बुधवार, 23 मार्च 2011

नपुंसक बना रही हैं सब्जियां


जहर बुझी हरी सब्जियां
सरकार के पास तो लैब ही नहीं है

(लिमटी खरे)

फल और सब्जियों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का धडल्ले से हो रहा उपयोग भविष्य के लिए चिंता की लकीरें गहराता जा रहा है। यह निश्चित तौर पर दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा कि हम उदर पोषण के लिए जिन फलों और सब्जियों का प्रयोग कर रहे हैं उनमें जमकर मिलावट की जाती है और तो और उनकी खेती में प्रतिबंधित खतरनाक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा इस मामले में संज्ञान लेकर सरकार को फटकारना इस बात का घोतक है कि सरकारें तो आंख बंद कर पड़ी हैं, पर न्यायालय ही पहरेदार की भूमिका में आ रहा है।

सूचना के अधिकार कानून के तहत यह मामला प्रकाश में आया है कि फलों को कृत्रिम तौर पर पकाने के लिए और सब्जियों की पैदावार में विस्फोटक वृद्धि के लिए प्रतिबंधित कीटनाशकों और दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है। वह भी तब जब इन सब को मानव उपयोग के लिए हानिकारक माना गया है। हद तो तब हो जाती है जब मंडियों में फलों और सब्जियों का सेंपल लेने वाला विभाग ही अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाए।

दिल्ली का ही उदहारण लिया जाए तो दिल्ली प्रदेश में यह काम प्रिवेंशन ऑफ फुड एडल्टरेशन विभाग का है। विडम्बना ही कही जाएगी कि पिछले तीन चार सालों में इस महकमे के आला अधिकारियों ने एक भी जिंस का सैंपल लेने की जहमत नहीं उठाई है। इससे साफ हो जाता है कि दिल्ली सरकार को अपनी रियाया की सेहत की कितनी फिकर है। इस विभाग के कानूनों के मुताबिक विभाग में तैनात अफसरान को इस तरह की मिलावट करने वालों के धंधे को बंद कराने और दोषियों को पकड़कर सजा दिलवाने का अधिकार है। मजे की बात तो यह है कि अफसरशाही के बेलगाम घोड़े इस कदर दौड़ रहे हैं कि आला अधिकारियों ने भी अपने मातहतों से यह पूछने की जहमत नहीं उठाई कि आखिर क्या वजह है कि सालों में एक भी सैंपल नहीं लिया गया? कमोबेश यही आलम भारत के हर एक राज्य का है। राज्य सरकारों की अनदेखी के चलते वहां भी लोग अब चिकित्सकों के भरोसे रहने पर मजबूर हो चुके हैं।

भारत में क्लोरडैन, एंड्रिन, हेप्टाक्लोर, इथाइल पैराथीओन जैसे कीटनाशकों पर प्रतिबंध है, बावजूद इसके इनका प्रयोग धडल्ले से जारी है। चिकित्सा के जानकारों का कहना है कि इन कीटनाशकों में उपस्थित केमीकलों द्वारा मानव के नर्वस सिस्टम को क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है, जिससे केंसर जैसी गंभीर बीमारी तक हो सकती है। इतना ही नहीं इनके प्रयोग से सेक्स पावर कम होकर व्यक्ति नपुंसक भी हो सकता है। इन कीटनाशकों का उपयोग किसानों या फल उत्पादकों द्वारा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि ये सस्ती दरों पर आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

दुधारू पशुओं से दूध की अधिक मात्रा लेने के लिए इन्हें भी तरह तरह के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इससे ये दुधारू पशु तीन चार गुना दूध देना आरंभ कर देते हैं। किन्तु तीन चार सालों में ही ये दुध देना बंद कर देते हैं जिससे इनके पालक इन दुधारू पशुओं को कसाईयों के हाथों बेच दिया करते हैं। इन दुधारू पशुओं के शरीर में पल रहे कीटनाशक और दवाओं का सेवन करने से मानव को भी तरह तरह की बीमारियों के खतरे से इंकार नहीं किया जा सकता है। इतना ही नहीं इनके मृत शरीर को नौंचकर खाने वाले पर्यावरण के पहरूआ समझे जाने वाले गिद्ध भी इसका शिकार हो चुके हैं, जो आज विलुप्त प्रजाति के हो चुके हैं।

बताते हैं कि बासी सब्जियों को ताजा दिखाने के लिए इन्हें मैलाथियान में डुबाया जाता है, जिससे बासी दिखने वाली सब्जियों का रंग चटक हो जाए। इसके सेवन से स्वांस सीने मंे जकड़न, उल्टी, दस्त, आंखों के रोग, पसीना, सरदर्द, चेतना में कमी जैसे लक्षण उभरने लगते हैं। दरअसल मैलाथियान एक तरह का कीटनाशक है जिसका उपयोग मच्छरों और कीड़ों से निजात पाने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग अमूमन मच्छर, मख्खी, काकरोच को मारने वाले उत्पादों में किया जाता है। मनुष्य अगर लगातार इसका सेवन करे तो उसकी इहलीला तक समाप्त हो सकती है।

1996 में वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के उपरांत यह निश्कर्ष निकाला गया था कि मैलाथियान के उपयोग से मनुष्य की श्वेत रक्त कोशिकाएं बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। शोध बताते हैं कि 1976 में पाकिस्तान मंे मलेरिया उन्नमूलन योजना में इस जहर से 2800 लोग प्रभावित हुए थे, जिनमें से पांच तो काल कलवित हो गए थे। मैलाथियान के कई गंभीर दुष्परिणाम भी हैं।

आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि राज्यों के साथ ही साथ केंद्र सरकार के पास भी फलों और सब्जियों में ‘आक्सीटोन‘ सहित अन्य कीटनाशकों या दवाओं के प्रयोग का पता करने के लिए कोई प्रयोगशाला ही नहीं है। पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में दिल्ली सरकार द्वारा केंद्र सरकार के तीन जनवरी के एक पत्र को प्रस्तुत किया है जिसमें केंद्र सरकार द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि देश में फलों और सब्जियों में आक्सीटोन का पता लगाने के लिए कोई साधन मौजूद नहीं हैं। इन परिस्थितियों में आम आदमी की सेहत तो भगवान भरोसे ही मानी जा सकती है।

आसमान छूती मंहगाई के इस दौर में आम आदमी सब्जी पर ही गुजारा करने पर मजबूर है। मांसाहार इतना अधिक मंहगा हो गया है कि उसका सेवन कर सबके बूते की बात नहीं रही। जानकारी के अभाव में अनजाने ही सही आम जनता द्वारा जहर का सीधा सीधा सेवन किया जा रहा है। सरकारी तंत्र की अनदेखी के चलते आम आदमी के स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़े बिना नहीं है। फल और सब्जियों में मौजूदा कीटनाशक लोगों की किडनी और लीवर को क्षतिग्रस्त कर रहा है।

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