एमपी में जस्टिस के नौ पद खाली!(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। एक तरफ देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा न्याय की कच्छप गति के कारण अपनी तल्ख नाराजगी जाहिर की जाती है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा बोझ तले दबे न्यायालयों में न्यायधीशों की नियुक्ति के मामले में गैरजिम्मेदाराना तरीका अपनाया जा रहा है।आंकड़ों पर अगर गौर फरमाया जाए तो मध्य प्रदेश में उच्च न्यायालय में न्यायधीशों के लिए स्वीकृत 43 पदों में से 9 पद रिक्त पड़े हुए हैं। हाई कोर्ट में सर्वाधिक रिक्त पद इलाहबाद उच्च न्यायालय में हैं जहां 160 में से 94 पद खाली हैं। दूसरी पायदान पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट है, जहां 68 में से 26 पद रिक्त पड़े हुए हैं।
सरकार की कार्यप्रणाली देखकर लगता है मानो केंद्र सरकार ही माननीय न्यायधीशों के पद रिक्त रखना चाह रही हो। नवमीं पंचवर्षीय योजना में न्यायपालिका के लिए कुल बजट की महज शून्य दशमलव शून्य सात एक फीसदी राशि का प्रावधान किया गया था, जबकि दसवीं पंचवर्षीय योजना में यह राशि बढ़कर शून्य दशमलव शून्य सात आठ फीसदी हो गई।
गौरतलब होगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में 2003 में कहा था कि दस लाख जनसंख्या पर पचास न्यायधीश नियुक्त किए जाएं। आज देश भर में न्यायधीशों की कमी के चलते करोड़ों की तादाद में प्रकरण लंबित ही पड़े हुए हैं।
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