभी को अंधेरे में रखा गया था।

इस गांव की हकीकत तब सामने आई जब उत्तराखण्ड सरकार की एक अकादमी को निर्मल गांव के लिए चिन्हित ग्रामों के भौतिक सत्यापन का काम सौंपा गया। इस टीम ने पाया कि साढ़े चार सौ के तकरीबन परिवार वाले इस गांव में दो सौ परिवारों के पास शौचालय ही नहीं हैं। इस गांव में महिलाएं और पुरूष खुले में शौच करने विवश हैं, यह बात निश्चित तौर पर हरियाणा सरकार के साथ ही साथ रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के लिए शर्मसार करने के लिए पर्याप्त कही जा सकती है।

इक्कीसवीं सदी में स्वयंभू योग गुरू बनकर उभरे रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने बीमारियों के सटीक इलाज के लिए योग को ही सर्वोपरि बताया। आरंभ में तो लोग इनकी ओर आकर्षित नहीं हुए किन्तु कालांतर में कुछ चुनिंदा धार्मिक चेनल्स के स्लाट खरीदकर बाबा रामदेव ने लोगों को इसका आदी बना दिया। इसके बाद रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव का जादूू सर चढ़कर बोलने लगा। टीआरपी के मामले में इन्होंने संत आशाराम बापू को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया। बाबा के शिविर जहां भी आयोजित होते वहां लोग टूट पड़ते। मंहगे टिकिट खरीदकर संपन्न लोग बाबा से योग के गुरू सीखते। बाबा ने जड़ी बूटी की आड़ में एक नई दुकान भी खोल दी जो खूब फल फूल रही है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि छोटे से जिले में बाबा रामदेव की दवाओं की फ्रेंचाईजी लेने के लिए आठ लाख रूपयों की दवाएं एक साथ खरीदनी होती है, जिसमें आठ से बारह फीसदी कमीशन ही मिलता है। इन दवाओं में अधिकांश वे दवाएं होती हैं जो सालों साल आपकी दुकान की शोभा बढ़ाती रहेंगी, उनके ग्राहक बहुत ही कम हैं।

रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव को जैसे ही लोकप्रियता मिलना आरंभ हुई उन्होंने कसम खाई कि जब तक देश के हर आदमी को वे निरोग न कर देगे तब तक देश की धरा के बाहर कदम न रखेंगे। बाबा को उनके अनुयाईयों ने समझाया कि आखिर क्या कह गए बाबा। न कभी एसा वक्त आएगा और न ही बाबा विदेशी वादियों की सैर कर पाएंगे। फिर अचानक बाबा ने विदेश की ओर रूख कर लिया। इसके बाद बाबा के लग्गू भग्गुओं ने उन्हें राजनीति का ककहरा पढ़ाना आरंभ किया। बाबा ने सियासतदारों की कालर ही खीचना आरंभ कर दिया। बाबा ने एक और बयान सियासी हवा में उछाला कि विदेशों में जमा काले धन को भारत लाने वे सड़कों पर उतरेंगे। समय बीतता गया और दो साल पूरे होने को हैं, देश की सड़कें आज भी रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव का इंतजार कर रही हैं।

रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के इस कदम से कांग्रेस में बौखलाहट बढ़ गई है। इसका कारण यह है कि वर्तमान में काला धन ही कांग्रेसनीत केंद्र सरकार के लिए गले की फांस बना हुआ है। कांग्रेस के इक्कीसवीं सदी के चाणक्य एवं महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है, अब तय मान लीजिए कि बाबा रामदेव की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे आना सुनिश्चित ही है। दिग्गी राजा ने बाबा रामदेव से पूछा है कि वे पता कर लें कि कहीं उन्हें चंदा देने वाले ने तो काला धन उन्हें नहीं दिया है।

उधर रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने दिग्गी राजा के आरोपों के बाद तलवार पजाते हुए कहा है कि उन्होंने अपने ट्रस्ट को मिलने वाले धन का हिसाब आना पाई से सरकार को दे दिया है अब समय है कांग्रेस का कांग्रेस को चाहिए कि वह भी अपने से जुड़े सारे ट्रस्ट के हिसाब किताब को सरकार को दे दे।

राजा दिग्विजय सिंह के तीर कहां जाकर किसे और कितने समय बाद घायल करते हैं इस बात के बारे में इस नश्वर दुनिया में सिर्फ और सिर्फ एक ही आदमी जानता है और वह है खुदा राजा दिग्विजय सिंह। गौरतलब होगा कि 2008 में रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने खुद ही स्वीकार किया था कि उनका सालाना करोबार एक लाख करोड़ रूपयों का होने वाला है। बाबा रामदेव ने स्वीकारा था कि पतांजली योग के साम्राज्य में अप्रत्याशित तौर पर बढोत्तरी दर्ज की गई थी। इसकी शाखाएं ब्रिटेन, अमेरिका, थाईलेण्ड, नेपाल, उत्तर और दक्षिण अफ्रीका, दुबई आदि में खुल चुकीं हैं।

उत्तराखण्ड में कनखल के दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट से आरंभ हुई रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव की छोटी सी दुकान आज लाखों करोड़ रूपयों की हो चुकी है। गौरतलब है कि 2003 में बाबा रामदेव और उनके सखा आचार्य बाल कृष्ण इसी ट्रस्ट के तीन कमरों में मरीजों का उपचार किया करते थे। यक्ष प्रश्न तो यह है कि रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के हाथों में आखिर कौन सा जादुई जिन्न आ गया जिसे रगड़कर महज आठ सालों में ही उन्होंने कई सौ करोड़ का साम्राज्य स्थापित कर लिया है।

वर्तमान मे रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के पतंजलि योग ग्राम का रकबा दस बीस बीघा नहीं वरन आठ सौ बीघा है, जहां हर प्रकार की सुविधाओं के साथ फाईव स्टार संस्कृति वाला पंचकर्म सेंटर शोभायमान है। इतना ही नहीं यहां अत्याधुनिक शहर की स्थापना भी की गई है। इसके कनखल में ही अलावा सर्वप्रिय विहार कालोनी में तीन बड़ी अट्टालिकाएं हैं, जिनमें इनके रिश्तेदार निवास करते हैं और गोदामों की जगह भी यहीं बनाई गई है।

गायों के लिए रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने पतंजलि गोशाला की स्थापना भी की है। बाबा के गायों के बेड़े में पांच सौ से भी अधिक गायंे शोभा बढ़ा रही हैं, जिनमें से विदेशी नस्लों की गायों की तादाद बहुतायत में बताई जाती है। बाबा ने गायों के लिए सैकड़ों बीघा जमीन रख छोड़ी है। बाबा की संपत्ति में हिमाचल प्रदेश के सोलन का नाम भी जुड़ जाता है। कहते हैं रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने पिछले साल स्काटलैण्ड में एक द्व़ीप भी खरीद लिया है।

