हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
(लिमटी खरे)
प्रख्यात व्यंगकार शरद जोशी की एक नायाब
कृति है, ‘‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे‘‘। इसमें उन्होंने देश की उस वक्त की हालात
पर करारे व्यंग्य किए थे। काश शरद जोशी आज जिंदा होते तो वे कांग्रेस और भाजपा की
जुगलबंदी के लिए अपने नए व्यंग्य संकलन के लिए अवश्य ही ‘टाईटल‘ खोज रहे होते। आज देश का हृदय प्रदेश पूरी
तरह भ्रष्ट प्रदेश में तब्दील हो चुका है। शिवराज सिंह के नेतृत्व में सरकारी
तंत्र में लोकतंत्र के लुटेरे काबिज हो गए हैं। एक तरफ कांग्रेस नीत संप्रग सरकार
द्वारा केंद्र में नित भ्रष्टाचार के आयाम स्थापित किए जा रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश में भाजपा के राज में
जनसेवक और नौकरशाह मिलकर प्रदेश को नोंच नोंच कर खा रहे हैं। केंद्र में विपक्षी
दल भाजपा द्वारा विरोध और शोरशराबा कर रस्म अदायगी की जा रही है तो एमपी में
प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस जनता को दिखाने के लिए अपने कर्तव्य के पालन का दिखावा
कर रही है। इन दोनों के बीच मीडिया भी ‘‘अपना पेट पालने‘‘ की
जुगत में अपने पथ से भ्रष्ट हुए बिना नहीं है।
चाल चरित्र और चेहरे के लिए जानी पहचानी
जाने वाली भारतीय जनता पार्टी के राज में हृदय प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह
चौहान और पार्टी अध्यक्ष प्रभात झा की नाक के नीचे भ्रष्ट अफसरों को एक के बाद एक
पकड़कर अरबों खरबों की संपत्ति जप्त की जा रही है। मध्य प्रदेश में लगभग नौ सालों
से भाजपा के राज में अफसरों ने जमकर मलाई काटी है। खबरें तो यहां तक हैं कि अब तो
राजस्व और पुलिस के जिला स्तर से लेकर उच्च पद भी बिकने लगे हैं।
अंबिकापुर से सहायक शल्य चिकित्सक के बतौर
नौकरी आरंभ करने वाले डॉ.अमरनाथ मित्तल के घर से ही एक अरब रूपए की संपत्ति मिली
है। उनकी पत्नि ने मौके पर लोकायुक्त पुलिस को चिल्लाकर कहा कि जाकर उस मंत्री के
घर छापा मारो जो हमसे एक करोड़ रूपए रिश्वत मांगता है! मिसिस मित्तल का कहना काफी
हद तक सही है। शासन की शह के बिना बड़े और छोटे नौकरशाहों की क्या बिसात कि वे एक
रूपए का भ्रष्टाचार कर सकें!
पूर्व में 2003 तक राजा दिग्विजय सिंह के शासनकाल में
भ्रष्टाचार चरम पर था। आज के समय के भ्रष्टाचार को देखते हुए लगता है कि राजा के
समय भ्रष्टाचार का शैशव काल रहा होगा। आज तो मध्य प्रदेश का हर नौकरशाह और सरकारी
कर्मचारी करोड़ों से कम उगल ही नहीं रहा है।
एमपी में ‘शिव राज‘ में भ्रष्टों का जिस तरह ‘प्रभात‘ हो रहा है उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा
सकता है कि लोकायुक्त पुलिस और पुलिस के आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा तीन
सालों में मारे गए छापों में एक हजार करोड़ रूपए से ज्यादा की संपत्ति को उजागर
किया है।
बावजूद इसके बेशर्मी का लबादा ओढ़ने वाले
सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान और भाजपाध्यक्ष प्रभात झा यह सफाई देते फिर रहे
हैं कि सरकार अपना काम कर छापे डालकर भ्रष्टों को पकड़ रही है। यक्ष प्रश्न तो यह
है कि क्या सालों साल तक भ्रष्टाचार की छूट देने के बाद जब चुनाव सर पर आने वाले
हैं तब इन कारिंदों की धरपकड़ विलंब से क्यों की जा रही है?
