एस्ट्रोटर्फ: देर
आयद दुरूस्त आयद!
(शरद खरे)
सिवनी के हॉकी
खिलाड़ियों के लिए यह राहत की बात है कि 22 सितम्बर से उनके लिए सिंथेटिक हॉकी मैदान
खेलने के लिए खुलने वाला है। यह सिवनी के नागरिकों विशेषकर हॉकी के खिलाड़ियों के
लिए बहुप्रतिक्षित था। लंबे समय से लोग इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। वर्ष 2011 के दिसंबर माह में
टर्फ बिछकर तैयार थी। इसके उपरांत इसे पूर्ण करने में लगभग 20 माह का समय लग
गया। यह बीस माह का समय कम नहीं होता है।
हो सकता है कि इसे
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों लोकार्पित करवाने के लिए भाजपा के
जनसेवकों ने एड़ी चोटी एक कर दी हो। संभवतः इसी कारण इसका शेष काम मंथर गति से
चलाया गया हो। अब चुनाव की आचार संहिता लगने के पूर्व इसे लोकार्पित करना बेहद
जरूरी हो गया था। वरना यह काम चुनावों के उपरांत अर्थात दिसंबर या जनवरी में नई सरकार
चाहे वह कांग्रेस की बनती या भाजपा की तीसरी पारी होती, जो कि भविष्य के
गर्भ में है के हाथों संपन्न होता। तब इसका पॉलीटिकल माईलेज शायद ही भाजपा ले
पाती। अगर भाजपा सरकार बनती और भाजपा इसका लाभ ले भी पाती तो विधानसभा चुनावों में
तो हॉकी प्रेमियों को निराशा ही हाथ लगती। हो सकता है कि भाजपा को इस मामले मेें
एक डर भी रहा हो कि कहीं विपक्षी कांग्रेस द्वारा इसे मुद्दा बना लिया जाता तो
भाजपा को उल्टे बांस बरेली के झेलने पड़ जाते।
सिवनी में सिंथेटिक
हॉकी के मैदान की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी, इस बात से इंकार
नहीं किया जा सकता है। सिवनी में हॉकी के लिए कोई मैदान आरक्षित नहीं है। ले देकर
पुलिस ग्राउंड ही है जहां हॉकी खेली जाती है। दशकों पहले कोतवाली के सामने वाले
मैदान पर हॉकी का अभ्यास हुआ करता था। प्रौढ़ हो रही पीढ़ी इस बात को गर्व के साथ
युवा पीढ़ी को बता सकती है कि उस वक्त ब्रदर्स क्लब की प्रेक्टिस के दौरान दर्शकों
का जुनून देखते ही बनता था। उस समय आने जाने वाले पैदल और सायकल सवार (चूंकि उस
वक्त मोटर सायकल स्कूटर अधिक मात्रा में नहीं हुआ करते थे) रूककर घंटों इनके
अभ्यास को देखने पर मजबूर हो जाया करते थे। रोजाना होने वाले अभ्यास में ऐसा दृश्य
बन जाता था मानो यहां कोई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता हो रही हो।
कालांतर में
जनसेवकों के ध्यान न दिए जाने से सिवनी में हॉकी रसातल की ओर अग्रसर होती गई। हॉकी
संघ भी महज शोभा की सुपारी ही बनकर रह गए। सिवनी के नामचीन हॉकी खिलाड़ियों की
फेहरिस्त बहुत लंबी है, पर अचानक ही नब्बे के दशक के आगाज़ के उपरांत हॉकी खिलाड़ियों
का प्रदर्शन प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर बोथरा होता गया। एक जमाना था जब सिवनी
में बाबा राघवदास,
अशोक एण्ड अशोक आदि हॉकी स्पर्धाएं खेली जाती थीं। इन