धंधे में रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव किसी पर विश्वास नहीं करते हैं। उन्होंने अपने परिवार के लोगों को ही प्रशासनिक पदों पर बिठा रखा है अपने साम्राज्य में। कनखल में दिव्य योग ट्रस्ट मंदिर में दस बीघे में बाबा के भाई रामभरत का प्रशासनिक कार्यालय और गोदाम स्थापित है। इसके अलावा पतंजलि की अन्य इकाईयों में पतंजली आयुर्वेद लिमिटेड का साम्राज्य हरिद्वार में फैला हुआ है। यहां हरिद्वार के पुराने औद्योगिक क्षेत्र में बी 38 और ए 1 में दो कारखाने हैं जिनमें ढाई सौ से ज्यादा आयुर्वेदिक उत्पाद बनाए जाते हैं। इन दोनों का सालाना कारोबार अरबों रूपयों का बताया जाता है।

इसके अलावा पतंजली फूड और हर्बल पार्क के लिए रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने यहीं पचास एकड़ का रकबा खरीद रखा है। इसमें दस इकाईयां अभी चालू हैं बाकी आरंभ होने की बाट जोह रहीं हैं। कहते हैं इस पूरी इकाई का प्रारंभिक निवेश ढाई सौ करोड़ रूपयों से ज्यादा है।

पतंजली नर्सरी और कारखाने की स्थापना दिल्ली राजमार्ग पर दो सौ बीघा जमीन में की गई है। यहां औषधीय पुष्पों और पौधों की खेती की जाती है। यहां नर्सरी के साथ ही साथ च्यवनप्राश और साबुन बनाने का कारखाना स्थापति है। दिल्ली राजमार्ग पर ही रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने पतंजली योगपीठ चरण एक में अत्याधुनिक चिकित्सालय, विशाल देखने योग्य भव्य भवन और पतंजली विश्विद्यालय की प्रस्तावना देखते ही बनती है। यह पूरा इलाका डेढ़ सौ एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है।

इसी के दूसरे चरण में साढ़े चार सौ एकड़ भूमि को आरक्षित रखा गया है। इसमें दस हजार लोगो को एक साठ ठहराने और योग करने की अत्याधुनिक सुविधा की व्यवस्था की गई है। यहां भवन देखते ही बनता है और तो और अत्याधुनिक अनुसंधान केंद्र भी यहां पर है।

रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव अब घिरते नजर आ रहे हैं। धर्मार्थ काम की आड़ में बाबा रामदेव ने जो झाड़ काटे हैं वे अब कांग्रेस की नजरों में गड़ने लगे हैं। कल तक मलाई खाने वाले बाबा को अब कांग्रेस के प्रबंधक जमीन चटवाकर ही मानेंगे, क्योंकि बाबा ने काले धन की बात को फैलाकर उसकी दुखती रग पर हाथ रख ही दिया है।

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के बयान के बाद अब आयकर विभाग ने भी अपनी नजरें तिरछी करना आरंभ कर दिया है। यह सच है कि रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव आयकर विवरणिका दाखिल करते हैं किन्तु धर्मार्थ संस्था को दर्शाकर बाबा करोड़ों रूपयों के आयकर जमा करने से खुद को बचाते फिर रहे हैं। गौरतलब होगा कि रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के शिविर में शामिल होने और आर्युवेदिक दवाओं को खरीदने के लिए आम आदमी को खासी रकम चुकानी पड़ती है। इतना ही नहीं रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव की संस्था विदेशों से भी मोटा चंदा काट रही है।

लोगों की धारणा बन चुकी है कि रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव अब गरीबों के लिए काम करने के बजाए राजवैद्य बन चुके हैं जिनके पास पहुंचना गरीब गुरबों के बस की बात नहीं रही। बाबा अब अमीरों के हाथों का खिलौना बन चुके हैं। वैसे भी किसी धर्मार्थ संस्था के सर्वेसर्वा का महज आठ सालों में जीरो से हीरो बनना और जनसेवा का काम करने वाली संस्था के पास इतनी कम अवधि में लाखों करोड़ रूपयों की संपत्ति का होना अपने आप में एक अजूबे से कम नहीं माना जा सकता है।

वैसे भी रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव का विवादों से बड़ा पुराना और गहरा नाता है। बाबा ने 2003 में अपना काम आरंभ किया और 2005 में ही दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के मातहत कर्मचारियों में से 113 कर्मचारियों ने न्यूनतम मजदूरी मिलने का मामला सार्वजनिक किया था।

इसके बाद 2006 में वाम नेता सीपीआईएम की वृंदा करात ने रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव के उपर यह आरोप लगाकर सनसनी फैला दी थी कि दिव्य योग मंदिर में बनने वाली दवाओं में मनुष्य और जनवरों की हड्डियों का प्रयोग किया जाता है। बाद में उत्ताखण्ड सरकार की क्लीन चिट के बाद मामला शांत हो पाया था।

रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने न्यायालयों को भी आड़े हाथों लेने से गुरेज नहीं किया। जुलाई 2009 में जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिक सेक्स को जायज ठहराया था तब बाबा ने इसका कड़ा विरोध दर्ज कराया था। बाबा ने चुनिंदा ब्रांड के कोल्ड ड्रिंक्स के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर अभियान छेड़ रखा है। इतना ही नहीं बाबा के द्वारा कैंसर और एड्स जैसी बीमारी के योग से इलाज के मामले में भी बाबा पर सवाल उठे, जिनका जवाब बाबा ने आज तक नहीं दिया है।

कुल मिलाकर अब उंट पहाड़ के नीचे आ चुका है। बाबा रामदेव अब सियासी गोदे (अखाड़े) में उतरे हैं। बाबा को सपने में उम्मीद नहीं होगी कि उनकी पहली भिडंत ही दिग्विजय सिंह जैसे घाघ पहलवान से हो जाएगी। या तो बाबा चारों खाने चित्त मिलेंगे या फिर दस जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) में पूंछ हिलाते नजर आएंगे।

टीम सोनिया की तैयारियां जोरों पर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष अपनी टीम को लेकर संजीदा हो चुकी हैं, और उन्होंने इसके लिए चेहरों पर विचार विमर्श भी आरंभ कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष की नई टीम में 45 से 65 साल के राजनैतिक युवाओं की भागीदारी देखने को मिल सकती है। बाद में यही प्रयोग सत्ता में भी किए जाने की उम्मीद है।

कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के भरोसे मंद सूत्रों का दावा है कि सोनिया गांधी ने मन बना लिया है कि संसद के बजट सत्र के चलते ही वे अपनी नई टीम की घोषणा कर देंगी। इसके लिए सोनिया ने वजीरेआजम के अलावा कांग्रेस के अन्य रणनीतिकारों और प्रबंधकों से सोनिया गांधी ने विचार विमर्श लगभग पूरा कर लिया है।

हाल ही में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुरेश पचैरी द्वारा भविष्य में राज्य सभा के रास्ते संसद में न जाने की घोषणा को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि सुरेश पचैरी को केंद्रीय कार्यकारिणी में अहम जिम्मेदारी से नवाजा जा सकता है। उधर कुछ मंत्रियों को सत्ता से हटाकर संगठन की जिम्मेदारी संभालने का निर्देश भी देने की बातें कही जा रही हैं।

जनवरी में हुए मंत्रीमण्डल फेरबदल में सत्ता का स्वाद चखने वाले नकारा मंत्रियों के विभाग बदलकर ही कांग्रेस आलाकमान को संतोष करना पड़ा था। उस समय हुई सौदेबाजी और बजट सत्र में कोई गफलत न हो इसके चलते सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह दवाब को झेल गए थे, किन्तु अब सोनिया गांधी राहुल के लिए रोड मेप बनाने में जुटी हुई हैं और वे इस मामले में कोेई रिस्क नहीं लेना चाहतीं हैं।
इस बार इन पर है नजर

सूत्रों का कहना है कि अंबिका सोनी, गुलाम नवी आजाद, मुकुल वासनिक, वीरप्पा माईली, नारायण सामी जैसे चेहरों का इस्तेमाल संगठन में फुल टाईम करने की मंशा में दिख रही हैं कांग्रेस आलाकमान।

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

भगवान भरोसे चल रही है भारतीय रेल


इस बार ममतामयी नहीं होगा रेल बजट 
जर्जर आर्थिक हालात से कराह रही है भारतीय रेल
 
मंत्री व्यस्त हैं रायटर बिल्डिंग पर कब्जा करने की जुगत में
 
(लिमटी खरे)
 
