(लिमटी खरे)
भरी भीड़ में अकेले खड़े हैं मनमोहन
कांग्रेस के अंदर अब यह चर्चा जोर पकड़ने लगी है कि अब वक्त आ गया है और वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन को सेवानिवृत्ति ले लेनी चाहिए। मतलब साफ है कि इस साल देश को नया प्रधानमंत्री तो अगले साल देश को नया महामहिम राष्ट्रपति मिलने वाला है। ईमानदार छवि के धनी गैर राजनैतिक प्रधानमंत्री डाॅ.सिंह के दिन गिनती के ही बचे हैं। उधर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी फिलहाल बतौर प्रधानमंत्री अपनी ताजपोशी को तैयार नहीं हैं। राहुल के अलावा जिन नामों पर चर्चा संभव है उनमें प्रणव मुखर्जी, पलनिअप्पम चिदम्बरम और ए.के.अंटोनी के नाम प्रमुख हैं। इनमें अंटोनी के पीछे सोनिया का जबर्दस्त समर्थन हैं। लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार भी दबे पांव इस दौड़ में शामिल हैं। अगर दलित और महिला को प्रधानमंत्री बनाने की बात आती है तो मीरा कुमार का दावा सबसे अधिक पुख्ता हो जाता है। इस सबसे इतर चतुर सुजान राजा दिग्विजय सिंह भी बिसात बिछाने में लगे हैं, पर राजा के दांव समझना इन राजनेताओं के बस की बात नहीं।
साढ़े नौ दशक बाद लल्ला लाएगा ब्राम्हण दुल्हनिया
आजादी के बाद देश के खिवैया रहे नेहरू गांधी परिवार में एक संयोग 94 साल बाद बनने जा रहा है। मौका है इस परिवार की राजनैतिक तौर पर सक्रिय पांचवीं पीढ़ी के विवाह का। संजय गांधी के पुत्र वरूण गांधी की जीवन संगनी ब्राम्हण बाला बनने वाली है। इसके पहले भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की 1916 में ब्राम्हण कुल की कमला नेहरू को अपनी अर्धांग्नी बनाया था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से तो राजीव गांधी ने इटली मूल की सोनिया और स्व.संजय ने पंजाबी मेनका को अपना जीवन साथी चुना। इसके बाद वाली पीढ़ी में प्रियंका ने राबर्ट वढ़ेरा को चुन लिया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की नजरें भी विदेशी बाला पर ही होने की खबरें हैं। इन परिस्थितियों में वरूण गांधी द्वारा ब्राम्हण कन्या से विवाह रचाकर कांग्रेस के गांधीज को परेशानी में डाल दिया है। अब राहूुल की मजबूरी हो जाएगी कि वे भी ब्राम्हण कन्या के साथ ही स्वयंवर रचाएं। वैसे उत्तर प्रदेश के एक संसद सदस्य के परिवार में उनके विवाह की चर्चाएं तेज हो गई हैं।
किसानों के पैसों से चमक रहे माननीयों के कपड़े
देश भर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है भूमिपुत्र किसान को। किसानों के लिए सरकारें हर कुछ करने को आमदा होती है। किसानों के नाम पर राजनीति भी जमकर ही होती है। पिछले दिनों दिल्ली से इल्ली तक किसानों को सभी ने लूटा। हाल ही में छत्तीसगढ़ की आर्थिक अपराध शाखा के पास एक नए तरीके का अभिनव मामला प्रकाश में आया है, जिसकी चर्चा भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय में भी हो रही है। बताया जाता है कि किसानों के लिए जिस रकम का प्रावधान किया गया था, उस राशि से माननीय वियाायकों और मंत्रियों के कपड़ों की चमक बरकरार रखने के लिए वाशिंग मशीन ही खरीद दी गईं। पहले 7550 रूपए प्रति मशीन के हिसाब से तीन लाख दो हजार की बाद में 5600 रूपए के हिसाब से तीन लाख 92 हजार की मशीने खरीदी गईं। किसानों के लिए सरकार ने छः लाख चोरानवे हजार का प्रावधान किया किन्तु अधिकारियों ने माननीयों के कपड़ों की चमक के लिए उसे खर्च कर दिया।
मंहगाई ने किया संसद की और रूख!
