मंगलवार, 30 अगस्त 2011

सरकारी जमीन सिब्बल के नाम!


अण्णा अनशन के अनछुए पहलू

अण्णा अनशन के अनछुए पहलू

(लिमटी खरे)

गांधीवादी किशन बाबूराव उर्फ अण्णा हजारे ने तेरहवें दिन अपना अनशन त्यागा, जिसे उन्होंने स्थगन की संज्ञा दी। अण्णा के समर्थन में समूचा देश एक सूत्र में पिरो दिया गया। बच्चे बूढ़े जवान सभी अण्णामय हो गए थे। चारों तरफ अण्णा ही अण्णा दिख रहे थे। कांग्रेस पहले तो आक्रमक रही फिर अचानक ही जनसैलाब की भावनाओं के सामने बैकफुट पर ही नजर आई। भाजपा ने भावनाएं समझीं और अण्णा का दामन थाम लिया। इन तेरह दिनों में देश ने बहुत कुछ खोया पाया। अण्णा ने अपना पूरा जीवन इन तेरह दिनों में जी लिया। उनके सहयोगी केजरीवाल थोड़े से राजनैतिक समझ में आए। अंत में उन्होंने जिस तरह से श्री श्री को महिमा मण्डित किया वह अनेकों के गले नहीं उतरा। आने वाले समय में किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कांग्रेस ने किरण बेदी को दिल्ली का पुलिस आयुक्त नहीं बनाया सो उन्होंने भी अपने इस अपमान का बदला ले ही लिया। रामलीला मैदान पर दूसरी बार कांग्रेस औंधे मुंह ही गिरी है। इस बार राहुल गांधी के सपनों का युवा भारत उनसे बेहद दूर हो गया है। सिब्बल और चिदम्बरम ने भरोसा खो दिया है तो बयानवीर राजा दिग्विजय सिंह इस बार आश्चर्यजनक तरीके से मौन ही साधे रहे।

15 अगस्त का दिन प्रोढ़ और वृद्ध हो चली पीढ़ी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। वृद्ध जनों ने इस दिन देश की आजादी का जश्न देखा था तो प्रोढ़ हो चली पीढ़ी ने कोर्स की किताबों, चलचित्रों और कहानियों के माध्यम से स्वतंत्रता दिवस के बारे में ज्ञान हासिल किया। सत्तर के दशक के उपरांत कांग्रेस की सरकार द्वारा आजादी की कहानियों को हाशिए पर लाने का जतन आरंभ हो गया। कहा जाता है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ही देश की भावी पीढ़ी को दिशा देने का काम करता है। अस्सी के दशक के आरंभ से ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने अपने अपने दलों के निहित स्वार्थों के आगे देश की आन बान और शान को गौड़ कर दिया। कभी शिक्षा का कांग्रेसीकरण हुआ तो कभी भगवाकरण। देश में आजादी के परवाने महात्मा गांधी के जन्म दिवस को लोग ड्राई डे (मदिरा की दुकाने बंद होने का दिन) के तौर पर पहचानने लगे। इसी पर व्यंग्य करती हुई बात संजय दत्त अभिनीत लगे रहो मुन्ना भाईमें भी कही गई थी। इसके बाद भी सरकार नहीं चेती।

अगस्त का माह आने वाली पीढ़ी के लिए अब प्रासंगिक हो चला है। 15 अगस्त के बाद अब 16 से 28 अगस्त तक गांधीवादी समाज सेवी अण्णा हजारे के अनशन को युवा उसी तरह याद रख पाएंगे जिस तरह आज की प्रोढ़ हो चली पीढ़ी स्काईलेब को याद रख पाती है। कल जब कानून का रूप धारण कर लेगा जनलोकपाल तब यही पीढ़ी डेढ़ दो दशकों के बाद गर्व से कह सकेगी कि इस आंदोलन में उसने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। इस दौर के किस्से कहानियां वे अपनी आने वाली पीढ़ी को बड़े ही चाव से बताएंगे। फर्क महज इतना ही होगा कि हमें गोरे ब्रितानियों के जुल्म की दास्तान सुनाई जाती थी और आने वाली पीढ़ी अपने ही देश के जालिम शासकों की बातें सुनाएंगे।

13 दिन तक लगातार रामलीला मैदान अण्णा के अनशन का साक्षी रहा है। अण्णा के इस अनशन को हर दृष्टिकोण से मीडिया ने जनता के समक्ष रखा। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मीडिया ने ही अण्णा के इस आंदोलन में आहुतियां डालीं और आग को तेज किया। लोग जब अलह सुब्बह समाचार पत्र पढ़ते तो उनका मन जोश से भर उठता फिर जब वे समाचार चेनल्स पर देश भर में जुनून देखते तो उनकी बाहों की मछलियां अपने आप ही फड़कने लगतीं। फिर क्या, निकल पड़ते दो चार छः के झुंड में युवा सड़कों पर।
इन युवाओं का जोश देखकर हम अंदाजा ही लगा सकते हैं कि आजादी के पहले देश में क्या होता होगा। उस दौर में इसी तरह दो चार आठ के झंुड में जवान इंकलाब जिंदाबादके नारे लगाते होंगे और पुलिस के आते ही गलियों में छिप जाते होंगे। जिस तरह आजादी विषय पर आधारित सिनेमा में दिखाया जाता रहा है कमोबेश वही नजारा आज के युग के हिसाब से दिखाई दे रहा था समूचे भारत का अण्णा के आव्हान पर।

