नराधम पिता की करतूत
(शरद खरे)
केवलारी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत
ग्राम तुरर्गा में गत दिवस जो कुछ हुआ वह दिल दहलाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता
है। एक पिता आखिर हैवान कैसे बन सकता है? कैसे वह अपनी ही छः साल की मासूम का सिर
कुल्हाड़ी से अलग करने की बात सपने में भी सोच सकता है? अगर ऐसा हुआ है तो निश्चित रूप से यह
मानवता को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त कहा जा सकता है। चुनाव सर पर हैं चुनाव के
दौर में प्रत्याशी अपनी अपनी टिकिट पक्की कराने और मिलने के बाद चुनाव जीतने के
लिए वे तरह तरह के टोने टोटके आजामाने से नहीं चूकेंगे। विधानसभा चुनावों तक आने
वाले तीन माहों में पीर फकीरों की मौजां ही मौजां रहने वाली है।
कमोबेश हर बार चुनाव में टिकिट दिलवाने
या टिकिट मिलने के उपरांत जीत का आश्वासन देकर यज्ञ अनुष्ठान करने बाबाओं ने सदा
ही सिवनी में आमद दी है। पिछले चुनावों में भी टिकिट वितरण के पहले एक बाबा आए और
सिवनी से लगभग दस से बीस लाख रूपए की रकम बटोकर चले गए। जिनसे उन्होंने राशि ली थी, वे इस बात को बेहतर जानते हैं कि बाबा
उन्हें ‘मामा‘ बना गया था, क्योंकि उन्हें टिकिट मिली ही नहीं।
चुनाव के पहले जिले की फिजां में तरह
तरह की बातें तैरने लगती हैं। लोग चर्चाओं के माध्यम से माहौल बनाने से नहीं चूकते
हैं। कोई कहता मुर्गा लाओ कोई बकरा तो कोई शराब की बोतल से टोना टोटके की बात कहता
है। कहीं शराब के नशे में कोई बिरयानी की मांग करता है तो कोई कुछ और। महत्वाकांक्षा
मन में पालने वाले लोग इन कथित बाबाओं की सेवा टहल में कोई कमी नहीं रख छोड़ते हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि मोबाईल, इंटरनेट के जमाने में जब दुनिया चांद
सितारे पर कदम रखना तो छोड़िए इंसान बसने की बात कर रहा है उस दौर में भी चौदहवीं
पंद्रहवीं सदी के टोने टोटकों पर दुनिया विश्वास कर रही है। आज न जाने कितनी जगह
पीर फकीरों के मंदिर, दरगाह बन गए हैं, जिनमें बड़ी तादाद में आ रहे चंदे से
उसकी देखरेख करने वाले ऐश कर रहे हैं। आज के युग में किसी बच्चे, जवान से अगर पूछा जाए तो वह टोना टोटका
पर विश्वास शायद ही करता होगा।
याद पड़ता है कि अस्सी के दशक के आरंभ तक
भैरोगंज में दलसागर तालाब के मुहाने पर महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल के सामने वाला
इमली का पेड़, मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला के पीछे का इमली का पेड़, दीवान महल से कटंगी नाका मार्ग पर
वर्तमान में बने सामुदायिक भवन के सामने के इमली के पेड़ आदि के बारे में
किवदंतियां थीं, कि इन पर चुडैल रहा करती है। उस समय शाम ढलने के बाद लोग अकेले इन
निर्जन स्थानों से गुजरने से कतराते थे। कालांतर में लोगों को समझ में आया कि वह
डर महज वहम ही था।
आज की पीढ़ी को भूत प्रेत, चुडैल, चांडाल आदि पर शायद ही यकीन हो। बावजूद
इसके अगर केवलारी में गत दिवस एक पिता ने अपनी पुत्री का सिर धड़ से अलग कर दिया और
पूजन पाठ करने लगा तो यह वाकई बहुत अच्छा संकेत कतई नहीं माना जा सकता है। अब तो
टीवी चेनल्स पर भी लोग भूत प्रेत की कथाओं वाले सीरियल देखना पसंद नहीं करते हैं क्योंकि
यह पीढ़ी इक्कीसवीं सदी की पीढ़ी है। इस पीढ़ी को पता चल चुका है कि भूत प्रेत के
सीरियल दिखाकर लोग उनका समय खराब कर रहे हैं। कल तक लोग इससे डरा करते थे, पर जागरूकता के कारण उनका डर काफूर हो
चुका है।
हैवान पिता मानसिक विक्षिप्त है या नहीं
यह बात तो जांच के बाद ही सामने आएगी, किन्तु अगर उसने अपनी पुत्री का गला
रेतकर उसकी इहलीला समाप्त की और पूजन पाठ करने का जतन किया तो यह हमारे समाज के
लिए खतरे की घंटी से कम नहीं हैै। हमें यह सोचना होगा कि वह विक्षिप्त या ठीक जो
भी है उसके दिमाग में अपनी पुत्री को मौत के घाट उतारकर पूजा करने की क्या सूझी? आखिर उसके दिमाग में यह बात कहां से घर
कर गई? आखिर वह पूजा पाठ या कथित अनुष्ठान कर रहा था तो उसका उद्देश्य क्या था? पुलिस को चाहिए कि वह यह भी पता लगाए कि
आखिर इंसानियत को बलाए ताक पर रखने वाला पिता पिछले कुछ दिनों से किनके संपर्क में
था? अगर वह मानसिक विक्षिप्त था तो उसके परिजन खासकर उसकी पत्नि को तो इस
बात का इल्म रहा ही होगा? क्या उसकी विक्षिप्तता का ईलाज करवाया जा रहा था?
जो भी हो, पर अब हमें इस बात का चिंतन अवश्य ही
करना होगा कि आखिर हम अपने निहित स्वार्थों के चलते खुद तो पैसा बनाकर आराम का
जीवन जीना चाह रहे हैं पर हम अपनी आने वाली पीढ़ी और समाज को क्या दिशा दे रहे हैं? भारत गणराज्य को आजाद हुए साढ़े छः से
ज्यादा दशक बीत चुके हैं। क्या हमारे सांसद विधायक अपने अपने दिल पर हाथ रखकर कह
पाएंगे कि गांव गांव में जागरूकता आ चुकी है? जाहिर है नहीं, अगर आ गई होती तो जिले भर में
कुकुरमुत्ते के मानिंद झोला छाप डॉक्टर्स का नेटवर्क नहीं होता। ओझा, लोगों का ईलाज नहीं कर रहे होते? लोग ईलाज के अभाव में भभूति खाकर दम
नहीं तोड़ते!
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