सिवनी में कांग्रेस
की हकीकत
(लिमटी खरे)
कांग्रेस की नजरों
में भविष्य के वजीरे आज़म राहुल गांधी मध्य प्रदेश दौरे के दरमियान कांग्रेस के
सिपाहियों से रूबरू हुए। मध्य प्रदेश कांग्रेस में व्याप्त गुटबाजी पर राहुल गांधी
ने दो टूक राय व्यक्त की है। राहुल ने गुटबाजी करने वाले नेताओं को जमकर नसीहत दी
है। बाहरी उम्मीदवारों को कांग्रेस मौका नहीं देगी और दो से अधिक बार चुनाव हारे
नेता टिकिट की उम्मीद ना करें। राहुल ने नेताओं को आईना दिखा दिया कि पहले स्थानीय
निकाय के चुनावों में परचम लहराओ फिर सांसद विधायक की टिकिट की दावेदारी करो।
राहुल ने साफ कर दिया कि मध्य प्रदेश में छरू या सात क्षत्रप टिकिट का फैसला नहीं
करेंगे। कांतिलाल भूरिया, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमल नाथ, सुरेश पचौरी, अरूण यादव का
बाकायदा नाम लेते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस किसी की बपौती नहीं है। इस दरमियान
राहुल गांधी के समक्ष सिवनी के कांग्रेस के नेताओं ने अपनी पीड़ा का जमकर इजहार
किया।
राहुल के इन तेवरों
के उपरांत इसी परिपेक्ष्य में सिवनी जिला कांग्रेस में अगर झांक कर देखा जाए तो
अन्य दलों या निर्दलीय के बतौर अच्छा परफारमेंस दिखाने वाले युवा नेताओं को घोर
निराशा का ही सामना करना पड़ेगा क्योंकि जोड़ तोड़ की राजनीति के चलते कांग्रेस के
नेताओं को पिछले दरवाजे से सहयोग कर अपना सिक्का जमाकर कांग्रेस के खाते से
विधानसभा टिकिट की जुगत में लगे नेताओं की आशाओं पर राहुल गांधी का यह फैसला तुषारापात
ही करेगा। भले ही कांग्रेस के जिला स्तर के आला नेता अब इन नेताओं को वक्त का
इंतजार करो, हम रास्ता
निकालेंगे, कहकर
दिलासा दिलवाएं, पर यह बात
भी सत्य है कि अगर किसी बाहरी उम्मीदवार को कांग्रेस द्वारा मैदान में उतारने का
मन बनाया जाता है तो राहुल गांधी की इस घोषणा को ढाल बना दिया जाएगा।
जहां तक रही दो से
अधिक बार चुनाव हारने वाले नेताओं को टिकिट ना देने की बात तो सिवनी में एक भी
नेता ऐसा नहीं है जो दो से ज्यादा बार चुनाव हारा हो। इस लिहाज से अब कांग्रेस के
वरिष्ठ नेता आशुतोष वर्मा, राजकुमार खुराना और प्रसन्न चंद मालू स्वाभाविक तौर पर सिवनी
विधानसभा से एक बार फिर अपनी सशक्त उम्मीदवारी जता सकते हैं। यह बात भी सत्य है कि
इन तीनों ही नेताओं को चुनाव जनता ने नहीं हरवाया है, कांग्रेस के
भीतराघात से इन्हें पराजय झेलनी पड़ी है। सिवनी विधानसभा में शहरी मतदाताओं की तादाद
बेहद ज्यादा है, शहरी
क्षेत्र में पढ़े लिखे प्रबुद्ध वर्ग के बीच इन तीनों की छवि अच्छी है, फिर इनकी हार के
कारणों को तीनों ने खोजा होगा और पाया होगा कि कांग्रेस ने ही उन्हें हरवाया है।
मध्य प्रदेश में
चंद नेताओं की गणेश परिक्रमा कर नेता अपनी टिकिट पुख्ता कर लेते हैं। राहुल गांधी
के सामने यह जमीनी हकीकत गई यह एक अच्छा संकेत है कि उन्होंने साफ कह दिया कि
कांग्रेस किसी की बपौती नहीं है। यह बोलते हुए उन्होंने कांतिलाल भूरिया, दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य
सिंधिया, कमल नाथ, सुरेश पचौरी, अरूण यादव का नाम