अण्णा को जब 16 अगस्त को घर से गिरफ्तार किया गया था, उस समय लोग इस मामले में ज्यादा संजीदा नहीं थे। दोपहर ढ़लते ही भ्रष्टाचार का विरोध उग्र होने लगा। सरकार ने अपने जासूसोंके माध्यम से सारी जानकारी लेना आरंभ किया। जब देखा कि जनसमर्थन जबर्दस्त तरीके से अण्णा के साथ है तो फिलहाल इसे टालोकी नीति अपनाकर अण्णा को रिहा कर दिया गया। अण्णा सीधे रामलीला मैदान गए और वहां जाकर उन्होंने मांगे पूरी न होने तक अनशन स्थल न छोड़ने की हुंकार भर दी। सरकार को अण्णा की यह बात गीदड़ भभकी ही लगी।

अण्णा के समर्थन में हुजूम देखकर खुद अण्णा अचंभित ही नजर आ रहे थे। उनके सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने माईक संभाल रखा था। बीच में किरण बेदी कुछ बोलतीं किन्तु कानूनविद प्रशांत भूषण पूरी तरह खामोश ही रहते। सरकार और अण्णा के बीच बातचीत बमुश्किल आरंभ हुई। इसी के साथ स्वामी अग्निवेश का फोन टेप सामने आया और उनके चेहरे से नकाब उठ गया। अण्णा के समर्थन में न जाने कितने लोग आए पर आमिर खान को छोड़कर किसी को भी अण्णा ने मंच पर स्थान नहीं दिया।
कपिल सिब्बल और पलनिअप्पम चिदम्बरम ने बाबा रामदेव को अपनी रणनीति में फंसाकर चारों खाने चित्त कर दिया था। बाबा रामदेव के असफल होने का इकलौता कारण उनके मानस पटल पर कुलाचंे मारती राजनैतिक महात्वाकांक्षाएं ही थीं। दस साल पहले सायकल पर चलने वाले रामकिशन यादव ने आज ग्यारह सौ करोड़ का साम्राज्य स्थापित कर लिया है। सरकार के हाथ में बाबा की यह दुखती रग थी, इसलिए बाबा रामदेव को रणछोड़दासबनना पड़ा।

कांग्रेस के इन शातिर प्रबंधकों ने यही दांव किशन बाबूराव यानी अण्णा हजारे पर चलाना चाहा। अण्णा हजारे के तो आगे पीछे कोई है नहीं। उन्होंने कोई संपत्ति नहीं जोड़ी है। सादगी की मिसाल अण्णा हजारे पर सिब्बल, चिदम्बरम के अलावा कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने व्यक्तिगत हमले किए वह भी सीमाओं को लांघते हुए। अण्णा हजारे इससे कतई विचलित नहीं हुए। सबसे आश्चर्य तो तब हुआ जब इन छिछले दर्जे के हमलों के बाद भी अण्णा के समर्थकों ने अपने आंदोलन को अहिंसक ही रखा। मनीष तिवारी के खिलाफ कोई गंदा बयान नहीं दिया। इस पूरे मामले में इक्कीसवीं सदी में कांग्रेस के अघोषित चाणक्य बन चुके राजा दिग्विजय सिंह की खामोशी इस वक्त शोध का विषय बनी हुई है।
अण्णा चूंकि महाराष्ट्र के हैं अतः उन्होंने विलासराव देशमुख पर भरोसा जताया और विलासराव ने ही अंत में प्रधानमंत्री का पत्र लाकर दिया तब जाकर अण्णा ने अपना अनशन स्थगित किया। अण्णा के इस अनशन में एक बात तारीफेकाबिल है कि देश में शातिर, घाघ, विषैले लोगों के होते हुए भी अण्णा के इस अनशन में देश भर में मिले व्यापक जनसमर्थन का तरीका पूरी तरह अहिंसक था। कहीं भी किसी ने भी राष्ट्रीय संपत्ति को निशाना बनाकर उसका नुकसान नहीं किया।