जी हां, यह सच है कि आसमान छूती मंहगाई ने अब देश की सबसे बड़ी पंचायत की ओर रूख कर दिया है। आपको यकीन नहीं हो रहा है न। जाईए, सांसदों के आवास के पास की केंटीन में जाकर कुछ खाईए तो सही। आपको पहले से ज्यादा किन्तु बाजार से काफी कम दरों पर भुगतान करना होगा। सांसदों को काफी के लिए चार रूपए, वेज बिरयानी बारह रूपए, चिकिन बिरयानी के लिए 51 रूपए का शगुन। हर मामले मंे दरें पचास फीसदी बढ़ा दी गईं हैं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर माजरा क्या है? क्या माननीयों की केंटीन आजाद भारत के बाहर है, जी नहीं इस केंटीन में मिलने वाले खाने पर सरकार द्वारा सब्सीडी दी जाती है। अर्थात इसके अलावा शेष राशि का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है। और यह भुगतान होता है आम जनता से करों के माध्यम से वसूली गई राशि से। है न कमाल की बात। आम जनता की आवाज उठाने वाले आम जनता के पैसे पर किस कदर एश करते हैं, यह बात सिर्फ और सिर्फ भारत गणराज्य में ही देखने को मिल सकती है।
कानून का मजाक उड़ाते ‘माननीय‘
भारत गणराज्य का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां चुने हुए या पिछले दरवाजे से प्रवेश करने वाले सांसद या विधायक ही देश के कानून के साथ खिलवाड़ करते नजर आते हैं। जिन सांसदों या विधायकों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज हैं, वे खुलेआम सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करते नजर आते हैं, उन्हें पकड़ने के लिए पाबंद पुलिस ही उनकी देखसंभाल में लगी होती है। बीते दिनों मध्य प्रदेश के एक विधायक के बारे में भी इसी तरह की चर्चाएं दिल्ली स्थित ‘मध्य प्रदेश भवन‘ में चटखारे लेकर सुनाई गई। सुसनेर के भाजपा विधायक संतोष जोशी पर मोमिन बडोदिया थाने में धारा 323 और 506 का प्रकरण पंजीबद्ध है। वे दो माहों से फरार हैं। बावजूद इसके जोशी ने अपने क्षेत्र में पदयात्रा की। नियम कायदों को ताक पर रखने की हद तो तब हो गई जब फरार विधायक के कार्यक्रम में सूबे के निजाम शिवराज सिंह चैहान ने भी आमद दे दी। सीएम की वहां मौजूदगी के चलते पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों के सामने विधायक संतोष जोशी सीना तानकर मंच पर डटे रहे। कोई राह चलता होता तो पुलिस का अदना सा सिपाही भी उसे कालर पकड़कर हवालात में ले जाता पर यहां तो साहेब बहादुर ही सलाम ठोंक रहे थे।
जयंती ने कराई कांग्रेस की किरकिरी
कांग्रेस के प्रवक्ताओं की फौज में शामिल राज्य सभा सांसद जयंती नटराजन वैसे तो अपना अधिक समय चेन्नई में बिताने के लिए मशहूर हो चुकी हैं, पिछले दिनों संसद में उनकी अनुपस्थिति ने कांग्रेस को बुरी तरह शर्मसार किया। मसला यह था कि महामहिम राष्ट्रपति के अभिभाषण पर सत्तारूढ़ कांग्रेसनीत संप्रग की ओर से जनार्दन द्विवेदी के धन्यवाद प्रस्ताव के समर्थन में जब उपसभापति ने बार बार जयंती नटराजन का नाम पुकारा तब वे सीट से नदारत ही थीं। मौके की नजाकत को भांप उपसभापति ने सदन की कार्यवाही एक घंटा पहले ही स्थगित करना मुनासिब समझा। मजे की बात तो यह रही कि उस वक्त सदन में वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह स्वयं उपस्थित थे। बाद में पतासाजी पर ज्ञात हुआ कि नटराजन ने चर्चा में भाग लेने के बजाए उस वक्त गोधरा कांड पर मीडिया से मुखातिब होना उचित समझा।
