बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 95
. . . तो क्यों पाल रही है पीआईबी सफेद हाथी!
सरकारी नुमाईंदे के बाजाए निजी क्षेत्र से क्यों चुन रहे पीएम अपना एडवाईजर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। देश के वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि पूरी तरह धूल धासारित हो चुकी है। आम जनता के बीच यह चर्चा आम हो चुकी है कि इस तरह की ईमानदारी आखिर किस काम की। पीएम ईमानदार हो सकते हैं किन्तु उनके सामने अलीबाबा चालीस चोर की मण्डली देश को तबियत से लूट रही है। आखिर क्या वजह है कि जनता के बीच अपनी छवि निर्माण के लिए प्रधानमंत्री को सरकारी नुमाईंदे के बजाए निजी क्षेत्र से अपना मीडिया एडवाईजर चुनने को मजबूर होना पड़ रहा है।
शास्त्री भवन स्थित सूचना प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि सूचना प्रसारण मंत्रालय के पास मीडिया मैनेज करने के लिए एक से बढ़कर एक महारथी हैं। इनमें से अनेक अफसरों को विभिन्न मंत्रियों ने अपने पास मीडिया मैनेजमेंट के लिए रखा हुआ है। यहां तक कि महामहिम राष्ट्रपति की छवि निर्माण के लिए भी श्रीमति प्रतिभा पाटिल ने भारतीय सूचना सेवा के अफसरों पर ही भरोसा किया है।
उन्होंने कहा कि फिर आखिर क्या वजह है कि प्रधानमंत्री को भारतीय सूचना सेवा के अफसरों पर भरोसा नहीं है। क्या वजह है कि मनमोहन सिंह ने पहले हरीश खरे फिर पंकज पचौरी को नौकरी पर रखा है? अगर एसा है तो सूचना प्रसारण मंत्रालय ने मोटी पगार और तमाम सुख सुविधाओं वाले सफेद हाथी क्यों पाल रखे हैं? मीडिया मैनेजमेंट के लिए अगर आउट सोर्स की आवश्यक्ता पड़ रही है तो फिर केंद्र सरकार को सूचना प्रसारण मंत्रालय का पत्र सूचना कार्यालय ही बंद कर देना चाहिए?
देखा जाए तो इन बातों में दम दिखाई पड़ रहा है। सूचना प्रसारण मंत्रालय के पत्र सूचना कार्यालय में मीडिया मैनेजमेंट के महारथियों की खासी फौज होने के बाद भी भारत गणराज्य के वज़ीरे आज़म को मीडिया को मैनेज करने के लिए आउट सोर्स कर एक अदद मीडिया एडवाईजर लाने पर मजबूर होना पड़ रहा है, यह बात लोगों को आसानी से गले नहीं उतर रही है।
कहा जा रहा है कि हो सकता है कि सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी और प्रधानमंत्री के बीच खाई गहरी हो गई हो, जिसके चलते उन्हें अपने मातहत मंत्री के विभाग के आला अफसरों पर भी यकीन नहीं हो रहा हो। बहरहाल, जो भी हो प्रधानमंत्री को निजी क्षेत्र से किसी को बतौर मीडिया एडवाईजर चुनने से पीएम की साख काफी प्रभावित हुए बिना नहीं है।
(क्रमशः जारी)
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