अण्णा विरोधियों ने तरह तरह की चाल चलकर अण्णा के अनशन को समाप्त करवाने का प्रयास किया किन्तु वे सफल नहीं हो पाए। बीच में मायावती ने अण्णा की मुखालफत कर डाली। उस वक्त यह बयार चल पड़ी कि अण्णा देश के संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर के कानून को बदलना चाह रहे हैं। यह चाल शायद इसलिए चली गई थी ताकि दलितों के मन में अण्णा के खिलाफ विषवमन किया जा सके। मीडिया ने साफ कर दिया कि अण्णा तो बाबा साहेब अंबेडकर के कानून का पालन ही सुनिश्चित करवाना चाह रहे हैं, तब जाकर मामला शांत हुआ।

इस आंदोलन में नेहरू गांधी परिवार की राजनैतिक तौर पर सक्रिय पांचवी पीढ़ी में राहुल गांधी बुरी तरह पिछड़ गए। राहुल गांधी अपने पिता की ही तरह युवाओं का भारत देखने की कथित तौर पर अभिलाषा रखते हैं। वे हमेशा युवाओं को आगे लाने की बात कहा करते हैं। युवाओं को कांग्रेस से जोड़ने के लिए उन्होंने बेहद जतन भी किए हैं। अण्णा के अनशन में युवाओं की जबर्दस्त भागीदारी देखकर राहुल के काकाजात भाई वरूण गांधी ने तो नब्ज पहचानी और अनशन स्थल पर जाकर अण्णा समर्थकों के बीच बैठ जाने को मीडिया ने जमकर हाईलाईट किया। राहुल गांधी के अनशन स्थल न जाने को लेकर युवा राहुल से खफा नजर आ रहे है।

राहुल गांधी का घर घेरने गए अण्णा समर्थकों को रामलीला मैदान में कोल्ड ड्रिंक और समोसे भिजवाने की अच्छी प्रतिक्रिया सामने नहीं आ रही है। युवाओं का कहना है कि राहुल चाहते तो अनशस्थल पर समोसे के साथ चाय, दूध या लस्सी भिजवा सकते थे किन्तु विदेशी मानसिकता के गुलाम राहुल ने वहां विदेशी शीतल पेय भिजवाया जिसके खिलाफ बाबा रामदेव ने जेहाद छेड़ रखी है। मतलब साफ है कि राहुल के सलाहकार यह चाह रहे थे कि अनशन स्थल पर यह मैसेज भी चला जाए कि राहुल का विरोध करने वालों को राहुल गांधीगिरी से मना सकते हैं और वहां योग गुरू बाबा रामदेव को भी दूर रखा जाए।

कहते हैं कि कथित एक अध्यात्म गुरू ने वरूण गांधी और अण्णा की बात करवाई। अण्णा ने वरूण को अनशन मे आने न्योत दिया, किन्तु वे अपने कौल में बंधे थे कि किसी भी नेता को वे मंच पर स्थान नहीं देंगे, सो वरूण ने जनभावनाओं को भांपते हुए अनशनकारियों के बीच बैठना ही उचित समझा।

किरण बेदी देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी हैं। जब वे दिल्ली में पुलिस आयुक्त के लिए एलीजिबिल हुईं तब उनके स्थान पर किसी और को आयुक्त बना दिया गया। तब चिदंबरम ने उन्हें बुलाया और चिदंबरम से बात के बाद भी किरण बदेी ने खुद को दिल्ली के सीपी की दौड़ से बाहर किया था। उस वक्त तो किरण बेदी खामोश रह गईं किन्तु अब वे मन ही मन खुश जरूर होंगी क्योंकि अब सरकार उनके सामने घुटनों पर खड़ी दिख रही है।

अण्णा के चिकित्सक डॉ.नरेश त्रेहान को मुनाफे में ही पब्लिसिटी मिल गई है। अण्णा अपनी लड़ाई आम आदमी के लिए लड़ रहे हैं और आम आदमी की पहुंच से मीलों दूर हैं डॉ.त्रेहान। डॉ.त्रेहान को अमीरों और संपन्न वर्ग का चिकित्सक यानी राज वैद्य माना जाता है। अण्णा का उनसे इलाज करवाना उन पर भरोसा जताना आम आदमी को गवारा नहीं उतरा है। एक आम आदमी सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों के भरोेसे ही है।

अण्णा ने भी आम सरकारी चिकित्सक के बजाए डॉ.त्रेहान से इलाज करवाकर उन्हें बार बार मंच पर बुलवाकर, बाद में उनके अस्पताल में दाखिल होकर साबित कर दिया कि सरकारी चिकित्सकों पर उन्हें उसी तरह भरोसा नहीं है जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के घुटने के बदले जाते समय उन्हें नहीं था, जिस तरह कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी को देश के बजाए अमेरिका में जाकर इलाज और ऑपरेशन करवाते वक्त नहीं था।

