मर चुकी है
चिकित्सकों की संवेदानाएं
(शरद खरे)
सिवनी में
स्वास्थ्य सुविधाओं ने दम तोड़ दिया है। अस्सी के दशक तक सिवनी में स्वास्थ्य
सुविधाएं पर्याप्त मानी जाती थीं। सिवनी को विकसित करने, प्रदेश सरकार की
कैबिनेट मंत्री रहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा ने जितने प्रयास
किए उतने शायद ही किसी ने किए हों। एक के बाद एक सिवनी को सौगातें देने वाली
सुश्री विमला वर्मा के प्रयासों से सिवनी में आई विकास की किरण को भी उनके सक्सेसर
जनसेवकों द्वारा संभाल कर नहीं रखा जा सका है।
सिवनी के लिए उनकी
अमूल्य धरोहर है विशालकाय क्षमता वाला जिला चिकित्सालय। प्रियदर्शनी के नाम से
सुशोभित इस जिला अस्पताल का नाम जबलपुर संभाग में बहुत ही सम्मान के साथ इसलिए
लिया जाता था, क्योंकि
यहां हर तरह की सुविधाएं और चिकित्सक मौजूद थे। चिकित्सक घरों के बजाए अस्पताल में
ही जाकर ईलाज को प्राथमिकता देते थे। याद पड़ता है कि उस दौर में शहर में महज चार
या पांच मेडीकल स्टोर्स ही होते थे। मरीजों को दवाएं अस्पताल से ही मिला करती थी।
कमोबेश हर मरीज या उसके परिजन के हाथ में एक कांच की बोतल अवश्य होती थी। इस बोतल
में मिक्सचर (लिक्विड फार्म में दवा का मिक्चर) दिया जाता था। पीली, हरी या लाल गोली
देते वक्त कंपाउंडर मरीजों को दवा का चिकित्सक द्वारा लिखा डोज बताया करते थे। उस
समय चिकित्सक अक्सर जीभ देखकर ही रोग का अंदाजा लगाया करते थे।
कालांतर में
सुविधाएं बढ़ीं। जांच के तौर तरीके उन्नत हुए। इसके साथ ही चिकित्सकों के मन में भी
लोभ जागा। जिला चिकित्सालय की ओर ध्यान ना दिए जाने से यहां चिकित्सकों ने अस्पताल
के बजाए घरों पर ही निजी चिकित्सा पर ज्यादा ध्यान देना आरंभ कर दिया। आलम यह हो
गया कि अस्पताल परिसर में निर्मित रेड क्रास की दुकानों में ही पैथॉलाजी सेंटर और
एक्सरे का काम यहां पदस्थ चिकित्सकों ने आरंभ कर दिया।
सिवनी के सांसद
विधायक मंत्रियों ने इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा। याद पड़ता है कि अंतिम बार
1992 में भाजपा की सुंदर लाल पटवा सरकार के विधि विधायी मंत्री और सिवनी विधायक
पंडित महेश प्रसाद शुक्ला ने इस चिकित्सालय का औचक निरीक्षण किया। इसके बाद किसी
विधायक, सांसद या
मंत्री ने चिकित्सालय की ओर रूख नहीं किया है। चिकित्सालय में दुकानें लग रही हैं।
एक बजे तक मरीजों को देखने के स्थान पर चिकित्सक साढ़े बारह बजे ही अस्पताल छोड़
देते हैं। अपने अपने घरों या फिर प्राईवेट बस स्टेंड में बने हाउसिंग बोर्ड के
शॉपिंग कॉम्पलेक्स में इन चिकित्सकों की दुकानों पर मरीजों की भीड़ देखते ही बनती
है। एक बार पूर्व मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी चौहान ने इन दुकानों की
तालाबंदी की पर इन चिकित्सकों ने अपने अफसर को ही धता बताकर दुकानें फिर खोल लीं।
प्रदेश सरकार ने इन
चिकित्सकों और दवा कंपनियों की जुगलबंदी तोड़ने के लिए जैनरिक नेम से ही दवाएं
लिखने का फरमान जारी कर दिया पर प्रदेश सरकार का खौफ किसे है। यहां तो धड़ल्ले से
जिस कंपनी के एरिया मैनेजर से सौदा पट गया उसकी दवाएं लिखी जा रही हैं। कहा तो
यहां तक जा रहा है कि चिकित्सकों का पिन टू प्लेन तक का खर्च इन दवा कंपनियों
द्वारा उठाया जा रहा है। धनवंतरी के वंशज कहे जाने वाले इन चिकित्सकों की मानवीयता
शायद मर चुकी है। जिला चिकित्सालय में व्यवस्था नाम की चीज नहीं बची है।
जिला चिकित्साल में
कमोबेश नब्बे फीसदी चिकित्सक बीस पच्चीस साल से अधिक समय से पदस्थ हैं। इनकी
ठेकेदारी इस अस्पताल में चल रही है। मरीजों के साथ पशुओं से बुरा व्यवहार करने में
भी इन्हें गुरेज नहीं है। अस्पताल में खून का धंधा जोरों पर है। दवाओं की खरीद में
भी घाल मेल है। पेंशनर्स को मिलने वाली दवाओं का बुरा हाल है। अगर किसी को ब्लड
प्रेशर की कोई दवा लग रही है तो उसे वहां उपलब्ध दवा चाहे लोसार या एटेन ही
मिलेगी। इसके साथ ही साथ जनरल पूल मेें खरीदी जाने वाली मल्टी विटामिन भी पेंशनर्स
के लिए खरीदी जा रही हैं।
इतना ही नहीं एनआरएचएम में क्या कार्य हो रहे हैं इस बारे में किसी को कुछ पता
नहीं है। एनआरएचएम के तहत कितना फंड आता है और उसका अब तक क्या उपयोग हुआ है, इस
बारे में भी स्वास्थ्य महकमा खामोश ही है। गाहे बेगाहे चिकित्सकों द्वारा मरीजों
से पैसा मांगने की शिकायतें भी आम हैं। सिवनी में सालों से पदस्थ रहने वाले
चिकित्सकों ने अपनी अपनी विशाल अट्टालिकाएं खड़ी कर ली हैं। इन अट्टालिकाओं को
बनाने के लिए उनके पास पैसा कहां से आया यह पूछने के लिए कोई भी सरकारी महकमा
तैयार नहीं है। चिकित्सालय में कर्मचारियों चिकित्सकों और पेरामेडीकल स्टाफ का
रोना जब तब रोया जाता है। दो दो विधायकों के पति सिवनी में पदस्थ हैं। सीएमओ अपने
लिए ईयर मार्क आवास के बजाए पुराने अस्पताल में रह रहे हैं। जिला कलेक्टर ने
अस्पताल का भ्रमण किया और कुछ दिशा निर्देश दिए हैं जिसे अच्छी पहल कहकर इसका
स्वागत किया जाना चाहिए। अभी प्रशासन को इस बीमार अस्पताल को पटरी पर लाने के लिए
बहुत कुछ करना बाकी है।
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