16 अप्रेल 1853 को मुंबई और ठाणे के बीच चली थी पहली रेल भारत में तब इसने 33 किलोमीटर का सफर तय किया था। इसके बाद 1853 से 1903 के बीच परातंत्र भारत में रेल्वे का जाल बहुत ही तेज गति से फैला। इस अवधि में ब्रिटिश इंजीनियर्स के मार्गदर्शन मंे हिन्दुस्तान के गुलाम मजदूरों ने दिन रात एक करके चालीस हजार किलोमीटर लंबी पटरियां बिछा दी थीं।
देश आजाद हुआ 1947 में और इतिहास इस बात का साक्षी है कि उसके बाद रेल्वे के विकास के पहिए बहुत ही मंथर गति से चलने लगे। इस वक्त तक भारत में लगभग 54 हजार किलोमीटर रेल्वे ट्रेक तैयार हो चुका था। इसके अगले 55 सालों में महज नौ हजार किलोमीटर ही इसे आगे बढ़ाया जा सका। आजादी के उपरांत 1951 में रेल का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिसके बाद यह भारतीय रेल के नाम से पहचानी जाने लगी।
भारतीय रेल की पातों पर प्रतिदिन 13 हजार से अधिक रेलगाडियां दौड़ती हैं। 14 लाख कर्मचारियों से ज्यादा की फौैज इसके संभाल काम में लगी हुई है। चीन की सेना के बाद सबसे बड़ा नियोक्ता है, किन्तु व्यवसायिक न्योक्ता में यह विश्व मंे नंबर वन है।
रेल बजट आने को है, देशवासी बड़ी ही उम्मीदों के साथ रेल मंत्री ममता बनर्जी की ओर ताक रहे हैं, इस बार उनके पिटारे से क्या कुछ नया निकलने वाला है। पिछले वादे भी आज की तारीख में आधे अधूरे ही पड़े हुए हैं। भारतीय रेल की सेहत अच्छी नहीं कही जा सकती है विशेषकर आर्थिक तोर पर। बेलगाम अफसरशाही के घोड़े सरपट भागे चले जा रहे हैं, रेल मंत्री हैं कि पश्चिम बंगाल पर कब्जा जमाने के अपने सपने के साथ पूरा समय कोलकता के इर्द गिर्द ही बिता रही हैं।
देखा जाए तो भारतीय रेल में साफ सफाई के स्तर में किसी भी तरह का सुधार नहीं दिख रहा है। रेल गाड़ी जब गंतव्य पर पहुंचती है तब वहां उसकी धुलाई और साफाई का ठेका दिया जाता है आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि रेल्वे का पानी रेल्वे की बिजली का उपयोग कर ठेकेदार महज चार आदमी लगाकर प्रति रेलगाड़ी के रेक के लाखों रूपयों के ठेके हर माह लिया करते हैं। यात्रा के दौरान निश्चित दूरी के बाद ठहराव वाले स्टेशन पर भी रेल्वे के टायलेट आदि की सफाई का ठेका किया जाता है। अमूमन ठेकेदार के कारिंदों द्वारा वातानुकूलित श्रेणी के टायलेट की सफाई ही की जाती है। शेष शयनायन और जनरल क्लास के डब्बे दुर्गंध मारते ही मिलते हैं।
कमोबेश यही आलम खान पान सुविधा का है। खान पास सुविधा का स्तर सुधरा तो कतई नहीं अलबत्ता मंहगा अवश्य ही हो गया है। उपर से संपर्क क्रांति और कुछ अन्य रेलगाडियों में पेन्ट्री कार को भी बिदा कर दिया गया है। रेल के अंदर निजी तौर पर खाद्य सामग्री बेचने वालों की मौज हुआ करती है। इन अवांछित तत्वों को न तो टीसी और न ही रेल पुलिस द्वारा हकाला जाता है। कई मर्तबा तो इस तरह के अवैध वेण्डर्स द्वारा यात्रियों के साथ हाथापाई तक कर दी जाती है।
रेल्वे स्टेशन पर यात्रियों के बढ़ते दबाव के मद्देनजर भीड़भाड़ कम करने की योजना आज भी भारतीय रेल के कागजों पर जिन्दा है। रिक्शा, आटो, टेक्सी वालों के साथ ही साथ कचरा बीनने वाले बिना प्लेटफार्म टिकिट के ही रेलों के आसपास अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहते हैं, पर इन्हें रोकने वाला कोई नहीं होता है। इतना ही अनेक अनेक स्टेशन्स को वर्ल्ड क्लास बनाने का सपना आज आकार नहीं ले सका है। यही आलम मानव रहित रेल्वे क्रासिंग का है। समतल पार पर आज भी गेटमेन की नियुक्ति नहीं हो सकी है। टिकिट अपग्रेड होने की जानकारी भी आज के समय में भी पहले से नहीं मिल पाती है।
सुरक्षा को लेकर रेल मंत्री कभी भी संजीदा नहीं रहे हैं। हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और इसके आस पास के इलाकों में रेल यात्रियों के साथ लगातार बढ़ती लूटपाट की घटनाओं ने रेल्वे के सुरक्षा के चक्रव्यूह पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं। पिछले दिनों सीलमपुर इलाके में सशस्त्र गुण्डों और डकैतों ने चाकू की नौक पर यात्रियों को लूट लिया। इतना ही नहीं उंचाहार एक्सप्रेस में भी लाखों रूपयों की लूट इसी की पोल खोलने के लिए पर्याप्त कही जा सकती है।
ममता बनर्जी की अनदेखी के चलते भारतीय रेल का आलम यह है कि निजामुद्दीन इंदौर इंटरसिटी सहित अनेक रेल गाडियां एसी भी हैं जिनमें टिकिट चेकर का अता पता ही नहीं होता है। यात्रियों को न चार्ट मिल पाता है और न ही अपनी बर्थ की सही जानकारी। इन परिस्थितियों में यात्रियों के बीच जूतम पैजार होना आम बात है। यक्ष प्रश्न तो यह है कि इन रेलगाडियों में टीसी नहीं होते हैं फिर टिकिट रिफन्ड की स्थिति में ‘‘नान टर्नड अप‘‘ वाली स्थिति से रेल्वे को कौन आवगत कराता होगा।
आधारभूत ढांचे के मामले में भी भारतीय रेल का रिकार्ड बहुत ही बुरा है। हर साल चार सौ किलोमीटर से भी कम लाईनें विद्युतीकृत हो पाती हैं, जबकि सरकार का लक्ष्य 2000 किलोमीटर लाईनों का है। पिछले दस सालों में महज डेढ़ हजार किलोमीटर ही रूट लाईनें बढ़ पाई हैं। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो हर साल 1000 किलोमीटर के लक्ष्य के एवज में रेल्वे ने महज ढाई सौ किलोमीटर लाईन ही बना पाई है। अमान परिवर्तन का भी आलम कमोबेश यही है।
भारतीय रेल के सामने सबसे बड़ा संकट आर्थिक है। धन की कमी का रोना रोते अफसरान यही कहते मिल जाते हैं कि रेल मंत्री का सपना बिना पैसे तो पूरा होने से रहा। मध्यावधि आर्थिक समीक्षा में भी रेल्वे को आड़े हाथों ही लिया गया था। वर्तमान में नई लाईनों के 109, अमान परिवर्तन की 51 परियोजनाओं को मिलाकर कुल 286 परियोजनाएं चल रही हैं।
इन्हें पूरा करने के लिए रेल्वे को अस्सी हजार करोड़ रूपयों की दरकार है। इतनी राशि की मांग को देखकर रेल्वे के अधिकारियों के हाथ पैर फूलना लाजिमी है। रेल्वे ने अपनी परियोजनाओं में 123 को जरूरी तो 97 को बेहद जरूरी श्रेणी में चिन्हित किया था। रेल्वे ने राज्य सरकारों के अलावा निजी क्षेत्र के समक्ष भागीदारी का विकल्प खोला था, किन्तु रेल्वे की लालफीताशाही बेलगाम अफरशाही और बाबूराज के चलते इस तरह के प्रस्तावों में किसी ने रूचि नहीं दिखाई।
विद्युतीकरण के मामले में अगर आंकड़ों को खंगाला जाए तो एक दशक पूर्व यह आंकड़ा 14,856 था, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 18,800 किलोमीटर रहा। इससे साफ हो जाता है कि हर साल चार सौ से भी कम किलोमीटर को विद्युतीकरण से जोड़ा गया है। पिछले दो तीन सालों में तो महज चालीस फीसदी भी काम नहीं हो सका है।
रेल्वे का बुनियादी ढांचा बुरी तरह कराहते हुए ही रेंग रहा है। दुनिया भर के सबसे बड़े रेल नेटवर्क होने का दावा करने वाले हिन्दुस्तान के रेल महकमे ने पिछले दस सालों में रूट की लंबाई 63 हजार 28 किलोमीटर से बढ़ाकर 65 हजार 5 सौ किलोमीटर की है। रेल मंत्री की घोषणाओं के प्रति उनके मातहत कितने संजीदा हैं, इसकी एक बानगी देखिए। ममता बनर्जी द्वारा हर साल एक हजार किलोमीटर रेल लाईन बिछाने का दावा किया था, किन्तु इस साल 31 जनवरी तक महज ढाई सौ किलोमीटर लाईन ही बिछाई जा सकी है।
पिछले बजट के उपरांत रल मंत्रालय ने जनता भोजन दस रूपए में उपलब्ध कराना आरंभ किया था। यह योजना भी साल भर में परवान चढ़ती नहीं दिख रही है। मोटी मोटी कच्ची पुड़ी और अधपकी सब्जी वह भी ठंडा खाना खाने से यात्री गुरेज ही करते हैं। वेन्डर्स की मनमानी के चलते अनेक स्टेशन पर जनता खाना दिखाई ही नहीं पड़ पाता है।
अप्रेल 2010 में रेल मंत्रालय ने बोतल बंद पानी को छः रूपए मंे उपलब्ध कराने का मन बनाकर घोषणा की थी। आज साल पूरा होने को है, रेल्वे स्टेशन पर गर्म बोतलबंद पानी की कीमत पंद्रह रूपए तो ठंडे किए गए बोतलबंद पानी की कीमत सत्रह से बीस रूपए है। प्लेटफार्म पर चलने वाले नलों की हड़ताली स्थिति को देखकर यात्रियों को मंहगा बोतल बंद पानी पीने मजबूर होना पड़ता है।
वातानुकूलित श्रेणियों में मिलने वाले बिस्तर अर्थात बेड रोल का भी अलग मजा है। सालों साल इसमें मिलने वाले कंबल न धोए जाते हैं और न ही ड्राई क्लीन किए जाते हैं। अगर शिकायत करने जाईए तो कोच अटेंडेंट मरा सा चेहरा लेकर आपके सामने आकर खड़ा हो जाता है -‘‘साहेब क्यों गरीब के पेट पर लात मारते हैं, ठेकेदार भगा देना फिर कैसे पाला जाएगा परिवार का पेट?‘‘ अब बताईए इन परिस्थितियों में भारतीय रेल का यात्री आखिर करे तो क्या?