लिया। इससे लगता है कि राहुल गांधी की खुफिया टीम ने उन्हें मध्य प्रदेश के जमीनी
हालातों से रूबरू करवा दिया है। सभी क्षत्रपों ने अपना अपना क्षेत्र बांटा हुआ है।
सभी को अपनी चिंता है, कांग्रेस के बारे में कोई सोच भी नहीं रहा है। होना यह चाहिए
कि हर क्षत्रप को उसके क्षेत्र की जवाबदेही सौंप दी जाए। अगर वह अपने क्षेत्र में
कांग्रेस को जिताकर लाता है तब ही उसे केंद्र या प्रदेश में संगठन अथवा सत्ता में
पद दिया जाए। इससे कांग्रेस का जमीनी आधार तैयार होगा।
वर्तमान में नेताओं
की सोच बन चुकी है कि सिर्फ और सिर्फ खुद को विजयी बनवाया जाए, अगर दूसरा विधायक
या सांसद उनके क्षेत्र में जीत गया तो उनके पास केंद्रित पावर सेंटर बंटकर कमजोर
हो जाएगा। यही कारण है कि कांग्रेस के क्षत्रप खुद तो चुनाव जीत जाते हैं पर उनके
प्रभाव वाले क्षेत्र में कांग्रेस औंधे मुंह गिरी नजर आती है। मध्य प्रदेश कोटे से
वर्तमान में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमल नाथ केंद्र में मंत्री हैं। 2004 से ये दोनों
लगातार मंत्री हैं। राहुल गांधी को चाहिए कि इनसे पूछे कि इन्होंने अपने संसदीय
क्षेत्र के अलावा प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए कितने दौरे किए, कितनी जनसभाएं की, कितने कार्यकर्ताओं
से जाकर प्रदेश में कांग्रेस की जानकारी ली। निश्चित तौर पर राहुल अगर ऐसा करते
हैं तो उनके सामने निराशाजनक परिणाम ही सामने आने की उम्मीद है, क्योंकि सभी जानते
हैं कि प्रदेश कोटे से केंद्र में मंत्री बने नेताओं ने प्रदेश से पूरी तरह बेरूखी
वाला रवैया ही अख्तियार किया हुआ है।
सिवनी जिला जो कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था, अब वहां कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। अस्सी
के दशक की समाप्ति पर सिवनी की झोली में आया संसदीय क्षेत्र भी परिसीमन में
षडय़ंत्र के तहत छीन लिया गया और सिवनी के कांग्रेस के नेताओं ने मौन ही साधा हुआ
है। सिवनी में पांच से चार विधानसभा क्षेत्र बचे हैं, जिनमें एक पर ही कांग्रेस का परचम लहरा रहा है। आखिर
क्या कारण है कि कांग्रेस एक विधानसभा सीट तक ही सिमटकर रह गई है। आखिर क्या कारण
है कि लखनादौन नगर पंचायत के चुनाव में कांग्रेस ने एक निर्दलीय को वाकोवर दे दिया
था? क्या
कारण है कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार और सिवनी मण्डला संसदीय क्षेत्र में
कांग्रेस के बसोरी सिंह मसराम के सांसद रहने के बाद भी बड़ी रेल लाईन के बारे में
उन्होंने कोई पहल नहीं की? क्या
कारण है कि 2008 से
रूका फोरलेन का काम आरंभ करवाने सांसद ने लोकसभा में कोई प्रश्न नहीं किया। क्या
कारण है कि सिवनी जिले में भाजपा के विधायको के अनेक मामले उछलने के बाद भी
विधानसभा में एक भी मामला नहीं गूंजा? कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस और भाजपा के सांसद
विधायक मिलकर जनता के सामने नूरा कुश्ती खेल रहे हों? जनता अगर जागी तो निश्चित तौर पर इस साल के अंत में
वह इन नेताओं को हकीकत से दो चार करवा सकती है।
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