आखिर क्या कारण है कि सालों साल बीत जाने
के बाद भी मध्य प्रदेश की सीमाओं पर स्थित परिवहन, सेल टेक्स, मण्डी आदि की जांच चौकियों को आधुनिक नहीं
बनाया जा रहा है? उत्तर साफ है कि अगर इन्हें आधुनिक बना
दिया गया तो यहां से गुजरने वाले हर वाहन का तौल होगा, राज्य सचिवालय वल्लभ भवन और विभागीय
मुख्यालयों में बैठे आला अधिकारी इसे लाईव देख सकेंगे। तब या तो भ्रष्टाचार पर
अंकुश संभव होगा या फिर उपर के अधिकारियों के रेट बढ़ जाएंगे।
लोकायुक्त ने प्रदेश में तीस माह में दो
सौ तीस भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा कसकर सौ करोड़ रूपए से ज्यादा की संपत्ति जप्त की
है। इसके साथ ही साथ आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने 67 मुलाजिमों को धर दबोचा और 348 करोड़ रूपए जब्त किए। यह सरकारी आंकड़ा है
जिसका बखान सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर के विधायक सुदर्शन गुप्ता के
प्रश्न के जवाब में सीना चौड़ा कर किया।
माना जा रहा है कि दिसंबर 2003 के बाद सत्ता पर काबिज हुई भाजपा द्वारा
अफसरों को प्रदेश को चारागाह बनाकर लूटने की इजाजत देने के बाद अब डर का माहौल जान
बूझकर बनाया जा रहा है, ताकि
2013 के विधानसभा चुनावों के पहले इन सरकारी
कारिंदों से मनमाना चुनावी चंदा या पार्टी फंड वसूल किया जा सके। वर्ष 2008 में एक आदिवासी बाहुल्य जिले में पदस्थ
जिला कलेक्टर ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर कहा कि उन्होंने एक जनसेवक को दो
करोड़ रूपए रूपए देकर यह पदस्थापना हासिल की है। अब दो साल में उन्हें कम से कम दस
करोड़ रूपए कमाने हैं ताकि आगे की पोस्टिंग भी मलाईदार ले सकें।
इतिहास अगर देखा जाए तो कुंवर अर्जुन सिंह
के शासनकाल में अस्सी के दशक में प्रदेश में भ्रष्टाचार की पदचाप सुनाई दी थी।
इसके बाद लोकतंत्र के लुटेरे कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह
की दूसरी पारी अर्थात 1998
के बाद तेजी से सक्रिय हुए। 98 के उपरांत राजा दिग्विजय सिंह ने सारा का सारा राजकाज अपने चंद हाथों
(आईएएस और निजी कर्मचारियों) के माध्यम से संचालित करना आरंभ किया।
राजा दिग्विजय सिंह के शासनकाल में विधायक
और सांसदों के हर काम के लिए राजा दिग्विजय सिंह द्वारा सदैव हामी भर दी जाती थी, किन्तु उनके कामों को उनके चंद हाथ अमली
जामा नहीं पहनाते थे। राजा के बारे में कहा जाने लगा था कि ‘मना किसी को करना नहीं, काम किसी का करना नहीं‘। ठीक उसी तर्ज पर शिवराज सिंह सरकार भी
पांच लोगों द्वारा ही चलाई जा रही बताई जाती है।
शिव के राज में शिख से नख तक (टॉप टू
बॉटम) एक सी ही स्थित है। एक तरफ स्वास्थ्य संचालक सौ करोड़ का आसामी है तो इंदौर
का परिवहन विभाग का बाबू रमण पचहत्तर करोड़ रूपए की संपत्ति का मालिक निकला। उज्जेन
में परिवहन विभाग के निरीक्षक सेवाराम खाड़ेगर के पास दस करोड़ की संपत्ति मिली।
उज्जैन नगर निगम का चपरासी नरेंद्र देशमुख की संपत्ति पंद्रह करोड़ रूपए की खबर ने
प्रदेश के लोगों को (कांग्रेस के नेताओं को छोड़कर) हिलाकर रख दिया। मंदसौर के
उपयंत्री शीतल प्रसाद के पास बारह करोड़ की बेनामी संपत्ति मिली। अपना एमपी गजब है
यहां भ्रष्टों के लिए उपजाउ माहौल है। इसी तरह हदरा के उप पंजीयक एम.एल.पटेल के
पास से तीन करोड़ रूपए की संपत्ति मिली। लोकतंत्र के लुटेरों में भारतीय प्रशासनिक
सेवा की जोशी दंपत्ति (अरविंद जोशी टीनू जोशी) ने तो धमाल मचाया था।
परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार किसी से छिपा
नहीं है। इस संबंद्ध में एक वाक्या याद आ रहा है। एक प्रोग्राम में परिवहन विभाग
में प्रतिनियुक्ति पर गए उप निरीक्षक ने अपने मित्रों के बीच प्रतिनियुक्ति से
वापसी की मंशा व्यक्त की गई। मित्र पुलिसियों ने पूछा तो उन्होंने जवाब दिया यार
बोर हो गए बेरियर पर अकेले रहते रहते। इस पर एक मित्र पुलिस वाले ने चुटकी ली -‘‘बोर हो गए या बोरों (बोरों से भरकर रूपए)
हो गए।
यहां उल्लेखनीय होगा कि डॉ. मित्तल से
पहले स्वास्थ्य विभाग के एक आयुक्त और दो संचालकों पर आयकर का छापा पड़ चुका है।
छापे में आयकर विभाग को काफी मात्रा में बेहिसाब संपत्ति मिली थी। तत्कालीन
स्वास्थ्य संचालक योगीराज शर्मा के घर आयकर विभाग ने 20 सितम्बर 2007 को छापा मारा था। इस छापे में शर्मा के
आवास से मिले सवा करोड़ के करीब नगद को गिनने के लिए मशीने लगानी पड़ी थीं। नोट
गद्दों के नीचे मिले थे। आयकर विभाग ने शर्मा की एप्रेजल में लगभग 12 करोड़ की अघोषित आय का पता लगाया था।
योगीराज इस समय निलंबित हैं।
इसके उपरांत आयकर विभाग ने भारतीय
प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राजेश राजोरा जो उस वक्त स्वास्थ्य आयुक्त के पद पर
पदस्थ थे सहित अनेक लोगों के घरों पर छापा मारा था। उस समय अवतार सिंह खुराना, मधु सिंह खुराना और श्याम सिंह राजौरा के
नाम गौरा सेवनिया गौड़, बरखेड़ी, बजायत, बिसनखेड़ी और कलखेड़ा में 35 एकड़ जमीन तथा भूमि संबंधी 38 कागजात मिले थे। ये जमीन 19 जनवरी 2006 से 31 मार्च 2008 के बीच खरीदी गईं। आयकर विभाग ने 5 करोड़ के करीब राजौरा पर कर का निर्धारण
किया था। राजौरा 24 फरवरी 2010 से निलंबित चल रहे हैं।
स्वास्थ्य विभाग काली कमाई का अड्डा बना
हुआ है। तत्कालीन स्वास्थ्य संचालक अशोक शर्मा के आवास पर 30 मई 2008 को छापा मारा गया था। इस छापे में मोबाइल
वैन की खरीदी से जुड़े दस्तावेज आयकर विभाग के हाथ लगे थे। इसमें आरती गोस्वामी, अवधेश दीक्षित, प्रमोद नंदवाल के साथ एएन मित्तल का भी
नाम सामने आया था। मित्तल पर गुरुवार को लोकायुक्त ने छापा मारा। अशोक शर्मा वर्तमान
में स्वास्थ्य संचालक हैं। निलंबन के बाद उनकी बहाली हो गई।
स्वास्थ्य विभाग एमपी में भ्रष्टों के लिए
चारागाह बन चुका है। इसका कारण केंद्र पोषित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
(एनआरएचएम) है। इसमें आने वाली केंद्रीय इमदाद को अफसर दोनों हाथों से उसी तरह लूट
रहे हैं जिस तरह दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में राजीव गांधी शिक्षा मिशन (अब
सर्वशिक्षा अभियान) के पैसों को लूटा गया था।
शिव के राज में जिन अफसरों की विवेचना
लंबित है उनमें राजेश राजौरा, एमएम उपाध्याय, एके
सिंह, अरविंद जोशी, टीनू जोशी, एमके सिंह, एसएस अली, एमके अग्रवाल, यूके सामल (रिटायर), रामकिंकर गुप्ता (रिटायर), एवी सिंह (रिटायर), अंजू सिंह बघेल, एलके द्विवेदी, आरपी मंडल प्रमुख हैं। इसके अलावा
राजकुमार माथुर, पिरकीपण्डला नरहरि के खिलफ तो जांच ही
लंबित है।
राज्य सरकार की अनुमति के उपरांत पी.
राघवन, एमएम मूर्ति, शशि कर्णावत, वीएन पयासी के चालान पेश कर दिए गए हैं तो
एस.बी.सिंह के खिलाफ अभियोजन की अनुमति ही लंबित पडी हुई है।
मध्य प्रदेश में जिन आला अफसरान के खिलाफ
मामले पंजीबद्ध हैं उनमें एमके वार्ष्णेय, निकुंज श्रीवास्तव, बीएम शर्मा, मनीष
श्रीवास्तव, अरूण पांडेय, एमएस भिलाला, शशि कर्णावत, सभाजीत यादव, राजेश राजौरा, अंजू सिंह बघेल, राजकुमार पाठक, केपी राही, निशांत बरबड़े, सुखवीर सिंह, सलीना सिंह, अजातशत्रु श्रीवास्तव, आकाश त्रिपाठी, अरविंद जोशी, एमके सिंह, नवनीत कोठारी, अरुण कुमार भट्ट, पंकज राग, बीएन सिंह, विवेक अग्रवाल, सीबी सिंह, राघव चंद्रा, राघवेन्द्र सिंह, रश्मि, एमएम उपाध्याय, मनोहर अगनानी, मनोज झालानी, राकेश राजौरिया, आरएस जुलानिया, अवनि वैश्य, एसके मिश्रा और जीपी सिंहल (रिटायर) के
नाम शामिल हैं।
देश और मध्य प्रदेश के हालात देखकर लगने
लगा है मानो सरकारों ने चाहे वे किसी भी दलों की हों, का शासन जंगल राज में तब्दील हो गया है।
मध्य प्रदेश में शिव के राज में तो सारी वर्जनाएं ही टूटती दिख रही हैं। कांग्रेस
अपना मुंह सिले बैठी है। इतने में तो विधानसभा में श्वेत पत्र लाने की बात कभी की
हो जानी चाहिए थी। वस्तुतः एसा हुआ नहीं! इसका कारण संभवतः यही हो सकता है कि
केंद्र में हम तो प्रदेश में तुम जनता के पैसों से होली खेलो, जनता का क्या है? जनता की याददाश्त तो कम समय के लिए ही
होती है, कुछ दिनो में वह भूल ही जाएगी।
कुछ मामलों का लेखा जोखा इस प्रकार है:-
प्रकरण क्रमांक अधिकारियों का नाम पदनाम
जा. प्र. 356/98 एमके वार्ष्णेय, आईएएस तत्कालीन
आयुक्त नगर निगम
जा. प्र. 381/09 निकुंज श्रीवास्तव, आईएएस तत्कालीन
कलेक्टर छिंदवाड़ा
जा. प्र. 238/09 बीएम शर्मा, आईएएस तत्कालीन सीईओ जिला
पंचायत छिंदवाड़ा
जा. प्र. 337/07 मनीष श्रीवास्तव, आईएएस तत्कालीन
कलेक्टर शिवपुरी,
जा. प्र.208/05 अरुण पाण्डेय, आईएएस तत्कालीन
पूर्व कलेक्टर, रायसेन
जा. प्र.270/04 एमएस भिलाला तत्कालीन
सीईओ जिला पंचायत बैतूल
जा. प्र. 372/07 शशि कर्णावत, आईएएस सीईओ जिला पंचायत छतरपुर
जा. प्र.535/10 सभाजीत यादव, आईएएस तत्कालीन अपर कलेक्टर रीवा
