फायर ब्रांड उमा की खामोश वापसी!
(लिमटी खरे)
उमा भारती एक फायर ब्रांड साध्वी और नेत्री हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। उमा जनाधार वाली नेत्री हैं, यह भ्रम भाजपा को रहा है, भाजपा के आला नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि उमा भारती अपने बल बूते पर अपने ही गृह प्रदेश में भारतीय जनशक्ति पार्टी का न केवल खाता नहीं खोल पाईं वरन् खुद भी चुनाव में पराजय का मुंह देख चुकी हैं। उमा का गुस्सा उनके लिए सबसे बड़ी नाकारात्मक बात है। जब उन्हें गुस्सा आता है तब वे यह नहीं देखतीं कि वे किसके बारे में क्या प्रलाप कर रही हैं। उमा भारती को उत्तर प्रदेश चुनावी वैतरणी पार करने के लिए भाजपा में लाया गया प्रचारित किया जा रहा है, जबकि लगने लगा है कि भाजपा के निजाम नितिन गड़करी द्वारा अपने विरोधियों के शमन हेतु उमा का उपयोग किया जाएगा। दिल्ली में बैठे भाजपा मानसिकता वाले मध्य प्रदेश के आला अफसरान भी अब उमा की घर वापसी से दहशत में आ गए हैं। उमा भारती एक जानदार व्यक्तित्व की स्वामी हैं, किन्तु उनकी घर वापसी जिस तरह गुपचुप और नीरस तरह से हुई उससे हर किसी को आश्चर्य ही हुआ है।
(लिमटी खरे)
उमा भारती एक फायर ब्रांड साध्वी और नेत्री हैं इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। उमा जनाधार वाली नेत्री हैं, यह भ्रम भाजपा को रहा है, भाजपा के आला नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि उमा भारती अपने बल बूते पर अपने ही गृह प्रदेश में भारतीय जनशक्ति पार्टी का न केवल खाता नहीं खोल पाईं वरन् खुद भी चुनाव में पराजय का मुंह देख चुकी हैं। उमा का गुस्सा उनके लिए सबसे बड़ी नाकारात्मक बात है। जब उन्हें गुस्सा आता है तब वे यह नहीं देखतीं कि वे किसके बारे में क्या प्रलाप कर रही हैं। उमा भारती को उत्तर प्रदेश चुनावी वैतरणी पार करने के लिए भाजपा में लाया गया प्रचारित किया जा रहा है, जबकि लगने लगा है कि भाजपा के निजाम नितिन गड़करी द्वारा अपने विरोधियों के शमन हेतु उमा का उपयोग किया जाएगा। दिल्ली में बैठे भाजपा मानसिकता वाले मध्य प्रदेश के आला अफसरान भी अब उमा की घर वापसी से दहशत में आ गए हैं। उमा भारती एक जानदार व्यक्तित्व की स्वामी हैं, किन्तु उनकी घर वापसी जिस तरह गुपचुप और नीरस तरह से हुई उससे हर किसी को आश्चर्य ही हुआ है।
2003 में देश के हृदय प्रदेश में भाजपा ने उमा भारती के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और आशातीत सफलता पाई। प्रदेश में जिस थंपिंग मेजारिटी से भाजपा ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई उसे देखकर लगने लगा था मानो उमा भारती बहुत ज्यादा जनाधार वाली नेता बनकर उभरी हैं। विवाद उमा का पीछा नहीं छोड़ते हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए उमा के खिलाफ 1994 में हुबली दंगा के मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ और उन्हें पद से हाथ धोना पड़ा। इसके उपरांत नवंबर 2004 में एक लाईव पत्रकार वार्ता में उमा भारती ने अपने आरध्य एल.के.आड़वाणी की उपस्थिति में उन्हें ही कोस दिया। इतना ही नहीं उमा ने राज्य सभा के रास्ते फुरसत में राजनीति करने वाले कुछ फितरती नेताओं का नाम लिए बिना उन पर जमकर प्रहार किया कि वे मीडिया को ‘आॅफ द रिकार्ड‘ ब्रीफ कर उनके और भाजपा के अन्य नेताओं के कपड़े उतारते हैं। उमा को अनुशासनहीनता का नोटिस मिला और फिर उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। उमा ने भारतीय जनशक्ति पार्टी के नाम से अलग संगठन का गठन किया। पिछले चुनावांे में यह संगठन औंधे मुंह गिर गया, यहां तक कि उमा भारती खुद अपने गृह जिले टीकमगढ़ से ही हार गईं। इसके बाद से वे भाजपा में घर वापसी के लिए प्रयासरत थीं। उमा भारती यह बात भली भांति जान चुकी हैं कि पार्टी उनसे नहीं वे पार्टी से हैं। हर हाल में संगठन का कद व्यक्ति विशेष से बड़ा ही रहता है। उमा को भ्रम हो गया था कि संगठन उनके कारण चल रहा है।
