ब्रॉडगेज फोरलेन की राह पर एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान
(शरद खरे)
सिवनी में सियासी नेतृत्व नपुंसक हो चुका है इस बात से इंकार नहीं किया जा
सकता। जबसे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुश्री विमला वर्मा को षणयंत्र के तहत सक्रिय
राजनीति से किनारे कर घर बिठाया गया है, उसके बाद से
सिवनी में आत्म केंद्रित राजनीति का आगाज़ हो चुका है। सिवनी में हो रही सियासी
हलचलों से जनता अनजान नहीं है, पर वह मजबूर है
कि उसके पास दूसरा विकल्प ही नहीं है।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं वरन गर्व अनुभव होता है कि सुश्री विमला
वर्मा की देन से आज सिवनी पूरी तरह समृद्ध है। सिवनी की झोली में कुछ डालना तो दूर
सुश्री वर्मा के द्वारा दी गई सौगातों को ही सहेजकर रख नहीं पाए उनके बाद सियासी
पारी खेलने वाले सांसद या विधायक। एक के बाद एक विरासतें सिवनी से छिनती रहीं और
कांग्रेस भाजपा के नुमाईंदे कभी कभार ही विज्ञप्तियां जारी कर अपने कर्तव्यों की
इतिश्री करते रहे।
ब्रॉडगेज का सपना दो ढाई दशकों से सिवनी को दिखाया जा रहा है। 2006 में
तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के सामने स्व.हरवंश सिंह के नेतृत्व में
कांग्रेस का जत्था गया और लौटकर खूब नाचा, खुशियां मनाईं, फाग गाए कि बस रेल लाईन आ ही गई। सालों पुराने छिंदवाड़ा से
नैनपुर रेल खण्ड के अमान परिवर्तन का काम आज भी आरंभ नहीं हो सका है। आज ये नेता
एक बार फिर जनता की असली अदालत में जाने वाले हैं। उस वक्त मीडिया में विज्ञापन
छपाकर वाहवाही लूटने वाले कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के सामने शर्म का संकट भी
नहीं है कि अगर किसी ने पूछ ही लिया कि 2006 में जो हुआ था उसके बाद अब तक बड़ी रेल
लाईन की सीटी की आवाज सिवनी में क्यों सुनाई नहीं दे रही है? इनके पास रटा रटाया जवाब है।
ये सारे के सारे मिलकर सिवनी के सामने एक शख्सियत को पुरानी फिल्मों में ‘शत्रुध्न सिन्हा‘ और ‘प्रेम चौपड़ा‘ के मानिंद विलेन
जो बना चुके हैं। कांग्रेस परोक्ष रूप से ‘जानते तो हो यार‘ और भाजपाई साफ तौर पर उस शख्सियत का नाम लेकर अपनी बला दूसरे
के सर आसानी से डाल देते हैं। हाल ही में सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर सिवनी
मण्डला के सांसद बसोरी सिंह मसराम की एक फोटो युक्त अखबार की कतरन पड़ी है जिसमें
गर्व से कहा गया है कि अब गूंजेगी डिंडोरी में ब्रॉडगेज की सीटी। क्या कांग्रेस के
सिवनी के नुमाईंदे अब भी भाजपा सांसद के.डी.देशमुख को ही कटघरे में खड़ा करेंगे? क्या विज्ञप्तिवीर कांग्रेस के प्रवक्ताओं या नेताओं के अंदर
इतना माद्दा है कि वे अपनी ही पार्टी के सांसद बसोरी सिंह मसराम को इसके लिए कटघरे
में खड़ा करें कि बसोरी सिंह सिवनी के भी सांसद हैं, और बतौर सांसद उन्होंने सिवनी के लिए लोकसभा में कौन सी आवाज
उठाई?
यही हाल फोरलेन का है। 2008 में फोरलेन के निर्माण में जो फच्चर फंसाया
गया वह फांस आज भी सिवनी के शरीर में घाव बनी साफ दिख रही है। इस घाव से बहता
बदबूदार मवाद भी किसी को नहीं दिख रहा है। फोरलेन मामले में भी सियासी पार्टियों
के साथ ही साथ गैर राजनैतिक मंचों ने भी जमकर रोटियां सेंकी और सियासत कर जनता को
भरमाया। जनता को लगा, ये सारे के सारे
सफेदपोश बागड़बिल्ले उनेक लिए लड़ रहे हैं, वस्तुतः ये सारे
के सारे तो अपने लिए ही काम कर रहे थे। कोई सद्भाव कंपनी का एजेंट था तो कोई
मीनाक्षी कंपनी का।
कुल मिलाकर सिवनी के भाग्य में नपुंसक नेतृत्व के चलते रोना ही लिखा है।
अस्सी के दशक में तत्कालीन जाबांज नेता हरीश क्षेत्रपाल अक्सर कहा करते थे, ‘‘यहां कुछ नहीं हो सकता है यारों, यह मुर्दों का शहर है।‘‘ सिवनी में प्रौढ़
हो रही पीढ़ी इस बात को अच्छे से जानती होगी कि सिवनी के लोगों में हॉकी के प्रति
दीवानगी का क्या आलम था। कोतवाली के सामने वाले मैदान में शाम ढलते ही जब ब्रदर्स
क्लब की प्रेक्टिस हुआ करती थी तो लगता था मानो अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मैच हो रहा
हो। आने जाने वाले बरबस ही रूककर इस प्रेक्टिस को देखने मजबूर होते थे। बाबा
राघवदास हॉकी प्रतियोगिता में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी सिवनी
में आया करते थे। उस वक्त खेल भावना देखने लायक होती थी। पुलिस ग्राउंड में मैच के
दौरान पैर रखने की जगह नहीं होती थी।
आज हॉकी का सिवनी में क्या स्तर हो गया है यह बात किसी से छिपी नहीं है। सिवनी
के लिए पूर्व विधायक नरेश दिवाकर ने एक एस्ट्रोटर्फ हॉकी मैदान की सौगात दिलवाई
जिसके लिए सिवनी वासी उनके आजीवन ऋणी रह सकते हैं। पर इस सौगात को अब तक खिलाड़ियों
तक न पहुंचा पाने के लिए सिवनी का खेल जगत विशेषकर हॉकी प्रेमी उन्हें दिल से दुआ
तो कतई नहीं दे रहे होंगे। इक्कीस माह से अधिक समय हो चुका है जबकि यह मैदान तैयार
हो चुका है। इस मैदान को महज इसलिए लोकार्पित नहीं किया जा सका है क्योंकि
मुख्यमंत्री के पास इसके लिए समय नहीं है। साथ ही साथ इसका नाम हॉकी के जादूगर
मेजर ध्यानचंद के नाम पर किया जाना प्रस्तावित है। हमारा कहना महज इतना ही है कि
सीएम अगर व्यस्त हैं तो सिवनी के ही किसी वयोवृद्ध हॉकी खिलाड़ी से इसका फीता कटवा
दिया जाए,
साथ ही साथ हमारी व्यक्तिगत सोच है कि मेजर
ध्यानचंद के नाम पर तो देश भर में स्टेडियम की कमी नहीं है, बेहतर होगा कि किसी स्थानीय हॉकी खिलाड़ी के नाम पर इसका
नामकरण किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी कम से कम उस हॉकी खिलाड़ी को जाने और अपना
आदर्श बनाए। वस्तुतः ऐसा होगा नहीं, क्योंकि हमारे
सियासी दलों में स्थानीय समस्याओं या प्रतिभाओं को निखारने का रिवाज जो नहीं रह
गया है।
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