. . . तो यह दांव लगाया चिरंजीवी ने
आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी फेक्टर की काट के तौर पर कांग्रेस ने प्रजाराज्यम पार्टी से विलय की खिचड़ी पका ही ली। लोग असमंजस में हैं कि आखिर दोनों ही को इससे क्या लाभ हुआ। कांग्र्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है चूंकि दक्षिण में चिरंजीवी का जलजला है इसलिए कांग्रेस उनकी लोकप्रियता को भुनाना चाह रही है। सूत्रों ने आगे कहा कि चिरंजीवी ने विलय के लिए केंद्र में मंत्री पद की शर्त रखी थी। चूंकि चिरंजीवी लोक या राज्यसभा में नहीं हैं अतः उन्हें चुनवाने की जवाबदेही कांग्रेस के सर ही आती। बाद में राजमाता सोनिया गांधी के एक रणनीतिकार ने उन्हें मशविरा दिया कि अगर चिरंजीवी को उपमुख्यमंत्री बना दिया जाए तो उचित होगा। फिर क्या था चिरंजीवी के सामने यह जलेबी लटका दी गई। चिरंजीवी खुद को लाल बत्ती में बैठकर घूमने का सपना देखने लगे और हो गया प्रजाराज्यम का कांग्रेस में विलय।
‘खेद पत्र‘ ने बांटा भाजपा को
पाकिस्तान के कायदे आजम जिन्ना की तारीफों में कशीदे पढ़ने के बाद यह दूसरा मौका होगा जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी की भूमिका पर पार्टी के अंदर सवाल उठने लगे हों। मामला कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को काले धन और विदेशी बैंक खातों के संबंध में लिखे गए खेद प्रकट करने का खत से जुड़ा हुआ है। भाजपा का एक धड़ा इसे उच्च आदर्श की राजनीति का घोतक तो दूसरा राजनैतिक तौर पर गैरजरूरी कदम निरूपित कर रहा है। लोकसभा में पार्टी के उपनेता गोपी नाथ मुंडे का कहना है कि यह सोनिया के लिए क्लीन चिट नहीं है। मामले की जांच चल रही है, जब तक जांच पूरी नहीं होती तब तक यह कहना मुश्किल है कि किसका खाता है और किसका नहीं। अंदरखाते से जो खबरें छन छन कर बाहर आ रही हैं उन पर अगर यकीन किया जाए तो कांग्रेस के कुशाग्र प्रबंधकों ने काले धन के मामले में आड़वाणी की दुखती रग पर हाथ रख दिया है, जिसके परिणामस्वरूप निकलकर आया है ‘खेदपत्र‘।
खतरे में सुकुमार
दिल्ली की निजाम श्रीमति शीला दीक्षित के सुकुमार समझे जाने वाले लोक कर्म विभाग के मंत्री राज कुमार चैहान के आसन पर खतरा डगमगा रहा है। भ्रष्टाचार के एक प्रकरण में दिल्ली के लोकायुक्त न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन ने उन्हें दोषी मानते हुए भारत गणराज्य की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल से उन्हें पद से हटाने की सिफारिश कर दी है। इतना ही नहीं लोकायुक्त ने चैहान पर आपराधिक मामला चलाने की सिफारिश भी की है। जाहिर है इस कार्यवाही के बाद घपलों और घोटालों से घिरी शीला और कांग्रेस नेतृत्व पर नैतिक दवाब बढ़ गया है। गौरतलब होगा कि लोकायुक्त की इसी तरह की प्रतिकूल टिप्पणी के आधार पर कांग्रेस द्वारा कर्नाटक के निजाम येदिरप्पा से त्यागपत्र की मांग की जा रही है। लाख टके का सवाल यह है कि लोकायुक्त की सिफारिश पर महामहिम राष्ट्रपति का सचिवालय कब और क्या निर्णय सुनाता है?
वसुंधरा ही तार सकतीं हैं राजस्थान भाजपा को
रसातल की ओर अग्रसर भाजपा की राजस्थान इकाई में जान फूंकने के लिए अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को वसुंधरा राजे सिंधिया से उपयुक्त दूसरा कोई प्रतीत नहीं हो रहा है। पिछले दिनों उन्हें राज्य में नेता प्रतिपक्ष के पद का आफर दिया गया था, जो उन्होंने विनम्रता के साथ ठुकरा दिया है। और अपनी ओर से नंदलाल मीणा का नाम सुझाया है। इस पद के लिए अन्य नामों में धनश्याम तिवाड़ी, गुलाबचंद कटारिया और वसुंधरा खेमे से राजेंद्र सिंह राठौर और डाॅ.दिगम्बर सिंह के नामों की चर्चा है। भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी चाहते हैं कि उन्हें सूबे की भाजपा का मुखिया बनाकर अगला चुनाव उनकी अगुआई में ही लड़ा जाए। इसके पीछे माना जा रहा है कि राजघराने से होने के बाद भी आज वसुंधरा का जनाधार औरों की अपेक्षा काफी तगड़ा और विधायकों में पकड़ बरकरार है। किन्तु समस्या यह है कि सूबे के मौजूदा अध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी का कार्यकाल अभी एक साल का बचा हुआ है।
अब आया है उंट पहाड़ के नीचे
इक्कीसवीं सदी में जमीन से उठकर स्वयंभू योग गुरू बनने वाले रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने महज आठ सालों में धर्मार्थ संस्था के नाम पर कर बचाकर लाखों करोड़ों रूपयों की अकूत धन संपदा एकत्र कर ली, फिर चले राजनीति की काल कोठरी को स्वच्छ, निर्मल, धवल बनाने। जिसका पेट भरा होता है, वही गंदगी को दूर करने का प्रहसन किया करता है। फिल्म शोले का मशहूर डायलाग है - ‘‘अब आया है उंट पहाड़ के नीचे‘‘। इसी तर्ज पर अब कांग्रेस के सामने बाबा रामदेव आ चुके हैं। बाबा ने काले धन पर जमकर सियासत की। कांग्रेस ने भी अर्जुन की तरह निपुण धर्नुधर, चाणक्य की तरह दूरंदेशी वाले महासचिव राजा दिग्विजय सिंह को बाबा के सामने मैदान संभालने पाबंद किया है। अब दोनों ओर से बयानो के बाण चल रहे हैं। राजनैतिक समझबूझ वाले जानते हैं कि दिग्गी राजा के आगे बाबा रामदेव ज्यादा देर टिक नहीं पाएंगे।
आखिर उद्योगपति क्यों हैं सीबीआई के निशाने पर
केंद्रीय जांच ब्यूरो ने अनिल अंबानी, वेणुगोपाल, शाहिद बलवा जैसी मशहूर हस्तियों की कालर पर हाथ डाला है तो निश्चित मान लिया जाए कि इसके पीछे कारण कुछ गहरा और बेक सपोर्ट बड़ा ही तगड़ा है। वरना किसी की क्या हिमाकत कि इन धनकुबेरों को बुलावा भेजा जाए वह भी साधारण मुलजिमों की तरह पूछताछ का। कहा जा रहा है कि अब बारी कुमार मंगलग बिरला और रतन टाटा की है। दस जनपथ के सूत्रों का कहना है कि देश के उद्योगपति कल तक कांग्रेस की हां में हां मिलाते आए हैं, किन्तु अब इनके द्वारा क्षेत्रीय राजनैतिक दलों को आर्थिक रूप से सुदृढ कर कांग्रेस का सफायश किया जा रहा है। इसके साथ ही साथ इन शीर्ष उद्योगपतियों द्वारा समय समय पर कांग्रेस की व्यवस्था के खिलाफ अनर्गल प्रलाप भी किया गया है। यही कारण है कि दस जनपथ के इशारों पर सीबीआई ने इन्हें बुला भेजा और इशारों ही इशारों में इन्हें पैजामे के अंदर रहने का मशविरा भी दे डाला।
पुच्छल तारा
भारत में कौन कितना कमाता और कितना खर्च करता है इस बारे में कोई हिसाब किताब ही नहीं रखा जाता है, जबकि विदेशों में आय से अधिक संपत्ति पर कानून कड़े हैं और सरकारों की बाकायदा नजरें रहती हैं। लुधियाना से सुरभी ने एक ईमेल भेजा है। सुरभी लिखती हैं कि एक अमेरिकी और एक भारतीय आपस में बतिया रहे थे।
अमेरिकी: हमारे यहां हर नागरिक की औसत कमाई दस हजार डालर है और वह खर्च करता है सात हजार डालर।
हिन्दुस्तानी: बाकी बचे पैसों का वह क्या करता है?
अमेरिकी: यह उसका नितांत निजी मामला है, कि वह बचे पैसे का क्या करता है, हमारे यहां निजी मामलों में दखल नहीं दिया जाता है।
हिन्दुस्तानी: हमारे यहां हर नागरिक की औसत कमाई डेढ़ हजार रूपए है, और वह खर्च करता है पांच हजार रूपए।
अमेरिकी (हैरत के साथ): बाकी पैसे वह लाता कहां से है?
हिन्दुस्तानी: यह उसका सरदर्द और नितांत निजी मामला है। हमारे यहां भी किसी के निजी मामलों में कोई दखल नहीं देता है।
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