भ्रष्टाचार: केंद्र बोला एमपी शरण गच्छामी

भ्रष्टाचार: केंद्र बोला एमपी शरण गच्छामी(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। घपलों और घोटालों से परेशान कांग्रेसनीत केंद्र सरकार जल्द ही भ्रष्टाचार से निपटने के लिए मध्य प्रदेश सहित बिहार और महाराष्ट्र के साथ ही साथ फिनलेण्ड की शरण में जाने की तैयारी में जुट गई है। केंद्र सरकार जल्द ही इन राज्यों की अच्छाईयांे का अध्ययन कर नए कानून का मसौदा तैयार करने की जुगत में है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में जनता को तय सीमा में सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार, फिनलेण्ड में गुड गर्वनेन्स कानून, बिहार में भ्रष्टाचारी की संपत्ति जप्त करने का कानून और महाराष्ट्र में कार्यकाल का अधिकार लागू है। पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार जल्द ही इन कानूनों की अच्छाईयों को एक सूत्र में पिरोकर नया कानून अस्तित्व में लाना चाह रही है ताकि भ्रष्टाचार के मकड़जाल से मुक्ति मिल सके।
सूत्रों का कहना है कि आज के समय में नौकरशाह कानून के रक्षकों के बजाए माननीय जनसेवकों के गाईड की भूमिका में आ गए हैं। यही कारण है कि टूजी, कामन वेल्थ जैसे महाघोटालों के कारण केंद्र को शर्मसार होना पड़ा है।
क्या हैं कानून
मध्य प्रदेश में लोकसेवाओं के प्रदान की गारंटी विधेयक 2010, महाराष्ट्र में महाराष्ट्र गर्वमेंट सर्वेंट रेग्यूलेशन ऑफ ट्रांसफर एण्ड प्रीवेंशन ऑफ डिले इन डिस्चार्ज ऑफ ऑफीशियल ड्यूटी एक्ट 2005, बिहार का बिहार स्पेशल कोर्टस 2010 तो फिनलेण्ड का कानून एडमिनिस्ट्रेटिव प्रोसीजर एक्ट 2003 लागू है।

एमपी में जस्टिस के नौ पद खाली!

एमपी में जस्टिस के नौ पद खाली!(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। एक तरफ देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा न्याय की कच्छप गति के कारण अपनी तल्ख नाराजगी जाहिर की जाती है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा बोझ तले दबे न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति के मामले में गैरजिम्मेदाराना तरीका अपनाया जा रहा है।
आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो मध्य प्रदेश में उच्च न्यायालय में न्यायधीशों के लिए स्वीकृत 43 पदों में से 9 पद रिक्त पड़े हुए हैं। हाई कोर्ट में सर्वाधिक रिक्त पद इलाहबाद उच्च न्यायालय में हैं जहां 160 में से 94 पद खाली हैं। दूसरी पायदान पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट है, जहां 68 में से 26 पद रिक्त पड़े हुए हैं।
सरकार की कार्यप्रणाली देखकर लगता है मानो केंद्र सरकार ही माननीय न्यायधीशों के पद रिक्त रखना चाह रही हो। नवमीं पंचवर्षीय योजना में न्यायपालिका के लिए कुल बजट की महज शून्य दशमलव शून्य सात एक फीसदी राशि का प्रावधान किया गया था, जबकि दसवीं पंचवर्षीय योजना में यह राशि बढ़कर शून्य दशमलव शून्य सात आठ फीसदी हो गई।
गौरतलब होगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में 2003 में कहा था कि दस लाख जनसंख्या पर पचास न्यायधीश नियुक्त किए जाएं। आज देश भर में न्यायधीशों की कमी के चलते करोड़ों की तादाद में प्रकरण लंबित ही पड़े हुए हैं।

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

मनमोहन का विकल्प खोज रहीं सोनिया

पीएम सोनिया में खिची तलवारें
बजट सत्र के बाद हो सकता है धमाका
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। कल तक सोनिया गांधी के आंखों के तारे बने रहने वाले वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह अब कांग्रेस अध्यक्ष की आंखों में खटकने लगे हैं। कांग्रेस सुप्रीमो ने मनमोहन के विकल्प की तलाश तेज कर दी है। संभावना जताई जा रही है कि बजट सत्र के उपरंात सत्ता और संगठन के व्यापक फेरबदल की आंधी में मनमोहन भी बह सकते हैं।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों टीवी के संपादकों के सामने अपनी लाचारी बताकर मनमोहन सिंह ने कांग्रेस की राजमाता को और खफा कर दिया है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस बावत संभावनाएं तलाशना आरंभ कर दिया है कि अगर राहुल गांधी के हाथों देश की बागडोर सौंपी जाए तो क्या स्थिति बन सकती है।
सूत्रों का कहना है कि मनमोहन सिंह अब सोनिया गांधी के अंकुश में नहीं रहे, वे अब अपने निजी एजेंडे पर काम करने लगे हैं। अघोषित तौर पर कांग्रेस का मानना है कि मनमोहन सिंह आने वाले दिनों में कांग्रेस के गले की फांस बन सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि मनमोहन सिंह की छवि ईमानदार और भले मानस की बनी हुई है, यही कारण है कि सोनिया गांधी उनसे त्यागपत्र मांगने का साहस भी नहीं जुटा पा रही हैं।
सोनिया ने किया राजकाज से किनारा
दस जनपथ के अंदरखाने से छन छन कर बाहर आ रही खबरों के अनुसार वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह के रवैऐ से नाराज कांग्रेस अध्यक्ष ने अपने आप को राजकाज से दूर कर लिया है। सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी को लगने लगा है कि मनमोहन सिंह अब कांग्रेस के सलाहकारों से ज्यादा भरोसा नौकरशाहों पर करने लगे हैं। कहा जा रहा है कि दस जनपथ की सलाह पर बात बात में उखड़ने भी लगे हैं मनमोहन इतना ही नहीं अनेक मर्तबा तो वजीरे आजम ने त्यागपत्र दे देने की धमकी भी आला कमान को दी जा चुकी है। यही कारण है कि पिछले कुछ माहों में सोनिया गांधी ने समाचार चेनल्स से दूरी बनाना भी आरंभ कर दिया है। अब सोनिया गांधी का पब्लिक एपीयरेंस भी बहुत ही सीमित हो चुका है।