स्पर्धाओं में अपने जमाने के हुनरमंद हॉकी खिलाड़ी राजेंद्र गुप्त, यहूसु होलू, के साथ ही साथ
अपेक्षाकृत युवा संतोष पटेल आदि अंपायरिंग करते दिखते तो उस वक्त की जवान पीढ़ी
अपने आपको आनंदित महसूस करती। पुलिस ग्राउंड में मैच के दौरान यह आलम होता कि पैर
रखने को जगह नहीं मिलती।
उस समय बाहुबली
होटल के संचालक ठाकुर दास जैन उर्फ ढब्बू भैया आदि की मित्र मण्डली खिलाड़ियों का
उत्साह इस कदर बढ़ाती नजर आती कि खिलाड़ियों के हौसले आसमान छूने लगते। वह एक दौर था
जब तत्कालीन सांसद पंडित गार्गी शंकर मिश्र भी जमीन पर बैठकर हॉकी के मैच का लुत्फ
उठाते। आज वह नजारा देखने को नहीं मिलता है। हॉकी के शौकीनों की आज भी सिवनी में
कमी नहीं है। हॉकी के कदरदान तो बहुत हैं पर सिवनी में हॉकी ने दम तोड़ दिया है।
सिवनी को
एस्ट्रोटर्फ मैदान मिलने से इस बार हॉकी के खिलाड़ियों और हॉकी प्रेमियों के मन में
उत्साह का संचार होना लाजिमी है। एक यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है, कि अगर दिसंबर 2011 में सिंथेटिक शीट
को बिछा दिया गया था तो आखिर 20 माह तक इंतजार किस बात का किया गया? क्या बीस माह तक
सिवनी के हॉकी के उदीयमान खिलाड़ियों को इस तैयार मैदान पर खेलने से रोककर हॉकी संघ
या जनसेवकों ने उनका गला नहीं घोंटा है? अगर इसका लोकार्पण प्रभारी मंत्री के हाथों
ही होना था तो बीस माह मुख्यमंत्री का इंतजार क्यों किया गया?
बहरहाल, देर आयद, दुरूस्त आयद की
तर्ज पर हॉकी के मैदान का लोकार्पण हो रहा है। बीती ताहि बिसार दे की तर्ज पर इसका
स्वागत किया जाना चाहिए। अब आवश्यक्ता इस बात की है कि हॉकी के इस सिंथेटिक मैदान
की गरिमा किस प्रकार बरकरार रखी जाए इस बारे में विचार किया जाए। इस मामले में
हमारी निजी राय में जिस तरह स्टेडियम को फुटबाल मैदान में तब्दील कर उसका बेहतरीन
रखरखाव किया है, एम.के.नेमा
ने इसी तरह किसी सक्षम अधिकारी या एम.के.नेमा के ही हवाले कर दिया जाए यह हॉकी का
मैदान। आज स्टेडियम की गरिमा बरकरार है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। लोग
सुबह शाम यहां पैदल सैर भी किया करते हैं। इस लिहाज से हॉकी के इस मैदान की
सुरक्षा का भी माकूल इंतजाम करना निहायत जरूरी है। हॉकी का मैदान प्राईवेट बस
स्टैंड के मुहाने पर है। शाम ढलते ही बस स्टैंड के इर्द गिर्द मयकशों का हुजूम लग
जाता है। अगर हॉकी के इस मैदान की सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात मुकम्मल नहीं हो पाए
तो इसके ओपन बार में तब्दील होते देर नहीं लगेगी। उसके बाद पुलिस अधीक्षक के अधीन
कार्य करने वाला खेल एवं युवक कल्याण विभाग के सर पर सुबह सवेरे इस मैदान के आसपास
से डिस्पोजेबल ग्लास, पानी के पाऊच और खाली प्लास्टिक की बोतलें, शराब के अध्धे
पव्वे, नमकीन की
पन्नियां, सिगरेट के
टोटे और माचिस बिनवाने का सरदर्द अलग से आन पड़ेगा।
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