बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 96
दिग्विजय विरोधी हुए सक्रिय
यूपी के परिणाम तय करेंगे राजा का भविष्य
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)। कांग्रेस की नजर में भविष्य के वज़ीरे आज़म राहुल गांधी के अघोषित गुरू राजा दिग्विजय सिंह की मुखालफत करने वाले अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कांग्रेस के अंदर घमासान थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। दिग्विजय सिंह के पतन का इंतजार करने वाले नेताओं ने रणनीति तैयार कर ली है कि अगर यूपी में कांग्रेस के खाते में सौ से कम सीटें मिलीं तो दिग्विजय सिंह पर इसकी गाज गिर सकती है।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश की जमीनी हालत को देखकर युवराज राहुल गांधी को यूपी में झोंकने आ ओचित्य नहीं था। अगर यूपी में कांग्रेस का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहता है तो निश्चित तौर पर इससे कांग्रेस को नुकसान के साथ ही साथ युवराज राहुल गांधी की साख को बट्टा लगना तय है। जब सारी बातें सोनिया गांधी के सामने रखीं गईं तब सोनिया की आंखें खुलीं, पर तब तक तीर कमान से निकल चुका था।
सूत्रों ने कहा कि अगर मिशन यूपी में युवराज के हाथ नाकामयाबी लगती है तो कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह को बली का बकरा बनाना तय ही है। दरअसल, दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस के आला नेताओं के विरोध के बावजूद भी राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश चुनावों में मैदान में ढकेलने का दबाव बनाया था। दिग्विजय के करीबी सूत्रों का कहना है कि राजा ने अपने बचाव के अस्त्र तैयार कर रखे हैं। राजा यूपी में नाकामयाबी का सेहरा बेनी प्रसाद वर्मा और श्रीप्रकाश जायस्वाल के कांधों पर रख सकते हैं।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि यूपी चुनाव के परिणाम राजा दिग्विजय सिंह के भाग्य का फैसला करेंगे। अगर पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा तो दिग्गी राजा के पर कतरे जा सकते हैं। उनसे उत्तर प्रदेश का प्रभार वापस लिया जा सकता है।
उधर, मध्य प्रदेश से सियासी पायदान चढ़ने वाले दिग्विजय सिंह के खिलाफ सूबाई क्षत्रपों कमल नाथ, सुरेश पचौरी, सुभाष यादव, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी तलवार पजाना आरंभ कर दिया है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के चुनावों के परिणाम आने के बाद कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने की महती जवाबदारी दी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश विधानसभा में पराजय का मुंह देखने के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी रसातल की ओर अग्रसर हुई जो वर्तमान में भी जारी है। मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र में राजनीति करने वाले क्षत्रपों ने भी मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने की जहमत नहीं उठाई है। एमपी में दमदार प्रवक्ता के.के.मिश्रा को हटाने से सूबाई कांग्रेस के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया भी संदेह के दायरे में आ चुके हैं।
कांति लाल भूरिया को दिग्विजय सिंह का ‘पट्ठा‘ माना जाता है। इन दिनों एमपीसीसी प्रेजीडेंट भूरिया मीडिया से कन्नी काटे नजर आ रहे हैं। फोन पर मीडिया से बातचीत के दौरान भूरिया ‘‘हैलो . . . हैलो‘‘ कहकर फोन काट रहे हैं। भूरिया के अध्यक्ष बनने के बाद कमल नाथ के प्रभाव वाले छिंदवाड़ा और सत्यव्रत चतुर्वेदी के प्रभाव वाले छतरपुर और टीकमगढ़ में जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्षों की घोषणा नहीं होने के जवाब शायद उनके पास नहीं हैं।
(क्रमशः जारी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें