गुरुवार, 24 मई 2012

ना मिश्रा हटते ना आंदोलन होता!


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  89

ना मिश्रा हटते ना आंदोलन होता!

असंतोष को जमकर हवा दे रहे हैं संयंत्र प्रबंधक मिश्रा

(शिवेश नामदेव)

सिवनी (साई)। देश के मशहूर उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के छटवीं सूची में अधिसूचित आदिवासी बाहुल्य घंसौर विकास खण्ड के ग्राम बरेला में स्थापित किए जाने वाले 1260 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट में संयंत्र प्रंबंधन में इन दिनों जमकर घमासान मचा हुआ है।
बताया जाता है कि अनियमितताओं, मीडिया को नाराज करने और स्थानीय विशेष संपन्न लोगों को करोड़ों रूपयों के काम देने के आरोप में बरेला पावर प्लांट के महाप्रबंधक श्री मिश्रा को बलात अवकाश पर भेज दिया गया है। मिश्रा इस समय दिल्ली में रहकर अवकाश का मजा ले रहे हैं।
अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा जैसे ही श्री मिश्रा के स्थान पर श्री दास को महाप्रबंधक बनाया गया वैसे ही संयंत्र के खिलाफ स्थानीय स्तर पर असंतोष खदबदा गया। जमीन के मुआवजे और पर्यावरण को लेकर आदिवासियों ने धरना प्रदर्शन और अनशन आरंभ कर दिया।
बताया जाता है कि जब तक श्री मिश्रा ने संयंत्र की बागडोर थामी हुई थी उस दौरान उन्होंने क्षेत्र के एक नेतानुमा व्यक्तित्व को करोड़ों रूपयों के काम दे दिए थे। इन दोनों के बीच यह समझौता हुआ था कि संयंत्र के खिलाफ असंतोष बढ़ ना पाए। इसके साथ ही साथ मीडिया को मेनैज करने की जवाबदेही भी उक्त नेतानुमा व्यक्तित्व की ही थी।
बताया जाता है कि क्षेत्र में उपजने वाले हल्के फुल्के असंतोष का उक्त नेतानुमा व्यक्तित्व द्वारा शमन कर दिया जाता था। मीडिया ने जब इस पावर प्लांट की गफलतों को उजागर करना आरंभ किया तो उक्त नेतानुमा व्यक्तित्व द्वारा अपने संपर्कों का उपयोग कर समाचार पत्रों को उनके कद के हिसाब से चार से सात अंकों में राशि बांट दी गई। यह राशि अनेक संस्थानों तक नहीं पहुंचने और बीच में ही दलालों द्वारा हजम करने से इसकी शिकायतें उपर तक होना आरंभ हुआ।
उधर, अवंथा समूह के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि इन शिकायतों पर गौर करने के बाद जब अवंथा समूह के प्रबंधन को सच्चाई का पता चला तो उन्होंने श्री मिश्रा को अवकाश पर भेज दिया गया। इसके उपरांत श्री मिश्रा के स्थान पर श्री दास को यहां का प्रभार सौंपा गया।
बताया जाता है कि इस तरह बेआबरू होकर भगा दिए जाने से कुपित श्री मिश्रा ने क्षेत्र में अपने प्रभावों और संपर्कों का उपयोग कर किसानों आदिवासियों को समझाना आरंभ किया कि किस तरह गौतम थापर द्वारा उन्हें छला गया है। फिर क्या था, आदिवासी किसानों में रोष और असंतोष जमकर उफनाया और किसान धरने पर बैठ गए।

(क्रमशः जारी)

कोई टिप्पणी नहीं: