चंद लान्स पर
प्रतिबंध!
(शरद खरे)
सिवनी शहर की सीमा
के अंदर एक के बाद एक कुकुरमुत्ते के मानिंद लान उभरकर आए थे। इनमें से अनेक लान
या तो अस्पताल के पास संचालित हो रहे थे, या फिर आबादी वाले क्षेत्रों में। इनमें
होने वाले प्रोग्राम्स के दौरान कानफाडू डीजे से मरीज और आसपास के रहवासियों का
बुरा हाल था। लंबे समय तक इन लान्स को बंद कराने के लिए समाजसेवी अधिवक्ता बाबा
पाण्डे ने पहल की। लंबे समय बाद जिला प्रशासन चेता और इन लान्स में से कुछ लान्स
को नेस्तनाबूत कर दिया गया। शहर के अंदर आज भी कुछ लान धड़ल्ले से संचालित हो रहे
हैं। इन लान्स के पास ना तो पार्किंग है और ना ही अन्य जरूरी अर्हताएं ही ये पूरी
कर रहे हैं जो इनके संचालन के लिए आवश्यक हैं।
नगर पालिका परिषद
सिवनी द्वारा ‘अंधा बांटे
रेवड़ी चीन्ह चीन्ह कर देय‘ वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए लान्स संचालकों को पालिका
प्रशासन ने नोटिस जारी कर कहा कि वे अर्हताएं पूरी करें। अर्हताएं कहां से किस
सक्षम अधिकारी से पूरी करवाई जाएं यह बताना भी नगर पालिका प्रशासन की ही जवाबदेही
है। विडम्बना ही कही जाएगी कि पालिका प्रशासन द्वारा इस संबंध में लान संचालकों को
अंधेरे में रखा गया कि वे फायर संबंधी अनुज्ञा या अनुमति किससे प्राप्त करें।
जिला प्रशासन
द्वारा लान्स संचालकों को अल्टीमेटम देकर लान को नेस्तनाबूत कर दिया। कुछ संचालकों
को समय देकर लान तुड़वा दिए गए। बाकी के लान्स मुंह उठाए धड़ल्ले से संचालित होकर
इन्हें मुंह चिढ़ा रहे हैं। आज शहर में लान का किराया लगभग तीन गुना तक बढ़ चुका है।
लान का किराया कितना हो यह कौन तय करेगा! लान की संख्या कम होने के कारण संचालकों
की मनमानी चरम पर है। संचालक लान को किराए पर देने के साथ ही साथ खाने पीने का
प्रबंध उन्हीं को देने की बाध्यता रख रहे हैं जिससे आम आदमी बुरी तरह लुट रहा है।
लान की सीमित
संख्या के चलते एक बार फिर शहर के अंदर सड़कों पर शादी ब्याह के पंडाल दिखने आम हो
गए हैं। इससे आवागमन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। साथ ही साथ नगर पालिका परिषद
द्वारा शहर के अंदर बनाई गई सीमेंट की सड़कों पर गड्ढ़े हो रहे हैं। इन गड्ढ़ों को
भरने के लिए नगर पालिका एक बार फिर टेंडर निकालेगी और इसमें भ्रष्टाचार की गुंजाईश
से इंकार नहीं किया जा सकता है। सड़कों पर खड़े शादी ब्याह के पंडाल से मोहल्ले के
निवासियों के साथ वहां से होकर गुजरने वाले बुरी तरह हलाकान हो जाते हैं। साथ ही
साथ बचा गंदा बासा खाना कर्इ्र दिनों तक नालियों में पड़ा रहता है जिससे नालियां
दुर्गन्ध से बजबजाती रहती हैं। पंडाल के पास खड़े पानी के टेंकर भी आसपास कीचड़ करते
नजर आते हैं।
बीते कुछ सालों से
शहर में लान संस्कृति के आने से कम से कम लोगों को सड़क पर जाम लगने की दुविधा से
मुक्ति अवश्य मिली थी, पर कुछ लान्स के पास पार्किंग ना होने से वहां सड़क पर जाम
