प्रस्तावित संभाग में है सकारात्मक सोच
नये विदर्भ राज्य के साथ जाने में नहीं
किसी को कोई आपत्ति
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। जिले एवं पड़ोसी जिलों के
राजनेता वर्ग भले ही अपने दायित्वों को पहचान कर उसका निर्वहन उचित ढंग से न कर
पाते हों किंतु प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ ने हमेशा अपने दायित्वों का निर्वहन पूरी
सजगता और ईमानदारी से किया है। यह सर्वविदित है कि सिवनी को संभाग का दर्जा देने
का सुझाव भी सबसे पहले मीडिया के माध्यम से ही सामने आया था जिसे जिले के
राजनेताओं ने अपना स्वर देकर उसे बल पंहुचाया था।
पांच सालों तक प्रदेश सरकार से संभाग के
मामलेे में निराशा झेलने के बाद अब प्रस्तावित संभाग के लोगों का हित संभावित रूप
से अस्तित्व में आ सकने वाले नये राज्य के साथ समाहित होने में देखते हुए मीडिया
ने प्रस्तावित संभाग के तीनों जिलों सिवनी छिंदवाड़ा और बालाघाट को नये प्रदेश के
साथ जोड़ने की मुहिम का आगाज किया है। सोशल मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया के इस
फास्ट जमाने में भी नई मुहिम के लिये यह एक शुभ समाचार ही है कि अभी तक प्रस्तावित
संभाग के तीनों जिलों में से किसी भी जिले से ऐसी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीे आई
जिससे ऐसा प्रतीत होता हो कि इस अंचल में उस मुहिम के प्रति कोई नकारात्मक सोच
सामने आती हो।
इसका आशय यह हुआ कि प्रदेश के मुखिया
द्वारा स्वयं इस अंचल के तीनों जिलों को मिलाकर नया संभाग बनाने की बात करने और उस
वचन को न निभाने से स्वयं को छला सा महसूस करने वाले इस अंचल के लोगों में उस
वचनभंग के प्रति काफी आक्रोश व्याप्त है और मीडिया की मुहिम के प्रति मौन समर्थन
व्यक्त कर इस अंचल की जनता ने अपने आक्रोश को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है।
स्थानीय मीडिया के इस सकारात्मक प्रयास
को नेशनल मीडिया ने स्थान देकर अपने उत्कृष्ठ दायित्व का निर्वहन कर स्थानीय मुहिम
को व्यापक स्वरूप प्रदान कर दिया है जिसका लाभ निश्चित रूप से इस पिछड़े और उपेक्षित
अंचल को भविष्य में अवश्य प्राप्त हो सकेगा। यह बात सर्वविदित है कि मीडिया अपनी
मुहिम केवल कलम के माध्यम से ही चला सकती हैं उसे जनआंदोलन का स्वरूप देने का
दायित्व राजनैतिक और सामाजिक संगठनों को निभाना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि
प्रस्तावित संभाग का यह अंचल सामाजिक और राजनैतिक आंदालनों से महरूम हो।
समय समय पर इस अंचल के लोगों ने अपने
अपने स्तर पर अपने अधिकारों के लिये सड़को पर उतर कर अनेक आंदोलन किये हैं और अनेक
ऐसे गैर राजनैतिक संगठन मौजूद हैं जो इस उपेक्षित अंचल को उसका वाजिब हक दिलाने के
लिये अहिंसात्मक जन आंदोलन का रास्ता अपनाकर राजनेताओं और सरकारों का ध्यान अपनी
मुहिम की ओर खींच सकने में सक्षम है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि उस जनआंदोलन
को व्यापक एवं संगठित स्वरूप प्रदान कर आम नागरिकों को उस के संभावित लाभ से अवगत
कराकर उन्हें इस मुहिम के साथ मानसिक रूप से आबद्ध होने के लिये तैयार किया जाए।
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