बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

क्या है बसोरी, केडी की खामोशी का राज!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  73

क्या है बसोरी, केडी की खामोशी का राज!

सिवनी के हितों को लोकसभा में उठाने से हिचकते क्यों हैं सांसद!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। अकूत धनसंपदा के मालिक मशहूर दौलतमंद उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में पर्यावरण एवं वन के नियम कायदों का खुलकर माखौल उड़ाया जा रहा है और सिवनी जिले के कांग्रेस और भाजपा के सांसद इस मामले में मौन ही साधे बैठे हैं।
गौरतलब है कि सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकासखण्ड घंसौर में स्थापित होने वाले इस कोल आधारित पावर प्लांट की लोकसुनवाई में गंभीर अनियमितताएं होने के आरोप लगे हैं। पहले चरण की लोकसुनवाई के बाद भी आपत्तियों के निराकरण के बिना ही मध्य प्रदेश सरकार के अधीन काम करने वाले प्रदूषण नियंत्रण मण्डल और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसकी पर्यावरणीय अनुमति प्रदान कर दी है।
इतना ही नहीं मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के पास जमा कराए गए कार्यकारी सारांश में बरेला संरक्षित वन शून्य किलोमीटर पर होना दर्शाया गया है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार शून्य किलोमीटर का तात्पर्य यह है कि पावर प्लांट बरेला संरक्षित वन में ही संस्थापित किया जा रहा है, जो नियमों का खुला उल्लंघन है।
इस संबंध में जब क्षेत्रीय कांग्रेस के सांसद बसोरी सिंह मसराम से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनके एमपी और दिल्ली के मोबाईल सदा की ही भांति स्विच्ड ऑफ मिले साथ ही साथ दिल्ली के लेण्ड लाईन पर नो रिप्लाई ही हुआ। श्री मसराम के डिंडोरी जिले के करंजिया ब्लाक के ग्रमा बोदर में भी उनका दूरभाष बंद मिला।
उधर, सिवनी जिले के दूसरे सांसद के.डी.देशमुख से संपर्क करने पर उनके निज सचिव श्री शर्मा ने बताया कि सांसद महोदय अभी क्षेत्र के भ्रमण पर हैं अतः उनसे चर्चा नही हो सकी।
जानकारों का मानना है कि आदिवासियों के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने वाले कांग्रेस और भाजपा के सांसदों को इस मामले को लोकसभा में उठाना चाहिए, किन्तु इस मामले में कांग्रेस के बसोरी सिंह और भाजपा के के.डी.देशमुख ने मौन साधा हुआ है जिससे तरह तरह की चर्चाओं का बाजार गर्मा गया है।
यहां इस बात का उल्लेख करना लाज़िमी होगा कि सिवनी के सांसदों (सुश्री विमला वर्मा को छोड़कर) ने सिवनी के हितों को सदा ही गौड रखा है। सांसद और केंद्रीय मंत्री रहते पंडित गार्गी शंकर मिश्र, प्रहलाद सिंह पटेल, रामनरेश त्रिपाठी, श्रीमति नीता पटेरिया आदि ने सिवनी के हितों को लेकर कभी भी आवाज बुलंद नहीं की है। इस बार में सिवनी का इतिहास लगभग मौन ही है।
संसदीय गलियारों में चल रही चर्चाओं के अनुसार देश में संभवतः सिवनी ही एसा जिला है जहां के सांसदों ने सिवनी के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया है। सिवनी को लेकर लोकसभा में प्रश्न लगाने से यहां के सांसद गुरेज ही करते हैं। परिसीमन के बाद सिवनी संसदीय क्षेत्र का अवसान हो गया और फिर इस जिले के आधे हिस्से को मण्डला तो आधे को बालाघाट संसदीय क्षेत्र का भाग बना दिया गया है।
वर्तमान में लोकसभा के साथ ही साथ मध्य प्रदेश का विधानसभा का बजट सत्र भी चल रहा है। इसके वावजूद सिवनी जिले के चार विधायकों द्वारा इस मामले को विधानसभा में न उठाया जाना और दो सांसदों को अपने दामन में सहेजने वाले सिवनी जिले के आदिवासी हित के इस ज्वलंत मुद्दे को संसद में न उठाया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। यहां उल्लेखनीय होगा कि सिवनी जिले के हितों के लिए जिले के सांसदों ने कभी संसद में आवाज बुलंद नहीं की। नैनपुर से सिवनी छिंदवाड़ा अमान परिवर्तन का मामला भी 2005 में बिलासपुर के सांसद पुन्नू लाल माहौले ने ही उठाया था।

(क्रमशः जारी)

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