जा. प्र.567/10 राजेश राजौरा, आईएएस तत्कालीन
आयुक्त लोक शिक्षण
जा. प्र.103/10 अंजू सिंह बघेल, आईएएस तत्कालीन
कलेक्टर कटनी
जा. प्र.84/10 राजकुमार पाठक, आईएएस तत्कालीन
कलेक्टर
जा. प्र.231/10 कामता प्रसाद राही, आईएएस तत्कालीन
कलेक्टर डिण्डौरी
जा. प्र. 235/10 निशांत बरबड़े, आईएएस तत्कालीन
सीईओ जिला पंचायत रीवा
जा. प्र. 232/10 सुखबीर सिंह, आईएएस तत्कालीन कलेक्टर
सीधी
जा. प्र.107/09 सलीना सिंह, आईएएस तत्कालीन सचिव, अनु. जाति कल्याण विभाग भोपाल
जा. प्र.199/10 अजातशत्रु, आईएएस तत्कालीन. कलेक्टर
उज्जैन
जा. प्र.223/10 आकाश त्रिपाठी, आईएएस तत्कालीन
कलेक्टर ग्वालियर
जा. प्र.106/11 मुक्तेश वार्ष्णेय, आईएएस तत्कालीन
आयुक्त भू-अभिलेख कार्यालय ग्वालियर
जा. प्र.132/09 अरविंद जोशी, आईएएस तत्कालीन प्रमुख सचिव मप्र
शासन जल संसाधन विभाग
जा. प्र.25/06 एमके सिंह, आईएएस तत्कालीन
समन्वयक राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल
जा. प्र.446/10 नवनीत कोठारी, आईएएस कलेक्टर
बालाघाट
जा. प्र.294/11 अरुण कुमार भट्ट तत्कालीन
आबकारी आयुक्त ग्वालियर
जा. प्र.410/11 पंकज राग, आईएएस प्रबंध संचालक
पर्यटन विकास निगम
जा. प्र.351/11 बीएन सिंह तत्कालीन
एमडी, राज्य पशुधन कुक्कुट विकास निगम
जा. प्र.390/09 राजेश राजौरा आईएएस तत्कालीन कलेक्टर, बालाघाट
जा. प्र.426/10 सीबी सिंह, आईएएस तत्कालीन आयुक्त
नगर पालिका निगम इंदौर
जा. प्र.560/10 राघव चंद्रा, आईएएस तत्कालीन प्रमुख
सचिव नगरीय प्रशासन एवं विकास
जा. प्र.84/11 राकेश श्रीवास्तव आईएएस तत्कालीन कलेक्टर इंदौर
जा. प्र.373/11 रश्मि पंवार, आईएएस तत्कालीन एमपी
एकेवीएन
जा. प्र.477/11 एमएम उपाध्याय
आईएएस तत्कालीन प्रमुख सचिव
स्वास्थ्य
जा. प्र.497/10 आरएस जुलानिया आईएएस तत्कालीन प्रमुख सचिव जल संसाधन विभाग,
जा. प्र.514/10 व्हीके सेनी, तत्कालीन संचालक
जा. प्र.232/11 अवनि वैश्य, आईएएस तत्कालीन प्रमुख
सचिव, मप्र शासन 21.04.11
जा. प्र.435/11 जीपी सिंघल, तत्कालीन आयुक्त/प्रमुख सचिव, वित्त कोष एवं लेखा
(साई फीचर्स)
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