निदेशक विहीन एमपी के 15 आकाशवाणी केंद्र

निदेशक विहीन एमपी के 15 आकाशवाणी केंद्र
नई दिल्ली (ब्यूरो)। सूचना प्रसारण मंत्रालय में मनमानी का यह आलम है कि देश के हृदय प्रदेश के आकाशवाणी केंद्रों में निदेशक के स्थान पर कार्यकारी निदेशक ही कमान संभाले बैठे हैं। मध्य प्रदेश में इकलौती स्टेशन डायरेक्टर प्रभा सोलंकी हैं जो जबलपुर में पदस्थ हैं, वे भी 28 फरवरी को सेवानिवृत हो जाएंगी, उसके उपरांत सूबे में एक भी आकाशवाणी केंद्र में स्टेशन डायरेक्टर नहीं बचेगा।
मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में तीन केंद्रों में सहायक स्टेशन डायरेक्टर प्रभार में हैं। ग्वालियर में रामस्वरूप रतोनिया, भोपाल में अनिल श्रीवास्तव और इंदौर में प्रकाश शुजालपुरकर की तैनाती प्रभारी के तौर पर है। गौरतलब होगा कि आकाशवाणी की लोेकप्रियता आज भी ग्रामीण अंचलों में पहले ही की तरह बरकरार है, फिर भी मंत्रालय के तुगलकी रवैए के चलते संचालक विहीन केंद्रों मंे रामभरोसे ही प्रसारण का काम हो रहा है।
 
मध्य प्रदेश ही नहीं पूरे भारत भर में यही हाल है। प्रभा सोलंकी के सेवानिवृत्त होने के उपरांत मध्य प्रदेश के 15 आकाशवाणी केंद्र में केंद्र निदेशक का काम प्रभारी ही देखेंगे। वैसे वरिष्ठ अधिकारी प्रभारी हो जाते हैं जिससे काम प्रभावित नहीं होता है।
- वी.के.येण्डे
डिप्टी डायरेक्टर जनरल, भोपाल

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

ड्यूरेबल हैं गांधी परिवार के वादे!

21 फरवरी 2011 को प्रकाशनार्थ
ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)

ड्यूरेबल हैं गांधी परिवार के वादे!
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार की अपनी अहमियत है। इस परिवार के पंडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमति इंदिरा गांधी, और राजीव गांधी ने लगभग चालीस साल देश पर शासन किया है। इनके बाद सत्ता की धुरी कहीं कहीं सोनिया और राहुल गांधी के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। जाहिर है इतने सालों में लोगों को लुभाने के लिए इस परिवार ने वायदे भी किए होंगे। नेहरू गांधी परिवार के वायदे किसी नामी बेटरी की तरह सालों साल चलने वाले हैं। विश्वास नहीं होता न। पिछले दिनों कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के पालघर में अपनी स्वर्गीय दादी पूर्व प्रधानमंत्री के चोंतीस साल वायदे को अमली जामा पहनाया और खुद अपनी पीठ थपथपाई। नेहरू गांधी परिवार को महिमा मण्डित करने वाले मीडिया ने भी इसे पूरी तवज्जो दी। सूबे के आदिवासी बाहुल्य जिले ठाणे में युवराज ने 80 वर्षीय कलाकर सोमा माशे को जमीन के कागजात सौंपे जिसका वायदा प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी ने उन्हें देने के लिए किया था। इंदिरा जी के बाद राजीव जी देश के वजीरे आजम रहे, फिर सोनिया के हाथों सत्ता की चाबी रही, जो जल्द ही राहुल गांधी के हाथों में स्थानांतरित होने को आतुर है। अब देशवासी अंदाजा लगा सकते हैं कि यह वो परिवार है जिसे वायदा पूरा करने में चोंतीस साल लगते हैं, पर किया तो वायदा पूरा। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि सोनिया राहुल ने जो देशवासियों को जो सपने दिखाए हैं, वे नेहरू गांधी परिवार की आने वाली पीढ़ी अवश्य ही पूरा करेगी।

थामस को मिलेगा पुर्नवास
सीवीसी के पद पर थामस की नियुक्ति ने कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को खासा हलाकान कर रखा है। थामस अब कांग्रेस के गले की फांस बन चुके हैं। कहा जा रहा है कि वे प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह की पसंद हैं। वेल्लारी चुनावों में रेड्डी बंधुओं की करीबी के चलते लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज भी सीवीसी के निशाने पर हैं, सो उनके तेवर उग्र होना स्वाभाविक ही हैं। स्वराज के रूख को देखकर लगने लगा है कि थामस की विदाई तय है। अब सवाल यह है कि थामस को कहां एडजस्ट किया जाए। इसलिए कांग्रेस के प्रबंधकों ने उनके लिए पुर्नवास पैकेज बनाना आरंभ कर दिया है। कांग्रेस की फांस बने थामस ने भी अब बारगेनिंग आरंभ कर दी है। कहा जा रहा है कि उन्हें योजना आयोग का सदस्य, पोर्ट ट्रस्ट का अध्यक्ष या फिर अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष का पद सौंपने का लालीपाप दिया गया है। चतुर सुजान थामस हैं कि वे किसी राज्य में राज्यपाल से कम पर तैयार होते दिख ही नहीं रहे हैं।

ये हैं हमारे विदेश मंत्री का हाल सखे
देश का अजीब दुर्भाग्य है। विदेश मंत्रालय पिछले कुछ सालों से चर्चाओं का केंद्र बनकर रह गया है। पहले विदेश राज्य मंत्री थरूर ने कांग्रेस की मट्टी खराब की और अब एस.एम.कृष्णा उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुरक्षा और विकास विषय पर बहस के दरम्यान एस.एम.कृष्णा ने पुर्तगाल के विदेश मंत्री का भाषण ही पढ़ मारा, वह भी पूरे एक सौ अस्सी सेकण्ड तक। बाद में एक राजनयिक के टोकने पर उन्होंने अपना भाषण पढ़ना आरंभ किया। देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश के नीतिनिर्धारक भाषण देने के बजाए पढ़ा करते हैं। बाद में एस.एम.कृष्णा की सफाई भी जोरदार रही कि वहां बहुत सारे कागज बिखरे पड़े थे सो उनके हाथ में आए भाषण को ही उनके द्वारा पढ़ा गया। कांग्रेस को एस.एम.कृष्णा की पीठ थपथपानी चाहिए क्योंकि इंटरनेशनल मंच पर पहली बार किसी ने इतनी भयानक गल्ति की है। अच्छा हुआ एस.एम.कृष्णा ने यह दलील नहीं दी कि इस पर एक जांच आयोग बिठाया जाए और पता किया जाए कि किसने उनके कागजों में पुर्तगाल के विदेश मंत्री का भाषण रख दिया था।

