मुंह देखी अतिक्रमण विरोधी मुहिम!
(लिमटी खरे)
सिवनी शहर के लोग सुकून महसूस कर रहे थे कि युवा एवं उर्जावान जिलाधिकारी
भरत यादव द्वारा शहर में नासूर बन चुके अतिक्रमण को हटाने की मुहिम छेड़ी जा रही
थी। इस मुहिम के आरंभ होते ही लोग बहुत ही प्रसन्न नजर आ रहे थे। अचानक ही पता
नहीं कैसे इस पर ग्रहण सा लगता दिख रहा है, जिससे लोगों में
निराशा होना स्वाभाविक ही है।
सालों से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही
ना किया जाना भी आश्चर्य का ही विषय है। शहर के मुख्य मार्ग अतिक्रमण की जद
में हैं। यहां तक कि नगर पालिका के सामने ही अतिक्रमण पसरा हुआ है तो बाकी की कौन
कहे। इस अतिक्रमण के कारण लोगों का सड़क पर चलना दूभर हो चुका है।
बुधवारी बाजार, नेहरू रोड जैसे
मार्ग तंग गलियों में तब्दील हो चुके हैं। प्रतिष्ठानों के सामने दो पहिया वाहनों
की भरमार से आवागमन अवरूद्ध हुए बिना नहीं रहता है। अस्सी के दशक में कोतवाली
पुलिस की लारी जिसे डग्गा भी कहा जाता था इस सड़क पर जब निकलता तो दुकानदार खुद सड़क
पर आकर वाहनों को अलग कर लिया करते थे। उस वक्त पुलिस वाहनों को इस लारी में भरकर
ले जाया करती थी।
समय के साथ पुलिस पर बनने वाले कानून व्यवस्था के दबाव में यातायात पुलिस
का काम बढ़ गया है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। यातायात पुलिस के पास
अमला भी पर्याप्त नहीं है। जिला संवेदनशील की श्रेणी में है, फिर भी सांसद विधायकों ने पुलिस में तैनाती के लिए भी ठोस पहल
ना किया जाना आश्चर्यजनक ही है। ऐसा नहीं कि सांसद विधायक अगर मुख्यमंत्री या गृह
मंत्री को पत्र लिखें और उनके पत्र पर कार्यवाही ना हो।
बस स्टेंड से छिंदवाड़ा चौक तक वाहन दिल्ली के मानिंद ही रेंगते नजर आते
हैं। इसका कारण सड़कों के किनारे वाले प्रतिष्ठानों द्वारा सड़क पर अतिक्रमण किया
जाना ही है। यातायात पुलिस के साथ ही साथ पुलिस के आला अधिकारी, नगर पालिका एवं जिला प्रशासन के अफसर भी इन मार्गों से होकर
गुजरते हैं पर किसी को भी इसे पटरी पर लाने की सुध नहीं रहती है।
नवागत जिला कलेक्टर भरत यादव एवं जिला पुलिस अधीक्षक मिथलेश शुक्ला ने
सड़कों को अतिक्रमण से मुक्त कराकर चौड़ा करने की मुहिम अवश्य ही चलाई है, पर यह मुहिम राजनीतिक दांव पेंच में उलझती दिख रही है।
वस्तुतः जिला प्रशासन को चाहिए कि वह नेहरू रोड़, जीएन रोड़, शुक्रवारी, बुधवारी आदि स्थानों का नक्शा बुलवाए और इन स्थानों पर सड़कों
की चौड़ाई देखे।
जिला प्रशासन को अगर शहर को अतिक्रमण मुक्त बनाना है तो उसे कठोर कदम
उठाने ही होंगे। नब्बे के दशक के आरंभ में जब बाबू लाल गौर स्थानीय शासन मंत्री
हुआ करते थे तब प्रदेश स्तर पर अतिक्रमण के खिलाफ जबर्दस्त अभियान चलाया गया था।
भोपाल की ग्रेंड होटल को तो एक किनारे में समेट दिया गया था।
सिवनी में उस वक्त तत्कालीन जिलाधिकारी पुखराज मारू एवं जिला पुलिस
अधीक्षक संजय चौधरी की जुगल जोड़ी ने बाबू लाल गौर की मंशाओं को इस कदर मूर्तरूप
दिया था कि शहर खिल उठा था। लोग उस वक्त यह कहने से नहीं चूक रहे थे कि ऐसा लग रहा
है मानो शहर की दाढ़ी ही बना दी गई हो।
शहर भर में खरपतवार की तरह अतिक्रमण पसर गया है। देखा जाए तो यह जवाबदेही
नगर पालिका प्रशासन के साथ ही साथ यातायात पुलिस की है। सालों से दोनों ही
चिरनिंद्रा में लीन हैं। दोनों ही जवाबदेह विभागों ने इस संबंध में कोई भी
कार्यवाही नहीं की है। अगर कोई कार्यवाही हुई भी है तो उस पर भी मुंहदेखी
कार्यवाही के आरोप लगे हैं।
जिला प्रशासन अगर सभी दलों के नेताओं को एक साथ बिठाकर अतिक्रमण के खिलाफ
कार्यवाही को राजी कर लेता है तो यह वाकई एक बड़ी सफलता माना जाएगा। इस काम में
सिवनी में सियासी बियावान में चहलकदमी करने वाले नेताओं को भी निहित स्वार्थ तजना
आवश्यक है।
नेताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह शहर उनका अपना शहर है, इसे संुदर बनाने में उन्हें आगे आना ही होगा। भाई भतीजावाद, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप एक अलग बात हो सकती है, पर जब शहर को साफ सुथरा अतिक्रमण मुक्त बनाने की बारी आए तब
सभी एक सुर से प्रशासन का इसमें साथ दें।
वर्तमान में जिसका जहां मन आ रहा है, वहां चौपाटी तो
कभी हाकर्स कार्नर खोल दे रहा है। नगर पालिका परिषद द्वारा ऐतिहासिक दलसागर तालाब
में चौपाटी की स्थापना करवा दी गई है जो अनुचित ही है। इसका कारण यह है कि इस
चौपाटी के कचरे से दलसागर तालाब के गंदे होने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा
सकता है।
पालिका प्रशासन यह दुहाई अवश्य ही दे सकता है कि उसने वहां डस्टबिन रखवा
दिए हैं,
पर इन कचरादानों में कितने लोग कचरा डाल रहे
हैं यह देखना भी प्रशासन की ही जवाबदारी है। एक दूसरे पर आरोप लगाना, परनिंदा का काम सबसे आसान होता है। इससे आप अपनी जवाबदेही से
तो बच सकते हैं पर सच्चाई से कतई नहीं।
शहर को साफ और अतिक्रमण मुक्त बनाने के लिए यह आवश्यक है कि राजनैतिक दल
के लोग आगे आएं और प्रशासन की इस मुहिम में उसका साथ दें। इसके लिए प्रशासन को भी
पारदर्शी रवैया अपनाना अत्यावश्यक होगा, अन्यथा एक बार
फिर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही को मुंहदेखी कार्यवाही कहने से नहीं चूकने वाले
लोग।
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