उमा भारती भाजपा में वापस आ गईं हैं, उनकी वापसी से पार्टी का क्या फायदा मिलेगा यह बात तो भविष्य के गर्भ में ही है, किन्तु यह बात बिल्कुल साफ है कि उमा के पास अपना अस्तित्व बचाने के लिए भाजपा में वापसी के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। उमा भारती वर्तमान में गंगा को बचाने के अभियान पर लगी हुईं हैं। उमा भारती के बारे में राजनैतिक वीथिको में कहा जाता है कि उमा भारती कांच का सामन हैं, जिसकी पेकिंग पर एक तीर के साथ ‘दिस साईड अप‘ लिखा होता है, अर्थात उमा को अगर साथ रखना है तो बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यक्ता है। उमा भारती का सबसे बड़ा शत्रु उनका क्रोध पर काबू न होना है।
नितिन गड़कारी को उमा की घर वापसी का फैसला लेने में पसीना आ गया होगा। गड़करी को बताया गया होगा कि इसके पहले भी उमा घर से ‘रिसाकर‘ (रूठकर) चलीं गईं थी, इसके बाद उन्हें वापस लिया गया था, तब अनेक नेताओं ने इसका विरोध किया था। बाद में जब दुबारा उमा ने भाजपा को पानी पी पी कर कोसा और पार्टी से बिदाई ले ली तब जाकर लगा था कि पहली बार की रूखसती के बाद घर वापसी में नेताओं का विरोध गलत नहीं था।
यह सच है कि उत्तर प्रदेश एक एसा सूबा है जिसने देश को सबसे ज्यादा वजीरे आजम दिए हैं। उत्तर प्रदेश पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही की नजरें गड़ी हुई हैं। 2012 के विधानसभा चुनावों के पूर्व एक किताब दिल्ली की फिजां में तैरी जिसमें यूपी में कांग्रेस की दुर्गत के लिए इंदिरा गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया है। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्रों को अपने दामन में समेटने वाले उत्तर प्रदेश सूबे में कांग्रेस अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर यूपी पर राज करने वाली भाजपा भी तीसीे और चैथी पायदान के लिए प्रयासरत है।
इसके पहले मदन लाल खुराना और कल्याण सिंह के उदहारण हमारे सामने हैं। पार्टी ने जब इन्हें वापस लिया तब इनकी छवि या अनुभवांे का बहुत ज्यादा लाभ पार्टी को नहीं मिल सका है। उमा भारती की अपनी ही पार्टी के आला नेताओं से पटरी नहीं बैठती है। मध्य प्रदेश मूल की होने के बाद भी उमा भारती की अपने ही सूबे के नेताओं से अनबन ही रहा करती है। उमा से खौफजदा उनके अधिकांश समर्थकों ने उनका दामन छोड़ दिया था। अब उमा भाजपा में हैं इन परिस्थितियों में उमा के निशाने पर उनके निष्ठा बदलने वाले सिक्के हों तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उमा और आला नेताओं के बीच खाई इतनी गहरी हो चुकी है कि उसे पाटने में ही ज्यादा समय बीत जाएगा।
एक समय था जब उमा भारती के नाम से हजारों की भीड़ जमा हो जाया करती थी। गांव गांव में उनके चोले को देखकर लोग बरबस ही उनके आगे साष्टांग हो जाया करते थे। साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती को सुनने दूर दूर से श्रृद्धालु जुटते थे। ऋतंभरा ने तो आध्यात्म की राह नहीं छोड़ी पर उमा भारती ने भगवा चोला धारण करने के साथ ही साथ राजनैतिक राह पकड़ ली। उमा भारती शुरूआती दौर में इसमें सफल भी हुईं, किन्तु उनके उग्र स्वभाव के कारण उनके समर्थक कम शत्रु ज्यादा पैदा हो गए। राजनैतिक बिसात पर भी उमा भारती को नीचा दिखाने के लिए उनकी राह में शूल बोए जाते रहे हैं। जानबूझकर एसा वातावरण पैदा किया जाता रहा है कि वे तैश में आएं और अनाप शनाप अर्नगल प्रलाप आरंभ करें।