अण्णा से नाराजगी रखने वालों में पश्चिम बंगाल की निजाम ममता बनर्जी का नाम कांग्रेस के बाद दूसरे नंबर पर है। मीडिया में अण्णा ही अण्णादेखकर उनकी बोलती बंद थी। कहते हैं कि ममता चाह रही थीं कि वे अपनी कोलकता दक्षिण लोकसभा सीट छोड़ने के पहले संसद में एक जोरदार भाषण दें जिसे लोग सालों साल याद रखें। ममता खुद भी एक जनआंदोलन के माध्यम से ही सत्ता की मलाई चख पा रही हैं। ममता का यह सपना सपना ही बनकर रह गया।

अण्णा के इस आंदोलन में नुकसान में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही रही है। कांग्रेस में भी सबसे ज्यादा डैमेज राहुल गांधी का हुआ है। युवाओं का राहुल से मोह भंग हुआ है। पहले रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के मामले में राहुल गांधी खामोश रहे फिर अण्णा के मामले में तो उन्होंने हद ही कर दी। एक बार भी झूटे मंुह ही सार्वजनिक तौर पर अण्णा के हाल चाल नहीं जाने। कांग्रेस ने डैमेज कंट्रोल के बतौर संसद में राहुल का शानदार भाषण तैयार कर उनसे पढ़वाया। नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने इस भाषण को राहुल का राष्ट्र के नाम संदेश बताकर इसकी हवा निकाल दी। यह सच है कि अण्णा हजारे का अनशन तुड़वाने में कांग्रेसनीत सरकार से ज्यादा विपक्ष की भूमिका रही है। सोनिया गांधी लौटेंगी तब इसकी समीक्षा होगी और फिर अगली बिसात बिछाई जाएगी।

सामी के तीर से घायल हैं शिवराज

सामी के तीर से घायल हैं शिवराज

पीएमओ के पत्र पर साधी एमपी गर्वमेंट ने चुप्पी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस के महासचिव और मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में राज्य मंत्री नारायण सामी के पत्र का जवाब न मिलने से पीएमओ की भवें मध्य प्रदेश सरकार के खिलाफ तिरछी होती जा रही हैं। सरकारी कर्मचारियों को संघ की शाखाओं में जाने की अनुमति के मामले में पीएमओ ने शिवराज सरकार को इस संबंध में एक पत्र लिखा है जिसका जवाब देना भी शिवराज सिंह ने उचित नहीं समझा है।

पीएमओ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार ने 2006 में एक आदेश जारी कर सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में जाने की अनुमति प्रदान कर दी थी। जब यह बात केंद्र सरकार के संज्ञान मं लाई गई तब प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस पर कार्यवाही की।

वर्तमान में प्रधानमंत्री कार्यालय में पदस्थ राज्य मंत्री व्ही.नारायणसामी ने शिवराज सरकार को एक पत्र लिखा है जिसमें सरकारी कर्मचारियों को शाखा में जाने के मामले में आपत्ति दर्ज की गई है। सूत्रों ने बताया कि सामी ने इस फैसले को राजनैतिक तटस्था के सिद्धांत के प्रतिकूल माना है।

उधर शिवराज सिंह सरकार ने इस पत्र का जवाब देना ही मुनासिब नहीं समझा है। गौरतलब है कि नारायण सामी जो कि पहले कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव भी रहे हैं ने 2008 में विधानसभा चुनावों में डंपर कांड में शिवराज सिंह चौहान को घेरने के असफल प्रयास भी किए थे।

सरकारी जमीन सिब्बल के नाम!

सरकारी जमीन सिब्बल के नाम!

ग्राम सभा की सरकारी जमीन छः साल बाद निकली सिब्बल के नाम

जमीन के मामले में जादूगर निकले सिब्बल के साहेब जादे

करोड़ों में बिक रहे सरकारी जमीन पर कटे प्लाट!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दूसरे कार्यकाल में ट्रबल शूटर (तारण हार) की भूमिका में उभरे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की मुश्किलें लगता है बढ़ने जा रही हैं। सूचना के अधिकार कानून के तहत निकली एक जानकारी यद्यपि अलिख सिब्बल के नाम पर है किन्तु यही जानकारी वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन सिंह के खासुलखास कपिल सिब्बल के गले की फांस बन सकती है, क्योंकि अखिल काई और नहीं कपिल सिब्बल के साहेब जादे जो ठहरे।

दक्षिण दिल्ली के वसंत बिहार क्षेत्र के अनुविभागीय अधिकारी राजस्व कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि वर्ष 1998 - 1999 में राज्य सरकार द्वारा बसंत बिहार क्षेत्र के ग्राम रंगपुरी में ग्राम सभा के लिए एक हेक्टेयर से ज्यादा अर्थात लगभग साढ़े तीन एकड़ जमीन ली थी। राजस्व में दर्ज खसरा नंबर 1935 / 2 (3 - 16), 1936 (4 - 16) एवं 1937 / 2 (4 - 13) ली थी।