लगने की शिकायतें बहुतायत में आ रही हैं। शादी ब्याह के अवसर पर पंडाल या लान में
सजावट के लिए कपड़ों का इस्तेमाल बहुतायत में किया जाता है। इन पंडाल में आग लगने
का खतरा बना रहता है। देखा जाए तो पंडाल या लान्स में आग बुझाने के इंतजाम नाकाफी
ही कहे जा सकते हैं। नगर पालिका परिषद के पास दो दमकल हैं, जो गर्मी के मौसम
में चौबीसों घंटे व्हीव्हीआईपीज के घरों की टंकियों को भरकर अपनी सांसें फुलाती
रहती है। यही आलम पानी के टेंकर्स का होता है। कहने को पालिका के पास फायर फायटर्स
टेंकर्स हैं पर इन टेंकर्स में लगी मशीन शोभा की सुपारी बनी हुई है। फायर ब्रिगेड
के पास पर्याप्त दूरी का लंबा पाईप ना होने से कभी भी समस्या से दो चार होना पड़
सकता है। यह सब कुछ अदूरदर्शिता का ही परिणाम कहा जाएगा। ज्ञातव्य है कि पूर्व में
सांसद और विधायक रहते हुए श्रीमति नीता पटेरिया ने नगर पालिका परिषद को टेंकर्स
प्रदाय किए थे। वे किस गुणवत्ता के और कितनी कीमत के थे यह बात किसी से छिपी नहीं
हैं। श्रीमति पटेरिया भाजपा की विधायक हैं पर कांग्रेस ने इस भ्रष्टाचार पर अपना
मुंह सिले रखा।
सिवनी की लान की
समस्या पर भी राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर भाजपा को कोसने वाले कांग्रेस के
प्रवक्ताओं ने मौन ही साधे रखा। लगता है कि सियासी दलों के नेताओं और प्रवक्ताओं
को जिले से ज्यादा चिंता देश और प्रदेश की है। वे भूल जाते हैं कि प्रदेश और देश
में कांग्रेस संगठन ने अपने पदाधिकारी और प्रवक्ताओं को पाबंद किया है जो अपनी
जिम्मेवारी का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं। लगता है तू मेरी ढांक मैं तेरी ढांकू की
तर्ज पर जानबूझकर या किसी नेता विशेष के इशारे पर सिवनी में कांग्रेस और भाजपा समन्वय
बनाकर चल रही है।
देखा जाए तो लान पर
प्रतिबंध के मामले में जिला प्रशासन को एक सी नीति को ही अपनाया जाना चाहिए था।
क्या कारण है कि बारापत्थर क्षेत्र के आधा दर्जन लान पर प्रशासन का कहर बरपा पर
बाकी के लान आज भी बेखौफ ही संचालित हो रहे हैं। लान पर प्रशासनिक कार्यवाही को
लंबा समय बीत चुका है, बाकी के लान संचालित हैं इससे लगता है मानो टूटे लान के
संचालकों के प्रति प्रशासन का दुराग्रह वाला रवैया था, वरना क्या कारण था
कि बाकी के लान्स पर आंच तक नहीं आई। आज आलम यह है कि छोटे मोटे लाज, रेस्तरां भी शादी
ब्याह करवाने का दावा करने लगे हैं। इसके लिए बहुत अधिक मात्रा में शुल्क वसूला जा
रहा है। सक्षम लोग तो इनका भोगमान भोग सकते हैं पर वे बेचारे गरीब क्या करें जो
महज तीस चालीस हजार में ही लान बुक करा लिया करते थे? किसी भी विधायक ने
इस मामले को विधानसभा की दहलीज तक ले जाने की जुर्रत नहीं की। जब जिला मुख्यालय की
इस तरह की ज्वलंत समस्या में यह स्थिति है तो सुदूर ग्रामीण अंचलों की समस्याओं के
बारे में सोचकर ही रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा हो जाती है।
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