पेंच नेशनल पार्क में बाघों की संख्या के आंकड़े झूठे हैं
(शिवेश नामदेव)
सिवनी (साई)। देश के दो राष्ट्रीय उद्यान सारिस्का और पन्ना के बाद पेंच नेशनल पार्क के बाघ भी धीरे-धीरे समाप्ति की कगार पर हैं। पेंच पार्क प्रशासन भले ही पेंच लैण्ड स्केप में औसतन 53 से 78 बाघों की उपस्थिति का दावा कर रहा हो परंतु सच्चाई यह है कि संपूर्ण पेंच लैण्ड स्केप क्षेत्र में बमुश्किल 15 से ज्यादा बाघ नहीं बचे हैं। आज भी पेंच पार्क के बाघों का शिकार योजनाबद्ध ढंग से किया जा रहा है। यह दावा जनमंच के सदस्य संजय तिवारी ने अपनी विज्ञप्ति के माध्यम से किया है। पन्ना स्थित राष्ट्रीय उद्यान के मामले में भी बाघों के समाप्त होने की चेतावनी लगातार दी जाती रही लेकिन वन विभाग के अधिकारी उस समय तक आंखे मूंदे रहे हैं जब तक पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में एक भी बाघ नहीं बचा। कमोबेश यही स्थिति पेंच नेशनल पार्क में आने वाले दो-तीन वर्षों में निर्मित होने वाली है।
पेंच नेशनल पार्क के अधिकारियों का पार्क के वन्यप्राणियों को लेकर प्रबंधन भले ही बहुत कमजोर रहा हो लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की संख्या के फर्जी आंकड़ों के प्रस्तुतिकरण में पार्क प्रशासन का कोई जवाब नहीं है। पार्क में पदस्थ होने वाले भारतीय वन सेवा के कुछ अधिकारी बड़ी कुशलता के साथ पार्क में मौजूद बाघों की वास्तविक संख्या से कहीं ज्यादा संख्या के आंकड़ों को बैलेंस शीट की तरह व्यवस्थित रखकर केन्द्रीय और राज्य शासन के अलावा वर्ल्ड वाईल्ड लाईफ फंड (डब्ल्यू. डब्ल्यू. एफ.) जैसी संस्थाओं से सालाना करोड़ों रूपये का बजट प्राप्त कर भ्रष्टाचार कर रहे हैं। पेंच पार्क में पिछले लगभग तीन वर्षों से पदस्थ डिप्टी डायरेक्टर ओ.पी. तिवारी के कार्यकाल में ही पेंच नेशनल पार्क को करीब 13 करोड़ से ज्यादा रूपये सिर्फ प्रोजेक्ट टाईगर योजना के अंतर्गत प्राप्त हो चुके हैं जिसमें भारी भ्रष्टाचार की आशंका है।
पेंच नेशनल पार्क प्रशासन के द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़े बताते हैं कि 1984 में पेंच पार्क में 16 बाघ थे जो अगले दस वर्षों में याने 1994 में 39 हो गये। इसी तरह 1995 में 39 बाघ वर्ष 2005 के आते-आते बढ़कर 56 हो गये। पेंच पार्क के बाघों की यह गिनती त्रुटिपूर्ण पगमार्क पद्धति के अनुसार की गयी थी। वर्ष 2005 के बाद 2009 तक पेंच पार्क में बाघों की गिनती नहीं की गयी। 2005-06 में वन्यप्राणी संस्थान देहरादून ने पेंच लैण्ड स्केप में बाघों की संख्या का एक नया आंकड़ा 27 से 39 के बीच बताया था जो 2010 में बढ़कर 53 से 78 के बीच हो गया। जबकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण आयोग से जुड़े डॉ. राजेश गोपाल ने दिसंबर 2008 में पेंच नेशनल पार्क में 33 बाघ (27-39 रेंज) बाघ, पार्क के आसपास के जंगलों में घुमंतु बाघों की संख्या 7-12 एवं महाराष्ट्र स्थित पेंच पार्क के क्षेत्र में 19 बाघ बताये थे जबकि 2008 में पेंच नेशनल पार्क के बाघों की गितनी ही नहीं की गयी थी। पेंच पार्क प्रशासन द्वारा बताये जाने वाले उक्त आंकड़ों में सच्चाइ्र नहीं है। बाघों के पगमार्क की पहचान करके उनकी गिनती करने की दोषपूर्ण पद्धति के स्थान पर परिष्कृत कैमरा ट्रेपिंग पद्धति से 2010 में पेंच पार्क के बाघों की गणना की गयी थी जिसमें भी हेराफेरी की गयी है।
पेंच नेशनल पार्क के क्षेत्र को सब डिवीजन, रेंज, सर्किल, बीट और वन कक्षों में विभाजित किया गया है और विभाजन की प्रति यूनिट में उपस्थित बाघों की संख्या जानकर पेंच पार्क के बाघों की कुल संख्या बतायी जाती है। जबकि पार्क प्रशासन को पार्क के प्रत्येक रेन्ज, सर्किल और बीट में मौजूद बाघों की अलग-अलग संख्या की जानकारी देना चाहिये लेकिन पार्क में पदस्थ अधिकारी ऐसा नहीं करते हैं। इसका कारण है बाघों का कई किलोमीटर तक गश्ती करना। अपनी गश्त के दौरान बाघ पार्क के अंदर कई बीटों को पार करके दूसरे सर्किल या क्षेत्र तक आना-जाना करते हैं। इस दौरान बाघों की गिनती के लिये एक अलग-अलग बीटों में लगाये गये कैमरों में एक ही बाघ की तस्वीर विभिन्न कोणों से कैद हो जाती है जिसके कारण एक ही बाघ को चार बार भी गिन लिया जाता है।
असल में बाघों की गिनती पूर्ण रूप से एक तकनीकि मामला है जिसका फायदा उठाकर बाघों की संख्या का आंकड़ा अपनी सुविधा और फंड प्राप्त करने के लिये प्रस्तुत किया जाता है। यदि सी.बी.आई. किसी निष्पक्ष व ईमानदार सेवानिवृत्त वन अधिकारी या किसी गैर सरकारी संगठन से पेंच नेशनल पार्क के बाघों की गिनती करवाये तो स्पष्ट हो जायेगा कि पेंच नेशनल पार्क में बमुश्किल 12-15 बाघ ही बचे हैं।
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