महिला उत्पीड़न से आहत हैं बेगम सलामा
सरकार चाहे जो भी दावे करे किन्तु भारत गणराज्य में महिलाओं की स्थिति चिंताजनक ही बनी हुई है, इस बात को नकारा नहीं जा सकता है। बीते दिनों दिल्ली के एक प्रोग्राम में शिकरत करने आईं महामहिम उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की बेगम सलमा अंसारी की जुबान पर महिलाओं का दर्द ही गया। सलमा अंसारी ने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि हमारा समाज अगर बेटियों को सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकता है तो बेहतर होगा कि बेटियों के पैदा होते ही उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाए। बेगम का कथन मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पाया। वर्तमान दौर में मीडिया की निष्पक्षता पर भी अनेक प्रश्न चिन्ह लग चुके हैं। भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय और राज्यों में जनसंपर्क महकमे के विज्ञापन फीवर के चलते मीडिया वास्तविक चीजों को आम जनता तक नहीं परोस पा रहा है। बहरहाल बेगम सलमा अंसारी के वक्तव्य पर देशव्यापी बहस की आवश्यक्ता है। उनका कहना सच है कि आज समाज में महिलाओं का खेरख्वाह तो समाज ही बचा है और ही सरकारें।

. . . तो किसका काम है मंहगाई रोकना
देश में मंहगाई अपने पूरे शबाब पर है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह द्वारा मंहगाई बढ़ने के कारणों में देश धर्म के बजाए गठबंधन धर्म की दुहाई दी जा रही है। कांग्रेस द्वारा परोक्ष तौर पर कृषि मंत्री शरद पवार को इसके लिए जिम्मेवार बताया जा रहा है, पर सत्ता की मलाई चखने के लिए कांग्रेस उन पर सीधा प्रहार करने से कतरा रही है। हाल ही में केद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने अपनी कमीज को यह कहकर झटक दिया कि उनका काम मंहगाई को रोकना नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है कि उनका काम मूलतः यह देखना है कि कृषि उत्पादन को कैसे और अधिक बढ़ाया जा सकता है। अब गेंद एक बार फिर कांग्रेस के पाले में आकर गिर गई है। अब देखना यह है कि पवार के इस पैंतरे का कांग्रेसनीत कंेद्र सरकार और कांग्रेस क्या जवाबी हमला करती है।

हमारे इलाके से भी सांसद बन जाएं मदाम
कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में एक कांग्रेसी कार्यकर्ता को गैस का सिलंडर मिलना केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय के लिए बुरा साबित हुआ। मामला सोनिया गांधी के दरबार पहुंचा और फिर क्या था घनघना गए फोन। आलम यह है कि पेट्रोलियम मंत्रालय के आला अफसरान भागे भागे सारे के सारे दस्तावेज लेकर पेट्रोलियम मंत्री के दरबार में हाजिरी बजा रहे हैं। सोनिया ने राजीव गांधी ग्रामीण एलपीजी वितरण योजना के बारे में जवाब तलब किया है। अधिकारियों ने हीला हवाला के लिए पूर्व पेट्रोलियम राज्यमंत्री को इसके लिए दोषी बता दिया। सोनिया के सामने यह सफाई काफी नहीं थी, उन्होंने कहा जिसे जो भी जवाब देने हों लिखित में दें। अब अफसरान सांसत में हैं, उनकी स्थिति सांप छछूंदर की सी हो गई है। एसी स्थिति में देश का हर वाशिंदा बरबस ही कह उठेगा, मदाम आप हमारे इलाके की सांसद बन जाएं, कम से कम गैस तो मिलने लगेगी समय पर।

वेलंटाईन डे: सर ने मांगा गिफ्ट में किस
प्रेम का इजहार होता है 14 फरवरी यानी वेलंटाईन डे पर। इस दिन प्रेमी युगल एक दूसरे में खोना चाहते हैं। दिल्ली के पास मेरठ में इस दिन एक अजीब वाक्या हुआ जिसने शिक्षक विद्यार्थी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया। मेरठ सिटी के मावना रोड स्थित एक पब्लिक स्कूल की छात्रा ने अपने टीचर को फोन कर परीक्षा में मिले अंकों की जानकारी चाही। शिक्षक ने कहा नंबर कम हैं घर आकर मिलो। छात्रा ने भाई के साथ आने की बात कही तो टीचर ने उसे मना कर दिया। बाद में वह अपनी दो सहेलियों के साथ घर पहुंची। सर ने उसे अकेले अंदर बुलाया और उसके साथ अश्लील हरकतें कीं, और मोबाईल से कुछ फोटो भी खीचनें की खबरें हैं। साथ ही कहा कि अगर वह छात्रा उसे एक किस दे और केंडल लाईट डिनर पर ले जाए तो वे उसे पास कर सकते हैं। बाद में जब पीडित छात्रा ने अपनी मां से इसकी शिकायत की तो मामला पहुंच गया थाने। अब शिक्षक महोदय फरार हैं और पुलिस उनके दरवाजे बैठकर उनकी वापसी का इंतजार कर रही है।

अभी एक मार्च तक झेलो अवांछनीय काल
आपके मोबाईल पर आने वाली अवांछनीय काल से आपको फौरी राहत नहीं मिलने वाली है। दूरसंचार नियामक ट्राई ने इसकी अवधि एक मार्च तक के लिए बढ़ा दी है। ट्राई ने मोबाईल पर आने वाले काल और एसएमएस से छुटकारा दिलाने संबंधी दिशा निर्देशों की समय सीमा एक मार्च तक बढ़ा दी है। ट्राई ने पहले इसके लिए एक जनवरी तक समय दिया था, जो समयावधि बाद में बढ़ाकर 31 जनवरी कर दी गई थी। ट्राई के सूत्रों का कहना है कि ट्राई ने दूरसंचार विभाग को बताया है कि टेलीमार्केटिंग कंपनियों के लिए फोन की श्रंखला 70 के स्थान पर 140 की जा रही है जिसकी व्यवस्था करने में मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को और वक्त की दरकार है। कहा जा रहा है कि टेलीमार्केटिंग के जरिए मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों की जेब में भी राजस्व तगड़ा जाता है जिसके चलते वे इस पर लगाम लगाए जाने से खुश नहीं हैं।