सूत्रों ने आगे कहा कि इसके छः साल बाद अर्थात 2005 में यही जमीन रहस्यमई तरीके से अखिल सिब्बल पुत्र कपिल सिब्बल के नाम पर दर्ज पाई गई। पहले ग्राम सभा और बाद में कपिल सिब्बल के नाम पर दर्ज इस बेशकीमती जमीन पर कालोनी बनाकर एक एक प्लाट को ही करोड़ों रूपयों में बेचा भी जा रहा है।

एक तरफ तो कपिल सिब्बल सरकारी लोकपाल की हिमायत करते नजर आते हैं वहीं उनके साहेब जादे द्वारा ग्राम सभा की सरकारी जमीन पर कालोनी काटकर बेचा जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कालोनी काटने की समस्त सरकारी औपचारिकताएं पूरी हैं। अब जमीन ही सरकार की हो तो औपचारिकताएं तो पूरी होनी ही हैं। रही बात मालिकाना हक की तो वह किस जादू की छड़ी से कपिल सिब्बल के साहेब जादे के नाम पर हो गया है यह शोध का विषय है।

सोमवार, 29 अगस्त 2011

वो थे राष्ट्रपिता ये हो सकते हैं राष्ट्रपति

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)

वो थे राष्ट्रपिता ये हो सकते हैं राष्ट्रपति
महात्मा गांधी ने सादगी के साथ गोरे अंग्रेजों को देश से खदेड़ दिया था। अब किशन बाबूराव हजारे ने देश के काले अंग्रेजों को अपनी सादगी के सामने झुका दिया है। महात्मा गांधी को समूचा देश आज नमन कर रहा है। देश की करंसी नोटों पर मोहन दास करमचंद गांधी की मुस्कुराती हुई तस्वीर है। अण्णा के आंदोलन के दौरान ही इंटरनेट पर अण्णा के मुस्कुराते चेहरे वाले करंसी नोट दिखने लगे। अण्णा के अनशन के समाप्त होने के उपरांत अब सियासी गलियारों में पार्ट टू के बारे में कयास लगाए जाने लगे हैं। लोगों का मानना है कि अण्णा हजारे को कांग्रेस द्वारा 2012 में देश के सर्वोच्च पद महामहिम राष्ट्रपति पर विराजमान करवाकर रायसीना हिल्स स्थित राष्ट्रपति भवन को उनका आशियाना बनवा दिया जाएगा। इससे यह संदेश जाएगा कि कांग्रेस भ्रष्टाचार की पोषक नहीं है। सियासी गलियारों में बापू को राष्ट्रपिता और अण्णा को अगले साल के राष्ट्रपति के तौर पर देखा जा रहा है।

सादगी के सामने नतमस्तक हुए जनसेवक
अण्णा हजारे को देश का हर नागरिक सेल्यूट कर रहा है। अण्णा ने बहुत सादगी के साथ अनशन आरंभ किया और समूचे देश को एक सूत्र में पिरो दिया। संसद में बहस हुई कभी दो बजे तो कभी तीन बजे दिन में बहस अगले दिन पर टाल दी गई। किसी ने यह नहीं सोचा कि आप तो दो बजे यह कहकर बरी हो जाते हो कि कल चर्चा होगी, पर दो बजे से दूसरे दिन बारह बजे तक उस 74 साल के व्यक्ति पर क्या बीतती होगी? अण्णा ने जो कर दिखाया वह सचमुच अकल्पनीय है। आज के इस युग में 12 दिन लगातार अनशन करना बहुत बड़ी बात है उससे भी बड़ी बात इन शातिर राजनेताओं के रहते भी अनशन का ‘‘अहिंसक‘‘ रहना है। अण्णा की सदगी ने भाजपा को झुकाया और भाजपा के रूख से कांग्रेसनीत सरकार को घुटने टेकना पड़ा। कुल मिलाकर यह साफ हो गया है कि जनसेवक सब कुछ कर सकते हैं, पर वे चाहकर भी जनता के हितों की अनदेखी ही करते हैं।

ढहाया प्रियंका वढ़ेरा का बंग्ला!
कांग्रेस की राजकुमारी प्रियंका वढ़ेरा इन दिनों असहज ही नजर आ रही हैं। वे एक के बाद एक आर्कीटेक्ट के संपर्क में हैं। उनका शिमला में छराबड़ा का बंग्ला बनने के पहले ही ढहा दिया गया है। यह जमीन प्रियंका ने छः साल पहले खरीदी थी। इस क्षेत्र में सिख परिवार की जमीन भी सुरक्षा कारणों से बेकार पड़ी थी, जिसे प्रियंका ने ओने पोने दाम में खरीद लिया। देश की रियाया के पास सर छिपाने की जगह नहीं है और राजकुमारी प्रियंका के पास इस अतिविशिष्ट इलाके में आठ बीघा से ज्यादा जगह है। उनका बंग्ला बनकर लगभग तैयार ही था कि राजकुमारी प्रियंका को डिजाईन पसंद नहीं आया। लीजिए जनाब ढहा दिया गया मकान। इसके पहले तीन मर्तबा तो रसोई को तोड़ा जा चुका है। तीन गुना ज्यादा सीमेंट से बने इस मकान को ध्वस्त करने में मजदूरों को नाकों चने चबाने पड़ गए। अब सोचिए जनता भूखों मर रही है पर राजकुमारी मकान बनाकर तोड़कर फिर बनाने जा रही हैं।