वैसे अगर दूसरे नजरिए से देखा जाए तो भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी के लिए अरूण जेतली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार, नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चैहान आदि जैसे नेता चुनौति ही हैं। अगला चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाए, इस पर भाजपा के अंदरखाने में गुपचुप बहस आरंभ हो चुकी है। भाजपाई नितिन गड़करी का नेतृत्व पचा नहीं पा रहे हैं। उमा की घर वापसी का फैसला भी जिस गुपचुप तरीके से लिया जाकर एकाएक मीडिया को सुनाया गया, उससे भाजपा के आला नेताओं में रोष और असंतोष है। भाजपा में उमा की घर वापसी के वक्त वहां राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज, राज्य सभा के अरूण जेतली, पूर्व अध्यक्ष और यूपी की राजनीति से उठे राजनाथ सिंह मौजूद नहीं थे, जो चर्चाओं का केंद्र बना है।
उमा की घर वापसी से शिवराज सिंह चैहान, सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज नेताओं की नींद उड़ना स्वाभाविक ही है। उमा भारती का कार्यक्षेत्र मध्य प्रदेश रहा है। शिवराज सिंह चैहान द्वारा सालों साल सींची गई विदिशा लोकसभा सीट की फसल एकाएक दिल्ली से अवतरित हुईं सुषमा स्वराज द्वारा काट ली गई। शिवराज के पास चूंकि मुख्यमंत्री पद था, इसलिए वे खून का घूंट पीकर रह गए होंगे। शिवराज चाहते हैं कि उनकी अर्धांग्नी साधना को विदिशा से सांसद बनवाया जाए। उधर सुषमा के लिए कम झंझटों के साथ विदिशा लोकसभा सीट मुफीद लग रही है। उमा के आने के बाद मध्य प्रदेश की भाजपाई राजनीति में हलचल होना स्वाभाविक ही है।
हो सकता है कि भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी द्वारा अपने लिए सरदर्द बनते पार्टी की दूसरी पंक्ति के नेता जो अपने आप को गड़करी का समकक्ष समझ रहे हों, को निपटाने के लिए गड़करी ने संघ से मिलकर उमा की घर वापसी करवाई हो। भले ही उमा को उत्तर प्रदेश का मिशन दिया गया हो, किन्तु उनकी नजरें मध्य प्रदेश पर ही रहेंगी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। मध्य प्रदेश में उमा की अप्रत्यक्ष दखल से अब शिवराज सिंह चैहान और सुषमा स्वराज दोनों ही को अपना ज्यादा से ज्यादा समय एमपी बेस्ड राजनीति को देना होगा।
शिवराज सिंह चैहान के मुख्यमंत्री बनने के पहले जब मुख्यमंत्री पद के लिए कैलाश विजयवर्गीय का नाम चला था, उस वक्त नेशनल लेबल पर इमेज बिल्डिंग के लिए कैलाश ने मध्य प्रदेश सूचना केंद्र सहित अन्य पदों पर अपनी पसंद के अधिकारियों को बिठाकर फील्डिंग आरंभ कर दी थी। बाद में शिव का राज आने पर उन्हें बदल दिया गया। वर्तमान में दिल्ली में मध्य प्रदेश के अधिकांश अफसरान शिवराज के बजाए प्रभात झा की नौकरी करते नजर आ रहे हैं। उमा भारती की घर वापसी से उन अफसरों की पेशानी पर भी पसीने की बूंदे छलक आईं हैं जो उमा से भयाक्रांत होकर एमपी छोड़ प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आ गए थे। उमा भारती जैसी कद्दावर नेता जिसके बल बूते पर भाजपा ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस का तिलिस्म 2003 में तोड़ा था, की इस तरह खामोश वापसी से अनेक प्रश्नचिन्ह खड़े हो रहे हैं।
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