बलिदानी राय की श्रृद्धांजली की हकीकत
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के नेशनल हेडक्वार्टर में इन दिनों पंजाब में कांग्रेसियों द्वारा किए गए एक कारनामे को चटखारे लेकर सुनाया जा रहा है। धर्म की रक्षा के लिए अपने आप को कुर्बान करने वाले वीर हकीकत राय को अमृतसर में श्रृद्धांजली अर्पित की गई। वीर हकीकत राय शहीदी दिवस प्रोग्राम में कांग्रेस के नुमाईंदों ने जो किया वह कांग्रेस और मानवता को शर्मसार करने के लिए काफी है। इस प्रोग्राम में शहीद की फोटो पर माला चढ़ाने की कोई व्यवस्था नहीं थी, बाद में पास ही शादी के लिए सज रही एक गाड़ी से मालाएं निकालकर शहीद को समर्पित की गईं। हद तो तब हो गई जब पब्लिसिटी के भूखे कांग्रेसियों ने फूलों से लदी फदी फोटो के साथ फोटो सेशन करना आरंभ किया। बाद में पता चला कि जिस फोटो पर माला चढ़ाई जा रहीं थीं, वह हकीकत राय के बजाय भगवान महावीर की थी।

देह व्यापार को मान्यता की हिमायती प्रिया
देश में सेक्स वर्कर्स के लिए खुशखबरी है कि उत्तर मुंबई की संसद सदस्य प्रिया दत्त देह व्यापार को कानूनी मान्यता देने की पक्षधर हैं। हाल ही में उन्होंने कहा है कि देह व्यापार को कानूनी मान्यता देने पर सेक्स वर्कर्स की जिंदगी बेहतर बनाई जा सकती है। मुंबई के रेड लाईट एरिया की महिलाओं पर रिसर्च कर चुकी प्रिया का मानना है कि हर एक महिला की कहानी अलग है। प्रश्न यह है कि सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसकी लगाम वर्तमान में सोनिया गांधी के हाथों में है भी महिला ही हैं। यक्ष प्रश्न तो यह है कि देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस की एक नुमाईंदी द्वारा महिलाओं के पुर्नुद्धार के बजाए वेश्यावृति जैसी प्रवृति को बढ़ावा देने की बात करना कहां तक उचित है। पहले इस तरह की संस्कृति कांग्रेस का अंग नहीं रही है, किन्तु सोनिया राहुल के काल में सब कुछ संभव है।

पानी संकट से दो चार हुए माननीय
इस सप्ताह दिल्ली में पानी का गंभीर संकट आन खड़ा हुआ। इस संकट से देश के माननीय सांसद महोदयों को भी दो चार होना पड़ा है। संसद भवन में पानी का संकट इतना जबर्दस्त रहा कि संसद भवन के कक्ष में आने वाले माननीय सांसदों और पूर्व सांसदों को चाय काफी भी नसीब नहीं हो सकी। देश के नीति निर्धारकों को भला यह बात कैसे गवारा होती कि उनकी सेवा में चाय काफी पेश की जाए। बस फिर क्या था कुछ सांसदों ने अधिकारियों को आड़े हाथों ले ही लिया और निर्देश दे दिए कि पानी का संकट चलता है तो चलता रहे उनकी सेवा में गुस्ताखी माफ नहीं की जा सकती है। चाय काफी के लिए मंहगे मिनरल वाटर का प्रयोग किया जाए पर उन्हें चाय काफी अवश्य ही उपलब्ध कराई जाए। यह है भारत के गरीबों के जनादेश पाने वाले माननीयों की असली तस्वीर।

अब कांग्रेस के निशाने पर हैं वकील
देश में सस्ती न्याय व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए कटिबद्ध कांग्रेस के निशाने पर अब मंहगी फीस लेकर मुकदमा लड़ने वाले वकील गए हैं। राजस्थान में कांग्रेस विधि सम्मेलन में शिरकत के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय में वकीलों की फीस इतनी ज्यादा है कि आम आदमी इसके बारे में सोच ही नहीं सकता है। गहलोत का कहना सच है कि देश को एसी व्यवस्था विकसित करनी होगी ताकि बड़े और नामी वकील गरीबों के प्रकरण लड़ने पर मजबूर हो जाएं। आज आलम यह है कि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में गरीब जाने से बहुत ही हिचकता है, वह जानता है कि अगर वह बड़ी अदालत में गया तो उसके खप्पर तक बिक जाएंगे।

नंबर प्लेट पर तिरंगा, कटे चालान
दिल्ली पुलिस ने पहली मर्तबा कोई अच्छा काम किया है। फेसबुक पर जब पुलिस की ही शिकायतें मिलने लगीं तो पुलिस को मजबूरन देश की आन बान और शान का प्रतीक तिरंगा को नंबर प्लेट पर चस्पा करवाने वालों को सबक सिखाना पड़ा। नंबर प्लेट को निर्धारित के बजाए अपनी मनमर्जी से पुतवाने वालों के जब चालान काटे गए तब जाकर कुछ नेता नुमा लोगों की तंद्रा टूटी। पुलिस ने वाहन पर तिरंगा, रंगीन पट्टी, राजनीतिक दल का नाम, प्रेस, पुलिस, वकील और डाक्टर्स का चिन्ह आदि देखकर फटाफट चालाना काट दिए गए। वैसे भी इस तरह का काम यातायात पुलिस के नियमों के खिलाफ ही है। संभवतः पहली मर्तबा पुलिस ने इसकी सुध ली है। माना जा रहा है कि देश भर की यातायात पुलिस को इसे नजीर मानते हुए देश भर में इस तरह का अभियान चलाया जाना चाहिए।

पुच्छल तारा
मध्य प्रदेश में पाले से किसानों की खड़ी फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। कर्ज से दबे किसान आत्महत्या पर मजबूर हो रहे हैं। प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान की सरकार और कांग्रेस दोनों ही मिलकर इस मामले पर राजनीति की कोशिश में लगे हैं। शिवराज प्रधानमंत्री से मिले और फिर खबर आई कि इसके लिए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स का गठन किया जा रहा है। जबलपुर से अरूणा सन्याल ने ईमेल भेजा है कि पता नहीं कब जीओएम गठित होगा, हो सकता है इसके गठन में दो चार माह लग जाएं। फिर जीओएम का गठन शायद इसलिए किया जा रहा है कि अगले सालों में पाले से होने वाले नुकसान को आंका जा सके और उन्हें मुआवजा मिल सके। इस साल के मुआवजे की बात तो कोई कर ही नहीं रहा है।