लोकपाल से होगा क्या!
देश की व्यवस्था को भ्रष्टाचार का कीड़ा पूरी तरह कुतर चुका है। हर कदम पर भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार नजर आ रहा है। अण्णा की हुंकार से कुछ तो असर होता दिख रहा है। सरकार का झुकना इस बात के संकेत दे रहा है कि अण्णा की मुहिम कुछ हद तक रंग लाएगी। लोग मजाक भी कर रहे हैं कि लोकपाल आने तक कर लो भ्रष्टाचार फिर तो रिश्वत का लेन देन भी चेक और डीडी से ही होगा। अण्णा के अनशन के बीच खबर आई कि लखनऊ नगर निगम में छसौ रूपए के लालच में कर्मचारियों ने किशन बाबूराव उर्फ अण्णा हाजरे का जन्म प्रमाण पत्र बना दिया, जिसमें अण्णा के पते के स्थान पर लखनऊ के जिलाधिकारी के निवास का पता डाला गया है। यह उस वक्त हुआ जब देश भर में मीडिया में किशन बाबूराव अण्णा हजारे छाए हुए थे।

हदें लांघती कांग्रेस
गांधीवादी समाजसेवी अण्णा हजारे के अनशन से घबराई कांग्रेसनीत सरकार ने अण्णा के खिलाफ घटिया से घटिया अस्त्र का प्रयोग भी किया, पर अण्णा कतई विचलित नहीं हुए। कांग्रेस प्रवक्ता ने अण्णा के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया। तिवारी के आरोप थे कि अण्णा सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबे हैं, और कांग्रेस के भगोड़े हैं। सूचना के अधिकार में निकाली गई जानकारी ने मनीष तिवारी के सारे आरोपों को झुटला दिया है। जानकारी में कहा गया है कि सेना में रहते हुए न तो अण्णा को कोई सजा दी गई न ही सेना से निकाला गया है। बारह साल की सेवा के उपरांत वे ससम्मान सेवानिवृत हुए और उन्हें पांच पदक भी मिले हैं। अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस का मीडिया प्रभाग किस तर भ्रामक जानकारियों से देशवासियों को बरगलाने पर आमादा है और विपक्ष खामोश।

पीआर कंपनियों की पौबारह
जनसेवकों द्वारा इमेज बिल्डिंग पर खासा ध्यान दिया जाने लगा है। पहले रूपहले पर्दे के सितारों ने अपनी छवि बनाने के लिए पब्लिक रिलेशन कंपनियों की मदद ली जाती रही है। अब जनसेवक इनकी देहरी पर हैं। कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के युवराज खुद इसी तरह के जतन कर रहे हैं। खबर है कि करोड़ों रूपए पानी में बहाकर 2013 के आम चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की छवि निर्माण का काम आरंभ किया गया है। इमेज बिल्डिंग कंपनियों के उम्दा किस्म मे पेशेवर अब राहुल के लिए सर जोड़कर बैठ चुके हैं। उधर भाजपा के नरेंद्र मोदी, शिवराज सिंह चौहान, सुषमा स्वराज यहां तक कि खुद नितिन गड़करी भी इनकी शरण में हैं। राहुल के करीबी सूत्रों का कहना है कि उनके कथित राजनैतिक गुरू राजा दिग्विजय सिंह के करीबी मध्य प्रदेश काडर के एक आईएएस ने परोक्ष तौर पर इस आपरेशन की कमान संभाली हुई है।

अड़वाणी के दर पर उमा!
बमुश्किल भाजपा में वापस आई उमा भारती अपने आप को बेहद उपेक्षित महसूस कर रही हैं। उमा को मध्य प्रदेश से प्रथक रहने के साफ और कड़े निर्देश दिए गए हैं। उन्हें कहा गया है कि वे उत्तर प्रदेश में अपना ध्यान केंद्रित रखें। यूपी में राजनाथ सिंह, के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता है। उत्तर प्रदेश भाजपा में ठाकुरवाद जमकर हावी है। समूची भाजपा ठाकुरवाद की जद में है। वहां उमा की कोई सुनने वाला नहीं है। यूपी में हर जगह उमा को तिरस्कार ही झेलना पड़ रहा है। अपनी उपेक्षा से दुखी उमा भारती ने अपनी व्यथा अपने आका एल.के.आड़वाणी को सुनाने का मन बनाया और पहूंच गईं उनके दर पर। आड़वाणी ने राजनाथ के खिलाफ सारा चिट्ठा सुना। उमा का मन हल्का हुआ पर वे सकते में आ गईं जब आड़वाणी दबे सुर में बोले -‘‘ठीक है में इस बारे में गड़करी जी से बात करूंगा।‘‘

