बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 94
सुपर पीएम बन गए हैं पुलक चटर्जी!
चावला की राह पर चल पड़े चटर्जी
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। प्रधानमंत्री कार्यालय में इन दिनों सभी की भाव भंगिमाएं बदली सी दिख रही हैं। दबी जुबान से पीएमओ में यह चर्चा चल पड़ी है कि पीएमओ को अब नया बॉस मिल गया है। जिस तरह आपात काल के दौरान दिल्ली में एलजी (उपराज्यपाल) के सचिव नवीन चावला और 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के सचिव डॉ.अमर सिंह की और मायावती के राज में सतीश मिश्र की तूती बोला करती थी, उसी तरह अब देश में पुलक चटर्जी की हैसियत सुपर पीएम की आंकी जाने लगी है।
मीडिया में चल रही चर्चाओं के अनुसार इस बात पर शोध अत्यावश्यक है कि मीडिया का एक बड़ा तबका प्रधानमंत्री के बजाए अब उनके प्रधान सचिव पुलक चटर्जी की छवि निर्माण का काम क्यों कर रहा है? जब से तीक्ष्ण बुद्धि के धनी पीएम के मीडिया एडवाईजर हरीश खरे ने पीएमओ में आमद देना बंद किया है तबसे पुलक चटर्जी काफी पुलकित नजर आ रहे हैं। पीएम के (अस्थाई) मीडिया एडवाईजर पंकज पचौरी भी चटर्जी के सुर में सुर मिलाकर राग मल्हार गाने में लगे हुए हैं।
सियासी हल्कों में इस बात को लेकर कानाफूसी आरंभ हो गई है कि पुलक चटर्जी अब पीएमओ की अंतिम शक्ति बनकर उभर रहे हैं। गौरतलब है कि पुलक इसके पहले भी सरकार में अपने जलवे दिखा चुके हैं। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि यह सब इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि चटर्जी के प्रभुत्व का लट्टू दरअसल, 10, जनपथ की बेटरी से उर्जा पा रहा है। यही कारण है कि उन्हें किसी की परवाह नहीं है, और वे नित नए प्रयोग करने में लगे हुए हैं।
सूत्रों ने आगे कहा कि वैसे भी प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह प्रतिरोध का रास्ता ही नहीं अख्तियार करते हैं और वे सरकार के औपचारिक मुखिया बनकर ही प्रसन्न और संतुष्ट हैं। वे पुलक चटर्जी या अन्य किसी के बढ़ते प्रभुत्व से कतई विचलित नहीं होंगे। साथ ही साथ वे किसी भी बात या समीकरण का बुरा नहीं मानेंगे।
यहां एक बात का उल्लेख करना लाजिमी होगा कि जिस तरह आपात काल में 1975 से 1977 तक हुई ज्यादती के लिए जस्टिस जे.सी.शाह की अध्यक्षता वाले आयोग में दिल्ली सरकार के खिलाफ लगे संगीन आरोपों जिनमें हत्याओं के आरोप भी थे, में अपना पक्ष रखते हुए दिल्ली के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर किशन चंद ने सभी निर्णयों से पल्ला झाड़ते हुए अपने आप को बेदाग बताते हुए सभी निर्णयों के लिए अपने सचिव नवीन चावला को ही जवाबदार बताया था।
उस वक्त जस्टिस शाह ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि हालात देखकर लगता है कि आप महज लेफ्टिनेंट थे और चावला गवर्नर। कहने का तात्पर्य यह कि कहीं इतिहास फिर से न दुहरा जाए। जिस तरह दिल्ली के एलजी किशन चंद की आसनी बाद में नवीन चावला ने ले ली थी उसी तरह कहीं मनमोहन सिंह की गद्दी पर पुलक चटर्जी विराजमान न हो जाएं।
पुलक चटर्जी की हैसियत का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि अब तक उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा नहीं मिला है और कबीना मंत्री, राज्य मंत्री और दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री उनकी चौखट पर उसी तरह लाईन लगाकर खड़े हुए हैं जिस तरह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय विसेंट जार्ज की देहरी पर मंत्री खड़े रहा करते थे।
पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि टी.के.नायर को राज्यमंत्री का दर्जा बरकरार ही रहेगा। नायर राज्य मंत्री का दर्जा लेने के बाद भी गैर दर्जा प्राप्त पुलक चटर्जी को रिपोर्ट करेंगे। पीएमओ असमंजस में है कि चटर्जी को एमओएस का दर्जा दें या नहीं। यही कारण है कि चटर्जी का वेतन अभी निर्धारित नहीं हो सका है। कहा जा रहा है कि चटर्जी वर्तमान में अस्सी हजार रूपए प्रतिमाह पगार पा रहे हैं।
(क्रमशः जारी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें