अब आया बर्ड फ्लू का खतरनाक वायरस
(अंकिता)
वाशिंगटन (साई)। बर्ड फ्लू के मामले में दुनिया के चौधरी अमेरिका की पेशानी पर भी अब पसीने की बूंदे छलकने लगीं हैं। अमेरिका में बर्ड फ्लू के मामले में हुए शोध के बाद अमेरिका हरकत में आ गया है। अमेरिका को डर है कि अगर कहीं यह शोध आतंकियों के हाथ लग गया तो वे दुनिया भर में कहर बरपा सकते हैं।
अमेरिकी सरकार के बाद अब विश्व स्वास्घ्थ्य संगठन ने भी बर्ड फ्लू के विवादास्पद शोध पर गहरी चिंता जताई है। डब्घ्ल्यूएचओ के मुताबिक इस तरह के शोध बेहद खतरनाक हैं। इन पर कड़ी निगरानी रखने की जरूरत है। अमेरिका को डर है कि शोधपत्र की जानकारियों का इस्तेमाल आतंकवादी कर सकते हैं।
शोधपत्र में बर्ड फ्लू के एक नए प्रकार पर शोध किया गया है, जिसका वायरस जानवरों के बीच पहले के मुकाबले काफी तेजी से फैलता है और इसी तरह यह इंसानों में भी फैल सकता है। अमेरिका ने वैज्ञानिकों से आग्रह किया था कि वो शोध के कुछ हिस्सों को हटा लें, ताकि संवेदनशील जानकारियों का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों में न होने पाए। सरकार को सलाह देने वाले एक पैनल नेशनल साइंस एडवाइजरी बोर्ड फॉर बायोसिक्योरिटी के मुताबिक कुछ कट्टरपंथी संगठन इन जानकारियों का प्रयोग गलत तरीके से कर सकते हैं।
बर्ड फ्लू पर यह शोध अमेरिका और नीदरलैंड में किए जा रहे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक शोध में उस मॉडल के बारे में बताया गया है जो यह बताता है कि संक्रमण होने पर लोगों के शरीर में फ्लू वायरस क्या कर सकता है। बर्ड फ्लू का वायरस ए(एच5एन1) के मनुष्य में संक्रमण की संभावना काफी कम रहती है, लेकिन जब यह संक्रमण होता है तो मृत्युदर बढ़ जाती है।
जानलेवा बर्ड फ्लू का दायरा सीमित रहा है, क्योंकि यह जल्दी लोगों पर असर नहीं करता है। हालांकि इस नए शोध के बाद पता चला है कि बर्ड फ्लू का एक वायरस बड़ी तेजी से एक जानवर से दूसरे जानवर के शरीर में जा सकता है। नेशनल साइंस एडवाइजरी बोर्ड फॉर बायोसिक्योरिटी ने एक वक्तव्य में कहा है कि बर्ड फ्लू वायरस में बदलाव का मतलब है कि इस बीमारी से इंसानों के लिए खतरा बढ़ जाना।
अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के एंथनी फौसी का कहना है कि सही परिचय के लोगों को बर्ड फ्लू का पूरा शोध देख पाने के लिए प्रणाली बनाई जा रही है। उनका कहना है कि प्रणाली इस शोध के पत्रिका में जनवरी में छपने से पहले तैयार हो जाएगी, लेकिन कुछ अहम जानकारियों को सिर्फ उन्हीं लोगों तक सीमित करना जरूरी है जो सीधे स्वास्थ्य कार्यक्रमों से जुड़े हैं।
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