पराजित खा रहे हैं मलाई शिव के राज में
कहा जाता है कि जो जीता वही सिकंदर, किन्तु देश के हृदय प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के राज में कुछ और कैसट ही बज रहा है। शिव के राज में एमपी में जीते हुए विधायकों को तो कुछ भी नहीं मिला पर हारे हुए विधान सभा प्रत्याशियों (पूर्व विधायक नरेश दिवाकर को छोड़कर) अधिकांश को निगम मण्डलों में अध्यक्ष उपाध्यक्ष बनाकर लाल बत्ती से नवाज दिया गया है। दो बार चुनाव हारे अखण्ड प्रताप सिंह को विंध्य विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष, कमलेश्वर को बीज निगम का उपाध्यक्ष, तीन बार हारे रामदास मिश्रा को विंध्य विकास का उपाध्यक्ष, रामपाल सिंह को हाउसिंग बोर्ड का अध्यक्ष, रूस्तम सिंह को पिछड़ा वर्ग का अध्यक्ष, रामलाल को अजा आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया है। ये सभी चुनाव लोग एक से ज्यादा बार चुनाव हारे हुए हैं। भाजपा में चर्चा है कि जीते तो आजीवन पैंशन और हारे तो लाल बत्ती तो तय ही है मध्य प्रदेश में।

. . . मतलब कानून तोड़ते आए हैं निजाम!!!
राज्यों में मुख्यमंत्रियों द्वारा स्वविवेक के आधार पर जमीने बांटी गईं हैं। इनमें अपनों को रेवड़ी बांटकर उपकृत करने के अनेक मामले सामने आए हैं। कई बार तो इसमें भ्रष्टाचार की बू भी आती है। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्टने इस बारे में नई व्यवस्था दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री किसी भी व्यक्ति को सीधे जमीन नहीं दे सकता है। यह कानून के उल्लंघन के समतुल्य है। कोर्ट ने कहा है कि मुख्यमंत्री द्वारा अधिकारियों का काम अपने हाथ में नहीं लिया जा सकता है। यह अधिकारों का उल्लंघन है। आजादी के बाद अब तक राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा माले मुफ्त की तरह जमीनें बांटी गईं हैं। इस तरह तो सारी जमीनें अवैध तौर पर बांटी गईं हैं, और निजामों ने कानून तोड़ा है।

नाथ का पीछा नहीं छोड़ रहा 84 का जिन्न
1984 में प्रियदर्शनी स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए देश व्यापी दंगों की आग 27 साल बाद भी शांत नहीं हुई है। उपर राख अवश्य ही ठंडी पड़ गई हो, पर कुरेदने पर कोयले सुलगते दिख जाते हैं। 84 के दंगों में आहत हुए सिख समुदाय के मानवाधिकार समूह सिख्ख फॉर जस्टिससंगठन ने फिर कहा है कि वे अमेरिका कोर्ट से शहरी विकास मंत्री कमल नाथ के खिलाफ समन जारी करने का आग्रह करेंगे। संगठन का आरोप है कि 84 के सुनियोजित सिख विरोधी दंगों में कमल नाथ लिप्त थे। 27 सालों में तो कमल नाथ को इससे तकलीफ नहीं हुई होगी किन्तु 2014 के लोकसभा चुनाव में इस बार उन्हें इस मामले से कुछ परेशानी हो सकती है। इसका कारण यह है कि उनके संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में सिख मतदाताओं की खासी तादा है, और अब तक कमल नाथ के द्वारा अपने संसदीय क्षेत्र में सिख परिवारों को राजनैतिक तौर पर कभी उपकृत नहीं किया है।

11 साल से अनशन पर शर्मिला
अण्णा हजारे ने 12 दिन में ही सरकार को घुटनों पर आने मजबूर कर दिया। देश के मीडिया की सुर्खियां बना अण्णा का आंदोलन। वहीं दूसरी ओर इंफाल में पिछले 11 साल से आंदोलन कर रही शर्मिला पर किसी की नजरें नहीं है। अण्णा को जब इस बात की जानकारी मिली उन्होंने रामलीला मैदान से ही शर्मिला को पत्र लिखकर दिल्ली आकर अनशन में साथ देने का न्योता दिया। 34 साल की शर्मिला ने कहा कि वे कैद में हैं इसलिए नहीं आ सकतीं हैं। शर्मिला की मांग है कि आर्मड फोर्स एक्ट 1958 को समाप्त किया जाए। पुलिस ने इसे तो समाप्त नहीं किया किन्तु शर्मिला को धारा 309 के तहत धर पकड़ा। शर्मिला ने पानी की एक बूंद भी गले से नहीं गटकी। उनकी नाक में लगी नली से ही उन्हें फुड सप्लिमेंट दिए जा रहे हैं।

इधर दावतें उधर भूखे पेट पड़े रहे जवान
दिल्ली में देश के नीति निर्धारकों द्वारा रोजाना ही दावतें उड़ाई जा रहीं थीं, देर रात तक जाम टकराए जाते रहे पर किसी को भी दुर्गम राहों पर चलने वाले जवानों की चिंता नहीं थी। दिल्ली में अर्ध सैनिक बलों के अधिकारियों के बीच चल रही चर्चा के अनुसार वे सभी राजनेताओं से खासे खफा हैं। इसका कारण यह है कि छत्तीसगढ़ में जगदलपुर और बीजापुर में नक्सलप्रभावित इलाकों में सेना के जवान भूखे पेट लड़ रहे थे पर किसी को भी उनके लिए खाना पहुंचाने की चिंता नहीं थी। पीड़ित मानवता की सेवा का कौल लेने वाले चिकित्सकों का मन भी नहीं पसीजा। शहरों में चिकित्सा की दुकानेंखोलकर अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने वाले डॉक्टर्स के अभाव में जवान बीमारी से तड़पते रहे और दम तोड़ते रहे पर किसी ने उनकी सुध नहीं ली। छग में इतना सब कुछ चल रहा था और देश के जनसेवक मजे से दावतें उड़ा रहे थे।

गायब है सोनिया का स्वास्थ्य बुलेटिन
कांग्रेस के अंदर एक बात चल पड़ी है कि क्या कांग्रेस में सोनिया की अहमियत एकदम से कम हो गई है या फिर किसी खास रणनीति के तहत सोनिया के बारे में मौन साधा जा रहा है। सोनिया अमेरिका में शल्य चिकित्सा के उपरांत स्वास्थ्य लाभ ले रही हैं। सोनिया की तबियत के बारे में कांग्रेस पूरी तरह मौन साधे हुए है। सोनिया के बारे में एक ही बार कांग्रेस ने बुलेटिन जारी की, जिसमें उनकी बीमारी या शल्य चिकित्सा के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया। राजा दिग्विजय सिंह भी परिदृश्य से गायब हैं। इसे किसी खास रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि जरूर युवराज राहुल गांधी के विवाह की तैयारियां गुपचुप तरीके से जारी हैं। बीच में खबर आई थी कि राहुल के लिए इटली की ही दुल्हन लाने के पक्ष में हैं सोनिया और प्रियंका।

मनमोहन को डुबाते उनके पंच प्यारे
मनमोहन सिंह के पांच प्यारे सितारे ही उनकी नैया को बिना पतवार हांक रहे हैं। अब तक तो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार को उनके पांच प्यारों द्वारा चलाए जाने के आरोप लगाए जाते रहे हैं, पर अब मनमोहन पर यह आरोप आहूत हो रहा है। सियासी गलियारों मे ंचर्चा चल पड़ी है कि सोनिया के साथ दूरी बनने के बाद मनमोहन ने अपनी जुंडाली का नेतृत्व पांच नेताओं को दे दिया है। मनमोहन के 5 सलाहकारों कपिल सिब्बल, पलनिअप्पम चिदम्बरम, पवन बंसल, सलमान खुर्शीद और राजीव शुक्ला से कांग्रेस के अंदर के और देश के लोग खासे खफा नजर आ रहे हैं। कहा जाता है कि गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकार को छलोग तो शिवराज सरकार को पांच लोग चला रहे हैं। इसी तर्ज पर यह भी कहा जाने लगा है कि देश को अब मनमोहन नहीं उनके पांच लोग चला रहे हैं।

पुच्छल तारा
अण्णा हजारे अण्णा हजारों यही बात सबकी जुबान पर है। इस रामलीला मैदान दो अनशन का हाल ही में गवाह बना। एक रणछोड़दास सांस फुला देने वाले बाबा रामदेव के और दूसरे अण्णा के सीना फुला देने वाले आंदोलन का। अण्णा के आंदोलन में कांग्रेस की जो भद्द पिटी वह किसी से छिपा नहीं है। रामलीला मैदान पर बाबा रामदेव और अण्णा हजारे दोनों ही के मामले में सोनिया गांधी खामोश रहीं। कनाडा के टोरंटो शहर से उदय राजपुत ने एक ईमेल भेजा है। उदय लिखते हैं कि एक आदमी सड़क पर खड़े खड़े चिल्ला रहा था, सरकार चोर है, सरकार चोर है। उधर से दिग्विजय सिंह गुजरे। उन्होंने उसे एक झापड मारा, वो बोला मैं तो अमेरिका की सरकार को चोर बता रहा था। दिग्गी राजा ने फिर एक चपत लगाई और बोले -‘‘साले जैसे हमें पता नहीं कहां की सरकार चोर है?‘‘